Saturday, October 28, 2023

मैथिली साहित्य मे यात्रीक महत्व

        


        तारानंद वियोगी

   यात्री पर लिखल अपन एक कविता मे भीमनाथ झा लिखलनि अछि जे जाहि यात्रीक नेतृत्व आ प्रभाव आब' बला समस्त युग धरि व्याप्त रह' बला छनि, ओहि यात्री कें केवल एहि एक युगक युगपुरुष कोना कहल जा सकैत अछि! हुनकर तात्पर्य छनि जे युगपुरुष तँ सब युग मे क्यो ने क्यो होइते छथि, यात्री तँ एहि समस्त युग सभक महानायक थिका। कवि भीमनाथ भने कविता मे ई बात कहने होथु मुदा ई कथन नितान्त सत्य एवं तथ्य थिक।

                    कविवर सीताराम झाक बाद मैथिली कविता जाहि घुमान-विन्दु पर ठाढ़ छल, तकर परिस्थिति कें देखने बात स्पष्ट भ' सकैत अछि। 1930क बाद भारतीय स्वाधीनता-संघर्षक लहरि गाम-गाम धरि पहुँचय लागल छल। स्वराज एक एहन सेहन्ता बनि क' उभरल जे व्यक्ति-व्यक्ति कें नवीन आकांक्षा सँ भरि देलकै आ लोक अपन सर्वस्व समेत एकर समर्थन मे जुटि पड़ल। गांधी जीक बारे मे जे चमत्कारी किंवदन्ती सब गाम-गाम मे पसरल रहैक, तकर जड़ि मे जनताक यैह मनोविज्ञान छल। 'स्वराज एतै तँ सभक दिन फिरतैक-- हमरो... तोरो...।' --ई कोनो खास रचना मे लिखल गेल उक्ति मात्र नहि छल, भारतीय जन-समुदायक सामूहिक स्वप्न छल। गांधी जी स्वयं प्राणपण सँ ई चेष्टा कयने रहथि जे स्वराजक इजोत हाशिया परहक ओहि अन्तम मनुष्य धरि पहुँचय, जकरा घर मे सदा सँ अन्हार व्याप्त रहलैक अछि। किसान सभाक कम्यनिस्ट राजनीतिक संगें जमीन्दारी उन्मूलनक लक्ष्य एहि मे शामिल कयल गेलैक, जे कि अन्तत: साकारो भेल, तँ जन-समुदायक जोश कते बढ़ि गेल हेतै, एकर अनुमान कयल जा सकैए। दोसर दिस, बीसम शताब्दी वैज्ञानिक चेतनाक शताब्दीक रूप मे आकार लेब' लागल रहय। डार्विन, फ्रायड, आइंस्टीन आ गांधी-- बीसम शताब्दीक विश्वक जे ई चारि गोट महानायक सौंसे संसार मे मान्य छथि, एहि मे सँ तीन गोटेक सम्बन्ध तँ वैज्ञानिक चेतनेक संग छलनि। तेसर, सौंसे संसार एहि तरहें घुमान ल' रहल छल जे आब' बला समय लोकतांत्रिक मूल्य-स्थापनक समय हेबाक रहैक, जाहि मे स्वतंत्रता, समता आ बन्धुत्व एक सार्वभौमिक तत्व हेबाक रहैक। आ, साहित्य कें एहि सभक संवाहक।

               जँ एम्हर मैथिली साहित्यक तत्कालीन परिस्थिति कें देखी आ विचार करी जे एकरा आगां जा क' की हेबाक रहै? बीसम शताब्दीक विश्व आ बीसम शताब्दीक भारत मे बीसम शताब्दीक मिथिला कें की हेबाक रहै? मैथिली साहित्य कें की हेबाक रहै? एहि समस्त भविष्य-दृष्टिक संग देखी तँ यात्रीक कविता 'कविक स्वप्न'(1941) हमरा सभक सामने उपस्थित होइत अछि। ई समय यात्रीक ओ अवस्था छलनि जे ओ बौद्ध आदि भ'क', किसान सभाक राजनीति आदि क' क', अंतिम रूप सँ निर्णय क' चुकल छला जे ओ लेखक बनता, लेखनक वृत्ति अपनौता। तें एहि कविता कें जे आलोचक मैथिलीक पहिल आधनिक कविता मानैत छथि, आ 'चित्रा' कें पहिल आधुनिक काव्यसंग्रह, ओ बिलकुल सम्यक आ समीचीन बुझना जाइत छथि। युगक भीतर युग होइत छैक जेना विधाक भीतर विभिन्न प्रकारक काव्यान्दोलन। यात्री आधुनिक मैथिली साहित्यक एहन युगनिर्माता छला, जकरा व्याप्तिक भीतरे आगामी साहित्य कें गतिशील हेबाक रहैक।

               मैथिली उपन्यास मे हरिमोहन झाक उदय पहिनहि भ' चुकल रहनि। चेतनाक वैह विस्फोट हुनको साहित्य मे भेल रहनि जकर उल्लेख हम ऊपर केलहुं। मुदा, एहि भविष्य-दृष्टि कें सोझा रखबाक लेल जे साहस अपेक्षित रहैक आ जकर अभाव हरिमोहन झा मे छलनि, ओही अभावक पूर्ति हेतु ओ हास्यरसक आश्रय लेलनि। सामंती आ जीर्णतावादी लोकनिक समाज मे विरोध तँ हुनकर खूब भेलनि, मुदा जाहि महापुरुष कें नवजागरणक मसीहा बुझबाक रहै, तकरा मैथिल लोकनि 'हास्य रसावतार' बुझलनि। 'कन्यादान' मे जे हास्य छैक, से असल मे एक कोड थिक जकरा डिकोड करबाक आवश्यकता रहैक। समाज से नहि केलक। हुनकर जाहि गुणक आगू नकल करबाक कोशिश कयल गेल, से ई हास्य रसे छल, जे कि पूर्ण रूपें असफल भेल। अनका मे ने ओहि कोटिक प्रतिभा छलनि, ने बोध। आगू यात्री पारो-नवतुरिया-बलचनमा

ल' क' एला जाहि मे कोनो कोड छलहि नहि। सब किछु साफ-साफ छल, डाइरेक्ट छल। ई काज ने केवल यथार्थ कें वाणी देबाक काज छल, ओहि अतीतजीवी समाजक समक्ष जिन्दा तप्पत यथार्थ कें सोझासोझी प्रकट क' देबाक काज सेहो छल। अनुकूलन आ समायोजन एकर बाद आगू जा क' भेलैक। साहित्यक प्रगति उत्तरोत्तर आगू बढ़ैत रहल। कोनो समाज केवल समयक दबाव मे बदलैत छैक आ कि एहि मे साहित्य आ विचारक सेहो कोनो भूमिका रहैत छैक, ई विषय गहन थिक। हँ, एतबा धरि निर्विवाद जे मैथिली साहित्य कें आधुनिक आ युगीन बनेबा मे यात्रीक भूमिका सर्वकालिक छनि।


No comments: