Monday, January 11, 2021

धूमकेतुक नवोपलब्ध उपन्यास 'सरहद'


 


तारानंद वियोगी

बीसम शताब्दीक मिथिला मे किछु गनल-गुथल एहन लेखक भेलाह जे मातृभाषा मैथिली टा मे लिखितहु विश्व-स्तरक साहित्य-निर्माण क' सकलाह। एहने एक लेखक धूमकेतु(1932-2000) रहथि। हुनकर अविस्मरणीय ख्याति कथाकारक रूप मे छनि। हुनक निधनक बाद हुनकर एक महागाथात्मक उपन्यास 'मोड़ पर' नवंबर 2000 मे प्रकाशित भेल, मुदा ताधरि ओ अपने एहि संसार सं विदा भ' चुकल छलाह। एहि तरहें, हुनकर उपन्यासकारक रूप सं मैथिली पाठकक परिचय हुनकर निधनक बादे भ' सकलै। ओना, केदार काननक आग्रह पर 'सन्निपात' नामक उपन्यास 1998 सं ओ लिखब शुरू कयने छलाह। हुनका जिबैत जी एकर एकेटा अंश 'भारती मंडन' अंक चारि मे 1998 मे प्रकाशित भ' सकल रहनि। दोसर किश्त अंक सात मे जा जा प्रकाशित होइतनि, ओ विदा भ' चुकल छलाह। कुल मिला क' एकर ओ पांच अध्याय लिखि सकल रहथि। एखन धरि लोक हुनकर एही दुनू उपन्यास कें जनैत अछि।

हाल मे हुनकर तेसर उपन्यास 'सरहद' हुनकर पुरान डायरी मे लिखल भेटल अछि। इहो एक अपूर्ण उपन्यास थिक। 1989 इस्वीक डायरी मे एकरा ओ डिक्टेट क' क' लिखेने छला। जेना कि हुनकर पाठक अवगत छथिन, अनेको वर्ष सं धूमकेतु अपने लिखबा मे असुविधा महसूस करथि आ डिक्टेशन लेबाक काज हुनकर ज्येष्ठ पुत्री स्वर्णा सम्हारैत छली। मार्च सं जून 1989 मासक कुल  उनचालीस गोट डायरी-पेज मे ई उपन्यास लिखल भेटल अछि। मुदा, ई डायरिये टा 1989क थिक। एकर लेखन ओ बहुत बाद मे आबि क' कयलनि अछि, एहि सम्बन्ध मे एकटा सुस्पष्ट साक्ष्य अछि। वर्ष 1998-99 मे 'संधान'-संपादक कथाकार अशोकक द्वारा लेल गेल एक इन्टरव्यू मे, ई पुछला पर जे 'एहि बीच मे की सभ अहां पढि-लिखि रहल छी?', धूमकेतु उतारा देने छलखिन-- 'एकटा नेपाली जनजीवनक औपन्यासिक प्रयास मे लागल छी। रचबोक स्कोप तं अपना मातृभाषा मे कम्मे सम छै, आ कि नहि, भाइ?' हुनकर ई इन्टरव्यू संधान-4 मे 2000 ई. मे छपल, जाहि साल हुनकर निधन भेलनि।

'सरहद' अर्थात सिमान। मने कि भारत-नेपालक सिमान। नोमेन्स लैंड, जकरा धूमकेतु 'चालीसगज्जा' कहैत छथि, के अइ पार एकटा सभ्यता छैक जे ओइ पार धरि बहुत दूर तक पसरल छै, तें स्वाभाविक जे लोक-समाजक स्मृति मे 'पायाक अइ पार, ओइ पार' के कोनो खास महत्व नहि छैक, राजनीति मे भने होअओ। ओइ पारक जे सभ्यता छै जकरा सामान्यत: मधेसी कहल जाइत छैक, एकरा धूमकेतु मोगलानी कहैत छथि जे कि एकर परंपरागत प्राचीन नाम थिक। बहुत आगां जा क' एकटा आर सभ्यता शुरू होइछ जकरा ओ किराती कहलनि अछि।  ब्राह्मणधर्म संग पूर्णत: अनुकूलित सभ्यता मोगलक नाम पर मोगलानी किएक कहौलक आ इलाका मोगलान, तकर अलग वृत्तान्त भ' सकैत अछि। मुदा, मुख्य बात ई थिक जे दुनू सभ्यताक बीच धरती-अकासक अंतर छै। ततेक भिन्न जे देखने चकबिदोर लागत।

धूमकेतुक कथा-साहित्य सं जे क्यो अवगत छथि, नीक जकां जनै छथि जे हुनकर प्रिय कथा-विषय स्त्री-पुरुष-सम्बन्ध छलनि। एकर व्याप्ति ओ तते पैघ देखै छला जे जनु एही एक बिन्दु कें फरियौने जीव-जगतक बहुतो रास रहस्य खुलि सकैत रहय। वर्जित क्षेत्र मे जा जा क' ओ कथा-प्रयोग कयलनि। स्त्री-पुरुष-सम्बन्ध एहू उपन्यासक मूल वस्तु थिक। कुलीन आ संपन्न परिवार मे जनमलि शकुन मौसीक बियाह पन्द्रह बर्खक अवस्था मे एकटा प्रख्यात डाक्टरक संग भेल रहनि। बियाहक बादे ओ पतिक संग चलि गेल छली, जिनकर पोस्टिंग एक आदिवासी ग्रामीण अस्पताल मे छलनि। डाक्टर पत्नीक खूब ख्याल राखथि, मुदा ओ अपन मेडिकल रिसर्चक पाछू बेहाल छला आ शकुन अपना कें हुनका सामने अत्यन्त लघु, अत्यन्त तुच्छ अनुभव करथि। मनोवैज्ञानिक एकाकीपन सं घटनाक आरंभ भेल छल मुदा एकर परिणति बहुत पैघ, कदाचित भयावह भेल जे एक दिन शकुन डाक्टर कें छोड़ि क' ओइ नेपाली चपरासीक संग भागि गेली, जकर नियुक्ति डाक्टर साहेब हुनकर सेवा-टहल लेल कयने रहथि। ओहि कुलीन परिवार कें जे अपमान बोध भेल हेतनि तकर अनुमान कयल जा सकैत अछि। मुदा, समय सब सं पैघ चिकित्सक थिक। एहि घटना कें बारह बर्ख बीति गेलै आ शकुन मौसीक कुश-श्राद्ध क' देल गेलनि। सब क्यो हुनका नीक जकां बिसरि गेला।

मुदा, ई उपन्यासक कथावस्तु नहि थिक, मात्र एकर कथावस्तुक पृष्ठभूमि थिक। एहि उपन्यासक कथाभूमि नेपालक राजधानी काठमांडू थिक, जाहि मे दिलमाया, डम्मर आ नगीना राई एकर पात्र सब थिका, आ सहायक पात्र चन्द्रे दाइ(वा कि चन्द्रे भाइ) थिका जिनकर आवाजाही दुनू सभ्यता, मोगलानी आ किरातीक बीच छनि, कारण हुनका लोकनिक रोजगारे ताही तरहक छनि। ओ नेपालक सत्ताधारी राजनेता सभक पेशेवर दलाल थिका। चाहे कोनो पार्टीक सरकार हो, ने हुनकर धंधा मे मंदी अबै छनि ने ऐश मे कमी। हुनकर पुरान परिचय कथावाचकक संग छनि, जे कि काठमाडू मे प्रोफेसर नियुक्त भ' क' एलाह अछि। उपन्यास मे काठमांडूक इतिहास, संस्कृति, लोकाचार, स्थान आ लोक सभक तते मेंही डिटेल छैक जे निश्चिते आंखिक देखल तं जरूरे, सद्य: भोगल होयब सेहो संभाविते नहि, तर्कसंगतो लगैए।

