Saturday, November 24, 2007

हम छी कमलाकांत

हम छी कमलाकांत
भरि राति खसल सीत
चंद्रमणि गबैत रहला गीत
केओ थोपड़ी केओ चुटकी सं दैत रहल जोश
मुदा जे देलक टिहकारी कनखिया क'
उ छल सभ सं फर्रोश

एमेलेकेडमी'क पंडाल मे पसरल अछि पुआर
मुदा जिनकर पैंसब छैन्ह प्रतिबंधित से छथि गुआर

तें जखन बदलल जमाना
बदलि गेल रामकथा ससि किरन समाना
आब अछि पासमानक भरनी दुसाधक ताना

संकल्पलोकक बैसि गेल भट्ठा
गुदड़ी मे बिका गेल सोन सन इतिहास कट्ठा पर कट्ठा

आब एमएलएसएम मे होइत अछि बिदापति समारोह
आह, की आरोह-अवरोह!
मंच सं बाजि रहला अछि संचालक,

'हारमोनियम पर छथि शिशकांत
तबला पर छथि चंद्रकांत
झालि बजओता उदयकांत
गओता हेमकांत
आ हम छी कमलाकांत!'

अहियो पर थोपड़ी!

मुदा सुनय बला सुनि रहल अछि
संस्कृतिक ओसारा पर बड़का लोकक कोरस
गांती मे केओ नहि अछि गुआर
चौबगली पसरल अछि पावन-पवित्र पुआर

मिथिलाक पोखरि बाभनक बंसी सं डेराएल
संस्कृति मे सामाजिक न्याय एखनो अछि हेराएल

तें कतबो कहथु संचालक, हम छी कमलाकांत
लोकबेद करबे टा करत टोंट जे अदौ सं अछि आक्रांत!
अदौ सं अछि श्रोताकांत!

कहबाक कला होइ छई

कहबाक कला होइ छई
हिसाब-दौड़ी कहियो ने भेल
आंगुरक बीच मे भूर अछि
जे अरजल सभटा राइ-छित्ती भेल
छिपली मे बांचल कनखूर अछि

हमर गाम मे छल एकटा चौंसठ
कहैत छल,
अरजबाक कला होइ छई

जेना बिदापति मंच सं कहय छथिन कमलाकांत
कहबाक कला होइ छई

कलाजीवी झाजी आ कलाजीवी कर्णजी!
कलाजीवी हुकुमदेव आ कलाजीवी फातमी!

बाढ़ि मे दहा गेलनि जिनकर गाम
सुन्न छैन्ह जिनकर कपार
गुम्म छैन्ह मुह मे बकार

नचारी मे नहि ल' पओता आनंद

केओ उद्-घाटन बाती जरओता
केओ देता अध्यक्षीय भाखन
जाड़-बसात मे चमक चांदनी देखि
दुखित जन पीयर पुरान कागत पर लिखबे टा करत,
मुह के सी'बाक कला होइ छई

कतबो कहथु कमलाकांत
सुनबाक कला होइ छई
हल्ला-गुल्ला जुनि मचाउ बाउ
छी संस्कारी लोक

कहबाक कला होइ छई!