Tuesday, July 12, 2022

ओ तीनू कथा (मुक्ति, फुलपरासवाली आ रंगीन परदाक संग-संग अध्ययन)

 


तारानंद वियोगी


मैथिली कथा-साहित्य मे आधुनिकताक आलोड़न-विलोड़न मे एहि तीनू कथाक युगान्तरकारी प्रभाव अछि-- ललितक कथा 'मुक्ति', राजकमल चौधरीक कथा 'फुलपरासवाली' आ लिली रेक कथा 'रंगीन परदा'। मुक्ति आ फुलपरासवाली वैदेही मे 1955 मे छपल, जखन कि ठीक अगिला साल ओही पत्रिका मे लिली रेक 'रंगीन परदा' प्रकाशित भेल। 'मुक्ति' जं सेर बनि क' आयल छल तं 'रंगीन परदा' सेर पर सवा सेर साबित भेल। सबतरि हाहाकार मचि गेल छल। मैथिली कथा मे स्त्री तं शुरुहे सं आबि रहल छली, व्यक्तित्ववान स्त्रीक सेहो आगमन भ' चुकल छल। मुदा आधुनिक स्त्री-विमर्शक जाहि नैरेटिव ल' क' लिली रे आयल छली ओ अभूतपूर्व रहय। एहि संभाव्य हाहाकारक पक्का अंदेशा स्वयं लिली रे कें सेहो छलनि आ तें एकर प्रकाशन ओ कल्पना शरणक छद्मनाम सं करौने रहथि। कथा एते प्रभावशाली रहय जे ओहि युगक सभक सब सिद्ध-प्रसिद्ध प्रयोगवादी लेखक लोकनि एहि अज्ञात नामधारी लेखिका कें पत्र लिखि संवर्द्धना केलखिन। ई सब पत्र आब प्रकाशित अछि।

              ललितक कथा मुक्ति मूलत: स्त्रीक यौन-आकांक्षा(Libido)क कथा थिक। सब माने मे नीक व्यक्तित्व, उत्तम कुलशील, सम्यक संस्कार वाली स्त्री शेफाली एहि कथाक नायिका थिकी। पूर्णयौवना, मुदा जनमरोगी पति हुनकर यौनाकांक्षा कें पूरा करबा मे असमर्थ। तथापि पति-पत्नीक बीच स्नेह, सद्भाव आ विश्वास उत्तम। मुदा, अवसर भेटला पर शेफाली एकटा बदनाम आ असंस्कृत रसिक, जे कि मामूली दरबान थिक, ओकरा संग पड़ा जाइत अछि। भागबाक काल ओ जे अपन पति कें पत्र लिखैत अछि, से ई-- 'स्वामी, एखन तं सरिपहुं छोड़ि क' जा रहल छी... मुदा जं कहियो लौटक आकुलता हएत तं प्राय: अहां कें अपना लेल फूजल पाएब।-शेफाली।'

              एकटा बात एतय साफ क' दी जे 'मुक्ति' स्त्रीविमर्शक कथा नहि थिक, जेना कि बहुतो गोटे मानैत रहलाह अछि। कोनो रचना कें स्त्रीविमर्शक रचना हेबाक लेल न्यूनतम शर्त थिक जे ओ स्त्री-दृष्टिक पक्षकार हो। एहि कथा मे तं एकर साफ उनटा अछि। ई पुरुष-दृष्टि सं लिखल गेल, स्त्री-पुरुष-सम्बन्धक परिप्रेक्ष्य मे पुरुष कें उदार आ वफादार आ स्त्री कें स्वार्थी आ बेवफा साबित करैत कथा थिक। कथावाचक जे छथि से स्वयं एक लोलुप पुरुष थिका जिनका मनोलोक कें बेर-बेर यैह बात मथैत रहैत छैक जे शेफाली कें जं परपुरुषे चाहिऐक छलै तं ओ एते लो प्रोफाइलक ओहि चौबे दरबान कें किएक चुनलक, हाइ प्रोफाइल बला एहि कथावाचक महोदय कें ने किएक अवसर देलक। ई तं केवल स्त्री जनैत अछि जे जे चीज ओकरा चाहिऐक से कोन पुरुष लग भेटि सकैत अछि। जं ई कथा स्त्री-दृष्टि सं लिखल जाइत तं एहि प्रश्नक उत्तर एहि मे जरूर भेटैत, एहि तरहें महाप्रश्न बनि क' ई बात सौंसे कथा बीच घुरियाइत नहि रहैत जे आखिर वैह 'असभ्य' चौबे किएक शेफाली कें पसंद छलनि?

