Wednesday, March 24, 2010

बाल-कविता 
तारानंद वियोगी 

(हरेक आदमीक भीतर एकटा बच्चा होइ छै। आउ, ओइ बच्चा कें हमसब ताकी। अक्षर-कविता सिरीज मे 'क' सं 'ह' धरि कविता सब गोटे मिलि क' जोडी। मैथिली मे जे बाल-कविताक अकाल अछि तकर निराकरण एहिना हएत। सप्रेम आमंत्रण ।) 
क 
कम्मल ओढि क' सूतल बौआ
खोंता मे अछि नन्हकू कौआ 
जौं-जौं कौआ कारी हएत 
तौं-तौं बौआ और मोटाएत 

ख 

खा क' पी क' इसकुल जाउ 
सब बच्चा कें दोस बनाउ 
पढू लिखू आ गाबू गाना 
सब सं बढियां घर के खाना 

ग 

गाम गाम मे मचलै शोर 
कुकुर पकडलक दू टा चोर 
एक चोर छल नेता भाइ 
दोसर चोरबा हुनक जमाइ 

 ( एहि सं आगू अहांक हिस्सा मे..........)

6 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया..इन्तजार है आगे!

Anonymous said...
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Anonymous said...

घाम चुबैत मरि रहल किसान
खापरी मे छै कनिए धान
मुसरी ओ खापरी लई जाए
नेता स' अफसर धारि खाए

Unknown said...

Ehan prayas swagat yogya achhi.Hamhun ehi abhiyan men sham il chhi. Mrityunjay. ( Email - kmcdelhi10@gmail.com )

Anonymous said...

चुक्करी मे छई कनिए पाई
मुनिया ओहि से किनती आइ
अपन माँ ले एक किताब
हुनकर माँओं पढ़ती आब

तारानंद वियोगी said...


छू छू छू छू करय छुछुन्दर
ने काया ने नामे सुन्दर
तै सं बढिया बिज्जी भाय
हुनका देखते सांप पडाय

जहिया-जहिया मेला हएत
ओइ मे चुन्नी-मुन्नी जाएत
किनती की तं पेन्सिल-रब्बड
आ घर घुरती झब्बर-झब्बर