नेपालक संग धूमकेतुक बहुत पुरान सम्बन्ध रहनि। अगस्त 1957 सं नवंबर 1973 धरि ओ जनकपुर मे अर्थशास्त्रक प्राध्यापक रहला आ एहि बीच रा. रा. ब. क्याम्पसक प्राचार्य सेहो भेलाह। हुनकर रचनाशीलताक ई स्वर्णकाल छलनि, अपन अधिकांश महत्वपूर्ण कथा ओ ओतहि लिखलनि आ अपन उपस्थिति सं जनकपुर कें सदा गुलजार कयने रहला। मुदा, आगू एहनो समय आएल जखन विचार सं मार्क्सवादी आ प्रवृत्ति सं नवाचारी धूमकेतु नेपाल सरकार कें असह्य भ' गेलखिन आ हुनका भारत घुरय पड़लनि। मुदा, थोड़बे दिन मे समय फेर बदलल आ 1980 मे हुनका त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू मे अर्थशास्त्रक एसोशिएट प्रोफेसरक पद पर नियुक्त क' लेल गेलनि। ई हुनकर दोसर नेपाल-प्रवास छल, मुदा जकर परिणाम नीक नहि रहल। काठमांडूक आबोहवा हुनका स्वास्थ्यक लेल सर्वथा विपरीत साबित भेलनि आ चारि वर्ष बितैत-बितैत ओ आस्टो-आर्थराइटिस रोग सं भयंकर प्रभावित भ' गेला। अन्तत: 1984 मे ओ फेर देश घुरि अयलाह। मुदा, नेपालक नेह जेना तखनहु कम नहि भेल होइक, 1997 मे, तेसर बेर फेर हुनका रा. रा. ब. क्याम्पस, जनकपुर मे सम्मानित विशिष्ट प्रोफेसर(मौद्रिक अर्थशास्त्र) मे नियुक्ति भेटलनि, जतय ओ जीवनक अंतिम समय धरि बनल रहला। हमरा लोकनि बूझि सकैत छी जे 'सरहद'क अनुभव हुनकर काठमांडू-प्रवास संग जुड़ल हेतनि, यद्यपि कि नेपालक गह-गह सं तं ओ सुरुहे सं परिचित छला। हमरा लोकनि बूझि सकैत छी जे एहि उपन्यासक यथार्थ सं हुनक टकराव दोसर नेपाल-प्रवासक अवधि मे भेल हेतनि। एकरा लिखलनि ओ बाद मे, जेना कि पहिनहि कहलहुं।

उपन्यास मे, होइत छैक एना जे एक दिन कथावाचक प्रोफेसर काठमांडूक असन चौक पर घुमय गेलाह अछि आ ओतय हठात हुनकर भेंट चन्द्रे दाइ(वा कि भाइ) सं भ' जाइत छनि। पुरान परिचित चन्द्रे बड़ पसन्न होइत हुनका अपना संग क' लैत छनि। संझुका पहर थिक जकरा बारे मे कहबी छैक जे सूर्य अस्त नेपाल मस्त। चन्द्रेक मस्तीक अड्डा 'भाउजो रेस्त्रां' थिक, जकर संचालिका थिकी दिलमाया। एही ठाम सं उपन्यास शुरू होइत छैक। दिलमाया कें देखितहि प्रोफेसर कें लगैत छनि जे अरे, ई तं शकुन मौसी थिकी। भारी उधेड़बुन मे ओ पड़ल रहैत छथि, नाना प्रकारक तर्क-वितर्क मे। तकर वर्णन सं उपन्यास भरल अछि। शकुन मौसी छली तं प्रोफेसरक मायक मामाक बेटी, मुदा बालविधवा हुनकर माइक संग हुनको प्रतिपाल हिनके कुलीनता-मर्यादित घर मे भेल भेल छलनि। दुनू संग-संग नेना सं जुआन भेल रहथि। उपन्यास मे प्रसंग आएल अछि जे नेनपन सं दुनू संग-संग खेलथि-धूपथि, मुदा जहिना कि शकुन मे कैशौर्यक चेन्ह सब प्रकट हुअय लागल छल, एहि खेलकूद सब पर प्रतिबन्ध लगा देल गेल छलैक। कुलीन घरक बालिकाक जाबन्तो शील-मर्यादा मे बान्हलि शकुन सब तरहें एक सुशीला कन्या रहथि। जखन कि ई दिलमाया किराती सभ्यता मे पूरे रंगलि, शराबखानाक संचालिका, खने खन घोंट-घोंट शराब सगरो दिन पिबैत रहयवाली, बड़का-बड़का मोंछबला सब कें अपन आंगुरक इशारा पर नचा सकबा मे दक्ष।

धूमकेतुक स्त्री-विमर्शक एकटा विशेषता छनि जे जाहि स्त्री संग पुरुषक शारीरिक वा भावनात्मक सम्बन्ध रहल होइक, बखत पड़ला पर पुरुष ओकर उपकारक लेल अपन सर्वस्व समर्पित क' सकैत अछि। 'मोड़ पर' मे हमरा लोकनि सदाशिव कें गुना लेल ई करैत देखि चुकल छी। एहि उपन्यासक जतबा अंश भेटल अछि, लगभग वैह स्थिति एतय शकुन मौसी लेल प्रोफेसरक छैक, जकर सम्बन्ध-सूत्र भावनात्मक छैक। प्रोफेसर एकठाम कहै छथि-- 'शकुन सं सम्बन्ध जे छल हो, मुदा भावनाक एक सम्बन्ध जरूर छल, जे लागल, हुनकर खोज अवश्य एकटा उपलब्धि होयत।'  की शकुने दिलमाया थिकी, की क्यो आन थिक-- एकर पता लगाएब प्रोफेसरक जीवनक उद्देश्य भ' गेलैक अछि। रहस्य जल्दिये खुलि जाइत अछि जे वास्तव मे शकुने दिलमाया छली। ई बात साफ भेलाक बादो बहुत पैघ समस्या छैक जे ओ शीलवती कन्या कोना एहि सार्वजनिक स्त्री मे आबि क' रूपान्तरित भेली। उचिते छै जे एकर खिस्सा बड़की टाक हेतैक-- 'जीवन सरिपौं खिस्सो पिहानी सं बेसी अद्भुत होइत अछि।'। हमर अनुमान अछि जे एहि उपन्यासक जे योजना धूमकेतुक मोन मे रहल हेतनि, ताहि मोताबिक एकरा तीन सौ मुद्रित पृष्ठक लकधक हेबाक छल। ततबा पैघ एहि रूपान्तरणक खिस्सा अछि। ई ठीक-ठीक कहल नहि जा सकैए जे एकरा ओ पूरा किएक नहि क' सकला। एहि बारे मे ओ अपनहु कतहु कोनो चर्च नहि कयने छथि। कोनो छोटो कारण भ' सकैत अछि, जेना स्वास्थ्य संग नहि देब जेना कि हुनका संग होइतो रहलनि, इहो संभव जे हुनकर निधन भ' गेने ई उपन्यास अधूरा रहि गेल हो। मुदा कोनो पैघो कारण भ' सकैत अछि, जेना नगीना राई के व्यक्तित्व मे कोनो एहन छोटपना हुनका देखार पड़ि गेल होइन जकर तर्कसंगत निस्तार हुनका अंतोअंत धरि ताकने नहि भेटल छल होइन, आ ओ तते इमानदार लेखक छला जे मोनक ओझरी कें नुका क' किछु लिखि जाथि से हुनका बुते संभव नहि छल।। दोसर दिस छलि दिलमाया, जकरा लेल नगीना राई एतेक महान पुरुष छल जेहन कि क्यो आन भइये नहि सकैत छल। के छल नगीना राई? डाक्टर साहेबक वैह चपरासी, जकरा संग शकुन भागल छलि। आब ओ संसार मे नहि अछि। बहुत बीहड़ जीवन रहलैक ओकर। एक दिस जं ओ सरहद पारक जायज-नजायज व्यवसाय सं अकूत धन कमेलक, तं दोसर दिस अंगरेज सरकार आ ओकर पिट्ठू देशी साहेबक खिलाफ सशस्त्र संघर्षो कयलक, क्रान्तिक दौरान, जाहि मे कि ओ मारलो गेल। नगीनाक बारे मे जनबाक प्रोफेसरक कौतूहल पर दिलमायाक कहब छैक-- 'ओ व्यक्ति सोलह आना हमर छल। नगीना एखनो हमरा मोनक नगीना भेल आत्मा मे जड़ल अछि। बिसरि जैतय तं नीक। मुदा जे हमरे टा ल' क' अइ दुनियां मे रहल ओकरा बारे मे मुंह खोलनाइ की? बहुत निजी, बहुत आत्मीय सम्बन्धक व्याख्यान दुनियां कें सुनाएब की?' नगीना मरि गेल, मुदा दिलमाया विधवा नहि छथि। तेसर पति छथिन डम्मर श्रेष्ठ, नगीना राईक संघर्षक दिनक एक साथी, जे गैंडा सन छथि, बहुत बूढ़ भ' गेला अछि, बीमार रहैत छथि आ दिलमाया कें कटु वचन कहैत रहै छनि। मुदा ओहि पुरुषक सौ खून माफ छै, ओकर सेवा-बरदास एखन दिलमायाक सब सं पैघ जीवन-लक्ष्य छैक। जखन कि दोसर दिस, अपना बल पर अरजल धन दिलमाया कें ततबा छैक जे एक बेर सजि-संवरि क' प्रोफेसर संग ओ दक्षिणकाली मंदिर जे गेल छलि तं ओकरा देह पर दू-अढाइ किलो सोनाक गहना लटकल रहै। तेसर समस्या ई अछि जे दिलमाया कें जे दूटा बेटा छनि, मने नगीना राई सं, एकटा तं क्लास वन आफिसर, इंजीनियर थिक मुदा दोसर बेरोजगार आ तेहन बहसल जे एक नमरी(सौ टाका)क लेल श्रेष्ठ जीक पिटाइ क' सकैत अछि आ सबटा संपति कें बेचि क' फिल्म-निर्माण करय चाहैत अछि। आ, क्रान्तिक एक नायक ई डम्मर जी केहन छथि जे छौंड़ाक पिटाइ के प्रतिकार करबाक प्रश्न पर कहै छथि--'बात छै जे धिया-पुता संगे भिरियो गेनाइ तं ठीक नै ने!' तखन, इहो एक बात अबैत छैक जे नगीना, जकरा ओ अपन वास्तविक पति परम गुरु मानैत छथि आ हुनकर बड़का फ्रेम कयल फोटो सदिखन अपन बेडरूम मे लगेने रहल अछि, हरेक संकट अयला पर ओकरे दिस टुकटुक तकैत समाधान पबैत अछि, वैह दिलमाया ओहि नगीना सं जनमल दुनू बेटा सं घोर घृणा करैत अछि।

