"माछ मनुक्खक बीतल गाम"
(भवानन्द मामा , लालजी, आ गुलो,
–एहि तीन व्यक्तिक हेतु)
*राजकमल चौधरी*
प्रत्येक शब्दक एकटा विशेष अर्थ अछि, जेना एकटा सुतल गाम, आ मिझायल घूर पर सुतल कुकूर ....
कविता ककरा कही ?
आ प्रेम ??
अन्हार पानिक अन्हार तल मे छह छह करैत दू-टा माछ (दुनू रोहू ?)
ककरा ताकि रहल अपस्यांत ?
प्रत्येक शब्दक एकटा विशेष प्रयोजन अछि, जेना
एकटा पाकल आम , एकटा टूटल मचान पर .....
एकटा टूटल मचान ।
(दू)
अन्हार पानिक अन्हार तल मे छह छह करैत .....
हम (अर्थात हम्मर विशेष अर्थ )
एक युग सँ एक युगान्त धरि ,
ताकि रहल छलहुँ
एकटा नीलमणि माछ
अर्थात एकटा माछ आ एकटा नीलमणि निन्न आ इजोत
दुन्नू हमरा ओहि वयस मे आँजर पाँजर छल ।
धेमुड़ा-नदीक धार हमरा बड्ड प्रिय ;
नाहयाबक,
छेपी नाह सँ बाँसक छीप जकाँ
कूदि जयबाक ,
सेहन्ता पूर नहि भेल
मुदा आँगन मे रोहू माछ आयल, त' सभसँ पहिने –
हमरे बाटी मे परसल गेल ,
तेल मे डूबल, लाल भेल , गाभिन माछ
पहिल अमाओट आ अचार
धेमुरा नदीक पानि मे नचैत रहलीह कोसिका ;
घड़ी- घन्ट झनकैत रहल
तारास्थान मे ;
भोर-साँझ शतरंजक पिहकारी सँ दलान,
घोक तरक मुस्कीक आँगन
सह सह करैत ;
पावनि-तिहार आन-गाम-वाली गबैत छथि तिरहुत त हमरा चारूकात आम्रवन ,
मंजरिक मातल सुगन्ध सँ बताह
ई प्रान ।
तारा स्थान मे घड़ी-घंट झनकैत रहल ,
आ हम तकैत रहलहुँ
एकटा नीलमणि माछ
– तिरहुत गीत मे
अन्हार पानि मे ।
(तीन)
श्री हरिमोहन झा कहिया लिखने छलाह "कन्यादान " ?
मुदा अप्पन अल्पवयसक ओहि निर्मम
चपलता मे ,
कतेक बेर हमरा बुच्ची दाई सँ
ममता आ अनुराग होइत छल ओहिना, अकारण ,
होइत छल –
पुरईनिक पात मे डूबल एहि पोखरिक भखराल घाट पर बैसल
रहि जाई ―
राति भरि
राति राति भरि ।
(चारि)
पृथ्वीक अंतिम देवता छलाह राजा सातवाहन ......
हम फुदन चौधरीक पौत्र
बुधवारे -मूल महिसी ग्रामक सन्तान
पृथ्वीक अंतिम मनुक्ख रहि गेल छी ।
अंतिम देवता छलाह सातवाहन
हमर वाहन थिक
― हमर अर्थ ।
(पाँच)
आन कविता मे ई कहब आवश्यक नहि अछि, जे हम अपन अर्थ
ताकि रहल छी अन्हार पानि मे ।
निन्न आ इजोत एखनहुँ
आन कोनो सार्थकता सँ बेसि प्रिय छथि
हमरा हेतु ।
......हमर ओ महिसी-गाम बीति गेल अछि ;
हाट बाजार मे बिका गेल अछि
एकटा नीलमणि माछ,
कोसिका धेमुड़ा केँ विखदन्त कारी डराडोरि मे नाथि देलक जनक्रोध,
छेपी नाह सँ कूदि जयबाक,
बड़ी काल धरि
डूबल रहि जयबाक सेहन्ता नहि पूरल ।
मुदा,
एखनहुँ कोनो अधविसरल नाम
हमर देह मे ,
हमरे आँखि मे ―
'रोहू माछ जकाँ
छह छह करैत अछि
अन्हार अछि
पानि "
राजकमल चौधरी
21 10 65
(एहिअप्रकाशित कविताक स्रोत-- डा. गंगेश गुंजन)
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