Tuesday, January 5, 2021

कोसीक जलप्रान्तर मे हेल-डूब


 ।।कोसीक जलप्रान्तर मे हेल-डूब।।


         तारानंद वियोगी


            पंकज पराशरक उपन्यास 'जलप्रांतर' ओहि किताब सभक बीच एकटा यादगार प्रकाशन थिक जे पछिला तीन-चारि साल के भीतर कोशी आ ओकर परिसरक बारे मे छपल अछि। उपन्यास एकटा गामक बारे मे अछि। ई गाम कोशी कातक एकटा गाम, यथा महिषी थिक। आस-पड़ोस के बहुतो गाम--बनगांव, चैनपुर, पड़री, बरियाही आदि आदि अपन सही-सही पृष्ठभूमिक संग आएल अछि। मुदा, बात ततबे नहि छैक। गाम अपन बहुत व्यापक विस्तार मे अछि। से भूगोल आ इतिहास दुनू मे।विषय जे छैक कोशी बान्हक निर्माण सं ल' क' ओकर परिणाम धरि, से जं एक दिस तीन सौ सं ऊपर रिवर-साइड के आ ताहि सं कतहु कैक गुना बेसी कंट्री-साइडक गामक नियति कें दूर धरि प्रभावित करै छै। एक। दोसर, आजादी बादक भारतक जे विकास-माडल रहलैक, तकर दूरगामी फलाफल कोना देशक जन कें प्रभावित-संतापित केलक, ताहि ईश्यू के अध्ययन एहि ठाम देखल जा सकैत अछि। तें गाम कोन अछि वा तकर नाम की थिक, एकर एतय कोनो खास महत्व नहि छैक। ततबे छैक जेना कि स्वयं पंकज एहि उपन्यास मे एक ठाम लिखने छथि--'कोनो गाम दिस सं जं कोसी जाइत अछि तं कोन-कोन तबाही मचबैत अछि, तकर मादे वैह कहि सकैत अछि जे ओहि दारुण स्थिति कें भोगने हुअए।' तें एतय गाम ओ सब आएल छैक जाहि सं पंकज जुड़ल छथि।