मने, ओहू सभ्यताक जे पीढ़ीगत, कालगत, आदर्शगत विचलन सब, परिवर्तन सब घटित भेल छैक, से एहि उपन्यासक विषय बनल अछि। मुदा, लेखक लग जे सब सं ओझराएल प्रश्न रहलैक अछि, जकरा सोझरेबा मे ओ पूरे जतनशील लगैत छथि, से ई थिक जे एहि मरदे गैंडा डम्मर के जखन एते बरदास्त कइये रहल छथि शकुन, तं ओहि डाक्टरे मे की खराबी छलै? एते ई सब किए? मुदा, दिलमायाक कहब छनि-- 'स्त्री एक बेर अपना कें जाहि पुरुष कें समर्पित करैत अछि, पति वैह होइत छैक। आत्मा सं ओकरे सं सम्बन्ध होइत छैक। डाक्टर साहेबक उंचाइ धरि हमर समर्पण पहुंचिये नहि सकैत छल, तें हुनका प्रति हम कहियो समर्पित भेबे नहि केलियनि।' एहि हिसाब सं तं हुनकर पति भेलखिन नगीना राई, मुदा ई गैंडा, अथबल, दुर्वचन कहनिहार डम्मर? ई के थिक? बस, एकरा ओ पोसने छथि, अपन आश्रय देने छथि, एहि नारीत्वक जेना ई एक गरिमा, एक महिमा होइक, एक संतोष। डाक्टर ब्लड कैंसर सं मुइलाह, नगीना पुलिसक गोली सं, डम्मर अथबल अछि, मुदा दिलमाया? प्रोफेसर के सबटा केस, माथोक दाढ़ियोक, पाकि गेलनि, शकुन हुनका सं छव‌ मास-बरख दिन जेठे छलि, मुदा ई दिलमाया जखन फेंटा कसि क' रेस्त्रां चलबैत रहैत अछि तं लोक कें राजा रवि वर्माक स्त्री-चित्र(शकुन्तला) सन मोहक आ मनभावन लगै छथि। स्वयंसिद्धा आ आत्मदीप्ति सं भरपूर स्त्री थिकी दिलमाया, जे कि अपन अतल अन्तर्मन मे हरेक स्त्री हुअय चाहैत अछि। आ, दिलमायाक बौद्धिक स्तर? ओ प्रोफेसर कें एक ठाम कहै छनि-- 'दिलमाया मे शकुन कें नहि खोजी।'
-- असल मे हमरे टा आंखि ने दिलमाया मे शकुन कें देख' सकै छनि।
-- से देखितनि तं चन्द्रेक मारफत किएक दिलमायाक देह धरि अबितनि?
प्रोफेसर निर्वाक।
-- होइ की छै जे अहां त' जे होइत जाएब से पछिलाक परिणाम। अहां के छी, से बूझै लेल जे टोहियाब' लागब तं दिलमाया सं शकुन धरि जाय पड़त। एक सं दोसर कटि नै ने सकैए!
-- शकुन मौसी, ई आत्मज्ञान! आ तखनि अहांक भटकन?
-- भटकने सं ने आत्मज्ञान अबै छै! आ, भटकन तं अहां कहै छी। हमर तं ई सुख थिक, संतोष थिक।'

अपना देशक लगभग सब भाषा मे ई संस्कृत कहबी प्रचलित अछि जे 'स्त्रियाश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं देवो न जानाति कुतो मनुष्य:।' एहि कहबी मे दिक्कत एतबी अछि जे एहि ठाम स्त्रीक चरित्र कें आथाह मानल गेल अछि जखन कि  पुरुषक भाग्य कें। पुरातनपंथी लोकनि कें ई कहबी बड़ प्रिय। एहि मे स्त्री कें संदिग्ध क' क' देखल गेल अछि तें पितृसत्तात्मक व्यवस्था लेल सेहो ई अत्यन्त सटीक। एहि शास्त्रीय कुतर्क सं स्त्रीक हीन दरजा सुनिश्चित कयल जाइत रहल अछि आ ओकर आत्मविश्वास कें तोड़बाक लेल एकरा एक हथियार जकां इस्तेमाल कयल जाइत रहल अछि। एक चिन्तक-विचारकक रूप मे धूमकेतु सदा एकर विरोधी रहला। हुनकर साहित्य मे लिंगक आधार पर विभेदीकरण के मुखर विरोध सबतरि व्यक्त भेल अछि। एहि उपन्यास मे तं मानू सुरुहे मे हुनकर प्रतिज्ञा-वाक्य सामने आबि गेल अछि। पन्द्रह बरखक उमेर मे शकुन मौसीक बियाह भेलनि, आ जखन ओ सासुर जाय लगली, अपन पिता तं छलखिन नहि, हुनको पालक पिता प्रोफेसरेक पिता छलखिन, कुलीन परिवारक कोनो पिता जतबा परंपरावादी भ' सकैत अछि, सैह ओहो छला। विदा होइ काल तं ओ शकुन कें कहने रहथिन-- 'जाउ। आब दुख अहांक दूर भेल। अहां सन भाग भगवान सब कें देथुन।' मुदा, शकुनक मोटर जखन विदा भ' गेल, कथावाचक कें पिताक कहल ओ बात स्मरण एलनि जे ओ निरंतर बजथिन, आ कदाचित ओहू क्षण बाजल हेता-- 'चरित्र आ भाग्य ने दैव जनै छथि ने मनुख। से एक गोटेक नहि, स्त्री-पुरुख, दुनूक।' एहि उपन्यास कें जेना एहि प्रतिज्ञा-वाक्यक संपुष्टि होयबाक छलैक। जीवन कोना कोनो खिस्सो सं बेसी आश्चर्यजनक भ' सकैत अछि, एहि वाक्य कें ओ एतय अलग अलग शब्द मे बेर-बेर दोहरबैत रहला अछि। ने केवल पुरुषक, स्त्रयोक ओतबे।

