Thursday, October 13, 2022

सीता (कविता)





तारानंद वियोगी


भीतरघात भेलैक तं पकड़ल जाएत सिपाही

वदतो जं व्याघात भेलै तं नपत गवाही

हारल जं घुरता अपने तं घरहि सहारा

मारल जं दुश्मन गेलैक तं जयजयकारा

सब क्यो रहत निचैन मात्र हां, जी हां कहि क'

करत सदा सब वैह, मुदा किछु दोसर रहि क'

सब के चलत चलाकी, कहु सीता की करती?

एक राम के खातिर ओ कय कय बेर मरती?


देलनि राम वनवास तं जनको कहां बिगड़ला

कहां अक्षौहिणी सेना ल' क' जा क' भिड़ला

कहां भेलनि जे बेकसूर धी भटकय वन मे

मंगबा लै छी एतहि, कहां से अयलनि मन मे?

जं कहबै सीताक भाग्य, पराया धन छलि

नै नै, धनुष उठाबनहारिक तन छलि

मन छल एहन जे लोक पुजैए माथा हुनकर

आर ककर छनि जेहन-जेहन छनि गाथा हुनकर?


उचितन बजने हनुमानो कें देसनिकाला

कहू कतहु ई देखल उपकारीक हवाला?

अन्यायी भागिन वशवर्ती राजा भेला

कतय गेलनि ओ ओज, कतय पुरुखारथ गेला?

घर घुरला लवकुश तं मन हनुमाने पड़लनि

कोना बचल रघुकुलक लाज, मैथिलजन देखलनि

धन्न कही ओइ मन कें जे गुण नै पहिचानल

स्वर्णमयी माया कें सीता क' क' जानल!


पापक बढ़तै चलती, राम बनथि रखबैया

डूबय लागय नाह, कहत जन राम खेबैया

ओइ रामक जे शक्ति छली से कोना हेरयली

अनधनलछमी त्यागि अयोध्या कतय पड़यली

ककरा रहतै मोन जखन जुग व्यापय पापक

ककरा संग गेलै धरती? भेलि ककरा बापक?


धर्मक जं चलती बढ़तै तं जय श्री रामक

ककरो नै रहतै मोन असल मे सीता रामक

तामस जं उठतै तं उजड़त अबल निबल सब

जं मन भेल प्रसन्न तं घर जड़तैक अनाथक

सीता तत्व कथीक? ने ककरो सुरता रहतै

कहू किए ने देशक नारी सदा कुहरतै?


No comments: