Sunday, September 18, 2022

इन्टरव्यू:: भारतीय साहित्य बीच मैथिली साहित्य (संजीव सिन्हा संग तारानंद वियोगीक वार्ता)




*संजीव सिन्हा--भारतीय साहित्य मे मैथिली साहित्यक कतेक प्रतिष्ठा अछि?

• ता न वि--जकरा पंडीजी लोकनि मैथिली साहित्य कहै छथिन, आ जकरा पुरस्कार-प्रतिष्ठान सब पुरस्कृत करैत अछि, आ जकरा प्रोमोट करबा लेल विश्वविद्यालय सब, मैथिली प्रतिष्ठान सब हलकान रहै छथि, ताहि मैथिली साहित्यक कोनो प्रतिष्ठा नहि अछि। उनटे निन्दा होइत अछि। नियमसंगत बात छै जे जकरा अहां पुरस्कृत करबै ओकरे अनुवाद भ' क' बाहर जाएत आ ओही पर प्रतिष्ठा-अप्रतिष्ठा निर्भर करत।

        हिन्दी आलोचक नंदकिशोर नवल जखन पछिला दशक मे एकठाम लिखलनि जे मैथिली मे एखनो महाकाव्ये युग चलि रहल अछि तं मैथिल लोकनि हुनका भरि पोख गरियेलखिन। जखन कि तथ्य की अछि? डा. भीमनाथ झाक आकलन छनि जे दस बरस मे मैथिली मे बीस टा महाकाव्य छपि रहल अछि। दोसर दिस, हमर महान आलोचक रमानाथ झाक मान्यता रहलनि जे मैथिली मे प्राचीन काल सं आइ धरि दुइये टा युग भेल-- विद्यापति सं हर्षनाथ झा धरि कृष्णयुग, आ चंदा झा सं आइ धरि रामयुग। एहि सौ बरस मे दुनिया कते बदलि गेल आ मैथिली जं आइयो एही ठाम अछि तं भला एकर की प्रतिष्ठा भ' सकै छै?

           मुदा दोसर दिस, जाहि रचनाकार लोकनि कें पंडीजी सब गरियाबै छथिन, जिनका लेल ने कोनो पुरस्कार अछि ने कोनो प्रतिष्ठान, विना कोनो प्रोत्साहनक कोना आ किएक ई लेखक लोकनि आइयो मैथिली मे लिखि रहल छथि अन्त:प्रेरणा कें छोड़ि दी, तं एकर जवाबो ताकब रहस्यमय लागत-- भारतीय साहित्य मे जं आइ मैथिलीक कोनो प्रतिष्ठा अछि तं से एहने लेखक सभक दुआरे अछि। यात्री जी, राजकमल चौधरी, धूमकेतु, कुलानंद मिश्र सं ल' क' सुभाष चंद्र यादव धरि आ हुनका बादो ई क्रम जारी अछि। हमरा सदति आश्चर्य लगैत रहल अछि जे हरेक पीढ़ीक संग एहि कोटिक दू-चारि गोट लेखक आइयो मैथिली मे कोना, कोन प्रभाववश चलि अबैत छथि! एकरा अहां मैथिली साहित्यक सौभाग्य कहि सकै छियै।


*संजीव सिन्हा--एखन मैथिली साहित्यक केहन परिदृश्य अछि?

• ता न वि--गुहमा-गीज मचल अछि। मैथिली साहित्यक स्तर कें अठारहम शताब्दीक राजदरबार मे लिखल जाय बला साहित्यक रूप मे ढालबाक सघन प्रयास चलि रहल छै। नेतृत्व एहन लोकक हाथ मे छै जे साहित्यक सी अक्षर नहि बुझैत अछि मुदा समस्त सम्मान अरजि क' मठाधीश बनल अछि। मिथिलाराज, जे कि एखन नहि भेटल अछि, तकरा लेल युवावर्ग आंदोलित छथि, मुदा विश्वविद्यालय कि प्रतिष्ठान, जे कि पहिनहि सं मैथिली कें भेटल अछि, तकर वर्चस्ववादी धतकरम स्वयं मिथिलेक लोक कें एहि सभक प्रति निस्पृह आ निरपेक्ष बना रहल अछि। युवावर्गक ध्यान एम्हर नहि जाइए तं की एकर अर्थ ई नहि भेल जे हिनका सब कें जं मौका भेटि जाय, तं इहो सब सैह करता?

