Sunday, August 12, 2012

।।कृष्ण-स्मृति।।


।।कृष्ण-स्मृति।।

तारानंद वियोगी

ततेक सताओल गेला
एक नेनपन सं,
जे 'कृष्ण' बहरेला।

नै चिन्ता करी बाबू हौ,
संघर्षे सं बहराइ छथि कृष्ण,
  जेना छेनी सं सौन्दर्य।

कृष्णो बुढेला कहिया?
   जहिया राजा भेला,
 जेना, जनक गतिहत भेला तखने
जखन दशरथ-घर मे बेटी ब्याहलनि।

सोचहक...
कोना सन-सन करैत रहै संकट,
जम-जम करैत रहै कसाइ,
मुदा तखनहु
कृष्ण कने काल बंसुरी बजाइये लेथि,
     नाचिये लेथि कने काल दोस-महीम संग।

मोन पाडह,
कृष्ण तैखन राजा नै भेल रहथि,
बाबू हौ,
तोहूं एखन राजा नै भेल छह,
नै चिन्ता करी।


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