Sunday, October 22, 2023

सुभाष चन्द्र यादवक कथा-संसार

 



निपट कोसिकन्हाक संघर्षभरल गाम मे सुभाषक जन्म भेलनि। देहातक स्कूल मे हुनकर अक्षरारंभ भेलनि। प्राथमिक शिक्षा मामा-गाम मे आ माध्यमिक शिक्षा सुपौल कस्बा मे भेलनि। घोर आर्थिक-सामाजिक संकट सभक मोकाबला करैत पटना काॅलेज सं बी.ए. आनर्स (हिन्दी) केलनि। आगू उच्चशिक्षा दिय' सोचब असंभव बूझि रोजगार लेल कलकत्ता चलि गेला। मुदा नहि। जेएनयू की छलै, तकरा बुझबा लेल हम अपन एहि विलक्षण कथाकारक जीवन-क्रम कें देखि सकै छी। क्यो खूब प्रतिभाशाली हो आ आगू बढ़य चाहैत हो तं ओकरा लेल जेएनयू मे जायब संभव रहै, भने ओ कतबो आर्थक अभाव मे किए ने हो। ओ जेएनयू पहुंचला आ ओतय सं हिन्दी मे एम.ए. आ पीएच.डी. केलनि। ओही साल नामवर सिंह नियुक्त भ' क' आयल छला। संभव रहै जे ओतहि हुनका नियुक्ति भेटि जैतनि, मुदा ताधरि विज्ञापन नहि बहरेलै आ जखन बहरेलै तं सुभाष गाम घुरि जीवनक ओही संघर्ष मे लागि चुकल छला जतय सं बहरायल रहथि, आ जतय सं बहरायब आसान नहि रहैक। कलकत्ता मे रहैत बंगला सीखि लेने रहथि आ दिल्ली-प्रवास मे स्पैनिश, फ्रेंच आ उर्दू। एक बेर तं पेरिस विश्वविद्यालय मे हिन्दीक प्राध्यापक लेल इन्टरव्यू धरि मे शामिल भेल रहथि। बस एक्केटा कारण सं नियुक्ति नहि भेटि सकल रहनि जे भारतीय बौद्धिकक द्विभाषिक स्वभावक अनुरूपे फ्रेंच बाजैत-बाजैत बीच-बीच मे अंग्रेजी बाजय लागथि। फ्रांसक भाषा-प्रतिबद्धताक अनुरूपे एकरा ओ लोकनि अधलाह मानलनि आ हुनकर नियुक्ति नहि भ' सकलनि। अन्तत: मिथिला विश्वविद्यालयक स्नातकोत्तर विभाग, सहरसा मे हुनकर नियुक्ति भेलनि आ ओतहि सं ओ सेवानिवृत्त भेला।

            मैथिली कथा-लेखनक क्षेत्र मे ओ कोना एला, तकरो कथा कम रोचक नहि अछि। विलियम्स स्कूल, सुपौल मे आठम कक्षाक विद्यार्थी रहथि जखन अपन शिक्षक रामकृष्ण झा किसुनक कविता-संग्रह 'आत्मनेपद' ओ पढ़ने रहथि। एही सं ओ पहिल बेर अवगत भेल छला जे जाहि भाषा मे हमसब बाजै छी ताहि मे लेखन सेहो कयल जाइत छै। दशम कक्षा मे ओ उच्च विद्यालय चकला निर्मलीक विद्यार्थी रहथि। स्कूल जेबाक जे रस्ता रहैक से सुपौल स्टेशन भ' क'। ओतय स्टेशन के बुकस्टाॅल पर रुकथि तं देखथि, मिथिलामिहिर बिका रहल अछि। दाम पचीस पाइ। सस्त। ओ एहि पत्रिका कें नियमित रूप सं कीनय लगला। एक बेर रमानंद रेणुक कथा ओहि मे पढ़लनि तं बहुत प्रभावित भेला आ सोचय लगला जे एहि तरहक कथा तं हमहू लिखि सकै छी। पहिल जे कथा ओ लिखलनि तकर शीर्षक रहै-- गजखेर आ गजमुंगर। बहुत दिन धरि तं ओकरा अपना लग राखने रहला बाद मे मिथिलामिहिर मे पठेलखिन तं ओ जनवरी 1968 मे छपि गेलै। हुनका दोसर-दोसर कथा लिखबाक उत्साह आ प्रेरणा भेलनि। कहि नहि, ओ कथा जं नहि छपल रहितै तं ई कथाकार मैथिली मे आबियो सकितथि कि नहि! हुनकर कथा सब पढ़ि क' पहिल प्रशंसात्मक पत्र जे हुनका लिखने रहथिन, ओ महाप्रकाश छला। बाद मे ई दुनू अभिन्न मित्र भेला। ई समय छल जखन ओ पटना काॅलेज सं बी.ए. क' रहल छला। 

              मैथिली कथा-साहित्यक इतिहास मे सुभाषक कथाक बहुत महत्वपूर्ण स्थान छनि। अपन कथा सब मे ओ एक एक एहन दुनिया ल' क' उपस्थित भेला जे हुनका सं पहिने मैथिली लेल अज्ञात रहै। ओ कोन दुनिया छल तकरा स्पष्ट करबा लेल हमरा पं. गोविन्द झाक लिखल एक बात मोन पड़ैत अछि। बहुत साहसपूर्वक ओ लिखने छथि जे जकरा हमसब मिथिला कहै छियै, से कोनो एकटा मिथिला नहि अछि, दू टा अलग-अलग मिथिला अछि। एक तं संभ्रान्त-सवर्ण लोकनिक मिथिला जकर विवरण हमसब मैथिली साहित्य सहित अन्यत्रो पबैत छी। दोसर, दलित-वंचित रैयत लोकनिक मिथिला जकरा बारे मे आम संभ्रान्त लोक कें किछुओ बूझल नहि छै, जेना ओकर संस्कृति, आचारशास्त्र, लोकाचार आदि-आदि। गोविन्द बाबू तं एतय धरि कहि जाइत छथि जे दुनू मिथिलाक लोक मानू अलग-अलग ग्रहक वासी होथि जिनका लोकनि कें एक दोसरक बारे मे किछुओ बूझल नहि छनि। सुभाष चन्द्र यादव ओही दोसर ग्रहक दुनियाक कथा लिखैत रहला अछि। बेधड़क कहने छथि प्रसिद्ध आलोचक कुलानंद मिश्र जे मैथिली कथाक क्षेत्र मे एकटा निश्चित सीमाक अतिक्रमण सुभाष चन्द्र यादवक बादे आरंभ भेल। अपन बात कें आरो स्पष्ट करैत ओ अन्यत्र कहैत छथि-- 'सुभाष चन्द्र यादव मैथिली कथाक बहुतो रूढ़ि कें तोड़बाक संग मैथिलीकथा कें पुन: ओहि सुगन्धि सं सुवासित केलनि जकरा हमसब मैथिलत्वक सुगन्धिक रूप मे जनैत आयल छी। तखन ई बात भिन्न थीक जे प्रो. हरिमोहन झा कि उपेन्द्रनाथ झा व्यासक कथाक मैथिल-चेतना आ सुभाष चन्द्र यादवक मैथिल-संस्कारक बीच अभिजात-अनभिजातक एहन देवार ठाढ़ अछि जकरा तोड़ब अनिवार्य होइतो ओ आइधरि तोड़ल नहि गेल अछि। एहि लेल ओहन विचारक लोकनि अधिक उत्तरदायी छथि जे सब प्रो. हरिमोहन झाक कथा-संसार मे समस्त मिथिला कें समाहित देखैत अयला अछि। ओकर बाहरक दुनिया हुनका अपन सोचक स्थापना लेल अनावश्यक लगैत छनि।' (संधान-4)