              असल मे एहि कथाक महत्व दोसर कारण सं अछि। हम सब अवगत छी जे फ्रायड आ मार्क्स, एहि दुनू दार्शनिक महापुरुषक सिद्धान्तक मैथिली साहित्य मे आगमन छठम दशक मे भेल। एहिठाम प्रसंगवश इहो कहि दी जे बीसम शताब्दीक विश्व कें आमूलचूल बदलि देनिहार चारि महापुरुष-- मार्क्स, फ्रायड, गांधी आ आइंस्टीन-- मे सं फ्रायड एक महत्वपूर्ण व्यक्ति छला जिनका आधुनिक मनोविज्ञानक जनक कहल जाइत छनि। हुनके एक सिद्धान्त छनि--लिबिडो अर्थात यौनेच्छा। फ्रायड देखौलनि अछि जे यौनेच्छा एक अनिवार्य जैविक आवश्यकता थिक जे ओना तं सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक आदि स्थिति पर अवश्य निर्भर करैत अछि मुदा ई स्वयं मे तते बलशाली ऊर्जा होइछ जे सभ्यता-संस्कृति आदिक डंटा सं एकर निवारण कदापि संभव नहि भ' सकैत अछि। फ्रायड यद्यपि अपन व्याख्या मे एकरो संभावना देखौलनि जे ई यौनेच्छा दमित (suppressed) सेहो भ' सकैत अछि आ उदात्तीकृत (sublimated) सेहो। मुदा, से भिन्न वस्तु होइछ आ एहि कथाक प्रसंग मे तकर कोनो सोह नहि छैक। लिबिडो कोन तरहें काज करैत अछि आ सबटा संस्कृति-सभ्यता कें पल भरि मे मटियामेट कोना क' दैत अछि, 'मुक्ति' मे तकर खिस्सा आयल अछि। मिथिलाक संस्कृति मे 'नीच' पुरुष संग यौन-सम्बन्ध बनौनिहारि अथवा ओकरा संग उढ़रि जाइ वाली स्त्री शेफाली कोनो पहिल स्त्री नहि छलीह। एहि ठाम तं एकटा उक्तिकविता (फकड़ा) प्रसिद्ध रहल अछि, जकर महत्वपूर्वक उल्लेख काञ्चीनाथ झा किरण कयने छथि जे 'बाबूक धियापुता बाधबोन बौआय/ बौआसिनक धियापुता मचिया बैसि अगराय।' मैथिल संस्कृतिक थाह नहि रखनिहार लोक कें ई कविता सुनि क' नहि समझ मे अयतनि जे बाबू आ बौआसिन जखन पति-पत्नी थिका तं दुनूक संतान तं एक्के भेलै, तखन ओकर भवितव्य अलग-अलग किए बताओल गेल छै! यैह लिबिडोक कमाल थिक। बाबू जं अपन यौनतृप्ति खवासिन सं पबैत छथि तं बौआसिन सेहो सुविधापूर्वक अपना काजक योग्य खवास ताकि लैत अछि। एहना मे तं स्वाभाविक जे बाबूक धियापुता कें खवासिन जन्म देत आ ओकर भवितव्य खवासक स्थिति सं प्रभावित रहतैक, तहिना खवासक संतान कें बौआसिन जन्म देती आ ओ मचिया बैसल अगरायत। गौर करी, 'मुक्ति' कथा मे सेहो एक प्रमुख पात्र कुंजी खवास छथि, मुदा ओ बूढ़ छथि, बीसो बाबू कें कोरा कांख खेलेने छथि, एतय धरि जे बीसो बाबू कें हुनके टा डर होइत छनि, हुनकर कहल ओ नहि टारि सकै छथि। एहि सब कारण सं लिबिडोक परिदृश्य सं ओ बाहर छथि।

