Sunday, October 2, 2022

उषा किरण खानक लेखन-स्वभाव



तारानंद वियोगी


उषाकिरण खान मैथिलीक एक महत्वपूर्ण साहित्यकार तं छथिहे, हुनकर व्यक्तित्वक आओरो कैक टा आयाम सब अछि जे हुनकर लेखन कें पुष्ट आ सबल करैत रहल अछि। मध्यकाले सं, जहिया आधुनिक भारतीय भाषाक रूप मे मैथिलीक जन्म भेल, हम सब देखैत आएल छी जे बहुभाषाविद् आ बहुरचनाप्रवीण लेखकक बेसी सम्मान मिथिला मे रहलैक। ई गुण हमरा लोकनि ज्योतिरीश्वर आ विद्यापतियो मे देखैत छी। आधुनिक युगक सब सं महान लेखक यात्री जी तं एहि मे अनेक नव आयाम जोड़लनि। उषाकिरण बहुभाषाविद् आ बहुभाषाप्रवीण लेखकक कोटि मे अबैत छथि। ओ मैथिलीक संग-संग हिन्दी मे अपन लेखन कयलनि अछि। आ दुनू भाषा मे, दुनू भाषाक लेखन लेल स्वीकृत आ सम्मानित भेलीह अछि। मुदा जेना कि यात्री जी आ रेणु(फणीश्वरनाथ) जीक बारे मे कहल जाइत अछि जे ओ लोकनि हिन्दियो मे लिखैत मैथिलिये लिखलनि, मिथिलेक बात लिखलनि, मिथिलेक दशा आ दिशा हुनकर चिन्ताक केन्द्र मे रहलनि, ठीक वैह बात हम सब उषाकिरणक बारे मे कहि सकैत छी। अपन शोधात्मक कथा-लेखनक क्रम मे जं ओ मिथिला सं बाहरो गेली तं ई चीज झकझक देखार पड़ैत रहलैक जे एक मैथिल हृदयक भावकताक संगहि ओ यथार्थक संग बर्ताव कयलनि अछि। हुनकर अवदान कें अपन प्रान्त आ देश मे चीन्हल गेल, से हमरा लोकनिक लेल एक फूट खुशीक गप थिक।


उषा जीक ई सौभाग्य रहलनि जे लिखबाक केवल हुनरे नहि, एकर प्राथमिकता-निर्धारण धरिक संस्कार हुनका विश्वप्रसिद्ध मैथिल कवि यात्री नागार्जुन सं भेटल रहनि। उषाकिरणक पिता यात्री जीक मित्र रहथिन जिनकर निधन बहुत शुरुए मे भ' गेल रहनि, आ यात्री जी अपन विशालहृदयताक अनुरूपे पितृवंचिता एहि कन्याक जीवन मे सब दिन पिताक भूमिकाक निर्वाह करैत रहलखिन। स्वयं उषा जी लिखने छथि जे व्यक्तित्वगत हुनकर मजगूती आ कथा-साहित्य दिस हुनकर लेखन-प्रवृत्ति शुद्ध क' क' यात्री जीक प्रेरणाक फल छल। तखन, एहना स्थिति मे जखन कि क्यो नव लेखक कोनो महान साहित्यकारक प्रेरणा आ संसर्ग मे लेखनक शुरुआत करैत अछि, एकर खतरा सेहो कम नहि रहैत छैक। पुरान कहबी अछि जे विशाल बटवृक्षक नीचां लघु तरु-गुल्मक विकास असंभवप्राय होइछ। खतरा ई छलनि जे यात्री जीक आभामंडल मे ओ बन्हाएल रहि जा सकैत रहथि। मुदा, महान लोकक संगति स्वयं जेना अनेक आपद-विपदक सम्यक समाधान करैत चलैत छैक आ महानताक जे कारक सब होइछ ताहि मे स्वयं इहो एक महत्वपूर्ण कारक होइत अछि। हमरा लोकनि देखैत छी जे स्वयं यात्रिये जी एक दिस जं अधिकाधिक गद्यलेखनक दिस हुनका प्रेरित केलखिन, तं दोसर दिस हुनका सं सर्वथा विपरीत ध्रुव पर स्थापित वरेण्य साहित्यकार अज्ञेय जी संग रचनात्मक संपर्क-सामीप्य हेतु प्रोत्साहित सेहो केलखिन। एकर परिणाम साहित्यक लेल कतेक शुभ आ सुखद भेल तकर हिसाब हमरा लोकनि उषा जीक विशाल रचना-संसार मे पाबि सकैत छी।