              आलोचक मोहन भारद्वाजक कथन सं कुलानंद जीक कहल बात आरो अधिक स्पष्ट होइत छैक। ओ कहलनि अछि-- 'स्वतंत्रताक एतेक वर्षक बादो समाज मे एहन लोक अछि, एहन लोकक एहन जिनगी छैक जकरा लेल जीवनक रमणीयतम आ प्रियतम व्यापारो काल मे अपन चेहरा सं विपन्नताक छाप फराक क' राखब संभव नहि होइत छैक, किंवा फराक क' राखब ओकरा सब कें आवश्यक नहि लगैत छैक। सुभाष चन्द्र यादवक खूबी एहन जीवनक साक्षात्कारक अवसरे प्रदान करब धरि सीमित नहि अछि। ...एहि मे अछि आपकता। आत्मीयताक संस्पर्श। तें साक्षात्कार मे भेल अनुभव भीतर धरि बेधि दैत अछि। 'घरदेखिया'क कथाकार ओहि वर्गक संग ठाढ़ लगताह जकर ओ कथा कहैत छथि।' सुभाषक कथा-भूमिक परिचय दैत भारद्वाज जी एतय हुनकर शिल्पोक किछु संकेत देलनि अछि, जे वास्तविक रूप सं 'आपकता' आ 'आत्मीयताक संस्पर्श' के कारक थिक। हुनकर जे शिल्प छनि, ताहि पर भीमनाथ झा बहुत सटीक बात कहलनि अछि। ओ कहै छथि-- 'सुभाषक कथाक सब सं मुख्य बात ई थिक जे कथाकार अपना दिस सं किछु नहि दैत छथि, अपन शब्दो नहि, खाली अपन पात्र कें ओकर समस्त परिवेशक संग पाठकक सोझां प्रस्तुत टा क' दैत अछि, ओही रूप मे हू-ब-हू। अहां ओकर टोल मे ओकर घर-द्वारि पर अपना कें ठाढ़ पबैत छी। अहां ओहि समाज कें देखैत छी, ओकर जीवन-प्रणालीक आत्मीयता सं अनुभव करैत छी। तें सुभाषक कथा खिस्सा नहि थिक, यथार्थ थिक, सत्य थिक--नग्न सत्य।'(मैथिली कथाक विकास)

             सुभाषक कथा सब मे जे तटस्थता, यथादृश्यता आ आपकता छैक तकर जड़ि हुनकर अनुभव-जगत मे छै। ध्यान देबाक बात थिक जे सुभाष कें मैथिली मे कथा लिखबाक प्रेरणा रमानंद रेणुक कथा पढ़ि क' भेटल छलनि। जनिते छी जे रेणु जीक कथा-विषय अधिकांशत: वंचित समुदायक अनुभव-जगत सं लेल जाइत छल। संभ्रान्त कथाभूमि जं रहबो करय तं ओहि मे अन्तर्निहित गंहीर व्यंग्य देखबा जोग होइत छल। सुभाष ने केवल एहि कथा-जगत सं अपन तादात्म्य बैसैत अनुभव केलनि अपितु हुनका किशोर-मन मे इहो भावना एलनि जे इहो जीवन मैथिली कथाक विषय भ' सकैत अछि। स्थापित तथ्य अछि जे लेखक अपन लेखनक परिपाटी पूर्वागत सं पबैत अछि आ अपन मेधा आ परिश्रम द्वारा ओकरा मे यथावश्यक उनट-पुनट करैत ओकर एक विकसित रूप अपन भाषा कें सोपैंत अछि। सुभाष यैह केलनि अछि। हुनकर कथा सब मे जे हमसब एहन हू-ब-हू वर्णन देखै छी जे ओहि द्वारि पर ल' जा क' ठाढ़ क' देल गेल अनुभव करैत छी, ई लेखकक मेधा, निजी प्रतिभा छियै जे कि अपन अनुभव-जगत सं ओ विषय चुनलक अछि जकर ओकरा बेस अवगति छै, ओहि मे ओ बेस गंहीर डूबल अछि।

                   एकटा कहबी छै जे इंसान कें दोसरक कयल गलती सं सबक सिखबाक चाही, कारण जे अपनहि टा गलती सं यदि ओ सीखय तं पूरा गलती करबा मे ओकरा बहुतो जनम लागि जेतै। ठीक यैह बात लेखक पर सेहो लागू होइ छै। ओ अपने टा कयल अनुभव पर नहि लिखैत अछि। सभक अनुभव-संसार अन्तत: छोटे होइ छै। बहुतो लोकक अनुभव कें अपन ज्ञानात्मक संवेदना सं अपन अनुभव मे रूपान्तरित करय पड़ैत छैक। तें प्राय: चिन्तक लोकनि अदौ सं कहैत अयला अछि जे लेखक परकाया-प्रवेश करब जनैत अछि। सुभाष ई चीज कते नीक, सुंदर आ वस्तुनिष्ठ ढंग सं करब जनैत छथि, एहि तथ्य सं आब, हुनकर उपन्यास सब अयलाक बाद, मैथिली संसार नीक जकां अवगत अछि।

             मुदा, सुभाषक कथा-जगत मे जे संसार अयलैक अछि, से ततबे दूर धरि पसरल अछि जतबा ओ अपन अनुभव सं धांगने छथि। हुनका कथा मे एकटा गाम अबैत छैक। एहि गाम कें अहां 'परलय' कथा मे नीक जकां देखि सकै छियै। ई गाम कोशी नदीक पेट मे, दुनू तटबंधक भीतर घेरायल अछि। विपन्न, अस्तव्यस्त, अशिक्षा आ अविकास सं ग्रस्त गाम। मिथिला मे 100 सं बेसी एहन गाम छै जे विकासक बलि चढ़ि गेल, दुनू तटबंधक भीतर बन्द भ' गेल। ओहि गामक जे समाज छै, से वैह छियै जकरा हुनकर सर्वकालिक प्रशंसित कथा 'घरदेखिया' मे देखैत छियैक। अभाव सबतरि छै मुदा लोक संतोष आ सहयोग करब जनैत अछि। लेखक अपने तं गाम सं बहरा क' एक भिन्न जीवन-क्षेत्र मे आबि गेला, मुदा गाम एखनहु बहुत कम बदलल अछि, तकर पता हमसब हुनकर कथा 'हमर गाम' सं पाबि सकै छी।। 'काठक बनल लोक' मे विपन्नताक हद धरि पसरल परिवारक कथा अयलैक अछि, एहन परिवार भ' सकैए आब अन्यत्र नहि भेटय, मुदा एहि गाम सब मे एखनहु भेटि सकैए। 'फुकना' कथा मे एकटा दोसर गाम आयल छैक, जे कथावाचकक मामा-गाम छियैक। तहिना, 'कैनरी आइलैंडक लाॅरेल' मे एकटा तेसर गाम आयल छैक, ओ कथावाचकक दीदी-गाम छियनि। ओहि ठामक समस्या आ संकट थोड़ेक भिन्न छै, जे प्राय: तटबंधक बाहर हेबाक कारण छै। मुदा सुभाषक ग्राम-कथाक सीमा यैह अछि। एहि चौहद्दीक भीतर बसैत लोकक जीवन-क्रम, ओकर राग-विराग, हित-मुद्दइ, संकट-समस्या, स्वप्न-सेहन्ता सुभाषक कथा-संसार थिक।

