तारानंद वियोगी
(हरेक आदमीक भीतर एकटा बच्चा होइ छै। आउ, ओइ बच्चा कें हमसब ताकी। अक्षर-कविता सिरीज मे 'क' सं 'ह' धरि कविता सब गोटे मिलि क' जोडी। मैथिली मे जे बाल-कविताक अकाल अछि तकर निराकरण एहिना हएत। सप्रेम आमंत्रण ।)
क
कम्मल ओढि क' सूतल बौआ
खोंता मे अछि नन्हकू कौआ
जौं-जौं कौआ कारी हएत
तौं-तौं बौआ और मोटाएत
ख
खा क' पी क' इसकुल जाउ
सब बच्चा कें दोस बनाउ
पढू लिखू आ गाबू गाना
सब सं बढियां घर के खाना
ग
गाम गाम मे मचलै शोर
कुकुर पकडलक दू टा चोर
एक चोर छल नेता भाइ
दोसर चोरबा हुनक जमाइ
( एहि सं आगू अहांक हिस्सा मे..........)
6 comments:
बढ़िया..इन्तजार है आगे!
घाम चुबैत मरि रहल किसान
खापरी मे छै कनिए धान
मुसरी ओ खापरी लई जाए
नेता स' अफसर धारि खाए
Ehan prayas swagat yogya achhi.Hamhun ehi abhiyan men sham il chhi. Mrityunjay. ( Email - kmcdelhi10@gmail.com )
चुक्करी मे छई कनिए पाई
मुनिया ओहि से किनती आइ
अपन माँ ले एक किताब
हुनकर माँओं पढ़ती आब
छ
छू छू छू छू करय छुछुन्दर
ने काया ने नामे सुन्दर
तै सं बढिया बिज्जी भाय
हुनका देखते सांप पडाय
ज
जहिया-जहिया मेला हएत
ओइ मे चुन्नी-मुन्नी जाएत
किनती की तं पेन्सिल-रब्बड
आ घर घुरती झब्बर-झब्बर
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