                     उपन्यास मे एकटा पढ़ुआ कका छथि। हुनकर मौअति कोशीक एही बन्हटुट्टा जलप्रलय मे होइत छैक। पढ़ुआ ककाक की नाम छलनि से कतहु नहि आएल अछि। ई साभिप्राय थिक आ एहि अवतरण के औपन्यासिक दृष्टि चकित करैत अछि। जं हुनका सही सही चिन्हबाक कोशिश करी तं हम सब चीन्हि सकै छी जे ओ भारतक महान स्वाधीनता आन्दोलनक, देश लेल सोचनिहार ज्वलित देसी मेधाक प्रतीक छथि। संपन्न घरक पढ़ुआ कका अपना जबाना मे इलाहाबाद रहै छला। ओ आजादीक निर्णायक युद्धक समय छल। गांधी जी हुनका व्यक्तिगत रूपें जनैत छलखिन, नेहरूक संग ओ राजनीति मे सक्रिय छला। इलाहावाद यूनिवर्सिटी मे डा. अमरनाथ झा हुनकर गुरु रहथिन। बी. ए. आ एम. ए. मे प्रथम स्थान पौने छला आ गुरु हुनका वि. वि. मे अध्यापक बहाल बहाल केने रहनि। सब छोड़ि छाड़ि क' ओ आजादीक संघर्ष मे सक्रिय रहला। देशक आजादीक बाद कांग्रेसक राजनीति जे पाटि पकड़लक, से सब देखि पढ़ुआ कका सक्रिय राजनीति सं चुपचाप एकात भ' गेला। ओ देखलनि जे 'जे लोकनि सैंतालिस सं पूर्व अंग्रेजी सत्ता के विरोध मे छला, शोषण आ अन्याय के प्रतिरोध करैत छला, सैह सब सत्ता पाबि क' मदोन्मत्त हाथी जकां अपन पयर तर मे देश कें रगड़ि रहल छथि। एहि देशक गरीब लोक सं किनको दरेग नहि।' विपक्षक राजनीति करथि से हुनका सं पार नहि लगलनि। पचासो बरस सं आब ओ कोसी कातक अपन गाम मे रहैत छथि, आ 'द हिन्दू', 'नेशनल हेराल्ड' आ 'हिन्दुस्तान टाइम्स' मे कोसी इलाका पर लेख आदि लिखैत छथि। 'विलेज डायरी' नाम सं हुनक किताब अंतर्राष्ट्रीय महत्वक प्रकाशक सब छपैत अछि। हुनका कोशीक जाबन्तो इतिहास बूझल छनि। हुनका  आंखिक सामने नेहरूक आजाद सरकार कोशी कें बान्हलक अछि, जकर खतरा कें देखैत गुलामीक दिन मे पराया सरकारो से करबाक हिम्मत नहि जुटा सकल छल। उपन्यासक एक पात्र कहैत छैक--'अंग्रेज सब कें कोसीक स्वभाव बूझल छलनि। एहि इलाका के भौगोलिक संरचना सं अवगत छला। बान्हक नफा-नोकसान के अनुमान रहनि, तें ओ सब बान्ह बनेबाक निर्णय कें टारैत रहला।' एहना ठाम तं ओ बुझू अंगरेज सरकार आ देशी सरकार, जकरा ओ कैक ठाम 'रंगरेज सरकार' के उपाधि प्रदान केलनि अछि, दुनू के पूरा गोत्र-विश्लेषण क' क' राखि देलनि अछि। एकटा प्रसंग बरियाही कोठीक छै जतय सीनियर विलियम राबर्ट जान कें कहने रहथि--'कोसीक पानिक रंग बदलैत रहैत अछि। लोक चाहय तं पानिक रंग के विश्लेषण सं एहि नदीक स्वभाव कें जानि सकैए। पानिक रंग सं एहि बातक भविष्यवाणी क' सकैए जे आगां ई नदी कोन रूप धारण करय जा रहल अछि।' दोसर दिस, विधान सभा मे लहटन चौधरी हिसाब देने रहथिन जे 'कोसी बान्ह के दू-तीन माइल धरि के क्षेत्र कें बेनीफिटेड मानल जा सकैए', जखन कि सहरसाक कलक्टरक रिपोर्ट रहैक जे 'बान्ह के बाहरक तीन किलोमीटरक एरिया जलजमावक कारण खेतीक लेल अनुपयुक्त भ' गेल अछि।' एहि सब तरहक खुलाखेल अन्हरमारि के अनेक संदर्भ एहि ठाम आएल छैक। उपन्यासक अंत मे होइ छै जे बान्ह टुटै छै आ कोशीक संग जीवन मरण के रिश्तेदारी निमाहै बला पढुआ कका ओहि जलप्रलय मे मारल जाइत अछि।


                 पंकजक ई उपन्यास सूचना सब सं लबालब भरल अछि। किछु बेसिये जे कतोक बेर छिलकि धरि जाइत अछि। मुदा, एक पाठकक रूप मे ई हमर समस्या भ' सकैत अछि। पंकज असल मे एहिना करय चाहला अछि। उपन्यास मे एकटा प्रसंग अबैत अछि जे 'नेशनल हेराल्ड' मे छपल पढुआ ककाक कोनो लेख, निश्चिते ओहो कोशियेक बारे मे छल, प्रधानमंत्री नेहरू पढ़ने छला आ हुनका चिट्ठी लिखने रहथिन जे 'अहांक लेख बहुत सूचनात्मक होइत अछि'। से प्राय: पंकजक उपन्यासकारक स्वभावे छनि। कतोक ठाम हुनक वस्तुनिष्ठ आलोचक हुनकर उपन्यास पर चढल देखाइत अछि।