            ई लोक वंचित, वंचनाक शिकार बनल लोकक समाज थिक। साधन आ सुविधा सं, शिक्षा आ आधुनिकता सं, समानता आ न्याय सं वंचित। 'परलय' कथा मे एकटा दृश्य अबै छै-- 'चूल्हि पर पलसिया मकइक खिचड़ी टभकाबैत रहै। घर मे धुइयां औनाइत रहै आ बाहर निकल' लेल अहुँछिया काटि रहल छल। बौकू कें बुझेलै जेना कोसी तर मे रहनिहारो धुइयां छियै जे बाढ़ि सं घेरायल चकभाउर दैत रहैत छैक आ रस्ता नहि भेटला पर पानि मे बिला जाइत छैक।' कोसीक जे ई बाढ़ि छै तकर एक वर्णन एही कथा मे एहि तरहें अयलैए-- 'धार हहाइत रहै। निसबद राति मे कोसीक गरजब विकराल आ डराओन लागि रहल छल।ओकर एकपरतार हहास मे एकटा दोसरे सुर-ताल छल। कखनो धैर्य आ कखनो बेचैनी संगे बौकू ई संगीत सुनि रहल छल। ओ तबाही आ मृत्युक संगीत रहै।' एहन ई गाम जखन बाढ़ि मे डूबि गेलैए, तेजी सं कटनियां भ' रहलैए, लोक कें हैजा भ' रहलैए-- मददगार वा डाक्टर-बैद तं नहिये छै, गामक कोनो घर मे एकटा नाह धरि नै छै जे उंचगर जगह पर पहुंचि क' लोक जीबि वा मरि सकय। शैक्षिक पिछड़ापनक स्थिति ई छैक जे 'कोनो पता पर'क नायिका कें एतबो बुझल नहि छैक जे कतहु चिट्ठी पठेबाक लेल ओहि पर पता सेहो लिखय पड़ैत छै। 'आतंक' कथाक नायक कें अपन वाजिब जमीनक दाखिल-खारिज नाजायज उगाहीक वास्ते सीओ आफिस मे लसकल छै। बीडीओ ओकर परिचित छै मुदा एक बेर उचित रिस्पान्स नहि भेटलाक बाद ओ तते आतंकित भ' गेल अछि जे अपना लेल न्याय मांगब नहि संभव रहि जाइत छैक। मुदा, एहू स्थिति मे, जखन कि ठक, क्रूर आ अन्यायी लोक भारी चलती मे छै, तखनो सुभाषक कथानायक कमजोर आ बेकसूर लोकक पक्ष मे ठाढ़ हेबाक स्वभाव राखै छै, भने एहि लेल खतरे मे किए ने पड़ि जाय पड़य, जेना कि 'बात' वा कि 'डर' कथा मे भेलैए। तहिना, कतबो विपन्नता आ संकट होइक, गामक लोक के स्वभाव मे करुणा, सहयोग, एहि सभक अतिरिक्त बेफिक्री आ बेलौसपन अक्सरहां पाओल जाइत अछि, तकर उदाहरण तमाम कथा सब मे अहां कें भरल भेटत। 'झालि' कथा मे जे सम्बन्ध-बन्धक अनौपचारिकता छैक तकरा सुभाषक आनो कथा सब मे महसूस कयल जा सकैत अछि।

            सुभाषक कथा सब मे जे समाज आयल अछि ओ पचपनिया समाज थिक। पचपनिया अर्थात सवर्णेतर पचपन जातिक समूह। पचपन सं तात्पर्य ठीक-ठीक पचपनेक होइ, से नहि। मने बहुतो जाति, जे एक सांस्कृतिक सूत्र संग जुड़ल अछि। गोविन्द बाबू जकरा 'मिथिलाक दोसर ग्रहक निवासी' कहलनि अछि, से यैह थिक। ई लोकनि लोकायत धर्मक अनुयायी छथि। बौद्धधर्मक समाप्तिक बाद, जखन कोनो सामूहिक धार्मिक पहचान हिनका लोकनिक नहि रहलनि, मध्यकालीन धर्मशास्त्री लोकनि हिनका सब कें ब्राह्मणधर्म (हिन्दूधर्म) मे समाहित क' लेलकनि। मुश्किल ई छल जे हिनका लोकनिक अपन अलग आचारशास्त्र, अलग देवी-देवता आ धार्मिक क्रियाकांड, अलग नैतिकता, अलग सामाजिक विधि-निषेध छलनि, जे ब्राह्मणधर्म मे समामेलनक बादो यथावत बनल रहल। किछु धार्मिक मान्यता सब कें तं ब्राह्मण धर्मशास्त्री लोकनि स्वीकार क' लेलनि, जेना नागपूजा जाहि पर विद्यापतिये व्याडिभक्तितरंगिणी लिखलनि, जेना कन्यादान प्रक्रिया मे सिन्दुरदान आदि। बांकी ई सब चीज ततेक अलग रहै जे धर्मशास्त्रीयो लोकनि निचिन्त भ' गेला जे ई सब हिन्दू भ' गेल, आ इहो लोकनि हिन्दू होइतो अपन पूर्वपरंपराक पालन करैत रहला। एक दोसर लेल जे ई दुनू संस्कृति अबूझ छै, से एही दुआरे छै।

           एकर किछु दृष्टान्त देखल जाय तं बात बेसी फड़िच्छ होयत। पचपनिया लोकनि मे विवाह सं पहिने घरदेखियाक बिध होइ छै, तकर बिलकुल सधल सटीक अंकन सुभाषक कथा 'घरदेखिया' मे भेल अछि। मैथिली साहित्यक लोक लेल ई एक अजगुत कथा रहै, कारण एहि विषय मे लोक कें सुनल भने रहनु बूझल किछुओ नहि छल। लड़कीक नाम बिमला छियै, ध्यान राखल जाय विमला नहि, बिमला। ओकरा बारे मे कथा मे चित्रण एलैए-- 'बिमला कें एहि साल सतरहम लागि गेलै। देखला सं तेहन कहां लगै छै? मुंह-कान सुखायल छै। एहि अगहनी मे धनकटनी करैत रहलै। दू कोस बान्हक ओहि पार सं नित्तह मथ-बोझाइ। कहियो लार, कहियो खढ़, कहियो चिलमिली। ओकरा मोन नहि छै बिमला कें कहियो हंसैत देखने छलै। बाजितो कम्मे छै। कोनो काज पड़ल तखने टा वा टोकले पर।' ई छियैक श्रमजीवी जीवन। आ, ओकर बाजब केहन? मेजमान सब ले उपेन चाह बनब' चाहैए तं बिमला कें पुछै छै-- 'की चढ़ेने छिही?' बिमलाक उतारा-- 'दालि छियै।' फेर प्रश्न-- 'हेंट केने खरापो हेतौ?' बिमलाक जवाब-- 'की बनेबहक से? चाह? बना नै ल' होइ छ'!' बना लैह, से नहि। उक्ति-भंगिमा एहन जेना कि चलन मे छै। सुभाषक बहुतो मेंही-मेंही खूबी सब एहि तरहक छनि। मुख्य जे बिध घरदेखिया(अर्थात कन्यागतक घर आबि क' लड़की देखब) संपन्न होइ छै-- बीड़ी-सुपारीबला तश्तरी घरदेखिया सभक आगू राखि क' बिमला ठाढ़ रहै छै। पहिल प्रश्न छै-- की नाम छी? दोसर-- बाबूक नाम। तेसर-- आइ कोन दिन छियै? आ अंतिम-- अहां कोन मुंहें ठाढ़ि छी? बस, एतबे। बांकी तं सब बुझले छै, समस्त विपन्नक सुख-दुख समाने होइ छै। दूटा प्रश्न किछु आनो भ' सकैत रहै। जेना, कोनो साधारण-सन चीज देखा क' पुछल जाइत, ई की छियै? जेबी सं कोनो सिक्का वा नोट निकालि क' देखाओल जाइत, ई कते पैसा छै? पचपनियां लोकनि मे घर-घर व्याप्त कहबी छै-- नहिरा जो बेटी, ससुरा जो/ बहियां डोला बेटी, सबतरि खो।' मने, कर्मठते असल गुण छियै। बांकी तं केवल एतबे बुझब शेष रहै छै जे लड़की बकलेल तं नहि छै, जे कि आम तौर पर नहिये रहै छै। मूल कथा एतबे छै, बांकी परिवेश, कथाक क्रमोपक्रम आदि। 

