तारानंद वियोगी
मिथिलाक किछु गनल-गुथल परिवार अछि जतय साहित्य आ कविता विरासत आ धरोहर जकां बरकरार अछि आ प्राय: सब पीढ़ी मे पढ़निहार-लिखनिहार लोक अबैत रहल छथि। रोमिशाक परिवार सेहो एहने एक सारस्वत परिवार थिक। कविताक दरस-परस नेनपने सं हुनका जीवन मे शामिल रहलनि। औपचारिक रूप सं कविता लिखब जकरा कहल जाय, से ओ बहुत देरी सं शुरू केलनि। मुदा, साइत एहने मामला लेल ई कहबी बनल होइ जे देर आयद दुरुस्त आयद, रोमिशाक कविता एकदम साफ साफ, गंहीर संवेद्यता सं भरल, विचारशील, बिंब आ वर्णन दुनूक सधल संतुलन सं भरल पाठकक हृदय मे उतरि जाइत अछि। हम जखन हुनकर आरंभिक कविता पढ़ि रहल छलहुं तखनहु हमरा लेल ई विश्वास करब कठिन छल जे ई कोनो नवतुरिया कविक रचना थिक।
रोमिशाक कविता पढ़ब जेना अपने जिनगीक आरपार देखब होइक, ओ अधिकतर गंहीर हार्दिकता मे पाठक कें उतारि दै छथि। ओहुना जीवन कें सतह परक घटना सभक भरोसें सही सही नहि बुझल जा सकैत अछि। सतह परक घटना बेसी सं बेसी एकटा तथ्य भ' सकैत अछि मुदा, 'जीवन' नहि जानि, एहन एहन कतेको रास तथ्य सब सं बनैत छैक। इहो जं कहब जे जीवन मात्र तथ्य थिक, सेहो नहि। तखन इंगित कें कतय राखबैक? आ काकु कें? आ कि कल्पनाशीलता कें? वा एहने एहन हजारो टा चीज कें, जे हमरा रोमिशाक कविता सब मे भेटैत अछि। जखन अपन कविता मे ओ कहैत छथि जे हम सब कोनो मृतात्माक बौक गीत सुनैत जिबैत छी, अथवा कहैत छथि जे घरक देबाल सब ठाढ़ रहैत रहैत अगुता गेल अछि, तं बुझनिहार बुझि सकैत छथि जे सभ्यताक आगू ओ केहन भारी महाप्रश्न ठाढ़ करैत छथि।
हुनक प्रधान विषय छियनि जीवन, जकरा अधिकतर ओ स्त्रीक कोण सं देखैत छथि। हुनक स्त्री सौंसे सभ्यताक पता राखैवाली जागरूक स्त्री थिकी। यात्री जी कहल करथि जे नव कविक असली परीक्षा ओकर साहस सं होइत छैक। कारण, पढ़ि गुनि क' समर्थ भेला पर अपन सबटा कमी तं ओ दूर क' लेत, मुदा साहस कतय सं आनत? रोमिशा जे प्रश्न सब अपन कविता मे ठाढ़ करैत छथि ततय धरि कोनो युवा कवि प्रबल साहसिकताक बिना कखनहुं नहि पहुंचि सकैत अछि। हमरा पक्का भरोस अछि जे हुनकर कविता मैथिल स्त्रीविमर्श कें एकटा नब मोड़ पर पहुंचाओत।
मैथिली मे मुक्तछंद प्रकृतिक कविताक चलन आब पचासो बर्ख सं ऊपर भेल। एतबा दिन मे ई आधुनिक शैली मैथिली मे पूरेपूरी घरबारी भ' चुकल अछि। अनेक कवि मैथिली कविताक कहन-शैली कें एहि कविताक बाना मे उतारि दमदार प्रयोग क' चुकल छथि। प्रयोग दमदार वैह जकरा पाठक स्वीकार करय। हमरा ई कहैत खुशी अछि जे मैथिली कविताक एहि नवीन उपलब्धि कें रोमिशा सेहो नीक जकां आत्मसात कयने छथि। पाठक कें चाही संप्रेषणीयता, जाहि सं कविक कहल बात ठीकमठीक ओकरा हृदय धरि उतरि जाय। एहि मामला मे हम रोमिशा कें पूरा सफल देखै छी जे जे बात हुनका कहबाक रहैत छनि से बहुत साफ साफ, बिना एको रती लटपटेने कि बामदहीन कयने कहि जाइत छथि। ई आत्मविश्वास कविक बड़ पैघ बल होइत छैक। कतेक बेर ओ विचार सं अपन बात शुरू करै छथि आ ओकरा बुद्धिमानीक संग कविता मे रूपान्तरित क' लैत छथि। किछु ठाम वर्णन सं तं कतहु बिंब सं शुरू करैत शब्द सभ मे डबडब कविता भरि दैत छथि। कहब जरूरी नहि जे एना क' पाएब तखनहिटा संभव जं कवि अपन अपन कथ्यक संग पूरा मानसिक साहचर्य बनौने हो आ से ओकर अनुभूति मे पूरा घुलि मिलि गेल हो। हुनकर बहुतो रास कविता सब एतय हमरा मोन पड़ैत अछि जे कि हमरा नीक लागल अछि आ हमर विश्वास अछि जे मैथिली कविताक हरेक साकांक्ष पाठक कें ई नीक लगतनि।
रोमिशाक पहिल कविता-संग्रह आबि रहल छनि। एक यादगार अवसर थिक ई, रोमिशाक लेल आ मैथिली कविताक लेल सेहो। हमर बधाइ।
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