।।दू।।


उपन्यासक मूल कथा मुदा, एक गरीब, कहू कि दरिद्रछिम्मड़ि ब्राह्मण परिवारक कथा थिक। परिवारक मुखिया बीसो झा आ हुनकर किशोरी बेटी अनमना कुमारी के कथा मुख्य रूप सं एलैक अछि। बीसो झा किए गरीब छथि, एतय धरि जे अपने गाम-समाजक पचपनियां परिवारो सं बेसी दुर्गत किए छथि, तकर पूरा रामकहानी उपन्यास मे एलैक अछि। क्यो ब्राह्मण भ' क' मजदूरी कोना क' सकैए, अथवा हर कोना जोति सकैत अछि, बीसो झा ताहि सामाजिक पृष्ठभूमिक लोक छथि। मिथ्याचार सं परिपूरित जीवनचर्या छनि। उदार नहि छथि। तकरा बदला कही कि अव्वल दरजाक कृपण छथि। पूर्वी तटबंधक जखन माटि भराइ हुअय लगलै, नीक दर पर मजदूरी रहैक, काजक कमी नहि रहै। तं आने किछु ब्राह्मण जकां ओहो मटिकट्टी मे मजदूरी करय जाइत छथि। ताहि लेल भिनसरबा राति मे बहराइ छथि आ दिनदेखार होइत होइत घर घुरि अबैत छथि जाहि सं इज्जति बचल रहय। ई फराक बात जे गाम मे आएल कोनो परिवर्तन नुकाएल नहि रहैत छैक। यैह बीसो झा बान्हक विरोध मे उकबा उठला पर जखन विरोधो मे आगुए आगू रहै छथि, तं एही गामक वाशिंदा मनसुख सदा हुनकर मिथ्याचार पर चुटकी लैत छनि--'अहां बान्ह के मटिकट्टी मे एतेक टाका हंसोथलियै, तैयो टनटन बोलै छियै बीसो बाबू! जेनही देखै छियै दही, तेनही कहै छियै सही?'

               मुदा, ओतय महत्वपूर्ण इहो अछि जे मटिकट्टी मे जे हुनकर काउन्टरपार्ट छनि, से हुनकर बेटी अनमना थिकी। ओ माटि काटने जाइ छथि आ बेटी छिट्टा उठा क' फेकने जाइत अछि। ओहि ठाम तं इहो बात आएल छैक जे मालजाल जे ओ पोसने छथि, तकर चरबाही सेहो हुनकर यैह बेटी करैत छनि।

            अनमना बड़ काजुल आ सब गुनक आगर। मुदा, अभावग्रस्त बीसो झा अपन एहू बेटी के बियाह ओहिना टाका ल' क' करय चाहै छथि जेना जेठकी के केने छला। बनगांव मे ताधरि, मने 55-57 धरि वैवाहिक सभा जारी छल। तकर वर्णन उपन्यास मे आएल अछि। एक साल हुसितो अगिला साल ओ रामपुरक कुटूम सं पांच सौ गनेबा मे सफल रहै छथि। एहि सं हम सब अवगत होइ छी जे मैथिल जातिक हृदयहीनता, नारीक प्रति, कोना गंहीर उपभोक्ता-मनोविज्ञान तक स्वभावतया व्याप्त छल;  एहि तमाम तथ्यक बावजूद जे ओ किशोरी कोन हद धरि एहि बीसो बाबूक कुलखान्दान लेल उपकारी अस्तित्व रखै छलि।