              एहिठाम डाकक एक वचन मोन पड़ैत अछि-- 'उढ़री बहु ले जे नर रोबय/ धोकड़ी मारि भूमि पर सोबय/ बाट चलैत ताकय नहि घूरि/ कहय डाक ई तीनू बूड़ि।' जानि नहि, कै शताब्दी सं ई कविता मिथिला मे प्रचलित छै। उढ़री बहु लेल नहि कनबाक चाही। कथानायक बीसो बाबू नहि कनैत छथि। बरु प्रसन्न होइ छथि जे अस्पताल मे भरती भ' क' इलाज करेबाक बंधन सं आब मुक्त भेला। मुदा, ओ जे शेफाली विदा कालक पत्र मे अंतिम वाक्य लिखने छली, 'जं कहियो लौटक आकुलता भेल तं अहां कें प्राय: अपना लेल फूजल पायब', आश्चर्यजनक छै जे ओ अपन पति कें बिलकुल ठीक चिन्हने छली। स्त्री अधिकतर पुरुष कें ठीके चिन्हैत अछि, पुरुषे बीच बाट मे अपन पंथ बदलि लैत अछि, तकर साक्ष्य विद्यापतिक स्त्री-विषयक गीत सब मे भरल अछि। बीसो बाबू इलाज छोड़ि देता आ कुपथ्य करता तं छव मासक बाद जीवित बचल रहता की नहि, कहब मुश्किल। मुदा, ओ कथावाचक कें, विदा होइत काल कहै छथिन-- 'आलूक दम्म जं खेबाक हो हुनका(शेफालीक) हाथें, तं छव मासक पश्चात दरसन दी। गाम हमर स्टेशनक भिड़ले अछि।' माने एहू मरदे कें बूझल छै जे ओहन बुद्धिशालिनी कें चौबे छव मास सं बेसी छेकि क' नहि राखि सकत। बरु इहो बात निस्तुकी छै जे शेफाली जं घुरि क' अयती तं ई बीसो बाबू राजा राम जकां ओकरा सीता-वनवास नहि देथिन, नैका बनिजारा जकां सप्रेम अपनेथिन। बीसो बाबूक व्यक्तित्व औदार्य आ औदात्य सं भरल अछि। जानि नहि किए, स्त्रीक लिबिडो कें जगजगार करबाक हेतु ललित कें पुरुषक व्यक्तित्व कें एते ऊंच उठायब जरूरी लगलनि! संभव जे सर्वथा नव आ विद्रोही विचार कें हाहाकार मचा दैबला तरीका सं व्यक्त करबाक लेल हुनका ई चीज जरूरी लागल होइन। जेना उजरा बैकग्राउन्ड पर करिया रंग बेस फबैत छैक।

              मुदा, यैह चीज राजकमल चौधरी कें नापसंद भेलनि। राजकमल घोर प्रतिक्रिया मे आबि गेला आ एकर प्रतिकार करैत ओ जे कथा लिखलनि, सैह 'फुलपरासवाली' छल। 'फुलपरासवाली' मे बात आयल छैक जे नहि, पुरुष महान नहि भ' सकैत अछि, खास क' क' स्त्री-पुरुष-सम्बन्धक मामला मे तं किन्नहु नहि। कहबाक लेल भने पुरुष पंडित-पुत्र हो, जेना कि एहि कथाक नायक अछियो, मुदा थोड़बे अवसर आ सुविधा भेने ओ पतित, अति पतित भ' जाइत अछि, जेना कि एहि कथा मे भेल अछि। एहि कथा मे राजकमलक कहब छलनि जे महान स्त्री होइत अछि, जेना कि फुलपरासवाली भौजी छली। रिक्शाचालक बिलट भाइ दारूक निशां मे अपन साथी रिक्शावला कें छूरा भोंकि दैछ, पुलिस ओकरा पकड़ि लैत छैक आ सात वर्षक सजाइ मे ओ जेल चलि जाइत अछि। भौजी पटना नगर मे एसगर बचि गेली अछि आ कथावाचकक घर मे रहै छथि। मुदा, बात तं होइ छल लिबिडो के। लिबिडो एहि मे कतय छै? असल मे कथावाचक अपन स्त्री संगे रहै छथि। हुनका स्त्री कें फुलपरासवाली संगें बहुत मेल। मुदा, थोड़ दिन बितैत-बितैत होइत ई छै जे फुलपरासवाली कथावाचकक प्रति आकृष्ट हुअय लगैत अछि। हरदम नजरि मे बनलि रहय, हरदम हिनका मुग्ध कयने रही, ताहि तरहक ओकर चेष्टा रहैत छैक। कथावाचक एहि बात कें गमि जाइत अछि आ एहि मे ओकरा कोनो हरजो नहि बुझना जाइछ जे हुनकर परवरिश ई करथि आ तकरा बदला मे ओ यौनसुख प्रदान करथि। ओ अपन डेग आगू बढ़बैत एक दिन ओकरा गंगाकातक एकान्ती मे ल' जाइत अछि। मने सब तय-तसफिया भइये जाय। ओतय जे होइत छैक, से सबटा आशाक विपरीत। ओ कहैत अछि-- 'अहांक भाइक लेल सात बरख की सात युग हम प्रतीक्षा मे बिता देब।' तखन ओ सब की छल? एकसर राति मे परपुरुषक निकट एबाक कामना? ओ कहैत अछि-- 'ओ सब क्षणिक दुर्बलता छल।' आखिर होइत ई छैक जे भौजी पटना नगर छोड़ि क' देहातक अपन गाम घुरि जेबाक निर्णय करै छथि। कथाक अंत मे राजकमलक निष्कर्ष छनि-- 'जाबत फुलपरासवाली जीबैत छथि, बीसो बाबूक स्त्री शेफालीक जन्म नहि भ' सकैत अछि। जं शेफाली कें जन्मेबाक हो तं मिथिलाक गाम-गाम मे प्रतीक्षाक नोर खसबैत असंख्य फुलपरासवालीक हत्या कर' पड़त।'

