अक्ष पर नचैत जीवकान्त, जेना पृथ्वी
तारानंद वियोगी
ई किताब (अक्ष पर नचैत, लेखक केदार कानन) एक अद्भुत कृति थिक। ई संस्मरणक किताब छी, किएक तं एहि मे पुरान समयक घटनावलीक स्मरण छैक, जाहि मे कवि केदार काननक अपन जीवन, परिवेश आ पर्यावरणक पूरा सुगन्धि सेहो पसरल छै। मुदा ई किताब पत्र-साहित्य सेहो छी कारण एकर लिखल जेबाक मूल आधार मैथिलीक एक महान लेखक जीवकान्तक पत्र थिक। मुदा जखन हम एहि किताबक संरचना आ महत्व पर चैन सं सोचै छी तं स्पष्ट लगैत अछि जे ई मैथिली साहित्यक सृजनात्मक इतिहास के एकटा खंड थिक जकर विषयवस्तु बीसम सदीक आठम आ नवम दशक छै।
मैथिली साहित्यक इतिहास सब जे एखन धरि लिखल गेल अछि से कोना संकीर्णता सं ग्रस्त, एकभग्गू, बकनायल अछि, आ ज्ञान देबाक बदला ज्ञानप्राप्ति कें कठिन बनबैत अछि, ताहि पर राजमोहन झा सं ल' क' विश्वेश्वर मिश्र धरि लिखि गेल छथि आ अन्यत्र हमहू लिखने छी। मोन पड़ैत अछि, राज मोहन झा बारंबार ई आशा करथि जे मैथिलीक वास्तविक इतिहास नवतुरिया लोकनि लिखता। मुदा से कोना लिखता, आ ओ केहन होयत एकर कोनो स्पष्ट स्वरूप किनसाइते किनको लग मे हेतनि। एहि किताब कें देखने ओ बात हमरा मोन पड़ि गेल अछि आ लागल अछि जे ओ इतिहास एहने हेतै। ताहि पर सं एकर खास विशेषता छै जे मैथिली साहित्य मे जं अहांक रुचि आ उत्सुकता हो तं एहि किताब कें एक सीटिंग मे शुरू क' क' समाप्त क' सकै छी, तते पठनीयता सं ई महमह करैत अछि।
किताबक नाम देलनि अछि--अक्ष पर नचैत। ई शब्दावली जीवकान्तक लेल प्रयोग कयल गेल एक यथार्थ कथन छी। अक्ष पर पृथ्वी नचैत अछि। पृथ्वी कें चैन नहि छै, ने स्वार्थ। सर्वसहा आ अनंत धैर्यक प्रतीक तं ओकरा कहले जाइत अछि। ई सब गुण जीवकान्त मे छलनि। लक्ष्य रहनि मैथिली साहित्यक चतुर्दिक विकास, जेना पृथ्वीक लक्ष्य अपन नाचब सं अपना कें जीवनक वासयोग्य बना क' राखब थिक। मैथिली मे यात्री आ राजकमलक बाद जीवकान्त प्राय: पहिल लेखक भेला जे अपन लेखन सं पूर्ववर्ती-समवर्ती लोकनि कें सर्वाधिक असुविधा मे दैत रहला मुदा अपन बादक पीढ़ीक लेल सर्वाधिक उपयोगी प्रेरणाकेन्द्र बनल रहला। तें जीवकान्तक निधनक बाद हुनका पर केन्द्रित एक सं एक सुंदर आ पठनीय किताब हम सब छपैत देखि रहल छी। संस्मरणकृतिक सुंदरता केवल लेखकक क्षमताक परिचायक नहि होइत अछि, चरितनायक के जीवन मे कतेक सुंदरता आ स्पृहनीयता छै, तकरो पर निर्भर करैत अछि। तें एहि किताब कें केदार आ जीवकान्त, दुनू गोटेक जीवनसौन्दर्यक उद्घाटक कृति कहल जेबाक चाही।
किताब शुरू होइत छैक 1975क एकटा प्रसंग सं, जे केदारक तरुणाइ मे पहिल बेर कविताक प्रवेश कतय आ कोना भेल। हमसब देखैत छी जे एहि घटनाक लगले बाद हुनका जीवन मे जीवकान्तक प्रवेश भ' जाइत छनि। आ, किताबक समापन होइत अछि 1991क सितंबर मे लिखल जीवकान्तक एकटा पत्र सं।अर्थात 1975-91क समय थिक जे अपन भिन्न-भिन्न रूप आ तेवरक संग एहि किताब मे आयल अछि। जीवकान्तक निधन 2013 मे भेलनि, मुदा ताहि सं दस बरस पहिनहि 2003 मे केदार ई पुस्तक लिखि चुकल रहथि। एतय धरि जे एकर पांडुलिपिक अवलोकन जीवकान्त अपनहु कयने छलाह। तखन ओ जे अपन टिप्पणी केदार कें पठौने रहथिन, सैह एहि किताबक ब्लर्ब पर छापल गेल अछि। जीवकान्त लिखलनि-- 'एकटा नदी अछि। ओ बहैत अछि। गीत गबैत अछि। ओकर गीत सुनबा लेल कान चाही। से कान जकरा सुनत, से सुनत। यमुनाक एक हजार नाम छनि। एकटा नाम छनि-- नदी। तकर अर्थ छैक जे नाद करैत होअय, कदाचित गीत गबैत होअय। अहांक एहि रचना मे से गीत अछि। से एकरा पठनीय आ स्वागत-योग्य बनबैत अछि।'