            कथाक एक भिन्न पाठ रामपुर गामक छै, जतय अनमनाक बियाह होइत अछि। ओहो कंट्री साइड के एक गाम थिक जे कोसीक हहारो सं बराबर के पीड़ित अछि। अनमनाक भाग्ये एकरा कहल जेतै जे ओ अपने सन श्रमशील पति पबैत अछि जे भविष्यक जीवनगति कें सम्हारि लैत छैक आ आगू ल' चलैत छैक। अनमनाक दियादनीक सेहो ओतय एक चरित्र आएल छैक जे विध्वंसक तं नितान्त अछि, मुदा मिथिला समाजक लेल अपरिचित किन्नहु नहि अछि। पंकजक अध्ययन कें पकड़ि क' कही तं एहि सब मे 'जाति' सेहो एकटा पैघ फैक्टर छैक। अर्थात कुलीनता। महादेव झा पांजिक तं एकाध ठाम ओ नामो लेलनि अछि। संकेत छैक जे जे जते पैघ कुलीन अछि से ततबे बेसी असामाजिक अछि, विध्वंसक अछि।

            उपन्यास मे चीनयुद्धक संदर्भ आएल छैक। ओहि मे रामपुरक एक बेटाक लगभग शहादतक जिक्र छैक। आ नेहरूक निधनक समाचार सेहो, एकर जनप्रभावक संग। ई सब अवान्तर प्रसंग जा जा क' नेहरूक विकास माडल सं भिड़ंत लैत छैक आ एहि जलप्रान्तर के कलहन्त कें आरो सघन करैत छैक। अनमनाक पति सदाशिव झा कटैया बिजलीघर के निर्माण मे जा क' अनस्किल्ड लेबरक काज करैत अछि, आ रोजगारक सुरक्षा अपन एहि गुणक कारणें प्राप्त क' लैत अछि जे असगरे ओ चारि लेबरक बराबर कर्मठता सं लैस अछि। एहनो कर्मठ लोक कें विवाह लेल पांच सौ टाका गनय पड़ल छल, ताहि सं हम सब बूझि सकै छी जे एखन हालसाल धरि कुलीनताक तुलना मे एतय कर्मठता कते तुच्छ छल।

            प्रसंगवश आरो कतेक रास बात सब जहां तहां आएल छै। ओही ठाम कटैयाक परदेसी मजदूर समाजक बीच हम सब देखै छी जे मैथिल लोक आ भोजपुरिया लोक मे की फरक छै। मैथिल अपन मैथिलीभाषी समाज मे जातीय उच्चताक बल पर तं जरूर शेर होइत छथि मुदा अनतय सामाजिकताक संस्कार-बल पर दोसरे लोक सब आगू रहैत एला अछि। से एहू ठाम अप्रतिभ सदाशिव कें भोजपुरिये लोकनि आगू बढ़बाक बाट देलकनि अछि, जखन कि 'अप्पन मैथिल भाइ' गाछ चढ़ा क' छव मारलकनि, मने अनभुआर सदाशिव कें सहरसा स्टेशन पर बजा क' अपने गुम भ' गेला।

            उपन्यासक एक पात्र फूल बाबू छथि जिनका बोरिस पास्तरनाक के उपन्यासक अनुवाद करैत देखाओल गेल अछि। ओ राजकमल चौधरी भ' सकैत छथि। तहिना एक पात्र पंडित गंगाधर झा छथिन, जिनका सत्यनारायण कथा बांचैत देखाओल गेल गेल अछि। आरो एहन अनेक लोक छथि। ई लोकनि महिषीक ऐतिहासिक व्यक्ति सब छथिन, मुदा हिनका लोकनिक चरित्र जगजगार भ' क' उपन्यास मे अपन अभिज्ञान कायम क' सकय ताहि मे पंकजक उत्साह नहि रहलनि अछि। कदाचित तकर आवश्यकतो नहि छल। बस एतबे बुझाएब पर्याप्त अछि जे पढ़ल-लिखल, पंकजक शब्द मे कही तं 'चेतार' लोकनिक ई विपन्न गाम थिक।