            जेना कि हम पहिने कहलहुं, अपन अंत:प्रेरणा सं आ अपन भाषा-भूमिक नेहवश जे प्रतिभाशाली लोक सब एकान्तवास क' साहित्यसृजन मे लागल छथि, मैथिली साहित्यक समुच्चा भविष्य हुनके सब पर टिकल अछि। मुदा परिदृश्य पर हुनकर कोनो पकड़, कोनो नियंत्रण नहि अछि। जिनकर नियंत्रण छनि हुनका ने मिथिला सं कोनो मोह छनि ने मैथिलीक प्रति कोनो ममता। अर्धमृत मैथिलीक मासु नोचि-नोचि कांच चिबेनिहार ई लोकनि अपन लाभ-लोभ छोड़ि आर कथूक चिन्ता नहि करैत छथि। कइये नहि सकै छथि।


*संजीव सिन्हा--मैथिली साहित्य मे कोन-कोन वाद, विमर्श, आंदोलन चलल अछि? संप्रति कोन साहित्यिक प्रवृत्तिक प्रधानता अछि?

ता न वि.--इतिहासकार सभक संकीर्णता सं बाहर आबि क' जं बात करी तं मैथिली साहित्य मे कुल्लम दुइये प्रकारक वाद चलल अछि-- प्राचीनतावाद आ आधुनिकतावाद।

       प्राचीनतावादक की अर्थ अछि? सनातन धर्मक कर्मकांडी स्कूलक मान्यताक पृष्ठपोषण। हम सब जनै छी जे सनातन धर्म मे बहुतो संप्रदाय अछि, वैष्णव संप्रदाय सेहो अछि, मुदा मैथिलीक प्राचीनतावाद मे एकरा प्रति घोर घृणा देखबै। आश्चर्यक बात ई अछि जे बारह सौ बरस पुरान अपन मैथिली साहित्यक परंपरा मे उत्स अहां कें आधुनिकतावादक भेटत, प्राचीनतावादक नहि। संसार भरिक अध्येता सब कैक अर्थ मे स्वयं विद्यापति कें आधुनिक माने छथि। दोसर दिस, मैथिली मे लेखनक जे आविष्कार भेल छल सैह संस्कृतक प्रतिरोध मे शूद्र वर्गक द्वारा भेल छल। छंद मे कविता लिखब मैथिलीक काव्य-परंपरा मे कहियो मान्य नहि रहल, राग-ताल-लय मे सं कोनो एक वा दू वा तीनू सब दिन मान्य रहलै। मैथिली जहिया सं वर्चस्ववादी लोकनिक शिकार भेल तहिये सं, उनैसम शताब्दीक अंत सं, एहि मे छंदक चलाचलती भेल। आइ जे ब्लैंक वर्स मे कविता लिखल जा रहल रहल अछि तकर परंपरा अहां ज्योतिरीश्वरक वर्णरत्नाकर मे पाबि सकै छी। प्रसंगवश कहि दी जे वर्णरत्नाकर एक काव्यपुस्तक छी आ स्वयं ज्योतिरीश्वरो एकरा काव्ये कहने छथि।

