गजल
तारानन्द वियोगी
(हमर एक युवा मित्र किसलय कृष्ण, हमर एकटा पुरान गजल मोन पाडलनि। हुनका लग ई छलैनियो नहि। 1983 मे लिखने रही। अपन युद्धक साक्ष्य' मे संकलित अछि। भेल जे अजुका हालात मे तं एकर बिम्ब आरो जगजियार देखाइत छै, तें, मित्र लोकनि कें सेहो सुनाएल जाय। सुनल जाय----)
दर्द जं हद कें टपल जाए तं आगि जनमै अछि
बर्फ अंगार बनल जाए तं आगि जनमै अछि
ओहिना भूख, दुक्ख, त्रास बाट नै छोडत
कल्हुका स्वप्न बुनल जाए तं आगि जनमै अछि
माटिक लोक केहन यातना मे मुइल, मरय
लोकक दोख बुझल जाए तं आगि जनमै अछि
शोषणक चक्र, सहन-शक्ति, राजनीति बनए
मगजक नस जं तनल जाए तं आगि जनमै अछि
लोकक वोट गनल गेल, राजकुल जनमल
लोकक शक्ति गनल जाए तं आगि जनमै अछि
1 comment:
excellent. first maithili gazal in true sense...
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