।।तीन।।


जलप्रांतर' मे भने कोसीक सांस्कृतिक पक्ष, जेना कोसीगीत आ अनेको अनेक मिथक नहि आएल हो, मुदा कोसी पर नियंत्रणक लेल कयल गेल मानवीय प्रयासक जाबन्तो इतिहास एहि मे आबि गेल अछि। फिरोज शाह तुगलकक सेना कोना कोसी कें पार क' क' पहिल बेर एहि दिसका भूभाग कें आक्रान्त केने छल, कोना लक्षमणसेन कि हरिसिंहदेव एकरा बन्हबाक पहिल संकल्प मे जोश सं भरि क डेग उठौने छला, कोसीक अध्येता लोकनि, बुकानन-फर्गुसन सं ल' क' भूपेन्द्रनारायण मंडल आ परमेश्वर कुमर धरि अलग अलग समय पर कोन अपन अपन निष्कर्ष पर पहुंचल छला, कोना नेहरू सरकार जखन एकरा बन्हबाक शासनपूर्वक आयास केलक तं कोन कोन लोकक की सब आकलन छलनि, बान्ह बनि क' तैयार भेलाक बाद जखन पहिल पहिल बेर परिणाम सामने आएल छल तं कोना बान्हक संगहि विकासक मिथक टूटल आ तखन कोना सशस्त्र बल एहि लोकक मुंह बंद केलक---बहुतो रास बात छैक जकरा काल्हि जखन क्यो जानय चाहता तं हुनका पंकजक एहि उपन्यास धरि पहुंचय पड़त।

             पंकजक लग मे तमाम तरहक ऐतिहासिक तथ्य सब छनि आ तकरा ओ बहुत आत्मविश्वासपूर्वक एहि ठाम प्रस्तुत केलनि अछि। हुनक आत्मविश्वास कें देखैत तथ्यक विश्वसनीयताक प्रश्न कतहु पृष्ठभूमि मे ससरि जाइत छैक। यद्यपि कि औपन्यासिक कृति हेबाक कारण उपन्यासकार कें  तथ्यात्मकताक मामला मे छूट पेबाक अधिकार बनैत छनि मुदा पंकजक आत्मविश्वास एहि छूट सं नासकार जाइत देखाइत छथि। ओ अपना पर जिम्मेवारी लेबाक हद धरि विश्वस्त भाषाक प्रयोग करैत देखल जाइत छथि। लंबा लंबा ऐतिहासिक प्रसंग सब वृत्तान्तक रूप मे परस्पर वार्तालापक क्रम मे आएल अछि, जकर औपन्यासिक औचित्यक जस्टीफिकेशन मे पंकजक कहब छनि जे हुनकर कैकटा पात्र 'लेक्चर बड़ दैत अछि।'


।।चारि।।


हम पहिनहु कतहु कहने छी जे मैथिली उपन्यास अपन महान इतिहास हेबाक बादो पछिला किछु समय सं पतनशीलताक दौर सं गुजरि रहल अछि। रहस्य, रोमांच, कैरियरिज्म, अध्यात्म आदिक महिमामंडन करैत, लोकोपयोगिता आ लोकप्रियताक नाम पर आत्मदंभक महागाथा लिखि क' पाइक बलें ओकरा प्रकाशित भने बारंबार करबैत चलल जाय, हमरा सभ कें नहि बिसरबाक चाही जे उपन्यासक यदि सामाजिक सरोकार नहि छैक तं ओ रचना सुच्चासुच्ची एक आत्मरति थिक। एहना मे एहि किताबक प्रकाशन निश्चिते एक उल्लेखनीय प्रसंग थिक। मिथिलाक संग कयल गेल सरकारी वंचनाक सब सं भीषण उदाहरण कोसी बान्ह थिक आ तकर पृष्ठभूमि एहि उपन्यासक विषय बनल छैक, ई निश्चिते पंकजक कृति कें एक आरंभिक सफलताक द्योतक थिक।