              राजकमलक एहि कथा मे तर्कसंगतिक स्पष्ट अभाव देखना जायत। ओ एहि ठाम पवित्र मैथिल संस्कृतिक संरक्षक बनल तहिना देखाइ दैत छथि जेना अपन लोकप्रिय कथा 'ललका पाग' मे। असल मे, ई बात हम 'जीवन क्या जिया' मे लिखनहु छी जे राजकमलक पक्ष-निर्धारणक ओ अनस्थिरताक दौर छल आ तें जे राजकमल अन्तत: अपन स्त्री-दृष्टिक लेल विख्यात छथि, ई दुनू कथा(फुलपरासवाली आ ललकापाग) तकर प्रतिकूल अछि। कहल जाय जे हुनकर संपूर्ण लेखनक बीच ई दुनू कथा हुनकर 'विचलन' थिक। एना किएक भेल, तकर कारण छल जे ठीक ओही समय मे ओ मैथिली मे कथा लिखब शुरू कयने छला। सब भाषाक साहित्य-लेखनक अपन-अपन आभामंडल होइ छै जाहि सं बाहर ओकर लेखक नहि जा पबैत अछि, वा जं तकर विस्तार कइयो सकय तं से परिपक्व भेलाक बादे होइत छैक। नवागन्तुक कथाकार कें ई कथा लिखैत एहि मलाल सं भरल देखल जा सकैत अछि जे ई सब अनर्गल चीज जं होइतो हो तं से मिथिलाक बाहरे भ' सकैत अछि।

              कथाकारक मनोलोक कें बुझबाक चेष्टा करी तं लिबिडो के जं ओ विरोध करै छथि तं आखिर समर्थन कथीक करै छथि? लिबिडो तं, फ्रायडक अनुसार, तते प्रबल ऊर्जा छैक जे ओकर विरोध करबाक कोनो अर्थे नहि बनैत अछि। सुरुहे मे कहने रही जे फ्रायड दूटा स्थिति बतौने रहथि--सप्रेशन आ सब्लिमेशन, जाहि मे लिबिडो परिवर्तित भ' सकैत अछि। सब्लिमेशन तं तते ऊंच बात भेलै जे तकर कल्पनो एतय अनर्गल होयत। तखन तं सप्रेशन, काम-ऊर्जाक दमन। स्त्री कें भूत लगतैक, ओकरा पर देवी सवार हेतै, ओ हिस्टीरियाग्रस्त होयत, बताहि होयत, ओ आत्महत्या करत। जं से नहि तं बेर-बेर बलात्कारक शिकार बनैत रहत। मिथिलाक संस्कृति पवित्र अछि। एतय ई सब चलि सकैत अछि, मुदा मुक्ति मे जेना ललित देखौलनि, से नहि भ' सकैत अछि। राजकमल तं साफ लिखलनि अछि जे मुक्ति पढ़ि क' ओ तते आवेग मे आबि गेला जे वैदेहीक अंक(जाहि मे मुक्ति छपल छल) हुनका हाथ सं छूटि नीचां सिमटी पर खसि पड़ल। ई आम मैथिल संभ्रान्त संस्कृतिक आग्रह छल जकर राजकमल प्रतिनिधित्व क' रहल छला।

