की मैथिली ब्राह्मणक भाषा छी?
तारानंद वियोगी
कोनो भाषा ककर होइ छै, तकरा बुझबाक दूटा पैमाना भ' सकैत अछि। एक जे ओ कोन समूह छै जकर जीवनक समूचा अभिव्यक्तिक माध्यम वैह टा भाषा छै। मने ओइ भाषा कें छोड़ि क' दोसर भाषा बाजब ओकरा नै अबै छै। दोसर भाषा बाजै बला लोकक भाव भने संगतिवश ओ बूझियो जाय मुदा जखन उतारा देत तं अपने भाषा मे। एखनो गामघर मे हमसब एहन घनेरो लोक कें देखि सकै छियै, जखन कि कटु वास्तविकता ई अछि जे आइ समुच्चा मिथिला द्विभाषी(मैथिली आ हिन्दी) समुदाय मे परिणत भ' चुकल अछि।
अइ पैमानाक आधार पर देखी तं मैथिली कोनो एक जातिक भाषा भइये नै सकैत अछि। भाषा नामक वस्तु कोनो एक जातिक अथवा एक धर्मक वा एक संप्रदायक किन्नहु नै भ' सकैत अछि। आइ काल्हिक विद्वानक बात तं छोड़ू, चौदहम शताब्दीक हमर महाकवि विद्यापतियो अइ सत्य सं वाकिफ रहथि जे भाषा कोनो जाति, धर्म, संप्रदाय सं बहुत ऊपरक वस्तु होइत अछि। मनुष्य सं मनुष्य कें जोड़बाक जे ताकत भाषा मे छै से जाति-धर्म-संप्रदाय मे नै भ' सकैत अछि। ई सत्य थिक मुदा सत्य कें देखबाक आंखि सब कें होइते हो, से कोनो युग मे नै रहल अछि। आजुक समय मे तं सत्यक जे दुर्दशा छै से सब गोटे देखिये रहल छी।
तें, मैथिली ब्राह्मणक भाषा छी, ई बात सिरे सं गलत अछि। अइ कथन मे सत्यक लवलेशो मात्रा नै छै।
दोसर पैमानाक बात करी। कोनो भाषा ककर छी, एकर निर्णय के आधार ई भ' सकैत अछि जे कोन समूहक धर्मक भाषा, धार्मिक अनुष्ठानक भाषा मैथिली छी। धर्मे किऐ? अइ दुआरे जे मनुष्य जकरा पवित्रतम बुझैत अछि तकरे अपन धार्मिक कृत्य संग जोड़ैत अछि। अपन समाज बीच देखू तं पता लागत जे बहुतो एहन जाति मिथिला मे बसैत अछि जकर धर्मक भाषा मैथिली छियै। अहां कोनो यादव के ओतय आयोजित धर्मराज-पूजा मे शामिल होउ। देखबै जे भजन आ मंत्र तं मैथिली मे रहिते छै, जखन भगताक भाव मे साक्षात धर्मराज वा कि कोनो आन देवता प्रकट होइ छथिन तं ओ देवता सेहो मैथिलिये बजैत छथिन। तहिना अहां डोम के ओतय देखियौ, मुसहर के ओतय देखियौ, धार्मिक कृत्य सहित हिनका लोकनिक देवता समेत के भाषा अहां कें मैथिली भेटत। अइ पैमानाक मोताबिक तं मैथिली हिनके सभक भाषा छी। अइ पैमानाक मोताबिक तं मैथिली आर भने कोन्नो जाति के भाषा हुअय, ई ब्राह्मणक भाषा नै छी, कारण ब्राह्मण लोकनि के धार्मिक कृत्यक भाषा तं आइयो संस्कृत छियनि।
मुदा, सत्य एते सपाट हो सेहो बात नै अछि। आइ हम सब ब्राह्मणो लोकनि के घर मे गोसाउनिक पीड़ी पुजाइत देखै छी। ई पीड़ी की छी? ई छी चैत्य। सुदूर इतिहास मे जा क' देखब तं पता लागत जे विदेहक आर्य लोकनि चैत्यपूजक नै छला। वैशालीक लिच्छवि लोकनि चैत्यपूजक रहथि जे बुद्धक समर्थक छला। मिथिलाक पचपनिया समाज चैत्यपूजक छला जे सेहो बुद्धक समर्थक रहथि। पचपनिया लोकनिक घर मे जं पीड़ी(चैत्य) होइ छै तं से बुझबा योग्य होइत अछि। मुदा, ब्राह्मण लोकनिक घर मे पीड़ी कोना होइत छनि? महापंडित लोकनि कें जं एकर रहस्य पुछबनि तं 'लोकाचार' के नाम लेता। कते आश्चर्यक बात छी जे अखिल भारत मे धर्मतत्वक निर्णायक मिथिला के अपन घरे मे 'लोकाचार' शास्त्राचार कें पराजित क' देने अछि। आइये नै, शताब्दियो सं। असल मे कट्टरपंथ आ उदारवादक उठा-पटक सब युग मे सदा सं चलैत