           तखन छै जे उपन्यासकलाक दृष्टि सं एकरा अवश्ये एक पछुआएल कृति मानल जाएत। एहि उपन्यासक रचनाकार अपन शिल्प मे जाहि ठाम छथि तकर तुलना साइत कोनो पछुआएले उपन्यास संग कयल जा सकय, जखन कि सामाजिक सरोकारक प्रश्न पर ई कतहु बेस आगूक वस्तु थिक। विषयक बारे मे बहुत रास तथ्य हुनका बूझल छनि, तकरा पठनीय बनेबाक लेल ओ एक कथा परिपाटी विकसित क' लेलनि अछि आ बहुत कौशल संग तथ्य कें कृति रूप मे परिणत केलनि अछि। फल भेल अछि जे मार्मिकता सं भरल सूचना तं उपन्यास मे खूब छैक मुदा स्वयं मार्मिकताक अभाव अछि, कारण जीवन जीबाक एतय सूचना अछि स्वयं जीवन कें जीयल जाइत नहि चित्रित कयल जा सकल अछि। एकर पता स्वयं उपन्यासकारो कें छनि आ ओ अपन सीमा कें गछितो छथि। कहै छथि--'कथाकारक लेल आवश्यक अछि जे ओ अपन कथाक पात्र सं नीक जकां परिचित होथि। हम जतेक परिचित होइत छी, ततेक कथाक कोसी-धार मे हेल-डूब कर' लगैत छी।' अथवा ई जे 'हम कवि छी, कथाकार नहि।' मुदा, जतबा ई जीवन आएल अछि, उदाहरण लेल अनमना आ सदाशिवक प्रसंग सब मे, से अविस्मरणीय बनि पड़ल अछि। एहि रचना कें मोन राखल जेबाक लेल इहो कोनो कम नहि छैक।

           तखन इहो बात छै जे पंकज अपन ई उपन्यास लगैए, अनेक दवाबक बीच लंबा समय लगा क' लिखलनि अछि आ एकर संपादन मे जतेक परिश्रम करबाक चाहिऐक सेहो नहि क' सकला अछि। तकर फल भेल अछि जे अनेक बात, दृष्टान्त, बिंब, एतय धरि जे शब्दावली आ कहबी धरि बेवजह के दोहराओल गेल अछि। एकरो उदाहरण कैक ठाम छै जे जे बात वाचक पहिने कहि चुकल रहैत छैक, ठीक वैह बात पात्रक मुंहे फेर सं दोहराओल जाइत छैक। कहि सकै छी जे ई दोहराव बातक वजन पर जोर देबा लेल कयल गेल हो, मुदा ताहि लेल जे औपन्यासिक रचाव हेबाक चाही, तकर हम सब एतय अभाव देखै छियनि।

         असल मे, एहि उपन्यासक असली ताकत कोसी कें उपन्यासक रूप मे रचबा मे नहि, ओकरा एक जरूरी ईश्यू बना क' आगामी पीढीक सामने पेश करबा मे छै। व्यक्ति-रूप मे स्वयं एक कोसी-पुत्र हेबाक नातें एहि काज कें जेना ओ अपन एक कर्तव्य बुझलनि अछि। भूमिका, जे किताबक बीच मे आएल छैक, मे ओ कहै छथि--'दू लाख जनसंख्याक चारि लाख हाथ ऊपर दिस घिचबाक याचना करैत देखार पड़ैत अछि। अपन जन्मो सं पहिने जा क' हम हुनका सभक हाथ पकड़ि लेबय चाहैत छी। हुनका सभक नोर अपन गमछी सं पोछि देब' चाहैत छी, मुदा समय के सरकार हमर ठोंठ मोकि दैत अछि।'

               से, हमरो लगैत अछि जे अपन रचना-भूमिक प्रति ई हुनक ऐतिहासिक दाय छलनि जकरा निश्चिते एहि रचनाक संग एक यादगार रूप ओ द' सकला अछि।


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