कुल्लम दस परिच्छेद मे लिखबाओल गेल ई उपन्यास असमाप्त अछि। वास्तविकता तं ई थिक जे एखन तं एकर केवल पेनिये छानल गेल छल। मुदा, ध्यान देब तं पायब जे जे मोटा-मोटी समुच्चा खिस्सा एहि मे आबि गेल छै। ई बात भिन्न जे एतबी खिस्सा लिखब हुनकर उद्देश्य ने छलनि ने भ' सकैत छलनि। संस्कृतिक नितान्त गंहीर प्रश्न सब धरि हुनका पहुंचबाक रहनि। मनुक्ख कोना अविजेय अछि आ ओकर इतिहास आ संस्कार कोना एक लघु सीमे धरि ओकर बाट छेकि पबैत छैक। आदि-आदि। अंत मे जा क' विस्तारपूर्वक सचित्र वर्णन शुरू भेलैक अछि जे आखिर कोना ई संभव भेल जे धीर-गंभीर कुलीन विवाहिता कें अपन पतिक मामूली चपरासी सं प्रेम भ' गेलैक! लगनशील डाक्टर एहि रहस्यक खोज क' रहल छथि जे आखिर आदिवासी सभक दांत एते मजगूत किएक होइत अछि? कोन वनस्पति ओकरा सभक दिनचर्या मे, भोजन-विधान मे शामिल छै जकरा कारण एहन मजगूत दांत संभव होइत अछि! ओ अपन रिसर्चक पाछू ठीकमठीक ओहिना भूत बनल अछि जेना किंवदन्ती मे हमरा लोकनि वृद्ध वाचस्पतिक मादे सुनैत छी। मुदा, शकुन भामती नहि थिकी, हुनकर भवितव्य दिलमाया थिक। उपन्यास बिच्चहि मे रुकि गेल अछि, हम सब सहज अनुमान क' सकै छी जे एहि खिस्सा कें एखन बहुत दूर धरि चलबाक छल हेतैक।

अपन जाहि विशिष्ट शैलीक कारण धूमकेतु 'कथाकारक कथाकार' कहल जाइत छथि, तकर भरपूर दरस हम सब एतय पाबि सकै छी। कस्सल-कस्सल वाक्यावली, प्रगाढ़ बिम्ब, विदग्ध कथनानुकथन, ललित गद्यक चिर स्मरणीय वितान, सब किछु। गद्यक गठन तते तथ्यात्मक जे बीच के दुइयो वाक्य मिस भेने अहांक कथा-बोध भसिया सकैत अछि। निस्सन्देह, एहि उपन्यासक प्रकाशन मैथिली कथा-साहित्यक लेल एकटा घटना थिक।

@पटना, 6.8.2020

Tuesday, January 5, 2021

युवा कवयित्री रोमिशाक कविता: एक टिप्पणी


 तारानंद वियोगी


मिथिलाक किछु गनल-गुथल परिवार अछि जतय साहित्य आ कविता विरासत आ धरोहर जकां बरकरार अछि आ प्राय: सब पीढ़ी मे पढ़निहार-लिखनिहार लोक अबैत रहल छथि। रोमिशाक परिवार सेहो एहने एक सारस्वत परिवार थिक। कविताक  दरस-परस नेनपने सं हुनका जीवन मे शामिल रहलनि। औपचारिक रूप सं कविता लिखब जकरा कहल जाय, से ओ बहुत देरी सं शुरू केलनि। मुदा, साइत एहने मामला लेल ई कहबी बनल होइ जे देर आयद दुरुस्त आयद, रोमिशाक कविता एकदम साफ साफ, गंहीर संवेद्यता सं भरल, विचारशील, बिंब आ वर्णन दुनूक सधल संतुलन सं भरल पाठकक हृदय मे उतरि जाइत अछि। हम जखन हुनकर आरंभिक कविता पढ़ि रहल छलहुं तखनहु हमरा लेल ई विश्वास करब कठिन छल जे ई कोनो नवतुरिया कविक रचना थिक।

         रोमिशाक कविता पढ़ब जेना अपने जिनगीक आरपार देखब होइक, ओ अधिकतर गंहीर हार्दिकता मे पाठक कें उतारि दै छथि। ओहुना जीवन कें सतह परक घटना सभक भरोसें सही सही नहि बुझल जा सकैत अछि। सतह परक घटना बेसी सं बेसी एकटा तथ्य भ' सकैत अछि मुदा, 'जीवन' नहि जानि, एहन एहन कतेको रास तथ्य सब सं बनैत छैक। इहो जं कहब जे जीवन मात्र तथ्य थिक, सेहो नहि। तखन इंगित कें कतय राखबैक? आ काकु कें? आ कि कल्पनाशीलता कें? वा एहने एहन हजारो टा चीज कें, जे हमरा रोमिशाक कविता सब मे भेटैत अछि। जखन अपन कविता मे ओ कहैत छथि जे हम सब कोनो मृतात्माक बौक गीत सुनैत जिबैत छी, अथवा कहैत छथि जे घरक देबाल सब ठाढ़ रहैत रहैत अगुता गेल अछि, तं बुझनिहार बुझि सकैत छथि जे सभ्यताक आगू ओ केहन भारी महाप्रश्न ठाढ़ करैत छथि।

         हुनक प्रधान विषय छियनि जीवन, जकरा अधिकतर ओ स्त्रीक कोण सं देखैत छथि। हुनक स्त्री सौंसे सभ्यताक पता राखैवाली जागरूक स्त्री थिकी। यात्री जी कहल करथि जे नव कविक असली परीक्षा ओकर साहस सं होइत छैक। कारण, पढ़ि गुनि क' समर्थ भेला पर अपन सबटा कमी तं ओ दूर क' लेत, मुदा साहस कतय सं आनत? रोमिशा जे प्रश्न सब अपन कविता मे ठाढ़ करैत छथि ततय धरि कोनो युवा कवि प्रबल साहसिकताक बिना कखनहुं नहि पहुंचि सकैत अछि। हमरा पक्का भरोस अछि जे हुनकर कविता मैथिल स्त्रीविमर्श कें एकटा नब मोड़ पर पहुंचाओत।