           मुदा, एहि कर्मठताक जे अपर पक्ष, परिणाम छै से भयानक। जखन स्त्री वा पुरुषे बूढ़ भ' जाइए, अथबल आ अकाजक, तखन भयंकर उपेक्षा आ अभेलाक दंश भोगबा लेल विवश होइछ। एत अहां कें यात्री जीक 'फेकनी' मोन पड़ि सकैए जे ओतेक बुढ़ारियो मे अपन जीवन-क्रम स्थगित नहि कयने छल। मुदा, ताहू सं बेसी उमेरक बाद, मृत्यून्मुखी रोगग्रस्तताक बाद? सुभाषक कथा छनि 'फँसरी'। बुढ़िया सौ वर्ष पार क' गेलीहे। अभेलाक दंश अनसम्हार छै। मुदा, बाहर सं जातु ओकरा देखय एलैए तं सब सं पहिने पुछै छै-- खेलह? तूं खेलही?-- से पुछला पर ओकर उतारा छै-- 'हमर कोन छै? हाय रे समांग दालि-भात! समांग नहि अछि, केयो कखनो द' दैत अछि तं खा लै छी।' बुढ़िया दू-दू बेर फँसरी लटकबाक कोशिश केलक, एक बेर माहुरो खेलक, तैयो नहि मरैत अछि। घरक लोक कें आब केवल, केवल ओकर मरबाक प्रतीक्षा छै। सुभाषक एक आर कथा छनि-- 'सुजाता'। जेना बुद्ध कें सुजाताक खीर खेलाक बाद ज्ञानक प्राप्ति भेल रहैक तहिना बेलही वाली कें दुबियाही वाली हाथक खीर खेलाक बाद परम शान्ति, मृत्युक प्राप्ति भेलैक। ओ तं एखन फेकनियो सं बेसी कर्मठ, नीरोग रहय, बेटा सब कुकुर-बानर निकलि गेलै, राति मे दारू पी क' दुनू झगड़ा आ मारि शुरू केलक, एक बेटा 'थ्री-नट्टा' रखै छै से बुढ़यो कें बूझल, अनिष्टक आशंका सं बेचारी झगड़ा छोड़बय गेल, बेटा ठेलि देलकै, खसल से जांघेक हड्डी टूटि गेल। ओकर बादक जे आठ-नौ मासक करुण कहानी छै! दुबियाहीवाली पुछै छै-- 'हड्डी-हड्डी किए भै गेलियै?' बुढ़या कहै कहै छै-- 'खाइये लए ने?' सांस्कृतिक आदान-प्रदान देखियौ मिथिलाक। अथबलक अभेला एम्हर सं गेलैए, व्यभिचार ओम्हर सं एलैए।

          सुभाषक एक कथा छनि-- 'एकटा दु:खान्त कथा'। एहि मे भौजाइ संग एक किशोरक यौन सम्बन्धक खिस्सा छै। सम्बन्धक आरम्भ बहुत दुख संग भेल रहैक। जखन सुगिया उपेनक प्रेम-अभ्यर्थना आ अनुनय दिस पहिल बेर आकर्षित होइत छै तं ओकरा लेल 'ई सब बहुत पीड़ादायक आ आकुल कर' बला छलैक।' एतबे नहि, जखन पहिल बेर सम्बन्ध बनलै तं 'कात मे शिथिल पड़ल उपेन सं ओकरा तीव्र घृणा भेलैक। ओकर कंठ अवरुद्ध भ' गेलैक। पति, धीयापुता, अपना ले ओकरा जोर-जोर सं विलाप करबाक मन भेलैक।' बाद मे तं ओ उपेन पर एतेक प्रचंड क्रोध करै छल जे 'ओकरा लगैक जे ओ नीच आ पतित भ' गेल छै।' आ कथाक अंत मे जखन ई सम्बन्ध बरोबरि लेल स्थापित भ' गेलैक तं कथाकार एकर शीर्षक देलनि 'एकटा दु:खान्त कथा'। किछु अलग जकां नहि लगैत अछि? कतेको कथा लिखल गेल होयत, एहू सं जटिल-ओझरायल यौन-सम्बन्ध पर राजकमलेक ढेर कथा छनि। एना तं कतहु नहि लगैत अछि। की छी ई? ई लोकायतक नैतिकता-बोध छी, जे पहिने तं आहत भेल, बाद मे टुटि गेल अछि। हमसब अवगत छी जे सवर्णादि संभ्रान्त समाज मे पुनर्विवाह निषिद्ध छै, जखन कि व्यभिचार मान्य छै। पचपनिया मे उनटा अछि। एतय पुनर्विवाहे मान्य छै मुदा व्यभिचार निषिद्ध छै। तें देखब जे संभ्रान्तक मैथिली साहित्य व्यभिचारक कथा सब सं भरल छै, मुदा सुभाष लग जं एकटा कथा छनि तं ओ एकरा दुखान्त कथा कहै छथि। एहि तरहक सांस्कृतिक भिन्नता सब अनेको ठाम हुनकर कथा मे आयल अछि। अपन कथा-स्वभावक अनुरूपे ओ अपने ओहि पर टिप्पणी करबा सं वा बीच मे अयबा सं बचैत रहल छथि। ई काज आलोचनाक छल जे करबा मे ओ असमर्थ रहल।