आयल अछि। पंडित जी अपने तं संस्कृत कें गसिया क' धयनहि रहला मुदा पंडिताइन अपन घर अपना जूति सं चलबय लगली। लिच्छवि आ विदेहक परंपरा मिलि क' एक भ' गेल। ब्राह्मणक घर मे धर्मराज पूजित भेला, जे एक निर्गुण देवता थिका आ जिनकर पूजापद्धति बौद्ध लोकनिक पूजापद्धतिक जीवित अवशेष छियनि। आब धर्मराजक पूजाविधान तं मैथिलिये मे हो। चौदह देवान मे एक मीरा साहेब छथिन, ओ मुसलमान छथि, मुदा हमरा-अहांक घर मे ओ शताब्दियो सं पूजित छथि। हुनकर गाथाक भाषा मैथिली अछि। मैथिल संस्कृति कें अइ तरहें देखबाक चाही।
दोसर दिस, मैथिली भाषा मे लिखित प्राचीनतम साहित्य जे उपलब्ध अछि से ब्राह्मणेतर वर्गक शूद्र, अतिशूद्र, महाशूद्र लोकनिक रचना छियनि। स्वयं महाकवि विद्यापति जाहि प्रकारक भाखा-रचना कें अपन आदर्श बनौलनि, से मूलत: शूद्र लोकनिक आविष्कार रहनि। ब्राह्मण लोकनि तं भाखा-रचना सं घृणा करै छला आ अइ दुआरे विद्यापतियो सं घृणे करैत रहथि, हुनकर उपेक्षा करैत रहला। आइ जे हमरा लोकनि विद्यापतिक एते चला-चलती देखै छी, मोन रखबाक चाही जे से अही डेढ़ सौ बरसक देन थिक।
अइ सब तरहें तं ई कथन बेबुनियाद ठहरैत अछि जे मैथिली ब्राह्मणक भाषा थिक। मुदा, तखन प्रश्न ई अछि जे ई बात बेर-बेर उठैत किए अछि? की एकरा पाछू कोनो इतिहास अछि? जी हं, इतिहास अछि आ से बहुत शर्मिन्दगी भरल इतिहास अछि।
बीसम शताब्दीक पहिल दशक बिहार मे जातीय अस्मिताक उदयक समय छल। हमरा जेना कि मोन पड़ैत अछि, मैथिल महासभाक स्थापनाक आगुए पाछू गोप महासभाक स्थापना भेल छल। गोपे महासभा जकां मैथिल महासभा सेहो पूर्णत: एक जातीय संगठन छल। तखन एकर नाम ब्राह्मण महासभा किए ने भेलै? ब्राह्मण महासभा अलग सं एक स्वतंत्र संस्था छल। कायस्थ महासभा सेहो जखन अलग सं छल, आ इहो मोन रखबाक चाही जे तहिया कायस्थक गणना शूद्र वर्ण मे होइत छल। एहना मे कोनो जातीय महासभा दू गैरबराबर जाति कें शामिल क' क' जखन नै बनल छल तं एहन अजीबोगरीब संगठन मैथिले महासभा किए भेल जकर सदस्यताक लेल केवल आ केवल मैथिल ब्राह्मण आ कर्णकायस्थ योग्य मानल गेला? एहि पाछू जे राजनीति छल से स्पष्टत: राजभक्त लोकनिक कवच तैयार करब छल। दरभंगा राजक शोषणकारी व्यवस्था जगजाहिर अछि, आ स्वयं महाराजे एहि संस्थाक निर्माण करेने छला, वैह सर्वेसर्वा रहथि। इतिहास कहैत अछि जे 'मैथिल' शब्द अही ठाम अपन मिथिला-बोध सं भटकि गेल। असल मे कहल जाय तं अपन शोषणकारी सत्ता कें अनामति रखबाक हेतु समर्थक तैयार करबाक लेल एकरा पूरा रणनीतिपूर्वक मिथिला-बोध सं भटका देल गेलै।
अइ संपूर्ण घटनाक्रम मे सब सं दुर्भाग्यपूर्ण ई भेल जे मैथिल महासभा 'अप्पन' भाषाक रूप मे मैथिली कें जोड़ि लेलक। मिथिला मे बसनिहार सब जातिक भाषा मैथिली छल, मुदा आब ई केवल दू जातिक भाषा बनय जा रहल छल। हमरा लोकनि कें आभारी हेबाक चाही गोप महासभाक ओहि महामना पूर्वज लोकनिक प्रति, जे लिखित रूप मे तहिया(1910 मे) ई घोषणा केलनि जे मैथिली तं हमरो अभक भाषा छी। आ, अही बात कें आधार बना क' ओ लोकनि दावा केलनि जे मैथिली जें कि हुनको सभक भाषा छियनि तें हुनको लोकनि कें मैथिल मानल जाय आ मैथिल महासभाक सदस्यता देल जाय। घृणा आ अवज्ञापूर्वक मैथिल महासभा अइ मांग कें अस्वीकार केलक। एकरे प्रतिक्रिया मे