Monday, February 26, 2007

किरणजी आ प्रगतिशील चेतना (मैथिली ब्‍लॉग)

अविनाश

किरणजी हमरा लेल अनचिन्हार छलाह। नाम आ ओहि नाम मे निहित मर्म कें बूझब, दुनू फराक स्थिति थिक। किरणजी एक टा आंदोलनकारी छलाह अथवा यैह जे जाहि विद्यापति समारोहक मादें हमरा सभक सर्वश्रेष्‍ठ स्मृति अछि, ओकर नींव किरणेजी रखने रहथि- आदि इत्यादि वस्तुनिष्‍ठ जानकारी सभ। किरणजीक महत्व एहू सं बेसी भ' सकैछ अथवा ओ जाहि तरहक भाखा आ समाजक कल्पना कयलनि, ओकरा बुझबाक चेष्‍टाक संगे हम कहियो सक्रिय नहि रहलहुं। ई ओहि युवकक स्वीकारोक्ति अछि, जे अपन भाखा आ ओकर रचनाकार सभ कें ओतबो नहि जनैत अछि, जतबा ओकरा अपना कें समृद्ध करबा लेल आ भाखाक प्रति अपन अनुराग, अपन ललक कें विश्‍वसनीय बनेबा लेल जनबाक चाही। यैह स्थिति लगभग ओहि सभ युवा रचनाकार सभक थिक, जे एक टा हल्लागुल्ला आ प्रलापक संगे साहित्य मे सक्रिय छथि। हुनका सभ कें एहि सं कोनो मतलब नहि जे हुनक विरासत की छनि! अपना समय कें अपन रचनाक माध्यमें बोकरब सं पहिने ओहि विरासत कें चीन्हब जानब कतेक जरूरी थिक!

रचना पुरान समाज मे एक टा नब समाजक अनुसंधान थिक। पुरान समाज जेना होइत अछि, हमरा सोझां मे होइत अछि। ओकर यथार्थ अथवा ओकर फंतासीक विवरण आ ओकर व्याख्ये मे, बुझू नब समाजक नींव पड़ैत अछि। विरासत के चीन्हब अहू दुआरे जरूरी अछि, किएक तं एहि सं बुझबा मे अबैछ जे पुरान समाजक व्याख्या कोन कोन तरहें भेल अछि। मैथिली मे हमर सभक पीढ़ीक आरंभ जाहि तरहें भेल अछि- ओ विरासत सं विलगावक संग भेल आरंभ अछि। एकर एकटा खास कारण थिक। हमर सभक पूरा दौर महत्वाकांक्षाक दौर थिक। अर्थशास्त्र एकरे बजारक काल कहैत छै। बजार हमरा सभक महत्वाकांक्षा कें कम श्रम सं अर्जित सफलता सं जोड़ैत अछि। आ विरासत कें चीन्हब तं श्रमसाध्य कार्यव्यापार थिक! एकरे सं बचबा लेल हमरा सभ अपन अपन एकपेरिया ताकने घुरैत छी आ एक टा संकीर्ण, कंजूस आ अर्थहीन रचनाकार मे बदलि जाइत छी।

इतिहासक हजार हजार खाम्ह होइत अछि। सभ टा खाम्ह तं हमरा सभक विरासत नहि भ' सकैछ! हमरा सभक बहुत रास रचनाकार अपन साहित्यक माध्यमें मनोरंजन, पांडित्य, आत्मश्‍लाघाक प्रचारक संगहि विशिष्‍टक वंदना करैत रहलाह अछि, ओ हमर विरासत किन्नहु नहि भ' सकैत छथि। मुदा बहुत रास नवागंतुकक लेल भइयो सकैत छथि! तें हम सभ अपन अपन विरासत चुनैत छी।