             तहिना, सुभाषक एक आर कथा छनि-- 'एकटा अन्त'। ककर वा कथीक अन्त, से नहि छै। ससुर मरि गेलखिन। कथावाचक सपत्नीक हुनकर श्राद्धकर्म मे गेला अछि। अपने ओ नास्तिक छथि, ब्राह्मणीय कर्मकाण्ड पर विश्वास नहि करैत छथि। से, नहकेश दिन सब क्यो मुंड मुड़बौलक, कथावाचक नहि। हुनकर भारी विरोध होइ छनि। पहिल विरोध तं पत्निये दिस सं-- 'आ गय, पापी छै, पापी। पता नहि बाप मरल रहै तबो केश कटेने रहै कि नहि!' कथाक अंतिम दृश्य मे छैक जे हुनकर पितिऔत सार कें क्यो हुलका देने छै। ओ डेन पकड़ि घिचने ठाकुर लग अनैत अछि-- ठाकुर, छिलह त'। कनहा मे लटकि क' जोर-जबरदस्ती बैसब' चाहैत अछि। कथावाचक क्रोध आ अपमान सं तिलमिलाइत कुरसी पर बैसय चाहैत अछि तं कुरसी घीचि लैत अछि। ओ धमकी दैत अछि-- 'इह रे बूड़ि, बुधियार बनै छथि! भोज परक पात छीन लेब सार।' बस, कथा एतबे छै। पहिनहु हम प्रश्न उठेने रही जे 'एकटा अन्त' जे एकरा कहल गेलैए से कथीक अन्त थिक? हम भारतरत्न पी.बी. काणेक विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ हिस्ट्री आफ धर्मशास्त्रक तेसर भाग मे श्राद्ध बला चैप्टर एक बेर फेर सं देखलहुं। धर्मशास्त्र कहैत अछि जे श्राद्धक आयोजन मे वैवाहिक सम्बन्ध बला परिवारक भाग लेब वर्जित छै। तहिना, ई छै जे जे श्रद्धावान नहि अछि, नास्तिक अछि, ओकरा एहि मे शामिल नहि कयल जाय। तहिना, इहो छै जे बलात मुंडी(मुंड मुड़ायल) व्यक्तिक आगमन वर्जित अछि। व्यवस्था तं इहो रहै जे श्राद्धान्न मे सब सं प्रशस्त गोमांस कें मानल जाइत रहै, जाहि सं मृतात्मा एक वर्ष धरि तृप्त रहै छल। काणे लिखै छथि जे तेरहम सदीक बाद मांस-भक्षण(श्राद्ध मे) केवल मिथिला आ बंगाल मे मान्य रहल, अन्यत्र उठाब भ' गेल। चैप्टरक अंत मे काणे मार्मिक बात लिखलनि अछि जे वर्षक कोनो दिन हम अपन पितर कें स्मरण करी, चाहे कोनो विधियें, ई हमरा अपन मौलिक परंपरा संग जोड़ैत अछि। एहि मे के अभागल हैत जे नहि कहतै? मुदा ई कट्टरता, जे कि एतय पितिऔत सार मे देखैत छी, कथी छियै? की अहां कें बुझलो अछि जे लोकायतक पितर-स्मरणक की विधान रहै? कोनो लोकगाथा मे, लोकमानसक कोनो विधा मे एहि बारे मे कोनो अवशेष छै? तखन तं बात यैह जे पचपनिया नहि संग छलै तं गांधी जीक हत्या एक नम्बूदिरी ब्राह्मण कें अपनहि हाथें करय पड़ल रहै। ओकर बाद कहियो सुनलियै? तहिया सं तं आइधरि लाखो जान हिन्दू धर्मक नाम पर लेल जा चुकल अछि। एही दस वर्षक भीतर, देखबै जे जतेक जतेक हत्यारा छल, सभक सब पचपनिया समुदायक लोक छल। धर्मशास्त्र मे जे असहमतिक प्रति स्वीकार-भाव छै, उदारता छै, से कतय गेलै? ककर अन्त भेलै? 

            ई बात पहिनहु कहने छी आ फेर मोन पाड़ब जे सुभाष अपन जीवन-क्रम मे अनेक शहर मे रहला। दोसर जे हुनकर हरेक खिस्सा अपन अनुभव सं समृद्ध आ तप्पत यथार्थ थिक। दू महानगर-- कलकत्ता आ दिल्ली-- मे ओ रहला। कलकत्ता मे निपट बेरोजगारीक दौर मे, जखन लोक एक-एक पाइक लेल झखैत छैक। एहि अनुभवक अनेक कथा हुनका लग छनि। 'संकेत' कथा मे ओहि युवकक मनोदशा देखल जा सकैत अछि जकरा लग एतबो साधन नहि छैक जे वर्किंगमैन्स हाॅस्टलक एक चौकीक ओ किराया चुका सकय। ओ अपन मित्रक कृपा पर कहुना समय खेपैत अछि। जाहि काल मे कोनो चौकी खाली भेल रहैछ, ततबे समय ओकरा लेटबाक भेटै छै-- 'सात बजे निन्न टुटिते अपना कें सीट पर सुरक्षित पाबि ओकरा आफियत भेलैक। इंजीनियर कखनो आबि सकैत छैक। ई सोचि ओ बेड समेटि चौकी तर राखि देलक।' 'पेट' कथा मे छैक जे भूख सं पेट दर्द करै छै, जखन कि बिनु पाइक ओकरा खाली पानि टा भेटि सकै छै, मोन कम सं कम चाह पीबाक छै। एतेक शक्तिहीन, अथबल अपना कें पबैत अछि जे रूमक ताला धरि खोलबा मे हाथ कंपैत छैक। 'सिकरेट' एहि अभावग्रस्तताक एक आर कथा थिक। 

            शहरक असली प्रतिफलन जे छैक से थिक डर। 'डर' नाम सं अलगो सं हुनकर कथा छनि जे एही विषय मे छनि। मुदा, शहरक स्थायिभाव-- डर-- हुनकर अनेक-अनेक कथा मे बीया जकां बाउग कयल भेटैत अछि, शहर चाहे कलकत्ता हो चाहे दिल्ली। जे लोकनि मैथिलीक पारंपरिक लोकगीतक अध्ययन कयने हेता ओ जनैत छथि जे मैथिली लोकगीत मे शहरक स्मृति कते खराब रूप‌ मे आयल अछि। एकटा गीत मे तं स्पष्टे आयल छैक जे 'संकट कुइयां विदेसक रस्ता' मने शहरक रस्ता संकट के कुइयां(इनार) थिक। एही गीत मे आगू ई पांती अबैत छैक-- 'जाहि शहर मे पियाजी नोकरिया, सेहो शहर जड़ि जाय हे, की कहबौ प्रीतम।' ठीक एहने स्मृति हमसब सुभाषक कथा मे पबैत छी। एतय डर शहरक स्थायी स्मृतिक रूप मे आयल अछि। 'डर' कथा मे एकर किछु कारण सब ताकल जा सकैए-- 'फुटपाथ पर चलैत रहब। लोक धकियौने आगू बढ़ि जायत आ हम डरें सभक पाछू-पाछू। कोनो होटल मे चाह पीबा ले जायब तं नोकरबा सब हमर वस्त्र देखि क' चीनी मंगबैक तं जोर सं बाजत। अथवा एहि बीच सूट-बूट मे केओ पहुंचि जयताह तं हमरा सीट छोड़ि क' दोसर ठाम बैसबा लेल कहत। हम डर सं उठि क' दोसर ठाम चलि जायब, नहि तं ओ हमर डेन ध' लेत। ...भरि दिन बौआइत राति कें घर अबैत काल रस्ता मे डरें देह सं घाम चुबैत रहत जे कोनो सांप नहि काटि लेअय आ कि कोनो भूत-प्रेत ने उठा क' पटकि देअय। ...जा धरि निन्द नहि पड़ब, चोरक डर होइत रहत। आ ई नहि तं ई सोचैत रहब जे कखनो कोनो अपन लोकक मृत्यु-सूचना भेटि सकैछ। ई सोचिते पियास लागि जायत। भूख-पियास सं कंठ सूखि जायत मुदा उठबाक साहस नहि होयत।' आदि-आदि। कहि सकै छियै जे ई सब मनोशारीरिक रोग छियनि तें कथावाचक कें डाक्टर लग जेबाक चाही। मुदा नहि। डर डाक्टरो सं छैक-- 'डाक्टर हमर प्राणरक्षक नहि, प्राणभक्षक बुझाइत अछि। कोनो छोट-छीन बिमारियो कें नहि चिन्हत आ किछु भयंकर रोगक नाम कहि देत। आब डाक्टरो लग नहि जाइत छी। दबाइ सेहो नहि किनैत छी। सुनैत छिऐक जे दबाइ मे चून-तून मिला दैत छैक। लोक मरि जाइछ।' असल मे ई शहरक आतंक थिक। सब किछु अपरिचित, अनभुआर। अज्ञातक डर। अपन देहाती हेबाक डर। अपन विपन्नताक डर। पैदलगामी हेबाक डर। शहर सभ्यताक कब्रगाह होइत छैक, से कोनो महान विचारकक कहल छनि। मुदा कोना, तकर जवाब हमसब सुभाषक एहि कथा सब मे पाबि सकै छी। शहर विपन्न लोकक लेल आदरशील नहि होइत छैक। गाम-घर मे अदौ सं ई कहबी प्रचलित छै जे दस चंगला पर एक बंगला। गरीब कें दाबिये क' क्यो अमीर बनि सकैए, तें गरीबक लेल, भने ओ कतबो काबिल किएक ने हो, ओकरा मन मे ममता कोना हेतै? 