         मैथिली मे मुक्तछंद प्रकृतिक कविताक चलन आब पचासो बर्ख सं ऊपर भेल। एतबा दिन मे ई आधुनिक शैली मैथिली मे पूरेपूरी घरबारी भ' चुकल अछि। अनेक कवि मैथिली कविताक कहन-शैली कें एहि कविताक बाना मे उतारि दमदार प्रयोग क' चुकल छथि। प्रयोग दमदार वैह जकरा पाठक स्वीकार करय। हमरा ई कहैत खुशी अछि जे मैथिली कविताक एहि नवीन उपलब्धि कें रोमिशा सेहो नीक जकां आत्मसात कयने छथि। पाठक कें चाही संप्रेषणीयता, जाहि सं कविक कहल बात ठीकमठीक ओकरा हृदय धरि उतरि जाय। एहि मामला मे हम रोमिशा कें पूरा सफल देखै छी जे जे बात हुनका कहबाक रहैत छनि से बहुत साफ साफ, बिना एको रती लटपटेने कि बामदहीन कयने कहि जाइत छथि। ई आत्मविश्वास कविक बड़ पैघ बल होइत छैक। कतेक बेर ओ विचार सं अपन बात शुरू करै छथि आ ओकरा बुद्धिमानीक संग कविता मे रूपान्तरित क' लैत छथि। किछु ठाम वर्णन सं तं कतहु बिंब सं शुरू करैत शब्द सभ मे डबडब कविता भरि दैत छथि। कहब जरूरी नहि जे एना क' पाएब तखनहिटा संभव जं कवि अपन अपन कथ्यक संग पूरा मानसिक साहचर्य बनौने हो आ से ओकर अनुभूति मे पूरा घुलि मिलि गेल हो। हुनकर बहुतो रास कविता सब एतय हमरा मोन पड़ैत अछि जे कि हमरा नीक लागल अछि आ हमर विश्वास अछि जे मैथिली कविताक हरेक साकांक्ष पाठक कें ई नीक लगतनि।

         रोमिशाक पहिल कविता-संग्रह आबि रहल छनि। एक यादगार अवसर थिक ई, रोमिशाक लेल आ मैथिली कविताक लेल सेहो। हमर बधाइ।

कोसीक जलप्रान्तर मे हेल-डूब


 ।।कोसीक जलप्रान्तर मे हेल-डूब।।


         तारानंद वियोगी


            पंकज पराशरक उपन्यास 'जलप्रांतर' ओहि किताब सभक बीच एकटा यादगार प्रकाशन थिक जे पछिला तीन-चारि साल के भीतर कोशी आ ओकर परिसरक बारे मे छपल अछि। उपन्यास एकटा गामक बारे मे अछि। ई गाम कोशी कातक एकटा गाम, यथा महिषी थिक। आस-पड़ोस के बहुतो गाम--बनगांव, चैनपुर, पड़री, बरियाही आदि आदि अपन सही-सही पृष्ठभूमिक संग आएल अछि। मुदा, बात ततबे नहि छैक। गाम अपन बहुत व्यापक विस्तार मे अछि। से भूगोल आ इतिहास दुनू मे।विषय जे छैक कोशी बान्हक निर्माण सं ल' क' ओकर परिणाम धरि, से जं एक दिस तीन सौ सं ऊपर रिवर-साइड के आ ताहि सं कतहु कैक गुना बेसी कंट्री-साइडक गामक नियति कें दूर धरि प्रभावित करै छै। एक। दोसर, आजादी बादक भारतक जे विकास-माडल रहलैक, तकर दूरगामी फलाफल कोना देशक जन कें प्रभावित-संतापित केलक, ताहि ईश्यू के अध्ययन एहि ठाम देखल जा सकैत अछि। तें गाम कोन अछि वा तकर नाम की थिक, एकर एतय कोनो खास महत्व नहि छैक। ततबे छैक जेना कि स्वयं पंकज एहि उपन्यास मे एक ठाम लिखने छथि--'कोनो गाम दिस सं जं कोसी जाइत अछि तं कोन-कोन तबाही मचबैत अछि, तकर मादे वैह कहि सकैत अछि जे ओहि दारुण स्थिति कें भोगने हुअए।' तें एतय गाम ओ सब आएल छैक जाहि सं पंकज जुड़ल छथि।


                     उपन्यास मे एकटा पढ़ुआ कका छथि। हुनकर मौअति कोशीक एही बन्हटुट्टा जलप्रलय मे होइत छैक। पढ़ुआ ककाक की नाम छलनि से कतहु नहि आएल अछि। ई साभिप्राय थिक आ एहि अवतरण के औपन्यासिक दृष्टि चकित करैत अछि। जं हुनका सही सही चिन्हबाक कोशिश करी तं हम सब चीन्हि सकै छी जे ओ भारतक महान स्वाधीनता आन्दोलनक, देश लेल सोचनिहार ज्वलित देसी मेधाक प्रतीक छथि। संपन्न घरक पढ़ुआ कका अपना जबाना मे इलाहाबाद रहै छला। ओ आजादीक निर्णायक युद्धक समय छल। गांधी जी हुनका व्यक्तिगत रूपें जनैत छलखिन, नेहरूक संग ओ राजनीति मे सक्रिय छला। इलाहावाद यूनिवर्सिटी मे डा. अमरनाथ झा हुनकर गुरु रहथिन। बी. ए. आ एम. ए. मे प्रथम स्थान पौने छला आ गुरु हुनका वि. वि. मे अध्यापक बहाल बहाल केने रहनि। सब छोड़ि छाड़ि क' ओ आजादीक संघर्ष मे सक्रिय रहला। देशक आजादीक बाद कांग्रेसक राजनीति जे पाटि पकड़लक, से सब देखि पढ़ुआ कका सक्रिय राजनीति सं चुपचाप एकात भ' गेला। ओ देखलनि जे 'जे लोकनि सैंतालिस सं पूर्व अंग्रेजी सत्ता के विरोध मे छला, शोषण आ अन्याय के प्रतिरोध करैत छला, सैह सब सत्ता पाबि क' मदोन्मत्त हाथी जकां अपन पयर तर मे देश कें रगड़ि रहल छथि। एहि देशक गरीब लोक सं किनको दरेग नहि।' विपक्षक राजनीति करथि से हुनका सं पार नहि लगलनि। पचासो बरस सं आब ओ कोसी कातक अपन गाम मे रहैत छथि, आ 'द हिन्दू', 'नेशनल हेराल्ड' आ 'हिन्दुस्तान टाइम्स' मे कोसी इलाका पर लेख आदि लिखैत छथि। 'विलेज डायरी' नाम सं हुनक किताब अंतर्राष्ट्रीय महत्वक प्रकाशक सब छपैत अछि। हुनका कोशीक जाबन्तो इतिहास बूझल छनि। हुनका  आंखिक सामने नेहरूक आजाद सरकार कोशी कें बान्हलक अछि, जकर खतरा कें देखैत गुलामीक दिन मे पराया सरकारो से करबाक हिम्मत नहि जुटा सकल छल। उपन्यासक एक पात्र कहैत छैक--'अंग्रेज सब कें कोसीक स्वभाव बूझल छलनि। एहि इलाका के भौगोलिक संरचना सं अवगत छला। बान्हक नफा-नोकसान के अनुमान रहनि, तें ओ सब बान्ह बनेबाक निर्णय कें टारैत रहला।' एहना ठाम तं ओ बुझू अंगरेज सरकार आ देशी सरकार, जकरा ओ कैक ठाम 'रंगरेज सरकार' के उपाधि प्रदान केलनि अछि, दुनू के पूरा गोत्र-विश्लेषण क' क' राखि देलनि अछि। एकटा प्रसंग बरियाही कोठीक छै जतय सीनियर विलियम राबर्ट जान कें कहने रहथि--'कोसीक पानिक रंग बदलैत रहैत अछि। लोक चाहय तं पानिक रंग के विश्लेषण सं एहि नदीक स्वभाव कें जानि सकैए। पानिक रंग सं एहि बातक भविष्यवाणी क' सकैए जे आगां ई नदी कोन रूप धारण करय जा रहल अछि।' दोसर दिस, विधान सभा मे लहटन चौधरी हिसाब देने रहथिन जे 'कोसी बान्ह के दू-तीन माइल धरि के क्षेत्र कें बेनीफिटेड मानल जा सकैए', जखन कि सहरसाक कलक्टरक रिपोर्ट रहैक जे 'बान्ह के बाहरक तीन किलोमीटरक एरिया जलजमावक कारण खेतीक लेल अनुपयुक्त भ' गेल अछि।' एहि सब तरहक खुलाखेल अन्हरमारि के अनेक संदर्भ एहि ठाम आएल छैक। उपन्यासक अंत मे होइ छै जे बान्ह टुटै छै आ कोशीक संग जीवन मरण के रिश्तेदारी निमाहै बला पढुआ कका ओहि जलप्रलय मे मारल जाइत अछि।


                 पंकजक ई उपन्यास सूचना सब सं लबालब भरल अछि। किछु बेसिये जे कतोक बेर छिलकि धरि जाइत अछि। मुदा, एक पाठकक रूप मे ई हमर समस्या भ' सकैत अछि। पंकज असल मे एहिना करय चाहला अछि। उपन्यास मे एकटा प्रसंग अबैत अछि जे 'नेशनल हेराल्ड' मे छपल पढुआ ककाक कोनो लेख, निश्चिते ओहो कोशियेक बारे मे छल, प्रधानमंत्री नेहरू पढ़ने छला आ हुनका चिट्ठी लिखने रहथिन जे 'अहांक लेख बहुत सूचनात्मक होइत अछि'। से प्राय: पंकजक उपन्यासकारक स्वभावे छनि। कतोक ठाम हुनक वस्तुनिष्ठ आलोचक हुनकर उपन्यास पर चढल देखाइत अछि।


।।दू।।


उपन्यासक मूल कथा मुदा, एक गरीब, कहू कि दरिद्रछिम्मड़ि ब्राह्मण परिवारक कथा थिक। परिवारक मुखिया बीसो झा आ हुनकर किशोरी बेटी अनमना कुमारी के कथा मुख्य रूप सं एलैक अछि। बीसो झा किए गरीब छथि, एतय धरि जे अपने गाम-समाजक पचपनियां परिवारो सं बेसी दुर्गत किए छथि, तकर पूरा रामकहानी उपन्यास मे एलैक अछि। क्यो ब्राह्मण भ' क' मजदूरी कोना क' सकैए, अथवा हर कोना जोति सकैत अछि, बीसो झा ताहि सामाजिक पृष्ठभूमिक लोक छथि। मिथ्याचार सं परिपूरित जीवनचर्या छनि। उदार नहि छथि। तकरा बदला कही कि अव्वल दरजाक कृपण छथि। पूर्वी तटबंधक जखन माटि भराइ हुअय लगलै, नीक दर पर मजदूरी रहैक, काजक कमी नहि रहै। तं आने किछु ब्राह्मण जकां ओहो मटिकट्टी मे मजदूरी करय जाइत छथि। ताहि लेल भिनसरबा राति मे बहराइ छथि आ दिनदेखार होइत होइत घर घुरि अबैत छथि जाहि सं इज्जति बचल रहय। ई फराक बात जे गाम मे आएल कोनो परिवर्तन नुकाएल नहि रहैत छैक। यैह बीसो झा बान्हक विरोध मे उकबा उठला पर जखन विरोधो मे आगुए आगू रहै छथि, तं एही गामक वाशिंदा मनसुख सदा हुनकर मिथ्याचार पर चुटकी लैत छनि--'अहां बान्ह के मटिकट्टी मे एतेक टाका हंसोथलियै, तैयो टनटन बोलै छियै बीसो बाबू! जेनही देखै छियै दही, तेनही कहै छियै सही?'

               मुदा, ओतय महत्वपूर्ण इहो अछि जे मटिकट्टी मे जे हुनकर काउन्टरपार्ट छनि, से हुनकर बेटी अनमना थिकी। ओ माटि काटने जाइ छथि आ बेटी छिट्टा उठा क' फेकने जाइत अछि। ओहि ठाम तं इहो बात आएल छैक जे मालजाल जे ओ पोसने छथि, तकर चरबाही सेहो हुनकर यैह बेटी करैत छनि।

            अनमना बड़ काजुल आ सब गुनक आगर। मुदा, अभावग्रस्त बीसो झा अपन एहू बेटी के बियाह ओहिना टाका ल' क' करय चाहै छथि जेना जेठकी के केने छला। बनगांव मे ताधरि, मने 55-57 धरि वैवाहिक सभा जारी छल। तकर वर्णन उपन्यास मे आएल अछि। एक साल हुसितो अगिला साल ओ रामपुरक कुटूम सं पांच सौ गनेबा मे सफल रहै छथि। एहि सं हम सब अवगत होइ छी जे मैथिल जातिक हृदयहीनता, नारीक प्रति, कोना गंहीर उपभोक्ता-मनोविज्ञान तक स्वभावतया व्याप्त छल;  एहि तमाम तथ्यक बावजूद जे ओ किशोरी कोन हद धरि एहि बीसो बाबूक कुलखान्दान लेल उपकारी अस्तित्व रखै छलि।

            कथाक एक भिन्न पाठ रामपुर गामक छै, जतय अनमनाक बियाह होइत अछि। ओहो कंट्री साइड के एक गाम थिक जे कोसीक हहारो सं बराबर के पीड़ित अछि। अनमनाक भाग्ये एकरा कहल जेतै जे ओ अपने सन श्रमशील पति पबैत अछि जे भविष्यक जीवनगति कें सम्हारि लैत छैक आ आगू ल' चलैत छैक। अनमनाक दियादनीक सेहो ओतय एक चरित्र आएल छैक जे विध्वंसक तं नितान्त अछि, मुदा मिथिला समाजक लेल अपरिचित किन्नहु नहि अछि। पंकजक अध्ययन कें पकड़ि क' कही तं एहि सब मे 'जाति' सेहो एकटा पैघ फैक्टर छैक। अर्थात कुलीनता। महादेव झा पांजिक तं एकाध ठाम ओ नामो लेलनि अछि। संकेत छैक जे जे जते पैघ कुलीन अछि से ततबे बेसी असामाजिक अछि, विध्वंसक अछि।

            उपन्यास मे चीनयुद्धक संदर्भ आएल छैक। ओहि मे रामपुरक एक बेटाक लगभग शहादतक जिक्र छैक। आ नेहरूक निधनक समाचार सेहो, एकर जनप्रभावक संग। ई सब अवान्तर प्रसंग जा जा क' नेहरूक विकास माडल सं भिड़ंत लैत छैक आ एहि जलप्रान्तर के कलहन्त कें आरो सघन करैत छैक। अनमनाक पति सदाशिव झा कटैया बिजलीघर के निर्माण मे जा क' अनस्किल्ड लेबरक काज करैत अछि, आ रोजगारक सुरक्षा अपन एहि गुणक कारणें प्राप्त क' लैत अछि जे असगरे ओ चारि लेबरक बराबर कर्मठता सं लैस अछि। एहनो कर्मठ लोक कें विवाह लेल पांच सौ टाका गनय पड़ल छल, ताहि सं हम सब बूझि सकै छी जे एखन हालसाल धरि कुलीनताक तुलना मे एतय कर्मठता कते तुच्छ छल।

            प्रसंगवश आरो कतेक रास बात सब जहां तहां आएल छै। ओही ठाम कटैयाक परदेसी मजदूर समाजक बीच हम सब देखै छी जे मैथिल लोक आ भोजपुरिया लोक मे की फरक छै। मैथिल अपन मैथिलीभाषी समाज मे जातीय उच्चताक बल पर तं जरूर शेर होइत छथि मुदा अनतय सामाजिकताक संस्कार-बल पर दोसरे लोक सब आगू रहैत एला अछि। से एहू ठाम अप्रतिभ सदाशिव कें भोजपुरिये लोकनि आगू बढ़बाक बाट देलकनि अछि, जखन कि 'अप्पन मैथिल भाइ' गाछ चढ़ा क' छव मारलकनि, मने अनभुआर सदाशिव कें सहरसा स्टेशन पर बजा क' अपने गुम भ' गेला।

            उपन्यासक एक पात्र फूल बाबू छथि जिनका बोरिस पास्तरनाक के उपन्यासक अनुवाद करैत देखाओल गेल अछि। ओ राजकमल चौधरी भ' सकैत छथि। तहिना एक पात्र पंडित गंगाधर झा छथिन, जिनका सत्यनारायण कथा बांचैत देखाओल गेल गेल अछि। आरो एहन अनेक लोक छथि। ई लोकनि महिषीक ऐतिहासिक व्यक्ति सब छथिन, मुदा हिनका लोकनिक चरित्र जगजगार भ' क' उपन्यास मे अपन अभिज्ञान कायम क' सकय ताहि मे पंकजक उत्साह नहि रहलनि अछि। कदाचित तकर आवश्यकतो नहि छल। बस एतबे बुझाएब पर्याप्त अछि जे पढ़ल-लिखल, पंकजक शब्द मे कही तं 'चेतार' लोकनिक ई विपन्न गाम थिक।


।।तीन।।


जलप्रांतर' मे भने कोसीक सांस्कृतिक पक्ष, जेना कोसीगीत आ अनेको अनेक मिथक नहि आएल हो, मुदा कोसी पर नियंत्रणक लेल कयल गेल मानवीय प्रयासक जाबन्तो इतिहास एहि मे आबि गेल अछि। फिरोज शाह तुगलकक सेना कोना कोसी कें पार क' क' पहिल बेर एहि दिसका भूभाग कें आक्रान्त केने छल, कोना लक्षमणसेन कि हरिसिंहदेव एकरा बन्हबाक पहिल संकल्प मे जोश सं भरि क डेग उठौने छला, कोसीक अध्येता लोकनि, बुकानन-फर्गुसन सं ल' क' भूपेन्द्रनारायण मंडल आ परमेश्वर कुमर धरि अलग अलग समय पर कोन अपन अपन निष्कर्ष पर पहुंचल छला, कोना नेहरू सरकार जखन एकरा बन्हबाक शासनपूर्वक आयास केलक तं कोन कोन लोकक की सब आकलन छलनि, बान्ह बनि क' तैयार भेलाक बाद जखन पहिल पहिल बेर परिणाम सामने आएल छल तं कोना बान्हक संगहि विकासक मिथक टूटल आ तखन कोना सशस्त्र बल एहि लोकक मुंह बंद केलक---बहुतो रास बात छैक जकरा काल्हि जखन क्यो जानय चाहता तं हुनका पंकजक एहि उपन्यास धरि पहुंचय पड़त।

             पंकजक लग मे तमाम तरहक ऐतिहासिक तथ्य सब छनि आ तकरा ओ बहुत आत्मविश्वासपूर्वक एहि ठाम प्रस्तुत केलनि अछि। हुनक आत्मविश्वास कें देखैत तथ्यक विश्वसनीयताक प्रश्न कतहु पृष्ठभूमि मे ससरि जाइत छैक। यद्यपि कि औपन्यासिक कृति हेबाक कारण उपन्यासकार कें  तथ्यात्मकताक मामला मे छूट पेबाक अधिकार बनैत छनि मुदा पंकजक आत्मविश्वास एहि छूट सं नासकार जाइत देखाइत छथि। ओ अपना पर जिम्मेवारी लेबाक हद धरि विश्वस्त भाषाक प्रयोग करैत देखल जाइत छथि। लंबा लंबा ऐतिहासिक प्रसंग सब वृत्तान्तक रूप मे परस्पर वार्तालापक क्रम मे आएल अछि, जकर औपन्यासिक औचित्यक जस्टीफिकेशन मे पंकजक कहब छनि जे हुनकर कैकटा पात्र 'लेक्चर बड़ दैत अछि।'


।।चारि।।


हम पहिनहु कतहु कहने छी जे मैथिली उपन्यास अपन महान इतिहास हेबाक बादो पछिला किछु समय सं पतनशीलताक दौर सं गुजरि रहल अछि। रहस्य, रोमांच, कैरियरिज्म, अध्यात्म आदिक महिमामंडन करैत, लोकोपयोगिता आ लोकप्रियताक नाम पर आत्मदंभक महागाथा लिखि क' पाइक बलें ओकरा प्रकाशित भने बारंबार करबैत चलल जाय, हमरा सभ कें नहि बिसरबाक चाही जे उपन्यासक यदि सामाजिक सरोकार नहि छैक तं ओ रचना सुच्चासुच्ची एक आत्मरति थिक। एहना मे एहि किताबक प्रकाशन निश्चिते एक उल्लेखनीय प्रसंग थिक। मिथिलाक संग कयल गेल सरकारी वंचनाक सब सं भीषण उदाहरण कोसी बान्ह थिक आ तकर पृष्ठभूमि एहि उपन्यासक विषय बनल छैक, ई निश्चिते पंकजक कृति कें एक आरंभिक सफलताक द्योतक थिक।

           तखन छै जे उपन्यासकलाक दृष्टि सं एकरा अवश्ये एक पछुआएल कृति मानल जाएत। एहि उपन्यासक रचनाकार अपन शिल्प मे जाहि ठाम छथि तकर तुलना साइत कोनो पछुआएले उपन्यास संग कयल जा सकय, जखन कि सामाजिक सरोकारक प्रश्न पर ई कतहु बेस आगूक वस्तु थिक। विषयक बारे मे बहुत रास तथ्य हुनका बूझल छनि, तकरा पठनीय बनेबाक लेल ओ एक कथा परिपाटी विकसित क' लेलनि अछि आ बहुत कौशल संग तथ्य कें कृति रूप मे परिणत केलनि अछि। फल भेल अछि जे मार्मिकता सं भरल सूचना तं उपन्यास मे खूब छैक मुदा स्वयं मार्मिकताक अभाव अछि, कारण जीवन जीबाक एतय सूचना अछि स्वयं जीवन कें जीयल जाइत नहि चित्रित कयल जा सकल अछि। एकर पता स्वयं उपन्यासकारो कें छनि आ ओ अपन सीमा कें गछितो छथि। कहै छथि--'कथाकारक लेल आवश्यक अछि जे ओ अपन कथाक पात्र सं नीक जकां परिचित होथि। हम जतेक परिचित होइत छी, ततेक कथाक कोसी-धार मे हेल-डूब कर' लगैत छी।' अथवा ई जे 'हम कवि छी, कथाकार नहि।' मुदा, जतबा ई जीवन आएल अछि, उदाहरण लेल अनमना आ सदाशिवक प्रसंग सब मे, से अविस्मरणीय बनि पड़ल अछि। एहि रचना कें मोन राखल जेबाक लेल इहो कोनो कम नहि छैक।

           तखन इहो बात छै जे पंकज अपन ई उपन्यास लगैए, अनेक दवाबक बीच लंबा समय लगा क' लिखलनि अछि आ एकर संपादन मे जतेक परिश्रम करबाक चाहिऐक सेहो नहि क' सकला अछि। तकर फल भेल अछि जे अनेक बात, दृष्टान्त, बिंब, एतय धरि जे शब्दावली आ कहबी धरि बेवजह के दोहराओल गेल अछि। एकरो उदाहरण कैक ठाम छै जे जे बात वाचक पहिने कहि चुकल रहैत छैक, ठीक वैह बात पात्रक मुंहे फेर सं दोहराओल जाइत छैक। कहि सकै छी जे ई दोहराव बातक वजन पर जोर देबा लेल कयल गेल हो, मुदा ताहि लेल जे औपन्यासिक रचाव हेबाक चाही, तकर हम सब एतय अभाव देखै छियनि।