              लिली रेक कथा 'रंगीन परदा' एहि दुनू कथा सं सर्वथा भिन्न अछि। ई मैथिली कथाक इतिहास मे, स्त्री-विमर्श पर सुस्पष्ट रूप सं लिखल पहिल कथा छल। स्त्रीक दृष्टि ओकर अपन दृष्टि होइत छैक जे सदति पुरुष-दृष्टिक पिछलगुए बनि क' चलय तकर गारंटी नहि रहैत छैक। ओकर अपन व्यक्तित्व होइछ आ से कतेको बेर पितृसत्ता सं टकराइत छैक। स्त्रीक देह ओकर अप्पन संपति छिऐक, ओहि पर पुरुषक दावेदारी सदा सं संभ्रान्त संस्कृति मानैत आयल अछि। स्त्री चाहय तं एहि दावेदारी कें चकनाचूर क' सकैत अछि। स्त्रीक संसार जे होइत छैक से पुरुषक संसार सं भिन्न होइत छैक। हमर एक कविता मे ई पंक्ति अबैत छैक-- 'स्त्रीक एक दुनिया ओकरा भीतर/ एक दुनिया ओकरा बाहर/ भीतर किसिम-किसिम के फूल फुलबाड़ी/ बाहर एक-एक डेग संकट सं भारी।' ई स्त्रीक कंडीशनिंग पर निर्भर करैत छैक जे एहि दुनू दुनियाक बीच संतुलन बना क' ओ कोना चलैत अछि। 'रंगीन परदा' मे एहि सब कथू कें हमरा लोकनि ठाम-ठाम रूपायित भेल देखि सकै छी।

              'रंगीन परदा' मे स्त्री-अनुभूतिक जे प्रामाणिकता छैक से आन कथा सं एकरा अलग करैत अछि। निपट किशोरावस्था मे जे पुरुष मालती कें संसार मे सर्वश्रेष्ठ लागल रहैक से मोहनजी छला। प्रेम ककरा कहैत छैक, तकर मालती कें किछु नहि पता, मुदा मोहनजीक सामने आबितहि सुधि-बुधि हेरा जाइन, जखन कि हुनकर विवाह आन वर संग तय भ' गेल छलनि। मोहनजी बेचारे कें सेहो ई कन्या तहिना मन मोहने। पहिल बेर जे चुंबन लेने छलनि, तकर वर्णन देखल जाय-- 'मालती कठपुतरी जकां ओही दिस देख' लगलीह। पूर्ण प्रस्फुटित कमलक फूल। हृदय-पराग उभरि आयल छलैक--भरल मधु सं लबालब। ओकर प्रत्येक पुष्पक पत्र-दल जेना कोनो सैनिक, रक्ताभ श्वेत वस्त्र मे मधु कें भ्रमर सं बचेबा लेल प्रस्तुत रहैक। चतुर भ्रमर उपरहि सं ओहि मे पैसि गेल।... वैह देखू भ्रमर! जनैत छी, भ्रमर कमल पर किएक आयल अछि?... मालती मूक भेल नकारात्मक भाव सं मूड़ी झुलौलनि।... किएक तं कमल सुन्दर छैक--अहीं जकां।... ई कहैत-कहैत मोहनजी मालतीक अधर पर अपन अधर राखि देलनि। मालतीक सौंसे देह झनझना उठलनि। जड़ता नष्ट भ' गेलनि आ ई नवीन चेतना सं हुनक सर्वांग कांपि उठल। ओ एक झटका मे मोहनजी सं अपन हाथ छोड़ा हवेली दिस भगलीह।'