            'टिप' कथा मे छै जे होटलक बेयरा ओकरा अपमानित नहि करय ताहि लेल अपन विपन्नतो मे कथावाचक ओकरा टिप देने चलि जाइत अछि। जखन कहियो हाथ खाली रहलै तं ओ सबटा पाइ मोन पड़ैत रहै छै जे ओ व्यर्थे बेयरा कें द' देने रहै। ओ आगू देब बन्द करैत अछि तं फेर वैह। एक दृश्य तं एलैए जे झंझट सं बचबा लेल घुरतीक डेढ़ टाका ओ प्लेट मे छोड़ि क' बहरा जाइत अछि मुदा, गेट पर एकटा दोसर बेयरा कें ठाढ़ देखि क' ओकरा डर होइत छैक जे ओकरा पकड़ि नहि लियय। ई डर असल मे अपमानक डर थिक। उपाय एक्के टा छैक जे आदमी अपना कें बदलि लियय। शहरुआ बनि जाय। आइ-काल्हि यैह होइत हमसब देखैत छी। गामक लोक थोड़बे दिन शहर रहल कि ओकर भाषा बदलि जाइछ, चालि-ढालि, ओढ़न-पहिरन, सभ्यता-संस्कृति, सब किछु बदलि जाइछ। एहि विषय पर मैथिली मे बहुतो रास कथा लिखल गेल अछि जकर स्वर आलोचनात्मक छैक। प्रश्न अछि जे आदमी अपना कें नहि बदलय तं की हेतै? वैह हेतै, जे हमसब सुभाषक कथा मे होइत देखै छी। मोन रखबाक चाही जे मिथिलाक हाशिया परक आखिरी आदमी मे सं एक जखन उच्च शिक्षाक लेल वा रोजगार लेल, आधुनिक युग मे, शहर गेल छलै तं ओकरा संग की बर्ताव कयल गेल छल! सुभाषक कथावाचक बदलय नहि जनैत अछि, जेहन अछि तेहने बनल रहय चाहैए, तकरे परिणाम एकरा बुझक चाही।

           मुदा, प्रश्न एहि सं कतहु बेसी जटिल अछि। देहातक आदमी अपन आदमीयत कें बरकरार राखय चाहैत अछि,‌ मुदा शहर कें सेहो मंजूर नहि छैक। नित नवीन वेग सं ओ गामक दिस घेंट नमरौने चलि अबैत अछि। आब तं शहर गामक लग धरि चलि आयल अछि। सुभाषक कथा मे तीन तरहक शहर छै। कलकत्ता-दिल्ली सन महानगर, पटना सन नगर, आ तखन सहरसा-सुपौल सन शहर। शहर दैत जे अछि से तं सब कें देखार पड़ैत अछि मुदा छिनैत की सब अछि, से अछोप बनल रहि जाइत अछि। एकरा सब कें सुभाषक कथा मे देखल जा सकैत अछि। दिल्लीक जेएनयू कैम्पस सं जुड़ल दूटा कथा अछि जतय एहि अपमानबोध-जनित डर कें मूर्त देखल जा सकैत अछि। 'लिफ्ट' कथा मे भयानक रौद आ गरमी मे यूनिवर्सिटी सं हाॅस्टल जेबाक छै मनोज कें। समय बहुत बीति गेलै, कोनो बस नहि आयल। आसमानी रंगक एक कार आबि रहल छल जकरा ओकर संगबे हाथ देलकै, कार रुकि गेल। संगबेक संग मनोजो चढ़ि गेल। कार एकटा महिला, मिसेज कपूर चला रहल छली जे कोनो विभागक प्रोफेसर रहल हेती। कपूरक डेरा धरि पहुंचि तं ओ गेल मुदा ओतय ओ महिला मनोज के बहुत गंजन केलकै-- 'ई कोनो भाड़ा-गाड़ी नहि छिऐ जे जतय मोन भेल रोकि लेलहुं आ चढ़ि गेलहुं।' बात की तं एतबे जे मनोज बिनु आज्ञा मांगने चढ़ि गेल छल। संगबे लेल गाड़ी रुकल छलै, कारण ओ प्रोफेसरक परिचित छल। बात की तं एतबे जे मनोज देहाती लगै छल, जखन कि अंग्रेजी ओहो बजै छल, स्वर मे ग्राम्यता आ रुच्छता रहै। मनोज क्षमा तं मांगि लेलक मुदा ओकरा लेल ई बात बहुत निराशाजनक रहै जे 'आज्ञा नहि मांगि क' मिसेज कपूरक महत्व आ स्वामित्व-बोध' कें ओ आहत क' देने छल। ओकर संस्कारक मोताबिक एक बेगरतूत कें ओकर गन्तव्य धरि पहुंचा देला पर मिसेज कपूर कें आत्मिक संतोष हेबाक चाही छल, एहि मे पुछनाइ नहि पुछनाइ महत्वहीन रहै। मुदा, गाम आ शहर मे यैह तं अन्तर छै। की लगैए, आब ओ फेर ककरो सं लिफ्ट मंगतै? डर के उत्पत्ति-स्थल थिक ई। 

          तहिना, 'ओ लड़की' कथा मे ई होइत छै जे जेएनयू कैम्पस मे ओ नवीन अपन हाॅस्टल सं बहरा चाह पीबय जा रहल अछि। रस्ता मे एकटा कार लागल छै जाहि मे लड़का-लड़की बैसल प्रेमालाप क' रहल अछि। लड़कीक हाथ मे दू टा अइंठ कप छै। ई तहियाक बात छी जहिया डिस्पोजेबल कप चलन मे नहि आयल रहै। लड़की बेधड़क नवीन कें पुछैए-- 'आर यू गोइंग दैट साइड?' नवीन पूरा माजरा बुझि जाइत अछि, अइंठ कप उठेबा जोग ओकरे मानल गेलै ताहि सं अपमानित महसूस करैत ओ जवाब दैत अछि-- 'नो', यद्यपि कि बाद मे ओ पछताइत रहल जे खाली नो ओ किऐ कहलकै, ओकरा तं कहबाक चाहैत छल-- 'हाउ डिड यू डेयर?' तं ओ सैह किऐ ने कहलक? कथाक पांती छै-- 'साइत निम्नवर्गीय दब्बूपनी आ संस्कार ओकरा रोकि लेलकै।' मोन पाड़ू, गाम-घर मे जं कोनो दिवाली वा होलीक समय गामक कोनो संभावनाशील युवकक अकालमिर्त भ' जाइक तं समुच्चा गामक कोनो घर होली-दिवाली नहि मनबै छल। एकरा अहां पिछड़ापन कहबै? मुदा, सैह कहल जाइ छै। गामक संस्कार अछि तं अहां दब्बू आ निम्न भेलियै। मुदा, संस्कार अछि कि छुटबाक नाम नहि लैए। एही नवीन कें देखियौ। जाइत छल चाह पीबय मुदा पहुंचि गेल पानक दोकान पर। किऐ? केवल ई साबित करै लेल जे हम ठीके चाहक दोकान पर नहि जाइ छलहुं। कथाक पांती छै-- 'मरजाद आ शालीनताक लेहाज नहि होइतै तं चाहक बदला ओ पानक दोकान पर किऐ ठाढ़ होइत?' भ' सकैए, अहां कें हंसियो लागय, मुदा जाहि वर्गक ई कथा थिक तकर मनोविज्ञान ठीक अहिना चलै छै। एहि मनोनिर्मितिक दोसर पक्ष सेहो कथा मे एलैए जे अपन एहि अपमान पर नवीन पूरा भड़कल अछि। कथा मे पांती आयल छै-- 'नवीन कें बुझेलै साइत संपन्नताक चिक्कन चाम आ रौद-बसातक सुक्खल चामक अंतर ओकरा भड़का देने होइ।'

