Tuesday, January 5, 2021

धराशायी हेबाक समय: कविता मे कोरोना-काल


 ।।बाजलि सपना।।


आउ मीत, आउ

हम सब खूब गहिया क' करी गराजोर 

बिसरी कि मानवीय स्पर्श खतरनाक छै कोरोना-काल मे

अनठाबी जे हमरा सं पटि सकैए अहां कें

कि अहीं सं हमरा


कते दिन पर भेल अछि भेंट

तरसैत रहल छी अइ तमाम समय

ओइ मीत लेल

जकर भेटनाइ समय कें दैत हुअय चेहरा

स्पर्श नै, संवाद नै

तं कथी छी जीवन?


कते विद्रूप छै ई समय

जखन लोक लग लोक नै

जखन कते जड़मति करैत विलाप

--ठीक छल पूर्वजक बनाओल अस्पृश्यता नियम, ठीक छल

जखन दिल मे आह

मुदा आह के राजदार नै


बहुत जिबिये क' की करब मीत हम-अहां

जखन कि देखि रहल छी

बेकसूर सब कें नित्तह जाइत मरघट


आउ आउ

शाश्वत होइ कनी

गहिया क' करी गराजोर।


।।नुक्काचोरी।।


अपने घर मे अपने नुकाएल छथि जोगीलाल

घर मे रहता बंद तं जमराज कें पहुंचब कठिन रहतै!


चारू दिस छै प्रचार

पैंसठ पार के आब बचब मश्किल

उमर देखि घेरै छै कोरोना

योद्धो लोकनि नवतुरिये कें बचबै छथिन

रहलै सुविधा तं देखल जेता बुढ़ानुस


जोगी कें तेसरें पैंसठ पार भ' गेल छनि

मश्किल छनि आब


ओ पोता संग खेलाएब धरि छोड़ि देने छथि

बेटा संग गपियाएब धरि

भरि भरि दिन पड़ल रहता ओछाओन पर

करैत रहता आंह-ओह

बेटो आब पुतहुए मारफत जनै छनि कुसल छेम


जमराज तं मारतनि, जहिया पकड़तनि

जोगी कें तं पैंसठे मारि देलकनि अछि कोरोना मे!


।।प्रवासीक विलाप।।


यौ जी, हमरा ढाठू नै एना

परदेस रहै छी तं‌ ई नै मतलब जे हमर ई गां नै छी

आ, अहां की हमरा रोकै छी भोला कका

हमर बाप अहांक इयार नै रहथि

कुश्ती नै लड़ी अहां दुनू पंडीजी पोखरि पर

एको मिनट बितैत रहय दुनू इयार बिना?

आइ एना करै छी

चिन्हल कें अनचिन्ह करै छी!


आ हौ नुनू, तों हमरा की रोकबह

तोहर बापे हमर संगी

मैट्रिक हम सब संगे कयने रही

संगे कमांड केने रही सौंसे अलजेबरा

अइ हिसाबें देखह तं हम तोहर पित्ती


यौ, नै मोन मानैए 

तं हमरा अहां सब कोरेन्टीन मे राखि दिअ' परिवार समेत

क्यो नै आबथि पन्द्रह दिन हमरा आंगन

हमहू सब आंगन सं कखनो बहराएब नै

जे वाजिब छै, से करू

मुदा, ई की जे गामे नै ढुकय देब

ई गाम हमरो गाम छी यौ

हमरो घर अछि अही गाम


एहन अन्याय नै करू मुखिया जी

कते मश्किल सं जान बचबैत घुरलहुंए गाम,

आब कतय जाएब

हे राम, आब कतय जाएब?


।।ग्लोबल विलेज।।


इटलीक सीमा फ्रांस लेल बन्न

फ्रांसक सीमा जर्मनी लेल

जर्मनीक सीमा अमेरिका लेल

अमेरिकाक सीमा सभक‌ लेल बन्न


सब अपना अपना घर मे कैद

पहिने जखन ककरो किछु होइ तं सब दौड़य

सब पठबय अपन अपन संसाधन

आब सभक सीमा सभक लेल बन्न

सब अपना अपनी मे सीमित

अपने कानै मे सभक दिन-राति पार


सैह देखियौ

ई ई भारी भरकम ग्लोबल विलेज तं 

पचीसो साल‌ नै टिकि सकल!


।।सब सं नीक बात।।


दुख कतबो भोगय पड़य गरिबहा कें


भोगले देह भोगि सकैए दुक्खो

जतेक भटकय पड़य दर-दर

जत्तेक निछावर करय पड़य प्राण

सब सं नीक बात ई

जे कोरोना बीमारी गरिबहा संगे पैदल नहि आएल

आएल हवाइ जहाज सं

मोटका मोटका आंखि बला सब धोधि बला सब अनलनि कोरोना


बात बात मे कहथि मठोमाठ

--गरीब रहैए गंदा, पटाबैए बीमारी

गरीब सौंसे देस लेल कलंक थिक

तेना कहथि मठोमाठ 

मानू देस अंबानीक फैक्ट्री मे बनल कोनो हाइटेक माल हो


करेजगर सं करेजगर कें जे थरथरा दियय

काज तं एहन करैत रहला सब दिन गरिबहे

मुदा, सब सं नीक बात ई

जे कोरोना आनल गेल हवाइ जहाज सं।


।।मनुक्ख जनैत अछि अपन अंत।।


इतिहास उनटा क' देखू

बरु आब तं इतिहासो उनटेबाक नहि काज

गूगल कहि देत समुच्चाक समुच्चा खिस्सा


सौ बरस पहिने ई भेल छल, ओ भेल छल

चलल छल प्लेग, चलल छल आरो अनेक अहिना सर्वत्र

प्लेगक मार्मिक मार्मिक अनुभव 

जहां तहां साहित्य मे छिड़ियाएल भेटत

अहिना निरर्थक भेल छल चिकित्सा-तंत्र

अहिना शासन-प्रशासन आएल छल पेश

अहिना असहाय रहय मनुक्ख, निरवलंब


एहि सौ बरस मे कते बदलल समय

आइ चिकित्सा अपन विजयक डंका पिटैत अपनहि

आइ सौभाग्यशाली देश विश्वगुरु

आइ लोकक हाथ मे दूटा पाइ, रहबा लेल घर

मुदा आइयो मनुक्ख असहाय ओहिना

मनुक्ख निरवलंब ओहिना


कहै जाइ छथि वेत्ता लोकनि

सौ साल पर अबैत रहल अछि एहने महामारी

अइ बातक अपन साक्ष्यो छै,

मुदा इहो कहै जाइ छथि वेत्ता लोकनि

आब हरेक दस साल पर आएत,

मोन राखू, हरेक दस साल पर।

साक्ष्य नै छै एहि भविष्यवाणीक, ने छै तर्क

मुदा एक एक मनुक्ख कें लागि रहलैए पक्का

जे वेत्ता लोकनि ठीक कहि रहल छथि


सत्य जे, तकरा जनैत अछि मनुक्ख

भने क' नहि पाबय स्वीकार स्वार्थवश कि प्रमादवश

थिक तं ओ ब्रह्माण्डेक एक पिंड

जनैत जरूर अछि अपन अंत

थरथर कंपैत अछि।






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