उषा जी सदिखन अपना कें कोसिकन्हाक एक उपज मानैत रहल छथि, जकर तात्पर्य थिक जे ओहि माटिक कत भारी इयत्ता छैक, तकरा ध्यान पर लायब। कतेको ठाम ई बात हम कहि चुकल छी जे मिथिला जकरा हमरा हम सब कहैत छी, मोन रखबाक चाही जे एहि मे मिथिलाक भीतर मिथिला छैक। एक दिस जं मैथिल अस्मिताक सामर्थ्य-विस्तार एहि सं देखार होइछ तं दोसर दिस एक समन्वित मैथिल जातीयताक विकास मे ई बाधको बनल रहल अछि।‌ मुदा तकर मूल ओजह भेल एतुक्का पंडित-समाज, जकरा हाथ मे सत्ता तं रहल मुदा अपनहि हेंग जोतबाक दुर्व्यसन नहि कहियो गेल। तें, हम सब देखैत छी जे ब्राह्मण-धर्माचारक संगहि संग लोकायतक लोकाचार सेहो अपन पूरा खिलावट प्राप्त कयने रहल। एतय धरि जे जीव-जगत कें पूरा मिथकीय स्वरूप द' क' ग्रहण करबाक प्रवृत्ति लोकायते दिस सं आएल जे मैथिल अस्मिता कें परिभाषेय स्वरूप धरि पहुंचौलक। मिथिला कें शास्त्र सं गछाड़लनि महामहोपाध्याय पंडित लोकनि, मुदा अपने ओ जाहि पंडिताइन लोकनिक द्वारा गछारल छलाह से स्त्रीगण लोकनि एम्हर लोकायतक हामी, लोकाचारक पैरोकार छली। हम देखैत छी जे एक जातीय इकाइक रूप मे मैथिल अस्मिताक ई अजगुत स्वरूप जते स्पष्ट रूप सं उषाकिरणक कथा-साहित्य मे वर्णित भेल अछि, तते आन कतहु नहि।‌ तें हुनका ओइ ठाम यौनिकताक आधार पर विद्रोह पर उतारू स्त्रीवाद नहि छनि। से मैथिली मे तं नहिये, हिन्दियो कथा-साहित्य मे नहि छनि। जवाबदेहीक अहसास अक्सरहां लोक कें उत्थर आ मतलबी होयबा सं रक्षा करैत छैक। ई अहसास साफ-साफ उषा जीक स्त्री लोकनि मे देखल जा सकैत छैक।


हम पहिनहु कहने छी जे स्त्री आ प्रकृति, ई दुनूटा उषा जीक प्रमुख लेखन-विषय रहलनि अछि। स्त्री जेना कि कहबे केलहुं, अपन संपूर्ण मानवीय गरिमा आ जिम्मेदारीक संग हुनकर कथा-साहित्य मे आएल छनि। ओकर विस्तार बहुत पैघ छैक-- स्थान, काल आ पात्र तीनू तरहें ओ दूर-दूर धरि पसरल छैक। एक दिस जं सुदूर अतीत मे भेलि भामती छथि तं दोसर दिस धहधह जरैत निज अजुका वातावरण मे पोसाएल अजनास, जे अपना दम पर समाज मे परिवर्तन अनबाक स्वप्न देखैत अछि। जाहि गहिराइक संग स्त्रीक भूमिका-विधान उषाकिरण रचैत छथि, कूटचालि चलि क' मनुक्ख-मनुक्खक बीच कयल गेल तमाम प्रकारक विभाजन हुनका लग आबि क' निरस्त भ' जाइत छैक। ब्राह्मण सं ल' क' दलित धरि, हिन्दू सं ल' क' मुसलमान धरि, महामहोपाध्याय सं ल' क' मुरुख-चपाट धरि-- एकटा सूत्र अछि जे स्त्रीक गरिमा आ भूमिका कें बेस समरूप क' क' आंकैत अछि। हुनकर बहुतो पाठक एहन भेटताह जिनका हुनकर स्त्री-पात्र सब मे हसीना सब सं बेसी दीप्तिमती देखार पड़ैत छनि, आ ओ 'हसीना मंजिल' कें हुनकर सर्वश्रेष्ठ कृति मानैत छथि। जखन कि दोसर दिस देखी तं मैथिली कथा-साहित्य मे संपूर्ण मानवीय गरिमा आ इयत्ताक संग एक तं मुसलमान समाजक आमदे बहुत कम भेलैक अछि, दोसर जतबा भेलो छैक ओहि मे मार्मिकताक अकाल देखल जाइत अछि।