           आब एकर की करबै जे तमाम अदगोइ-बदगोइक बादो शहर गाम ढुकल आबि रहल अछि। हमसब अरियाइत क' लाबि रहल छिऐ। गाम जे उजड़ल अछि ताहि मे कोनो एक्के-दू टा कारक होइ, से नहि। सुपौल-सहरसा सन अपनो शहर बदलल-बदलल लगैत अछि। 'असुरक्षित' कथा मे एकर पूरा खेरहा आयल छैक। आ, सुपौल-सहरसा कें तं छोड़ू, गाम मे जे हटिया लगै छै, ताहि ठाम की केहन माहौल रहै छै, तकरा 'बात' कथा मे देखल जा सकैत अछि।

           सुभाषक किछु कथा मे विरल जीवनानुभव सब व्यक्त भेल अछि। रेल-यात्रा हुनका प्रिय छनि आ तकर बयान हुनकर अनेको कथाक विषय बनल अछि। हुनकर कथावाचक तं बेटिकट यात्रा करैत जेलक सजाइ धरि भोगि आयल अछि। तहिना, स्त्रीक प्रति हुनकर अनुराग कैक कथा मे व्यक्त भेल अछि, से मुदा कने भिन्न ढंग सं। हुनकर 'तृष्णा' कथा मे ई पांती आयल छैक-- 'हमरा लागल, अखिलन कें श्रीलता नहियो भेटतै, तैयो ओकर स्नेहक स्मृति रहि जेतै आ अखिलनक आत्मा कें आलोकि करैत रहतैक।' एहि तरहक वचन हुनकर आनो अनेक कथा जेना 'नदि', 'रम्भा' आदि, मे भेटत। स्मृतिक महत्व हुनका लेल बहुत बेसी। सभ्यताक जाहि अन्हरमारि मे ई पृथ्वीग्रह फंसि गेल अछि, क्यो जं एकरा उबारि सकतैक तं से मनुष्यक स्मृतिये। मनुष्यक एहि दुआरे जे ई अन्हरमारि ओकरे शुरू कयल छै। श्रीलता सं तं फेर अखिलन के कहियो भेंट हेतै, तकरा असंभवे सन मानल जा सकैत अछि, यद्यपि कि इहो बात अछि जे एहि सृष्टि मे, वास्तव मे असंभव किछुओ होइत नहि छैक। अखिलन आ श्रीलताक भेंट एक रेलयात्राक क्रम मे भेल छल आ ओ दुनू संग-संग किछु स्टेशन धरिक यात्रा कयने रहैक, ने फोन नंबर, ने पता-ठेकान, तखन कोना भेंट हेतै? मुदा, प्रेमक स्मृति बहुत मूल्यवान। यैह कारण थिक जे हुनका कथा मे अहां कें नव पीढ़ीक युवा कें प्रेम करबाक लेल प्रोत्साहनक भावना भेटत। 'एकटा प्रेमकथा' एहने एक कथा थिक जे अनेक घुमान विन्दु पर पाठक कें ल' जा क' ठाढ़ क' दैत छैक।

        'बनैत बिगड़ैत', 'गति' आ 'आस' बिलकुल अलग तरहक कथा अछि। तीनू कथा परिवारक विषय मे अछि मुदा विशेषता छै जे परिवारे धरि सीमित नहि अछि। ई सुभाषक पुरान हिस्सक रहलनि अछि। जेना गाछ कें उखाड़ियौ तं ओकरा जड़ि लागल बहुत रास माटि आबि जाइत अछि, किछु तहिना। ई सब माटि, मने बात मिलि क' ओहि परिवेशक निर्माण करैए, जाहि मे सुभाषक चिन्ता जगजगार भ' क' कथा मे आओत। 'बनैत बिगड़ैत' मे कौआ आयल अछि। बात ई छै जे सत्तो आ माला(पति-पत्नी)क धिया-पुता परदेस रहै जाइए। एहि ठाम यैह दू बेकती। भेल ई छै जे बड़ी काल सं कारकौआ कर्रा रहल अछि। कारकौआक टाहि अपसगुन मानल जाइछ, से मालाक संस्कार मे बद्धमूल छै। सत्तो बौद्धिक आदमी अछि, लेकिन, मिथिलाक बौद्धिक लोकनिक सांस्कारिक बद्धमूलता पर कथा मे सत्तोक बहाने टिप्पणी आयल अछि -- 'कोनो अपसगुन भेला पर आशंकित भ' जाइत अछि। आशंका कें बुधि आ तर्क सं ठेल क' बाहर करैक कोशिश करैत अछि। कखनो संस्कारक फान मे लटपटाइत अछि। कखनो सम्हरैत अछि। फेर फँसैत अछि। फेर छुटैत अछि। ई सब बड़ी काल चलैत रहै छै।' यैह कारण छै जे मालाक आशंका कें निर्मूल करबाक लेल ओ तर्क करैत अछि तं माला खुखुआ उठै छै-- 'दुनियांक काबिल अहीं टा तं छी। अहां सन बुझक्कड़ और कोय छै?' खैर, रोड़ी उठा क' फेकला पर कौआ तं उड़ि गेल, मुदा कथा मे बात ई रहि गेल जे 'जे चीज पसिन नै पड़ै छै, तकरा प्रति लोग निष्ठुर आ अन्यायी भ' जाइत अछि। कारी रंग आ टांस आवाजक चलते कौआ कें अशुभ बना देलक।'