मोहन भारद्वाजजी आ अशोकजी हमरा किरणजीक साहित्य उपलब्ध करौलनि। नब लोकक लेल मैथिलीक दुर्गम दुर्लभ साहित्य कें ताकब हेरब सेहो तं एक टा दुर्गम दुर्लभ कार्य थिक! अस्तु, हम किरणजी कें मनोयोगपूर्वक पढ़लहुं आ पढ़बा काल एहि बात पर चकित होइत रहलहुं जे किरणजी सचेत रूप सं एहेन पात्र सभक कथा लिखलनि, जिनकर जगह हमरा सभक सवर्ण समाजक मोनक सीमान सं बहार अछि। हम ओहि सोलकन्हि समाजक गप कहि रहल छी, जे आइ काल्हि भारतीय साहित्य आ राजनीतिक केंद्र मे अछि। मुदा महत्वपूर्ण ई जे किरणजीक साहित्य सोलकन्हि समाजक उपस्थिति ठीक तखने अछि] जखन आन आन भारतीय भाखा साहित्य मे सेहो दलित साहित्यक जोर अछि। तें ई नहि कहल जा सकैछ जे ओ आयातित संदर्भक संगे दलित जीवनक साहित्य रचलनि।

अजादीक बाद- सत्तरि आ नब्बेक दू दशकक भारतीय साहित्य मे सोलकन्हि समाजक वकालति देखबा मे अबैत अछि। खास क´ क´ मराठी साहित्य मे। मराठी मे एक स´ एक दलित साहित्य रचल गेल। चाहे ओ अछूत हो, जूठन हो, छोरा कोल्हाटी का हो, वा अक्करमाशी हो। मुदा महाराष्‍ट्रक स्थिति भिन्न छल। मराठी भाषी लेखक सभ कें रस्ता देखौलक हुनका जग्गह जमीन पर चलि रहल दलित आंदोलन सभ। मैथिली साहित्य आ समाज मे जखन हम अपन नजरि गाड़ैत छी, तं देखबा मे अबैछ जे सोलकन्हि समाजक जुटान- सोलकन्हि समाजक स्वर (विद्रोह नहि) बहुत क्षीण अवस्था मे कतहु कतहु अछि। ने कोनो़ पैघ आ हिंसक दमन आ ने कोनो कारगर प्रतिकार। विधानसभा आ संसद सभ मे ओहि थोड़ बहुत आबादी बला सवर्ण समाज सं समग्र मिथिलाक प्रतिनिधि बनैत रहलाह, जे छोटका लोक कें अपना भाखा समाजक हिस्सा कहियो नहि बन´ देलखिन। व्याकरणक एक टा सीमारेखा, डरीर पाड़ि‍ देलखिन आ भाखा कें ओकरा भीतर धकेल क´ लोक सभ सं दूर क´ देलखिन। किरणजीक साहित्य यैह व्याकरण आ सीमा रेखाक निषेधक साहित्य थिक।

एतबे नहि- सामाजिक ताना बाना मे अंतिम आदमीक पहिल कथा कह´ बला रचनाकार किरणजी भेलाह- ओना हमरा शिवशंकर श्रीनिवास एहि सूचना सं समृद्ध कएलनि जे कुमार गंगानंद सिंह अपन एकांकी 'जीवन संघर्ष' आ कथा 'बिहाड़ि'‍ मे दलित पक्षक विरल कथा कहने छथि। किरणजी दलित पक्षक सामाजिक रचनाकार तं छलाहे, दलित मोनक विवरण सेहो एतेक संवेदनाक संग प्रस्तुत करैत छलाह जे हुनक संपूर्ण कथा साहित्य मे सोलकन्हिक उपस्थिति बरजोरी नहि लगैछ। सोलकन्हि कें सेहो मोन होइ छै, ओकरो मोन कें ठेस लगै छै, ओकरो मोन नेह रखैत छै आ ओकरो मोन मे संबंधक संवेदना अपन उत्कर्षक संगे उपस्थित रहै छै- जे मेहनतिक चक्का मे हरदम फंसल रहैत छै आ जकरा बहार निकालबाक अवसरे नहि भेटै छै। सोचबाक, चिंता करबाक समय जकरा लग मे रहतै, वैह ने सोचि सोचि क' कानत, प्रतिक्रिया देत आ मोन कें पढ़ि‍ सकत! हमरा सभक अभिजात समाज कें समये समय छनि, किएक तं हुनकर रोटी सोलकन्हि समाजक मेहनति सं बनैत अछि! अभिजातक मैथिली मे किरणजी छोटका लोकक लेल जगह बनौलनि आ हुनका समय मे ई एकटा बेस दुरूह काज छल।

किरणजीक सभ सं चर्चित कथा छनि 'मधुरमनि'। ई कथा की थिक? विकलांक पतिक जिनगीक गाड़ी खींचैत कामगार पत्नीक मोनक कथा। पति मोचन पूछैत अछि, 'भानस भेलै?' आ मधुरमनि तामस सं माहुर भ' जाइत अछि, 'हं! भनसे टा? नौ टा तीमन सचार लागल राखलए! काज ने धंधा, तीन रोटी बंधा! दरबज्जा पर बैसल बैसल बात गढ़ैत रहता- भानस भेलै? भानस भेलै?' मुदा जखन आन ओकरा उकसाब' चाहै छै, तं मधुरमनिक मोन मोचनक प्रति बेस मुलायम भ' जाइत छै, 'से किऐ कहै छथिन ई! ओ भीख मांगत तं हम हाथी सनक देह राखि क' की करब! ओ हमरा कमा क' खुअबैत से बड़ बढ़ि‍यां आ ओकर हाथ पएर भगमान हरि लेलखिन तं भीख मांगत? ओकरा सन लूरि ककरा छै? पटिया उहे बीनैए! डाली, पथिया, ढाढ़ ककरा होइ छै ओकर सनक? अपने कमाइ खाइए ने तं आनक कमाइ? पिट्ठा पहलमान ल' क' हम की करब, जे भरि दिन डेंगबिते रहत। हमरा तं एक टा कथो ने कहियो कहइए। उहे अछि तें हमरा सन मुंहजोरिक बास भ' सकल।'

ई कथा एक टा एहन पात्रक कथा थिक, जे दलितो अछि, अपना जीवनक आधार सेहो अपने अछि आ ओ पुरान पारंपरिक समाजक ओहि चलन कें सेहो कोसै अछि, जे स्त्री सभ कें पुरुखक बादक पांती मे राखैए। मुदा ई सभ टा विमर्श कथा मे सहज रूप सं आएल अछि। कतहु सं नइं लागत जे पहिने किरणजी कथाक एजेंडा तैयार केने होथि आ तखन कथा लिखने होथि। खास बात ई जे हुनक पात्रक बोली बानी मे लोक मोहाविराक चाशनी घोरल रहै अछि। जेना मधुरमनिक तमसाइत ई कहब जे काज ने धंधा, तीन रोटी बंधा! एहि सं ई सिद्ध होइत अछि जे किरणजी अपन समाज, अपना भाखाक सरोकार सं कते प्रवाहमय ढंग सं संपृक्त छलाह।

एक टा आर खास बात- किरणजीक साहित्य मे अपना समयक दलित यथार्थ मौजूद अछि। मिथिला मे सवर्ण सोलकिन्हि‍ संघर्ष ओतेक तिक्त नहि रहलै। दुनू एक दोसर पर आश्रि‍त अछि। सोलकन्हि‍ समाज सवर्ण लोकनिक अन्न पानि पर आश्रि‍त, तं सवर्ण अपन संस्कार अनुष्‍ठान मे सोलकन्हि‍ समाज पर आश्रि‍त। तें मैथिली कथा मे जत´ कतहु सोलकन्हि‍ समाज आ पात्रक विवरण आएल अछि, एहि संबंध आश्रयक सीमा मे आएल अछि। किरणजीक कोनो पात्रक प्रतिरोध कहियो हिंसक रूप सं मुखर नहि भेल। हिंसा तं एकतरफा रहै। इक्का दुक्का कोनो कोनो गाम मे छोट छीन झंझटि पर ब्राह्मण कैथ सोलकन्हि‍क संगे जूतम पैजार करय, मुदा ओकर सांस्कृतिक विवरण मे एकर पूर्ण ध्यान राखल गेल जे ई पूरा समाजक यथार्थक रूप मे नहि सामने हो। मुदा मिथिला मे शांतिपूर्वक दमनक प्रतिरोध मे जनमल हिंसा सोलकन्हि‍ मोनक एक टा यथार्थ अबस्स रहल हैत, तकर अनुमान लगाओल जा सकैछ।