उषा जीक साहित्य मे कोशी कातक प्रकृति भरपूर उतरलनि अछि। नदी कातक, ओहू मे खास क' कोशी-सन नदी कातक प्रकृति, से चाहे जड़ हो चाहे जंगम, ततेक खास अछि जे लगहि के पछबारि पारक गतानुगतिक शास्त्रीय वितंडापूर्ण जीवन-चिन्तन सं एहि ठामक लोक के सर्वथा भिन्न मनोनिर्मिति रचलक। एक बेलौस जीवनपद्धति, परस्पर अन्योन्याश्रित, लोकायतक चिर अनुवर्ती, बात-बात मे जीवन-स्पन्दन सं भरल, आ धाराक विरुद्ध चलबा कें जेना अपन इंस्टिंक्ट जकां धारण कयने। नदी आ ओकरा प्रवाह संग जीवन गुदस्त केनिहार भूमि, ओकर फसिल, जंगल, ओकर जीवजन्तु आ तकरा सभक संग सहअस्तित्व बनौने मनुष्य कतय एकमएक भ' जाइत छैक, अंटकर करब मश्किल अछि। एहि संपूर्ण चराचरक‌ नायिका थिकी कोशी। मिथक छैक जे कोशी संग बियाह करय चलि अबैत छैक रन्नू सरदार-- 'नौ गड़ी सिन्नूर हे कोसिका/ देलियह उझीलि हय/ कोसिका तोरा सं/ कयलियह बियाह हे।' मुदा, एम्हर ई चिरकुमारि कोशी छथि। उषे जीक शब्द मे-- 'रन्नू नौ गाड़ी सिन्नुर खसा क' धार कें बान्हि देलकै। ऐं, ई मजाल! सिन्नुरक बोरा खसा हमरा बियाहि लेत? धार मे जेना कोदारिक सान चढ़ि गेलै,  धरती-पिरथी एक क' देलकै कोसिका। बोराक बोरा सिन्नुर तामसक फेन संग कतबैक बालु पर फेकि देलकै। आइयो कासक जड़ि मे ओ ललका सिनूर सटल छै। रन्नू अपन सन मुंह ल' ठामहि घुरलाह। कोसिका कुमारिये छथि।' कखन आ कतय मिथक जीवन मे आबि शामिल भ' जाएत, कखन कोशीक कथा कोशी-कातक लोकक कथा बनि जाएत, प्रकृति आ मनुष्यक जीवन तेना सहरस छैक जे अनुमान धरि करब कठिन अछि। प्रयोगक लेल प्रयोग के देखाबा मे उषाकिरण कहियो नहि पड़लीह, मुदा हुनकर कथा-साहित्य कें ठेकान सं देखब तं ओतय प्रयोग सभक विशाल चित्रशाला देखार पड़त। बहुतो ठाम देखबै जे प्रत्यक्ष भ' क' कोशी कतहु नहि अयलीह अछि, एतय धरि जे हुनकर कोनो आनो उपादान धरि नहि, मुदा ओहू ठाम साफ देखार पड़त जे पृष्ठभूमि मे एकटा कोनो धुन बाजि रहल छैक जे कोशीक अप्पन प्रकृतिक धुन थिक। ओहू कथा (अजनास) मे जे रन्नूक खसाओल सिनूर कें कोसिका काछि क' फेकि दैत छथि, ई नहि बूझब जे ओ निज कोसिके थिकी, ओ थिकी विधायक जीक बेटी अजनास जे मुख्यमंत्रीक भातिजक संग आएल विवाह-प्रस्ताव कें नासकार करैत छैक।


उषाकिरणक सौभाग्य रहलनि जे हुनकर नेनपन धुर कोसिकन्हाक एक गाम मे बितलनि, सर्वजातीय सर्वधार्मिक सर्वसाम्प्रदायिक जीवन-संगति मे, आ पुरुषार्थ हुनकर ई रहलनि जे कतबो आगू बढ़ि गेली मुदा आत्मा मे बसल ओहि गाम संग नाता नहि कहियो तोड़लनि। पिता पुरान गांधीवादी, आदर्श समदर्शी, वास्तव के समाजसेवी रहथिन, जनिकर संस्कार सं उषा जीक मानस निर्मित भेल, आ से सब दिन हुनका आंखिक सोझा जीवन्त, प्राणवन्त बनल रहल। मैथिली के तं ओना अंगने कते टाक?  जतबा छैहो, ताहू मे पछबारि पारक गतानुगतिक पंडी जी लोकनि रौरव नरक के दृश्य कें सजीव बनेबा मे अपस्यांत पाओल जाइत रहलाह अछि। एहना मे उषाकिरणक लेखनक समावेशी स्वभाव के खास महत्व अछि।


उषा जीक असल मेधा मुदा, उद्घाटित होइत देखाइत अछि हमरा तैखन, जखन एहि एकैसम सदीक उग्र स्त्रीवादी लोकनि स्त्री-यौनिकताक स्वातंत्र्यक हंगामा ठाढ़ कयने रहैत छथि, आ ई उषाकिरण खान अपन स्वस्थिरचित्त आ मन्द्र वाणी सं स्त्रीक ओहि स्वयम्भू गरिमा आ दायित्वक पक्ष मे अविचल बनल रहैत छथि, जे एहि समुच्चा प्रकृतिक संचालिका थिकी। कते आश्वस्तिक बात थिक जे ई वाणी कोशीक वाणी थिक!

No comments: