मैथिलीक बोली
डा० एम०जे०वारसी (मोहम्मद जहांगीर वारसी) वाशिंगटन विश्वविद्यालय मे भाषाविज्ञानक प्राध्यापक छथि। ओ मैथिल छथि। कुशेश्वरस्थान(दरभंगा)क निवासी थिकाह। अपन मूल शिक्षण-कार्यक अतिरिक्त ओ विश्वविद्यालयक किछु आनो प्रोजेक्ट सब पर काज क' रहल छथि, जे भारतीय भाषा सभक अध्ययन सं संबंधित अछि। हुनकर कैकटा लेख नेट पर सेहो उपलब्ध अछि। एखन हाल मे हमरा हुनकर एकटा मुद्रित टिप्पणी पढबाक अवसर भेटल। ई टिप्पणी मिथिला मे बाजल जाइ बला एक बोलीक अध्ययनक संबंध मे अछि। हुनकर विश्लेषण आ संकल्प हमरा नीक लागल।
डा० वारसी कहै छथि जे मिथिलाक कैक जिला मे रहनिहार अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय एक एहन बोलीक प्रयोग करै छथि, जकर एखन धरि कोनो नाम नहि राखल गेल छै। एहि क्षेत्रक मूल भाषा आ संचारक मुख्य माध्यम मैथिली थिक। मुदा, एतुक्का मुस्लिम लोकनि जखन आपस मे एक दोसराक संग गप करै छथि तं मैथिली सं अलग एक बेनाम बोली बजै छथि, जकर वाक्य-संरचना मैथिली, उर्दू आ हिन्दी तीनू सं फराक अछि। एहि बोलीक अपन कोनो लिपि नहि छै आ ने लिखित साहित्य। तें एखन धरि भाषावैज्ञानिक लोकनिक ध्यान एहि दिस नहि गेलनि अछि।
डा० वारसीक नेनपन मिथिला मे बितलनि। ओ बाहर जा क' भाषाविज्ञानक उच्चतर अध्ययन केलनि। देश सं दूर रहि क' अपन क्षेत्रक बोली के भाषावैज्ञानिक अध्ययन करबाक खगता आ संकल्प हुनका भेलनि, ई बहुत नीक बात थिक। हमर समझ अछि जे मिथिला-क्षेत्रक बोली सभक व्यवस्थित अध्ययन सं हमर भाषा(मैथिली)क आयाम विस्तृत हएत, गरिमा बढत।
ठीक एही तरहें मैथिलीक एक आर बोली अछि जे दरभंगा-मधुबनीक पिछडा-अतिपिछडा समुदायक लोक सब आपसी संचार मे व्यवहार करै छथि। दरभंगा-मधुबनीक माछ बजार, तरकारी बजार मे अहां एहि बोली के विलक्षण ठाठ आ भंगिमा सं परिचित भ' सकै छी। एहि दुनू जिला मे तं देखल जाइए जे एके गाम मे जं दू टोल अछि तं एक टोलक लोक मैथिली भाषा बजै छथि जखन कि दोसर टोलक लोक ई बेनाम बोली। एकरो कोनो साहित्य नहि छै। मुदा, मैथिली साहित्य मे उपर्युक्त दुनू बोलीक घनेरो रोचक नमूना हमरा लोकनि कें भटैत अछि, उपन्यास मे, कथा मे आ नाटक मे। नाटककार महेन्द्र मलंगिया तं एहि दुनू बोलीक प्रयोग के मास्टर छथि--बोधक स्तर पर सेहो संवेदनाक स्तर पर सेहो। आरो अनेक लोक छथि। असल मे, ई आधुनिक मैथिली साहित्य के जमीन सं जुडल रहबाक आ सांस्कृतिक जागरूकता सेहो, उदाहरण थिक।
मुदा, बोलीक भाषावैज्ञानिक अध्ययन एहि सं सर्वथा फराक चीज थिक। एहि अध्ययन सं मिथिलाक कतेको अनछुअल समाजार्थिक रहस्य सभक उद्घाटन भ' सकैत अछि। एहि अध्ययनक बहुत आवश्यकता अछि। से बहुत जल्दी। कारण, संस्कृताइजेशन आ ग्लोबलाइजेशनक कारण ई बोली सब कालक गाल मे समाएल जा रहल अछि।
भाषाविज्ञानक युवा अध्येता लोकनि सं एहि दिस नजरि तकबाक अपेक्षा करै छी।
2 comments:
हमरा अपन किशोरावस्था मोन पड़ल जखन मुस्लिम समाज मे ई बोली खूब प्रचलित छल|हमर घरक आगां दू सय डेग पर कुजड़टोली एखनहु अछि,मुदा ओ बोली ओतहुसं अलोपित भेल अछि|मोन पड़ैत अछि जे विभूति आनन्द सेहो अपन किछ कथा मे एहि बोलीक प्रयोग केने छथि|एहि बोलीकें जोगाएब मैथिली लेल सेहो आवश्यक अछि|जानकार लोग आगां आबथु|
ठीके भाइ। एकर संरक्षण बहुत जरूरी छै।
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