जेना एक टा कथा अछि 'चनरा'। एक टा पढ़ल लिखल अभिजात युवक कें ओ अपन जीवन संदर्भ सं अर्जित विचार वैभवक आगां बौना बना दैत अछि। 'अभिनव उत्तरा' सेहो एकटा सोलकन्हि‍ स्त्रीक कथा अछि, जकरा लग (किरणजीक मुताबिक) गलती सं सवर्ण समाज सन दपदपाइत गोराइ आबि जाइत छै। जखन ओ पहिल बेर सासुर अबैत अछि, तं ककरो उत्साह नहि, प्रसन्नता नहि जे एक टा सुन्नर स्त्री घर मे आयल अछि। एकर उनटा एकर ग्लानि होइत छै जे एक टा सुन्नर स्त्रीक जीवन एहि घर मे व्यर्थ चलि जेतै। मुदा जं ओ सुन्नर स्त्री सेहो श्रम आ प्रतिबद्धताक पृष्‍ठभूमि सं अबैत अछि, तें ओ अपना भीतरक सुंदरता कें सेहो अपन सासुर मे सिद्ध करैत अछि। सौंदर्यक प्रति दलित मोनक ई उदारता ताकब किरणेजीक बस मे छल। सौंदर्यक यैह उदात्तीकरण किरणजी कें संपूर्ण भारतीय भाखा साहित्य मे गरिमामय स्थान दैत अछि।

एहन कतेक रास कथाक संग किरणजी अपन भाखा साहित्य मे उपस्थित छथि। सोलकन्हि‍ समाज आ स्त्री मोनक हुनक कथाक व्याख्या मैथिली आलोचना मे कोन तरहें भेल अछि, हमरा नहि बूझल, मुदा अखन आलोचनाक एक टा पोथी कर्मधारय मे हुनका हुनका तरहें बुझबाक जरूरी चेष्‍टा भेल अछि।

कतेको बेर हमरा ताज्जुब होइत अछि जे मैथिली साहित्य मे दलित पक्षक विपुल विवरण किएक नहि अछि। एकाध टा प्रसंग छोडि़ दिय' तं किए एक टा किरणे जी हमरा सभ कें भेटैत छथि- जखन कि मिथिला मे दलित एकजुटता आ समाजक मुख्यधारा मे अयबाक चेष्‍टाक विवरण हमरा सभ कें ऐतिहासिक दस्तावेज मे भेटैत अछि? मिथिला क्षेत्रक विद्वान प्रसन्न कुमार चौधरी आ पत्रकार श्रीकांतक पोथी 'स्वर्ग पर धावा'क पन्ना उनटबैत हम देखलहुं जे हिंदू महासभाक एक टा अपील पर 1928 के लगचिआएल सीतामढ़ी मे हिंदू सभाक एक टा छोट जमात किछु अछूत कें मंदिर मे प्रवेश करौलक। 1936 मे तिरहुत प्रमंडल मे मुसहर समुदायक किछु लोक सभ कतेको उन्नयन सभा आयोजित कयलनि। दरभंगा जिलाक समस्तीपुर अनुमंडल मे हरसिंहपुर नील फैक्टरीक मुसहर मजदूर सभ मजदूरी मे बृद्धिक मांग केलक। मिल मालिक ओकरा सभक मांग मानियो लेलक। मुदा किरण जी आ कुमार गंगानंद सिंह (शिवशंकर श्रीनिवासजी हमरा सूचना देलनि जे कुमार गंगानंद सिंह एहि घटनाक उपयोग अपन एक टा एकांकी मे केने छथि) कें अपवाद छोडि़ दी, तं ओहि कालक मैथिली भाखा मे छोटका लोकक ई मांग मानबा सं इनकार क' देलनि। ई इनकार अखनो जारी अछि। एहि सं साफ होइत अछि जे मैथिली साहित्यकार लोकनिक लोकतंत्र कतेक संकीर्ण अछि।

किरणजीक मात्र कथे टा मे समाजक बहुसंख्यक विपक्षक आवाज अथवा रचना प्रक्रिया मे जनतांत्रिक आग्रह नहि भेटैत अछि, किरणजीक कवितो सभ परंपरा आ पुरान समाजक प्रति प्रश्‍नाकुलता सं भरल अछि। कथा मे हमसभ काल्पनिक पात्र सभक माध्यमें अपन पक्ष राखि सकैत छी, मुदा कविता मे यैह पक्ष रखबाक लेल ऐतिहासिक पौराणिक सामाजिक तथ्य सभक मुखर प्रयोगक बेस गुंजाइश रहैछ। किरणजी एकरा नीक जकां साधलनि। मोहन भारद्वाजजी हमरा किरणजीक एकटा कविता सुनौने रहथि। कविता युवक लोकनि कें संबोधित अछि। किछु पांती अछि-