          कथाक बीच मे आरो कैकटा बात अबैत छैक जेना कुकुरक सामूहिक कानब। जेना, माला आइ जाहि धियापुता लेल आइ एते बेकल अछि, सैह सब जखन एतय आयल रहैत छैक तं कतोक बेर ओकरा बलाय लगैत छैक। अपन पुतोहु सं मालाक ई सेहन्ता कहियो पूर नहि भेलै जे परसि क' खाइ लेल दियय कि केशे बान्हि दियय कि हाथे-गोड़ दाबि दियय। अपन नौ मासक पोतीक बारे मे तखन ओकर ई कहब रहै छै जे मोटरी नीक, बच्चा नै नीक। मुदा, सत्तोक दिमाग मे एखन दोसर बात चलि रहल छै। नौ बरसक पोती मुनियां कें कौआ बड़ पसंद। ओ जखन खौंझाइ वा कनैत अछि तं कौए कें पुकारला पर शान्त होइत होइए-- 'कोन्ने गेलही रे कौआ! मुनियांक कौआ।' से कौवा गिद्धे जकां नहुं-नहुं विलुप्त भेल जा रहल छै। मुनियां कें जेना कौआ बड़ पसंद तहिना दादा सेहो बड़ पसंद। कथाक अंतिम पांती छै-- 'मुनियां कें बेर-बेर कौवा मोन पड़ैत रहतै, दादा मोन पड़ैत रहतै। ने ओ कौवा कें बिसरि सकैत अछि, ने दादा कें। मुनियां कौवा कें ताकैत रहत, दादा कें ताकैत रहत। कहियो ने कौवा रहतै, ने दादा रहतै।' कथा समाप्ति लग जा क' उदास करैए मुदा, सुभाष लग दोसर कोनो उपाय नहि छनि। सगुन-अपसगुनक सनातन अंधविश्वास एहि मुलुकक लोक सं की-की छीनि लेत, तकर कोनो पारावार नहि अछि। विद्रोह कयने तं एहि अंधविश्वासक किछु नहि बिगड़ल, साइत उदास कयने ठमकि क' सोचबाक विवेक जागैक। विवेक जागैक जे नौ मासक बच्चा अपन सहजबोध मे कोना सही, आ सियान कहाबैबला लोक अपन अंधकार मे कोना गलत भ' जाइत छैक।

            'आस' कथा पुत्रक संग माता-पिताक मुम्बइ रहवास पर आधारित अछि। पुत्र कोनो कारपोरेट आफिस मे काज करैए, जकरा भोरे आठ बजे आफिस जेबाक रहै छै, आ रातुक एगारह बजेक आसपास घर घुरैत अछि। माता-पिता कें संग राखने छैक। पिता अनंत प्रसाद भारी छगुन्ता मे पड़ल रहै छथि जे ई कोन नोकरी भेलै! सुविधा आ साधन तं कंपनी बहुत देने छै मुदा चैन-निन्न सब बिलायल छै। जीवनचर्या पर माता-पिता एक्को सुझाव बेटा गछबा लेल तैयार नहि अछि। पछिला एक सप्ताह सं अनंत बाबूक कान मे किछु फड़फड़ाइत छनि, जे कोनो उपायें ठीक नहि भ' रहल छनि। ओ एकटा मामूली सहायता चाहै छथि जे क्यो अँखिगर लोक देखितय जे कान मे किछु ढुकि तं नहि गेल छनि। पत्नीक आंखि कमजोर छनि, तें ओ पुत्रक समय चाहै छथि। पुत्र रोज भोरे जाइए, रोज देर राति मे घुरैए, अपने बेचारा पस्त रहैए-- ओकरा किछु कहब हुनका अत्याचार जकां लगै छनि। अन्तत: रवि दिनुका इंतजार होइए। पुत्रक रवि दिनका शेड्यूल आरो तते टाइट छै जे अन्तत: ओ निरास भ' जाइत छथि। एहि कथा मे देखल जा सकैए जे दू पीढ़ीक बीच कार्यसंस्कृति कते भयानक ढंग सं बदलि गेलैए, पुत्र कें आब ने अपना लेल सोचबाक समय छै ने परिवार लेल। एहन लोक भला अपन समाज लेल कि देश लेल की सोचि सकैए! गुलाम पीढ़ी, जकरा लग मनुष्य हेबाक कोनो भवितव्य बचल नहि रहि गेल छै, तैयार करबाक लेल जे एक वैश्विक षड्यंत्र जारी छै, तकर अहसास एतय असानी सं कयल जा सकैए। भारतक कारपोरेट-पीढ़ीक प्रामाणिक जानकारी एहि कथा मे भेटैत अछि। कथाक अंत मे अनंत बाबूक 'आस' कोना टुटैत छनि-- 'जेना-जेना समय हाथ सं निकलल जा रहल छल, हुनक बेचैनी ओतबे बढ़ल चल जाइत छलनि। कखनो होइन बेटा आबि जेतनि, कखनो होइन आब नहि। आब बाट ताकब खाली दुराशा अछि, आर किछु नहि।' निपट एकाकीपन कोना पुरान पीढ़ी कें निकाल बाहर केलकैए, सब सुख-सुविधाक अछैत, से एहि कथा मे देखल जा सकैत अछि।

             'गति' कथा एकर अगिला पड़ाव के कथा थिक, जतय पत्नी संग छोड़ि जाइत छनि। हुनका मुइना एक वर्ष हुअय जा रहल अछि। जेठ बेटा गंगाकात जा क' हुनकर अस्थ-विसर्जन क' देने छनि। मुदा भेल ई छै जे अस्थिक एकटा अवशेष राखि लेल गेल छै। योजना रहै जे हुनकर समाधि बनत आ ताहि ठाम ई स्थापित भेल। अवशेष कथावाचकक कोठलीक एक कोन मे राखल छै जे ओकरा पत्नी मौजूद रहबाक आश्वासन दैत रहलैए। आब जेठ पुत्रक ई फैसला भेलैए जे वर्ष बीतय जा रहल अछि, बेसी समय ओकरा घर मे राखब नहि ठीक, तें ओकरो प्रवाहित क' देल जाय। कथावाचक एहि लेल गंगाकात नहि बुहिलबा पोखरिक पाढ़ पर अवस्थित ओही श्मसानक पोखरि के चुनाव करैए, जतय पत्नीक अंतिम संस्कार भेल रहनि-- 'सब जल तं जले होइत अछि। गंगा के हो कि पोखरि के। जल तं जले अछि। प्राणदायी जल। हुनक अंश जलक्रीड़ा करैत रहतनि। ओ जलजीव मे मीलि जेती। नित नव रूप ग्रहण करती।' सांझक समय छै। मसानघाट छहरदेवाली सं घेरल छै आ लोहाक फाटक लागल छै। ओहि मे ढेर रास बकरी चरि रहल छै। सूर्यास्त भेलाक बाद श्मसान मे बंद बकरी सब गेट लग जमा भ' गेल अछि आ बाहर निकलै लेल आफन तोड़ि रहलैए, किलोल क' रहल अछि। कथावाचक कें लगै छै-- 'बकरी सभक कौलैत देखि हठात कश्मीर मोन पड़ैत अछि। होइए, कश्मीर के लोक अखन ठीक बकरिये सन हैत। तीन सौ सत्तर के फांस मे फड़फड़ाइत। लगैए जेना पत्नियो कहैत होथि-- हमरा एतय सं निकालू, घर ल' चलू।'  एवंप्रकारें अस्थि-विसर्जनक बाद कथावाचक कें 'एकाकी, असहाय, निरालंब हेबाक अनुभूति' गछाड़ि लैत छनि। ओहिठाम बड़क विशाल गाछ छै जाहि चिड़ै-चुनमुनी अनघोल मचेने अछि। एहनो लोक तं होइत रहय जे चिड़ै-चुनमुनीक बोली बुझि जाइत रहय, अँटकर लगबैत छथि जे ई सब की कहैए-- 'होइए, सब अपन-अपन समांग के खोज-खबरि लै खातिर एतेक घोल-फचक्का करैत हैत। भरिसक एहि हिंसक काल मे सुरक्षित घर घूरि अयबाक उत्सव मना रहल अछि।' कथा-समय घोर असुरक्षा, अन्याय आ अव्यवस्था सं भरल छैक, से स्पष्ट देखाब दैत अछि।

              

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