              मनोभावक सूक्ष्मतापूर्वक अवलोकन आ तकरा तरह-तरहें व्यक्त करबाक कला तं एतय स्पष्टे अछि। संगहि मोहनजीक प्रगल्भता आ मालतीक पवित्रकुमारि-जन्य यौन-अबोधता सेहो स्पष्ट अछि। ओहि दिन जखन मोहनजी कहने रहनि जे अहां हमरा सं बियाह क' लिअ' आ एतहि रहि जाउ, तं एहि बातक की जवाब भ' सकैए, कोनो जवाब भैयो सकैत अछि कि नहि, मालतीक समझ मे किछु नहि आयल छलनि। 

              मोहनजी सामंत घरक राजकुमार थिका आ मालती एक गरीब भलमानुसक बेटी, जकर कौलिक सम्बन्ध तं जरूर एहि राजपरिवार मे छैक, मुदा सुंदरता आ उठैत यौवन छोड़ि क' मालती लग आरो किछुओ नहि छैक जे बराबरीक बात सोचल जा सकय। मिथिलाक सामंत लोकनि केहन होइ छला, से एहि कथा मे सगरो देखि सकै छी। ओ भ्रमर होइ छथि जिनका नव-नव कमल-पुष्प बराबर चाहियनि। मोहनजी कें भला कोन कमी कमल-पुष्पक? मुदा, एहि कन्या मे किछु एहन वस्तु छैक जे जनम अवधि ओ एकर आकर्षण सं मुक्त नहि भ' पबैत छथि।

              बरसो बरस बादक बात थिक जे मालती विवाह तं कहिया ने भेलनि, आब हुनकर बेटी बारह बरखक भ' गेलि अछि आ पति ओकर विवाह लेल चिंतित रहय लगला अछि। एम्हर मोहनजीक पत्नी मरि जाइत छनि। एखन हुनकर उमेर तीस बरख छनि। सौन्दर्यक नव-नव आमद होइत रहय तकरा लेल पत्नी सभक मरैत रहब सेहो सामंत-परिवार लेल एकटा जरूरी चीज होइत रहैक। आब होइत ई छैक जे पत्नीक मृत्युक छबे मासक भीतर मोहनजीक नव विवाहक चर्चा अछि आ मालतीक पति पूरा जप-तप सं जोर लगौने छथि जे हुनकर बेटी मोहिनी संग मोहनजीक विवाह भ' जाइन। एहना स्थिति मे मालती की करै छथि। हुनका आंखिक आगू जेना पूरा भविष्य नाचि जाइत छनि।

              ओ अपन असम्मति व्यक्त करै छथि-- 'हमरा बुझैत मोहिनी ओइ वर लेल बड़ बच्चा छथिन।' मुदा नहि। पति लग हुनकर एक नहि चललनि। लिली रे कहैत छथि जे अपन सम्पूर्ण वैवाहिक जीवन मे ई प्रथमे अवसर छल जखन मालती अपन पतिक मत कें काटबाक प्रयास कयने रहथि। स्त्री-मनक इहो एक यथार्थ थिक जे बिसरल अध्याय कें ओ बिसरले रहय देबाक प्रयास करैत अछि। मोहनजीक स्थिति ओम्हर ई अछि जे केवल आ केवल मालती लेल, मालतीक संग यौन-सुखक लेल ओ ई विवाह करब गछैत छथि।

              एखने हम कहने रही जे स्त्रीक दूटा दुनिया होइत छैक। जखन पतिक आगू मालतीक एक नहि चललनि, मालतीक दुनिया बदल' लगैत छनि। लिली रेक कथा-भाषा देखी-- '...फुलबाड़ीक सुखायल दूबि मे जेना फेर सं प्राण आबि गेल हो। पोखरिक जल मे नहुं-नहुं कंपन होब' लगलैक। पादप झूमि उठल जेना अपन अंग मे भास्करक भय सं नुकायल लता कें झकझोरैत कहैत हो-- उठ, आब फेर समर्थ हो, फेर फुलाह आ फेर परिमल बिखारह। मेघ आबि गेलैक अछि। मेघक संकेत पबितहिं पिंजड़ा मे बंद मयूर नाचि उठल। पानि मे हंस कलरव करय लागल। हवा अपन ऊष्णता त्यागि शीतल भ' गेल। आकाशमंडल पर मंद-मंद मेघ छापि रहल छलैक आ ओकर स्वागतक हेतु समस्त वन पुलक भरि झूमि रहल छल।' 