         असल मे, एहि उपन्यासक असली ताकत कोसी कें उपन्यासक रूप मे रचबा मे नहि, ओकरा एक जरूरी ईश्यू बना क' आगामी पीढीक सामने पेश करबा मे छै। व्यक्ति-रूप मे स्वयं एक कोसी-पुत्र हेबाक नातें एहि काज कें जेना ओ अपन एक कर्तव्य बुझलनि अछि। भूमिका, जे किताबक बीच मे आएल छैक, मे ओ कहै छथि--'दू लाख जनसंख्याक चारि लाख हाथ ऊपर दिस घिचबाक याचना करैत देखार पड़ैत अछि। अपन जन्मो सं पहिने जा क' हम हुनका सभक हाथ पकड़ि लेबय चाहैत छी। हुनका सभक नोर अपन गमछी सं पोछि देब' चाहैत छी, मुदा समय के सरकार हमर ठोंठ मोकि दैत अछि।'

               से, हमरो लगैत अछि जे अपन रचना-भूमिक प्रति ई हुनक ऐतिहासिक दाय छलनि जकरा निश्चिते एहि रचनाक संग एक यादगार रूप ओ द' सकला अछि।


धराशायी हेबाक समय: कविता मे कोरोना-काल


 ।।बाजलि सपना।।


आउ मीत, आउ

हम सब खूब गहिया क' करी गराजोर 

बिसरी कि मानवीय स्पर्श खतरनाक छै कोरोना-काल मे

अनठाबी जे हमरा सं पटि सकैए अहां कें

कि अहीं सं हमरा


कते दिन पर भेल अछि भेंट

तरसैत रहल छी अइ तमाम समय

ओइ मीत लेल

जकर भेटनाइ समय कें दैत हुअय चेहरा

स्पर्श नै, संवाद नै

तं कथी छी जीवन?


कते विद्रूप छै ई समय

जखन लोक लग लोक नै

जखन कते जड़मति करैत विलाप

--ठीक छल पूर्वजक बनाओल अस्पृश्यता नियम, ठीक छल

जखन दिल मे आह

मुदा आह के राजदार नै


बहुत जिबिये क' की करब मीत हम-अहां

जखन कि देखि रहल छी

बेकसूर सब कें नित्तह जाइत मरघट


आउ आउ

शाश्वत होइ कनी

गहिया क' करी गराजोर।


।।नुक्काचोरी।।


अपने घर मे अपने नुकाएल छथि जोगीलाल

घर मे रहता बंद तं जमराज कें पहुंचब कठिन रहतै!


चारू दिस छै प्रचार

पैंसठ पार के आब बचब मश्किल

उमर देखि घेरै छै कोरोना

योद्धो लोकनि नवतुरिये कें बचबै छथिन

रहलै सुविधा तं देखल जेता बुढ़ानुस


जोगी कें तेसरें पैंसठ पार भ' गेल छनि

मश्किल छनि आब


ओ पोता संग खेलाएब धरि छोड़ि देने छथि

बेटा संग गपियाएब धरि

भरि भरि दिन पड़ल रहता ओछाओन पर

करैत रहता आंह-ओह

बेटो आब पुतहुए मारफत जनै छनि कुसल छेम


जमराज तं मारतनि, जहिया पकड़तनि

जोगी कें तं पैंसठे मारि देलकनि अछि कोरोना मे!


।।प्रवासीक विलाप।।


यौ जी, हमरा ढाठू नै एना

परदेस रहै छी तं‌ ई नै मतलब जे हमर ई गां नै छी

आ, अहां की हमरा रोकै छी भोला कका

हमर बाप अहांक इयार नै रहथि

कुश्ती नै लड़ी अहां दुनू पंडीजी पोखरि पर

एको मिनट बितैत रहय दुनू इयार बिना?

आइ एना करै छी

चिन्हल कें अनचिन्ह करै छी!


आ हौ नुनू, तों हमरा की रोकबह

तोहर बापे हमर संगी

मैट्रिक हम सब संगे कयने रही

संगे कमांड केने रही सौंसे अलजेबरा

अइ हिसाबें देखह तं हम तोहर पित्ती


यौ, नै मोन मानैए 

तं हमरा अहां सब कोरेन्टीन मे राखि दिअ' परिवार समेत

क्यो नै आबथि पन्द्रह दिन हमरा आंगन

हमहू सब आंगन सं कखनो बहराएब नै

जे वाजिब छै, से करू

मुदा, ई की जे गामे नै ढुकय देब

ई गाम हमरो गाम छी यौ

हमरो घर अछि अही गाम


एहन अन्याय नै करू मुखिया जी

कते मश्किल सं जान बचबैत घुरलहुंए गाम,

आब कतय जाएब

हे राम, आब कतय जाएब?


।।ग्लोबल विलेज।।


इटलीक सीमा फ्रांस लेल बन्न

फ्रांसक सीमा जर्मनी लेल

जर्मनीक सीमा अमेरिका लेल

अमेरिकाक सीमा सभक‌ लेल बन्न


सब अपना अपना घर मे कैद

पहिने जखन ककरो किछु होइ तं सब दौड़य

सब पठबय अपन अपन संसाधन

आब सभक सीमा सभक लेल बन्न

सब अपना अपनी मे सीमित

अपने कानै मे सभक दिन-राति पार


सैह देखियौ

ई ई भारी भरकम ग्लोबल विलेज तं 

पचीसो साल‌ नै टिकि सकल!


।।सब सं नीक बात।।


दुख कतबो भोगय पड़य गरिबहा कें


भोगले देह भोगि सकैए दुक्खो

जतेक भटकय पड़य दर-दर

जत्तेक निछावर करय पड़य प्राण

सब सं नीक बात ई

जे कोरोना बीमारी गरिबहा संगे पैदल नहि आएल

आएल हवाइ जहाज सं

मोटका मोटका आंखि बला सब धोधि बला सब अनलनि कोरोना


बात बात मे कहथि मठोमाठ

--गरीब रहैए गंदा, पटाबैए बीमारी

गरीब सौंसे देस लेल कलंक थिक

तेना कहथि मठोमाठ 

मानू देस अंबानीक फैक्ट्री मे बनल कोनो हाइटेक माल हो


करेजगर सं करेजगर कें जे थरथरा दियय

काज तं एहन करैत रहला सब दिन गरिबहे

मुदा, सब सं नीक बात ई

जे कोरोना आनल गेल हवाइ जहाज सं।


।।मनुक्ख जनैत अछि अपन अंत।।


इतिहास उनटा क' देखू

बरु आब तं इतिहासो उनटेबाक नहि काज

गूगल कहि देत समुच्चाक समुच्चा खिस्सा


सौ बरस पहिने ई भेल छल, ओ भेल छल

चलल छल प्लेग, चलल छल आरो अनेक अहिना सर्वत्र

प्लेगक मार्मिक मार्मिक अनुभव 

जहां तहां साहित्य मे छिड़ियाएल भेटत

अहिना निरर्थक भेल छल चिकित्सा-तंत्र

अहिना शासन-प्रशासन आएल छल पेश

अहिना असहाय रहय मनुक्ख, निरवलंब


एहि सौ बरस मे कते बदलल समय

आइ चिकित्सा अपन विजयक डंका पिटैत अपनहि

आइ सौभाग्यशाली देश विश्वगुरु

आइ लोकक हाथ मे दूटा पाइ, रहबा लेल घर

मुदा आइयो मनुक्ख असहाय ओहिना

मनुक्ख निरवलंब ओहिना


कहै जाइ छथि वेत्ता लोकनि

सौ साल पर अबैत रहल अछि एहने महामारी

अइ बातक अपन साक्ष्यो छै,

मुदा इहो कहै जाइ छथि वेत्ता लोकनि

आब हरेक दस साल पर आएत,

मोन राखू, हरेक दस साल पर।

साक्ष्य नै छै एहि भविष्यवाणीक, ने छै तर्क

मुदा एक एक मनुक्ख कें लागि रहलैए पक्का

जे वेत्ता लोकनि ठीक कहि रहल छथि


सत्य जे, तकरा जनैत अछि मनुक्ख

भने क' नहि पाबय स्वीकार स्वार्थवश कि प्रमादवश

थिक तं ओ ब्रह्माण्डेक एक पिंड

जनैत जरूर अछि अपन अंत

थरथर कंपैत अछि।