जीवकान्त मैथिलीक एक विराट लेखक छला, मुदा समुच्चा समय मैथिली साहित्य मे हुनकर विरोधे होइत रहलनि। कारण आर किछु नहि, बस एतबे जे ओ एक निधोख लेखक छला आ अपन प्रतीति कें, अपन विचार कें निर्द्वन्द्व रूपें लिखि जाइत रहथि। प्रतिदिन नियमित रूप सं लेखन केनिहार लेखक मैथिली मे नहिंयेक बराबर, जं क्यो हेबो करथि तं हुनका सब मे जीवकान्त सर्वोपरि। एहि कारण सं ओ अनेक-अनेक विधा मे लेखन केलनि। सब सं मारुख होइत छलनि हुनकर टिप्पणी जे कि ओ पांच सौक करीब लिखने हेता मुदा जकर कोनो संग्रह एखनो धरि नहि प्रकाशित भेल अछि। आशा करैत छी, 'जीवकान्त रचनावली' सं ई सब वस्तु फेर सं देखार पड़त। पत्र लिखबा मे तं जीवकान्तक क्यो जोड़े नहि छला। पत्रलेखन सेहो हुनका लेल साहित्यलेखने सन पवित्र आ सृजनात्मक काज छलनि। एहि पत्र सब कें पढ़ू तं पता लगैत अछि, अपन एहि मातृभाषा मैथिली मे केहन-केहन सदाशय ऋषि लोकनि काज क' चुकला अछि।
कल्पना करू एकटा एहन समयक जखन मैथिली साहित्यक परिदृश्य मे हरिमोहन झा मौजूद रहथि, यात्री जीक सक्रियता अपन चरम पर छल, सुमन जी, मधुप जी, किरण जी, अमर जी, सब गोटे अपन सर्वोत्तम द' चुकलाक बादो रचनाशील रहथि। धूमकेतु, राजमोहन झा, प्रभास कुमार चौधरी, जीवकान्त, गंगेश गुंजन, उदयचंद्र झा विनोद सर्वोत्कृष्ट लिखबाक प्रक्रम मे नित नवीन तरहें सक्रिय छला। 'मिथिला मिहिर' साप्ताहिक छपैत छल आ ओकर प्रत्येक अंक एक उत्सुकता, एक विचारोत्तेजनाक संग पाठकक हाथ मे अबैत छल। एकर श्रेय छलनि संपादकीय टीम कें जाहि मे मैथिलीक दू प्रमुख रचनाकार सुधांशु शेखर चौधरी आ भीमनाथ झा छला। बादक पीढ़ी जाहि मे महाप्रकाश, सुभाष चन्द्र यादव, सुकान्त सोम आदि छला, नव यथार्थ संगें सक्रिय रहथि। एहने मे एक नव पीढ़ीक आगमन भेल रहैक, जकरा 'नवतुरिया पीढ़ी' कहल गेल रहय। विभूति आनंद-केदार काननक संयोजकत्व मे 1982 मे, राजधानी पटना मे नवतुरिया लेखक सम्मेलन भेल छलैक। केहन अद्भुत समय छल ओ! केदारक लेखनीक विलक्षणता छनि जे ओहि समुच्चा कालखंड कें अपन किताब मे ओ मूर्तिमान क' देलनि अछि। किताब अछि तं जीवकान्तक विषय मे, मुदा एहि मे मैथिली-साहित्यक तमाम इतिहास-भूगोल, आर्थिकी आ सामाजिकी आबि गेल अछि, कारण जीवकान्त एहि समस्त चीज सं गहमागट्ट जुड़ल छला।
संस्मरण आ आत्मकथा तं बहुतो गोटे लिखने छथि। मुदा, ओकरा बहन्ने मैथिली साहित्यक इतिहास के ओ कालखंड मूर्तिमान भ' उठल हो, एहन कम्मे भेल अछि। कहबे केलहुं जे एहन कृतिक सफलता एहि बात पर निर्भर करैत छैक जे चरितनायकक जीवन मे सौन्दर्य कतेक छैक! आशा करैत छी, नव पीढ़ीक संग-संग पुरानो लोकक लेल ई किताब उत्प्रेरकक काज करत। (प्रकाशक अंतिका प्रकाशन, दिल्ली। किताब अमेजन पर उपलब्ध अछि।)
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