Friday, September 2, 2022

राजकमल चौधरी का हिन्दी और मैथिली लेखन


 ।।राजकमल चौधरी का हिन्दी और मैथिली लेखन।।

तारानंद वियोगी से सुजीत वत्स का संवाद


सुजीत वत्स-- राजकमल चौधरी के अधिकृत विद्बानों में से आप एक हैं।साथ ही आपने उनकी मैथिली कविताओं के साथ -साथ हिंदी कविताओं का भी सूक्ष्म अध्ययन किया है। आपसे मेरा पहला प्रश्न है कि आप राजकमल की हिन्दी कविताओं और मैथिली कविताओं के संवेदनात्मक स्वरूप में क्या अन्तर महसूस करते हैं।


तारानंद वियोगी-- राजकमल ने जब मैथिली में कविताएं लिखनी शुरू कीं, उनका स्वर और शैली बिलकुल पारंपरिक थे। युवापीढ़ी के साथ जो नया उत्साह और नया तेवर आता है, वही केवल था और वह दुनिया को बदल डालना चाहते थे।

    पर जब उनकी आरंभिक हिन्दी कविताओं को देखें तो तो वहां भी हमें यही चीजें देखने को मिलती हैं।

    फर्क आगे जाकर पड़ा जब उनकी मैथिली कविताएं ग्रामीण सौन्दर्यबोध में पगी देखने को आईं और हिन्दी कविताएं नागरबोध में। शाक्ततंत्र का उन्हें अच्छा ज्ञान था, जो दोनों ही भाषाओं की कविताओं में जगह जगह पूरे फैलाव के साथ आए हैं। दूसरे यह कि मैथिली की काव्यपरंपराओं में यहां की सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप ही कई वर्जनाओं को पूज्यभाव से देखा जाता था। इन्हें राजकमल ने निर्दयतापूर्वक तोड़ा। इसलिए उनकी मैथिली कविताओं ने मिथिला के काव्य परिदृश्य में काफी हाहाकार मचाया। हिन्दी के काव्यपरिदृश्य के लिए यह चीज उस तरह नई नहीं थीं। यहां उन्होंने दूसरी कई चीजें तलाश लीं। 

    राजकमल का कवितावाचक एक बौद्धिक युवा है। यह मैथिली के लिए नई चीज थी। यात्री का कवितावाचक ग्रामीण किसान था। हिन्दी में बौद्धिक कवितावाचक का प्रवेश काफी पहले हो चुका था।

   भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जो महान आदर्श थे, उसने दूर तक राजकमल के कविव्यक्तित्व को प्रभावित किया था। लेकिन, उन आदर्शों के टूटने बिखरने की धमक राजकमल की तमाम कविताओं में पाई जाती है। इसलिए उनका जो कवितावाचक है, वहां एक टूटन भी है और दिशाहारापन भी, भले ही वह दुनिया को बदल डालने की मंशा रखता है। राजनीति उनकी कविताओं का एक जरूरी एंगल है। यह अलग बात है कि उनमें विचारधारागत स्पष्टता का अभाव है। यह हमें उनकी हिन्दी कविताओं में ज्यादा साफ दिखता है। अपनी मैथिली कविताओं में वह एक उप राष्ट्रीयता भी रखते पाये जाते दीखते हैं, जो कि उनका मैथिलत्व है।



सुजीत वत्स-कवि के साथ-साथ राजकमल को एक कथाकार के रूप भी जाना जाता है।एक कवि या फिर एक कथाकार दोनों  में से  किस विधा में  उनकी रचनाएँ ज्यादा  सशक्त है?


तारानंद वियोगी-- हिन्दी और मैथिली दोनों ही भाषाओं में काफी लोग ऐसे हैं जो राजकमल को एक कथाकार के रूप में ही ज्यादा सफल मानते हैं। यह मानने के अपने कारण भी हैं। याद रखने की बात है कि कहानी में सिद्धता के अपने अलग मानदंड हैं, और वे कविता से अलग हैं। कोई अच्छा कवि हो तो केवल इसी से यह तय नहीं हो जाता कि कहानीकार भी वह अच्छा होगा। कहना चाहिए कि राजकमल ने इन दोनों ही विधाओं में अलग-अलग सिद्धि प्राप्त की।

      अपनी जिस आवेगभरी भाषा के लिए वह जाने जाते हैं, वह गद्य और कविता दोनों में ही अपना कमाल दिखाती है। सामाजिक सरोकार उनकी कहानियों में ज्यादा स्पष्ट हैं। सामंतवाद का विरोध भी, और लैंगिक गैरबराबरी के खिलाफ गुस्सा भी। कहानियों के विषय उन्होंने ऐसे चुने जो समकालीन साहित्य की एक बड़ी रिक्ति भरते थे, और पाठक को एक नये संसार के सामने ला खड़ा करते थे। एक ऐसा संसार, जिसके बारे में या तो बहुत कम जानता होता था, या फिर इस तरह कभी सोचा तक नहीं होता था। 

      राजकमल की कही वह बात मुझे नहीं भूलती कि इतने लोगों ने कहानियां लिख लीं और लिख रहे हैं कि नया या मौलिक कथानक तो हमें अब मिलने से रहा। अब तो शैली ही एक बच गयी है जो हमें अपने समकालीनों में अलग दिखा सकेगी। अपनी आवेगमय भाषा में शैली का उन्होंने ऐसा चमत्कार रचा कि उन लोगों की बात को यूं ही उड़ा देना आसान नहीं है, जो राजकमल को कहानीकार के रूप में ज्यादा सफल पाते हैं।



सुजीत वत्स-राजकमल ने अपनी हिन्दी कविताओं में मिथकों का बहुत ही अधिक प्रयोग किया है।क्या मैथिली कविताओं में भी उन्होंने मिथकों का प्रयोग  उसी अनुपात में प्रयोग  किया है?एक प्रखर प्रतिरोधी कवि की कविताओं में मिथकों का इतना अधिक प्रयोग कविता की सम्पेषणीयता में बाधा तो नहीं है??


तारानंद वियोगी- हां, ये सही है कि अपनी कविताओं में मिथकों का प्रयोग उन्हें प्रिय था। और, यह हिन्दी और मैथिली दोनों ही भाषाओं की कविताओं में समान रूप से किया गया है। ब्राह्मणशास्त्रीय प्राचीन मिथक उन्हें प्रिय थे। इनका उपयोग अक्सर वह अपनी अभिव्यक्ति को धार देने के लिए करते। यह उनके कथ्य को अतिरेक में ले जाता था। अतिरेक में होना उनकी अपनी विशेषता थी और इसके लिए तरह तरह के प्रयोग करते रहते। कई बार तो बस चौंकाने या सामनेवाले को आक्रान्त कर जाने के लिए मिथकों को घसीट लाते। लेकिन, अध्येताओं ने पाया है, और गौर करें तो हम भी देख सकते हैं कि कि ये मिथक उनकी आत्मा की बेचैनी और मन की दुराशंकाओं की सटीक व्याख्या कर जाते थे। उनकी एक मैथिली कविता 'महावन' में आए पुराने पाकड़ वृक्ष की धोधर में बैठे पुरातन गिद्ध के रंग को कविता में देखने के बाद मणिपद्म ने यह आशंका व्यक्त की थी कि इस कवि की मृत्यु अब सन्निकट है। और आश्चर्यजनक रूप से यह आशंका सच साबित हुई थी। मतलब यह कि जो भी प्रयोग वह करते उसमें उनका आत्म गहरे तक निमज्जित रहता था।

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