Tuesday, April 17, 2007

संदिग्‍ध विलाप

अविनाश

गाम मे आब सगरो ठाढ़ अछि कोठाबला घर
दूमंजिला सेहो
लोहाबला दरबज्‍जा लागि गेलनि बहुतो कें
दलानक परिपाटी आब रहिये ने गेल
सभ नुकाएल छथि घर'क दोग मे

दुफरिया मे रिक्‍शा पर टघरैत-टघरैत
हम हुलक' चाहैत छी दीयाद-बादक घर-आंगन
मुदा मन्‍हुआएल देबाल
बन्‍न खिड़की-दरबज्‍जा कहि दैत अछि
जे आब लोक कें तकला सं नहि भेटत लोक

नद्दी कातक सभटा खेत बहि गेल
गाछी अगोरने अनका गामक लोक

एतेक दिनक बाद अएलहुं गाम
अबिते हम घूर' चाहैत छी
परसौनी बाली काकी मुदा दुखित भ' गेलीह सुनि कए

'कत' जाएब नुनू
भरि मुंह अखनि देखबो ने कएलहुं अहां कें
रौद खसला पर कचहरी सं कक्‍का एता
त' दौड़ेबनि हुनके
ल' अनता माछ'

हमरा बूझल अछि-
स्‍वाद वएह पुरान हमरा भेटत
मुदा गाम हमरा नहि भेटल वएह!

मोनक चौबटिया पर ठाढ़ भ'
स्‍मृति कें एहन हेराफेरी देखि हम विलाप क' रहल छी
अनचिन्‍हार लोक के हमर विलाप लागैत अछि हृदय विदारक
ओ समवेत कहैत अछि- आह!

मुदा अहीं कहू
जे गाम छोड़‍ि कए उन्‍नति केलहुं हमसभ
गामक पुरान सन अवगति मे किए घूर' चाहैत छी?