             एतय लिली रेक लाजवाब प्रतीकात्मक भाषा छनि। सब सं कमाल अछि ई देखब जे वैध यौन-सम्बन्ध आ अवैध यौन-सम्बन्धक एतय कोनो ओझरी नहि छैक। ओझरी की, चिंतना तक नहि छैक जे कोनो सम्बन्ध कदाचित अवैधो भ' सकैत अछि! जी हं, स्त्रीक दुनियाक यथार्थ यैह छिऐक। स्त्री एही तरहें सोचैत अछि। 'अवैध सम्बन्ध' नामक अवधारणा पितृसत्ताक अवदान थिक।

             एहि कथा मे हत्या होइत अछि। सेहो कोनो आनक नहि, स्वयं मालतीक पति के। कथाक आरंभे एहि घटना सं भेलैक अछि। मुदा, गौर करी तं पायब जे हत्या असल मे मोहनजीक हेबाक छलनि। महाकान्त(मालतीक पति) तेना क' हुनकर नरेठी चांपि देने रहनि जे आंखि तं उनटिये गेल रहनि, किछु सेकंड मे आब प्राणान्ते टा होयब बांकी छल। मुदा, ठीक ओही काल मे ओहिठाम मालती पहुंचली आ ई भीषण दृश्य देखि क' ओ कुहरि उठली--आह। महाकान्तक ध्यान मालती दिस चलि गेलनि, हाथक पकड़ ढील भेलनि, आ एतबे मे मोहनजी हुनकर नरेठी धेलनि आ प्राणान्त। कहल जा सकैत अछि जे पितृसत्ताक न्यायानुसार ई अधिकार महाकान्त कें छलनि, मुदा मालतीक कुहरब पितृसत्ताक स्पष्ट खिलाफ अछि, आ तते प्रभावी जे परिणाम कें उनटा देबा धरि मे समर्थ अछि। ई स्त्री-मनक न्याय-प्रक्रिया, निर्णय-प्रक्रिया थिक, जकर धार आगू हमरा लोकनि स्वयं मोहनोजीक ऊपर चलैत देखैत छी।

             पुरुष, स्त्रीक मन मोहबाक, लगातार मोहने रखबाक अनेक कला जनैत अछि। इहो पितृसत्तेक देन थिक। मुदा स्त्री जे कोनो पुरुषक प्रति अनुरक्त होइ अछि, आ अनुरक्त बनल रहैत अछि, एहि मे प्रधान भूमिका पुरुषक मोहन-कलाक नहि होइछ। प्रधान भूमिका स्वयं स्त्रीक निर्णय-प्रक्रियाक रहैत अछि। वैध-अवैधक सीमा के पार, कोन पुरुषक संग स्त्री कें यौन-सम्बन्ध बना क' रखबाक छैक, ई निर्णय स्त्रीक हाथ मे रहैत अछि। तें अहां देखबै, एहि कथाक अंत मे जखन मालतीक आंखि परहक रंगीन परदा हटैत अछि, ओ मोहनजी कें कोन तरहें नकारि दैत छथि। ने हुनका आब पाइ चाही ने  रुतबा, मिथ्या पुरुषत्वक आश्रय सेहो नहि। ओ ओहि आदमीक भीतरक लंपट कें चीन्हि गेली अछि। चिन्हबा मे देरी भेलनि, मुदा चीन्हि लेलाक बाद निर्णय लेबा मे नहि। मोहिनी मालतीक सब सं जेठे टा नहि, सब सं प्रिय संतान सेहो रहनि। मोहनजी सन खेलाड़ लोकक पत्नीक मरैत रहब जरूरी तें मोहिनी सेहो एक दिन मरि गेली। मरबा काल अपन माय मालती लेल ओकर अंतिम अस्फुट शब्द रहैक--पतित। एहि शब्द सं मालती कांपि उठली मुदा मोहनजी लेल धनि सन। आब ओ अगिला विवाह करता, मुदा मालती कें नहि छोड़थिन, छेकि क' रखने रहता। 