         आधुनिकताक प्रसार-क्रम मे अनेक आन्दोलन समय-समय पर चलैत रहल अछि। बीसम शताब्दीक आरंभिक बेला कें मोन पाड़ियौ। अंग्रेज हिन्दू-मुसलमान मे विभाजन पैदा करबाक लेल फारसीक स्थान पर हिन्दी कें प्रश्रय देलक आ मिथिलानरेश तं अंग्रेजक सदा सं अनुगामी चाकर, तें तहिया मैथिली साहित्य मे राष्ट्रीय चेतनाक कविता लिखब, मिथिला आ मैथिली कें विकसित करबाक स्वप्न देखब एक आन्दोलन छल। सामाजिक सड़ांध के प्रतिकार मे हरिमोहन झाक कन्यादान वा खट्टर काकाक तरंग कि यात्री जीक पारो आधुनिक मनोनिर्माणक दिशा मे मैथिली साहित्यक सर्वाधिक प्रभावी आन्दोलन छल। मैथिली साहित्यक प्रधान विधा सब दिन सं कविता रहल अछि। कविताक सीमा सब कें तोड़बाक, ओकरा आर अधिक अन्तर्गामी, आर अधिक यथार्थमुखी बनेबाक दिशा मे राजकमल आ हुनकर साथी कवि सभक आन्दोलन एक दिशानियामक अवदान साबित भेल। कविता लेल अबल-निबल लोकक पक्ष मे ठाढ़ हेबाक जे प्रतिश्रुति छै, तकर प्रतिष्ठापन लेल जं एक दिस यात्री जीक चलाओल काव्यान्दोलनक महत्व अछि तं दोसर दिस अग्निजीवी आन्दोलनक सेहो कम नहि, जकर सर्वश्रेष्ठ परिणाम हमरा लोकनि हरे कृष्ण झाक कविता मे पबैत छी।

         मैथिली साहित्य मे समकालीन विमर्श मुख्यत: दूटा प्रभावी रूप सं हस्तक्षेपकारी साबित भेल अछि-- स्त्री-विमर्श आ दलित-विमर्श। आइ एही दुनू विमर्शक रचनाशीलता सर्वाधिक प्राणवन्त, सर्वाधिक ध्यानाकर्षक रूप मे सामने आबि रहल अछि।

         

*संजीव सिन्हा--मैथिली साहित्यक समक्ष की समस्या-चुनौती अछि?

ता. न वि-- सब सं पैघ तं यैह अछि जे प्रतिभाशाली रचनाकार सभक आत्म-बलिदानी पीढ़ी आगुओ एतय कोना जनमैत रहय। एकरा लेल कोनो कतहु माहौल नहि अछि। हमर भरोस एखनहु धरि मरल नहि अछि जे वर्चस्वी लोकनिक क्षुद्र स्वार्थक दबोच सं कहियो मैथिली साहित्य मुक्त हेतै आ एहि अनागत प्रतिभा सभक लेल एतहु एक स्वस्थ पर्यावरण बनतै।

            चुनौती अछि जे एहन साहित्य मिथिला मे लिखल जाय जकर धमक विश्व भरि मे सुनाइ पड़ि सकै। चुनौती अछि जे जाहि हिसाबें नव-नव रचना-प्रवृत्ति सब मैथिली मे विकसित भ' रहल छै, तकरा देखबाक आंखि पहिने तं आलोचक लोकनि मे तखन पाठक लोकनि मे विकसित भ' सकै।

            चुनौती अछि जे श्रेष्ठ साहित्य लिखबाक अभीप्सा राखनिहार युवा लोकनि कोना पुरस्कारक मोह सं बचल रहि सकथि आ एकरे बहुत मानथि जे एहनो अंधकारकाल मे ओ साहित्यक साधना लेल जीवनक महत्वपूर्ण समय खर्च क' पाबि रहल छथि। समय चूंकि सर्वथा विपरीत छै तें मैथिली साहित्यक स्तर, जतय धरि कि आइ ई पहुंचि चुकल अछि, एकरा जीवित बनौने राखिये सकब सब सं पैघ चुनौती छै।


*संजीव सिन्हा--मिथिलाक अन्य भाषा- अंगिका, बज्जिकाक लेखक सँ मैथिली लेखकक संवाद केहन अछि?

• तान वि--कोनो संवाद नहि अछि। अथवा कहू जे घृणा करबाक सम्बन्ध अछि, मानू शुतुरमुर्ग आंखि बन्न क' लेत तं संकट टलि जेतै। रामदेव भावुक आखिरी कवि छला जे अइ पार-ओइ पारक बीच एक पुल छला। आइ समस्त पुल तोड़ल जा चुकल अछि। जेना बेंगक लेल ओकर संपूर्ण संसार इनारे होइ छै तहिना आइ मैथिल लोकनिक लेल संपूर्ण संसार दू जिला-- दरभंगा आ मधुबनी अछि। हं, मंच पर भाषण देबाक जखन बात रहत, बड़का-बड़का बात सुनबै, जेना हाथीक देखावटी दांत। हमरा भय अछि, मैथिल सभक संकीर्णता कहीं  समस्त भविष्यक बलिदान करैत मैथिलियो कें ओही साहित्यिक स्तर पर ने आनि पटकय जतय आइ अंगिका-वज्जिका अछि। एहिना जं सब किछु दस-बीस बरस चलैत रहल तं से निश्चिते भ' क' रहत। आ अहां भारतीय साहित्य बीच एकर प्रतिष्ठाक बात करै छी?

           प्रसंगवश इहो कहि दी जे अंगिका-वज्जिकाक विभाजन वास्तविकता सं कतहु बेसी मैथिल सभक संकीर्णताक प्रतिरोध छियै। कते आश्चर्यक बात छी जे हम सब आइ ओतय पहुंचि गेल छी जतय आठम-नवम शताब्दी मे संस्कृत छल आ संस्कृतेक प्रतिरोध मे मैथिली साहित्यक जन्म भेल छल। लगभग सैह प्रतिरोध आइ अंगिका वज्जिका दिस सं आबि रहल अछि।


*संजीव सिन्हा--मैथिली साहित्य मे नव लेखक लेल कोन तरहक अवसर आ संभावना अछि?

ता न वि--दू तरहक अवसर छै। एक तं कहुना एकटा किताब छपबा लिय' विना अइ बातक परवाह केने कि ओकर स्तर केहन अछि। तकर बाद, गनल-चुनल लोक छथि जानल-मानल, हुनका सभक सेवा मे लागि जाउ, यथाशक्ति तथाभक्ति। जाहि योग्य सेवा रहत, ताहि अनुपातक कोनो पुरस्कार, सम्मान घीचि आनू। मिथिला मे विद्वान लोकक सदा सं बहुत कदर। विद्वानक पहचान यैह जे अहां कें कोनो पुरस्कार भेटल हुअय। आर नहि किछु तं मिथिला विभूति। एतबे मे अहां अपन पुरखा-पति धरि के आत्मा कें तृप्त क' सकै छियनि, समाज मे आदरणीय स्थान पाबि सकै छी। ई पहिल।

                   दोसर जे अवसर छै ताहि लेल हमरा युवा दलित कवि रामकृष्ण परार्थीक एक कविता मोन पड़ि आएल अछि जतय ओ कहै छथि जे मैथिली लिखबा मे हमरा स्वतंत्रता-संग्राम मे सीधा उतरि लड़बा सन के तृप्ति भेटैत अछि। इतिहास कें मोन पाड़ी। हुनका सब कें की भेटलनि जे स्वतंत्रता लेल लड़ला आ मरला! सोचबा सोचबाक बात छी। अहां कें लागि सकैए जे अरे, इहो कोनो बात भेलै! स्वतंत्रता तं जाइत-अबैत रहै छै। आइ धरिक इतिहास मे कतेको बेर ई देश गुलाम बनल, फेर आजाद भेल, फेर गुलाम बनल। असल चीज छी व्यक्तिगत लाभ, से अहां सोचि सकै छी। तकरो अवसर कम नै छै। प्रतिष्ठान आ विश्वविद्यालय तं पहिनहु सं रहै, आब तं नेतागिरी आ दलाली मे सेहो मैथिली सेवनो सं कोनो कम लाभ नै छै।

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