Friday, January 26, 2018

।।मांगनलाल।।












।।मांगनलाल।।
तारानंद वियोगी

(मिथिलाक प्रसिद्ध दलित गायक(1900-1045), जे विद्यापति-गीत कें पहिल बेर स्वरबद्ध क' एकल गेलनि, मुदा जिनकर स्वरक अवशेष आब बांकी नहि अछि)

कहथि बाबा साहेब--
झुकह, किएक तं झुकब थिक
मनुष्यताक चरम अहोभाग्य,
मुदा एतेक नहि झुकह
कि मालिक तोरे रीढ़ पर सवार भ'
कहाबथि नरवाहन, करथि सात पुस्तक उद्धार,
आ तोरा लेल पिपरो तर मे बास नहि--
कहथि बाबासाहेब भीमराव

से मुदा, अहां लेल नहि कहथि
ओ एकटा अनागत भविष्य लेल कहै छला
भविष्य तं जहिया अबितय तहिया
अहां कोना क' सकै छलहुं इनकार मांगनलाल
कि अहांक रीढ़ नहि थिक मालिकक वाहन
कि अहां आर अधिक झुकबा सं नासकार जाइ छी,
अहां कोना बाजि सकै छलहुं ठांहि-प-ठांहि बोल?

आदमी छलहुं तते मृदुल तते लुरगुज
जे सिरमा जकां माथ तर लै जोग छलहुं
लय जे गूंजय अहांक भीतर अहोरात्र
तकर छिटका तुहिनकण जकां चारूभर सदिखन बिदमान
गंगा नहाइ लेल लोक की जैतथि
गप क' लीतथि अहां संग दू पद जीवनक भास,
ध्वनि सं बनल जेना कोनो कलरव आकार!
अहां कोना कहि सकै छलहुं तरुआरि सं
जे हम नै कटबौ, जो छिटक
अहां कोना क' सकै छलहुं इनकार?

सभ्यता, जाहि मे लगहरि गाय कहाबथि माता
आ बिसुकल कसाइ हाथें बेचल जाथि,
क्यो कोना विश्वास क' सकै छथि
जे अहां करितहुं इनकार
आ से हुनका सहन भ' जैतियनि
ओ वैह करितथि जे कि ओ केलनि
ओ खुंडी खुंडी फोड़ि क'
मटिया तेल सं जरबितथि
अहांक जाबन्तो ग्रामोफोन मास्टर रेकर्ड
जे कि ओ वास्तव मे केलनि।

अहां तं जीलहुं मात्र संगीतक औरदा
कोनो बेहुसल नै कहियो केलहुं
संगीत-सन चाहलहुं अपन चौबगली समस्वरता
जखन कि ओ सब चीत्कार सुनबाक व्यसनी रहथि,
झ'र पड़ल जं लय मे तं कनी एकात भ' गेलहुं
नै नै, लोक तं एना मे देश छोड़ि दै छथि मांगन,
अहां तं बस दरबार छोड़लहुं।
हम, एहि देश के एक जिम्मेवार कवि
हाथ उठा क' कहै छी
अहां कोनो अपराध नहि केलहुं।

एकात भेलहुं कनी समस्वरता-हित
तखन तं ओ सब ई केलनि
जं कदाच इनकार केने रहितहुं
तखन ओ अहां कें कोना क' मारितथि
औ पंडित मांगनलाल?

संस्कृति, जाहि मे जनौधारी पद सं हक तौलल जाइत हो,
संगीत केवल अबल-दुबल के बेजुबान सलामी थिक
प्रभु-पद माथ पर बनल रहौ तदर्थ जयगान,
एम्हर अहां मनुष्यताक अस्मिता बनौने घुम' चाहैत रही चारू धाम
ओ कोना क' लीतथि बरदासक नाम?

विद्यापति कें गाबियनि अहां
जे कि ताधरि मौगिये मेहरारू मे छला आबाद कि दलित मे
जकरा पर कान-बात देनिहार क्यो नहि
स्त्रिगण जं गबितथि--
मोरे रे अंगनमा चंदन केर गछिया
तं ओ सुनियो सकै छला रभस के आह्लादवश
कि चमन लागै छै आंगन
मुदा, अहां कोना गाबि सकैत रही?
अहां तं राड़-रोहिया खवास धानुक
अहां के तं अंगनमा मालिक केर जुतबा
अहां कोना चाहि सकैत रही चनन घन गछिया?

उत्पीड़ित समुदाय के
अंतिम शरणस्थली होइ जनु संगीत
जे ओकरा जिया क' रखतै
टूट' भहर' देतै नहि जीवनराग,
भोर तं जहिया जा क' हेतै तहिया
आ सेहो ककरो कहियो ककरो कहियो
राति जं हो कनेको दिपमान
तं उचिते भोर के बढ़ै छै उजास
जेना देखू जे अहांक वंशधर
आइ प्रदेशक प्रमुख पत्रकार छथि,
एही भोरक अहां राति छलहुं दिपमान
जे कि अहांक राग के छिटका सं भिजैत छल

अहां गाबी राग तिरहुत मे
राधा रानीक वेदना
तं लगैए जेना पुल बनबी
एहि पार ओहि पारक बीच,
हिस्सक लगबी संग संग चलबाक
मरणमुख सभ्यता कें झमारि क' जगबी,
पुल बनबैत रही आबाजाहीक
तं बुझू सभ्य बनबैत रही मिथिला कें मांगन!

मुदा, तान कें नि:शब्द मे करैत अनूदित
अहां बिसरि जाइ
जे शिष्ट कें नै बनाओल जा सकैछ सभ्य
मानू पाग पर नहि बैसि सकैत होइ माछी
नहि बन' देलनि ओ पुल
अहां जेना कोनो नि:शब्द मे भेलहुं व्यतीत।

बीतल ओ निस्सन शताब्दी
जाहि मे अहां भेलहुं
आ भेला गांधी जी संविधान समेत
बीतल ओ शताब्दी हाक्रोश करैत
पूरे जुग कें खोधि खोधि
फोंकिल बेरबाद केलनि दन्तार मकुना सब

अधबनल लाधल अछि
अहांक निरमाएल पाया
आ सुगबुग सुगबुग करैएअनागत काल
ई शताब्दी अहां सं स्पर्शित हो
मांगनलाल!