विश्‍व के थर्रा रहल अछि, एक जर्मनकेर सिपाही
हस्तगत अछि एक व्यक्तिक, आइ रोमक बादशाही
कर्मबल सं एक कुल्ली, ब्रिटिस केर साम्राज्य साजल
तही ब्रिटिसक दास नृपतिक हम रहै छी पाछू लागल


ई कविता 1939 मे लिखल गेल। तखन हमसभ गुलाम रही। अंगरेज सभक खिलाफ आंदोलन अपन अंतिम चरण मे रहय। द्व‍ितीय विश्‍वयुद्धक आशंका फरिच्छ रहितो आजादी एक टा सपने रहए। छोट रैय्यत आ हुनका आगू पाछू लागल रह'बला प्रशस्ति गायक लोकनिक लहलहाइत फसील कें ई नहि कतहु सं नहि लागैत छल जे आजादी भेटत। ओ मानि क' चलि रहल छलाह जे अंगरेज सभक राज रहत आ हमरा सभक आजादी लेल चलि रहल आंदोलनक आगि मे अपन अपन घी तं किन्नहु नहि खसेबाक अछि। यैह स्थिति कें किरणजी अपन एहि कविता मे धिक्कारने छथि। जर्मनी प्रसंग दुवारे ई कविता इतिहास दृष्टिक मामिला मे कमजोर रहितो जातीय अस्मिताक कारणें अति महत्वपूर्ण भ' गेल अछि।

पौराणिक कथा सभ मे सामंती ईश्‍वरक सत्ता कें सेहो किरणजी अपना कविता सभ मे चुनौती देने छथि। 1955 मे लिखल सतयुग कविता मे ओ कहै छथि-

सहि ने सकै छल आनक जे उत्कर्ष
मनुज तपस्या नाशि मनबै छल जे हर्ष
अपन देश मे
अपनो योग
अन्नो टा उपजा न सकै छल
घी मधु पान मखान हेतुएं
जीभ न जकर सिहाइत रहै छल
कामी अकरी पर शोषणरत
से कहबै छल देव
विश्‍वक भाग्य विधाता!


पांचाली प्रसंग सं ल' क' कुरुक्षेत्र मे अर्जुनक कृत्यक मानवीय व्याख्या आ माटिक महादेवक प्रतिएं व्यंग्योक्ति किरणजीक रचना मे काव्यमय गरिमाक संगे आयल अछि। पौराणिकताक प्रतिएं एहि तरहक आलोचकीय दृष्टि किरण जीक खासियत रहनि। एतबे नहि, ओ मिथिलाक बसंत पर सेहो कविता लिखलनि आ प्रकृतिगामी कवि लोकनि कें अपन ठेठ प्रगतिकामी अंदाज मे चुनौती सेहो देलनि।

कहलनि जे जखन,
प्रकृति सुंदरिक अंग अंग केर सुषमा वैभव अछि सूखल
तखन,
के बताह कवि भांग पीबि स्वागत बसंत अछि गाबि रहल?

'की गाउ' मे किरणजी कहैत छथि,

पाखंडपनी ओ रूढ़ि‍वाद कुल वैभव केर मिथ्याभिमान
जरि हैत जखन ई बसुंधरा सबतरि वासोचित समान
गैब तखन हम मेघराग धधरा सं झहरत सलिल धार
कोइला बनि जायत शस्य श्‍याम संतप्त धरा सुंदर विहार
समयक प्रतिनिधि समयानुकूल मधुभाषी कोकिल तखन बनब
मंजुल मातृमही मिथिला मे घर घर तिरहुत गान करब


हमरा जतेक बुझबा मे अबैत अछि, ओहि सीमा मे किरणजीक साहित्य हमरा मिथिला के एक टा पैघ सांस्कृतिक भूगोलक साहित्य बुझबा मे अबैत अछि। आ कोनो भाखा साहित्य कें यैह आग्रह आगू ल' जा सकैत अछि।