गोप सभा संगठित भेल छल आ लिखित घोषणा कयल गेल जे मैथिली हुनका सभक भाषा नै छियनि। जाधरि राजतंत्र आबाद रहल, तकर बादो कैक बरस धरि मैथिल महासभा जिंदा रहल। ओकर प्राय: हरेक अधिवेशन मे क्यो ने क्यो उदारवादी पंडित ई प्रस्ताव राखैत रहला जे मिथिला मे बसनिहार सब जाति कें मैथिल मानि लेल जाय, हुनकर भाषा मैथिली कबूल क' लेल जाय, मुदा नहि। मैथिल महासभा मरि जायब पसंद केलक मुदा ककरो आन के दावेदारी गछब स्वीकार नै केलक। मैथिली राजाक भाषा भ' क' रहि गेल, प्रजाक भाषा नहि बनि सकल। मैथिली शोषकक भाषा बनल, शोषितक नै। मैथिली राजभक्ति आ जी-हजूरीक भाषा बनल, संघर्ष आ विरोधक नहि। जं आगू चलि क' मैथिली साहित्य मे ई सब युगीन गुण पैदा क' क' एकर सामर्थ्य-वृद्धिक प्रयास कयलो गेल तं राजसंस्कारित मठाधीश लोकनिक द्वारा एहन प्रयास सब कें हतोत्साह कयल गेल, ओकर उपेक्षा कयल गेल।
अहां कहि सकै छी जे अइ इतिहासक चर्चा करब बेमतलब के गाड़ल मुरदा कें उखाड़ब थिक। मुदा दुर्भाग्य सं अहांक ई कहब सही नै भ' सकत। एखन हाले (बस पछिला मास) मे हम सब देखने छी जे मैथिली अखबार मे दरभंगा राजक शोषणकारी व्यवस्थाक चर्चा भेला पर कोना 'मैथिल' भाइ लोकनि के खून खौलि उठल रहल रहनि। देश भने आजाद हो, संविधान भने लागू हो, मुदा 'मैथिल' लोकनि के आदर्श आइयो दरभंगे महराज छथिन। हुनकर शोषण पर लिखबाक हो तं अहां अंग्रेजी मे जा क' लिखू, हिन्दी मे जा क' लिखू, मुदा क्यो जल मे रहि क' मगर सं बैर करता, से चलै बला नहि अछि। आब कहू जे मैथिली ककर भाषा छी?
सही बात छै जे दरभंगा नरेश ब्राह्मण रहथि, ब्राह्मणक उपकारार्थ बहुतो काज केलनि, ओ हुनका लोकनिक माथक मुकुट छथिन, हुनका लोकनिक शाश्वत स्मृति मे खचित छथिन। मुदा, बात अइ ठाम ब्राह्मणक नै, मैथिलीक भ' रहल अछि। हुनका लोकनिक शाश्वत स्मृति मे जं महराज खचित छथिन, तं की अहां सोचै छी जे यादव लोकनि कें, पचपनिया लोकनि कें कोनो स्मृति नै होइ छै? ओइ घृणा आ अवज्ञा कें ओ लोकनि बिसरि जेता आ अहांक स्मृति बला जयजयकार सबतरि निर्द्वन्द्व पसरि जायत? ताहू मे अइ स्थिति मे जखन कि बोलचाल मे मैथिली हुनके छियनि, धार्मिक कृत्य मे मैथिली हुनके छियनि, साहित्य-रचनाक आदि प्रेरणा हुनके पूर्वजक देन छियनि।
मैथिली ब्राह्मणक भाषा छी, ई बात स्वयं ब्राह्मण लोकनि स्थापित केने छला। हुनकर उत्तराधिकारी लोकनि अपन रचना सं, अपन विचार सं, अपन निर्णय आ रणनीति सं, अपन वर्चस्व आ मनमानापन सं साबित करैत रहला अछि जे कि आइयो यथावत जारी अछि। यैह बिहार विधान सभा थिक जतय कहियो स्व. बी. पी. मंडल बाजल छला जे 'मैथिली हमारी माता नहीं, विमाता है।' विमाता सेहो तं अंतत: माते होइ छै। मुदा,ओ दोसर युग रहै। आइ समय बदलि चुकल अछि। संस्कार आ सुविधा दुनू परिवर्तित भ' गेल अछि। तें, अइ तरहक बात जं कतहु सुनी जे मैथिली ब्राह्मणक भाषा छी तं हमरा लोकनि कें आत्मावलोकन आ आत्मालोचन करबाक चाही, ई नै जे एकरा 'सुनियोजित षड्यंत्र' कहि क' अपना वर्गक छुद्र मनोवृत्ति बला ठिकेदार 'विद्वान' सभक मनमानी कें नैतिक समर्थन प्रदान करय लागी। अइ मुद्दा पर नितान्त होश मे आबि क' सोचबाक बेगरता छै।
(मिथिला आवाज, पाक्षिक सं साभार)
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