             असली समस्या एतहि छैक। पुरुष अपने नहि ठमकय चाहैत अछि मुदा उमेद करैत अछि जे स्त्री ओकरा लेल ठमकल रहती। ऊपर जे हम कविता-पंक्ति उद्धृत कयने रही, ओहि कविता मे आगू ई पांती अबैत छैक-- 'हौ बाबू जोगीलाल, तोरा जकां एक दुनियां नै हेतै ओकर/ जे ओकरा ले' ठमकि क' चलत, से हेतै ओकर।' मोहनजी मालतीक नहि भ' सकैत छथि। ओ कोन्नहु स्त्रीक नहि भ' सकैत छथि। प्रेमक महान ऊर्जा सं बसल ई पृथ्वी प्रेमक अभव मे आइ नरक भेल अछि। एहि मे पुरुषजातिक प्रधान भूमिका छैक, ई कथा से कहैत अछि। 

             मोहनजीक पसारल रंगीन परदाक फांस सं जखन मालती बहरेली, अपन चारू-पांचो संतान सभक प्रति एहि पछिला तमाम वर्षक भीतर जे हुनकर बदलल मनोवृत्ति रहलनि, तकरा बारे मे लिली रे लिखैत छथि-- 'मालती कें भान भेलनि जे जहिया सं मोहिनीक विवाह भेल छलनि, तहिये सं ओ कहियो एहि प्रकारें बिल्टू कें दुलार नहि कयने होथि। यद्यपि हुनकर व्यवहार मे कहियो कोनो परिवर्तन नहि आयल छलनि, तथापि भीतर मे जेना ओ सब सं दूर भ' गेल होथि। अपन सब सं प्रिय संतान मोहिनी सं तं सब सं अधिक। ओ बिल्टू कें आओर सटा लेलथिन, हृदय मे जेना किछु बरकि रहल छलनि आ से आंखिक मार्गें बाहर भेल जाइत छलनि। बरकैत-बरकैत जेना सब किछु बाहर भ' गेलनि। कनैत-कनैत आंखि बहरा गेलनि। मुदा हृदय मे एक प्रकारक हल्लुकपना व्याप्त भ' गेलनि जेना बहुत दिनक जमा कादो बहरा गेल होइन।' 

             एक हिसाबें देखी तं तथ्य आ सामर्थ्य मे भिन्न-भिन्न होइतो एहि तीनू कथा मे समानता छैक जे तीनू स्त्रीक आंखि पर टांगल रंगीन परदाक कथा थिक। एकटाक परदा तुरन्ते हटि जाइत छैक। दोसरक छव मास मे हटैत छैक। तेसर कें अनेक वर्ष लागि जाइछ आ अनेक घटनावलीक झंझावात सं गुजरय पड़ैत छैक। मुदा असल बात ई थिक जे परदा हटलाक बाद तीनू स्त्री पहुंचैत कतय अछि? पितृसत्तेक शरणागत होइछ कि ओकर दुनियो किछु बदलैत छैक? आत्मदीप्त स्त्रीक आगमन हमसब जतय होइत देखैत छी से कथा लिली रेक छनि।

             'रंगीन परदा' वैदेहीक कथाविशेषांक 1956 मे छपल छल। एहि कथा कें मैथिली मे लिखि सकबाक साहस आ प्रेरणा लिली रे कें 'पारो' सं भेटल हेतनि, से तं स्पष्ट होइत अछि मुदा स्वयं संभ्रान्त परिवारक हेबाक कारण वा एहि कारणें जे एकर कथानक ओ निकट सम्बन्धी लोकनिक जीवन-प्रसंग सं लेने हेती, एकरा ओ छद्मनाम सं प्रकाशित करौलनि। आगू लिली रेक कथा-कलाक बहुत विकास भेलनि, तकर साक्ष्य हुनकर रचनावली थिक। मुदा दू कारण सं हुनकर एहि आरंभिके कथाक अत्यधिक महत्व, आधुनिक कथा-साहित्यक इतिहास मे अछि। एक तं हुनकर वातावरण-निर्माण, जे लघु गातक परंपरित मैथिली कथा लेल एक नव बात छल। दोसर, यथार्थवादी कथा-भाषा, जकर विकासक श्रेय तं आम तौर पर ललित कें देल जाइत रहलनि अछि, मुदा एकर आरंभ कर' वाली लेखिका लिली रे छली।

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