तारानंद वियोगी
बीसम शताब्दीक मिथिला मे किछु गनल-गुथल एहन लेखक भेलाह जे मातृभाषा मैथिली टा मे लिखितहु विश्व-स्तरक साहित्य-निर्माण क' सकलाह। एहने एक लेखक धूमकेतु(1932-2000) रहथि। हुनकर अविस्मरणीय ख्याति कथाकारक रूप मे छनि। हुनक निधनक बाद हुनकर एक महागाथात्मक उपन्यास 'मोड़ पर' नवंबर 2000 मे प्रकाशित भेल, मुदा ताधरि ओ अपने एहि संसार सं विदा भ' चुकल छलाह। एहि तरहें, हुनकर उपन्यासकारक रूप सं मैथिली पाठकक परिचय हुनकर निधनक बादे भ' सकलै। ओना, केदार काननक आग्रह पर 'सन्निपात' नामक उपन्यास 1998 सं ओ लिखब शुरू कयने छलाह। हुनका जिबैत जी एकर एकेटा अंश 'भारती मंडन' अंक चारि मे 1998 मे प्रकाशित भ' सकल रहनि। दोसर किश्त अंक सात मे जा जा प्रकाशित होइतनि, ओ विदा भ' चुकल छलाह। कुल मिला क' एकर ओ पांच अध्याय लिखि सकल रहथि। एखन धरि लोक हुनकर एही दुनू उपन्यास कें जनैत अछि।
हाल मे हुनकर तेसर उपन्यास 'सरहद' हुनकर पुरान डायरी मे लिखल भेटल अछि। इहो एक अपूर्ण उपन्यास थिक। 1989 इस्वीक डायरी मे एकरा ओ डिक्टेट क' क' लिखेने छला। जेना कि हुनकर पाठक अवगत छथिन, अनेको वर्ष सं धूमकेतु अपने लिखबा मे असुविधा महसूस करथि आ डिक्टेशन लेबाक काज हुनकर ज्येष्ठ पुत्री स्वर्णा सम्हारैत छली। मार्च सं जून 1989 मासक कुल उनचालीस गोट डायरी-पेज मे ई उपन्यास लिखल भेटल अछि। मुदा, ई डायरिये टा 1989क थिक। एकर लेखन ओ बहुत बाद मे आबि क' कयलनि अछि, एहि सम्बन्ध मे एकटा सुस्पष्ट साक्ष्य अछि। वर्ष 1998-99 मे 'संधान'-संपादक कथाकार अशोकक द्वारा लेल गेल एक इन्टरव्यू मे, ई पुछला पर जे 'एहि बीच मे की सभ अहां पढि-लिखि रहल छी?', धूमकेतु उतारा देने छलखिन-- 'एकटा नेपाली जनजीवनक औपन्यासिक प्रयास मे लागल छी। रचबोक स्कोप तं अपना मातृभाषा मे कम्मे सम छै, आ कि नहि, भाइ?' हुनकर ई इन्टरव्यू संधान-4 मे 2000 ई. मे छपल, जाहि साल हुनकर निधन भेलनि।
'सरहद' अर्थात सिमान। मने कि भारत-नेपालक सिमान। नोमेन्स लैंड, जकरा धूमकेतु 'चालीसगज्जा' कहैत छथि, के अइ पार एकटा सभ्यता छैक जे ओइ पार धरि बहुत दूर तक पसरल छै, तें स्वाभाविक जे लोक-समाजक स्मृति मे 'पायाक अइ पार, ओइ पार' के कोनो खास महत्व नहि छैक, राजनीति मे भने होअओ। ओइ पारक जे सभ्यता छै जकरा सामान्यत: मधेसी कहल जाइत छैक, एकरा धूमकेतु मोगलानी कहैत छथि जे कि एकर परंपरागत प्राचीन नाम थिक। बहुत आगां जा क' एकटा आर सभ्यता शुरू होइछ जकरा ओ किराती कहलनि अछि। ब्राह्मणधर्म संग पूर्णत: अनुकूलित सभ्यता मोगलक नाम पर मोगलानी किएक कहौलक आ इलाका मोगलान, तकर अलग वृत्तान्त भ' सकैत अछि। मुदा, मुख्य बात ई थिक जे दुनू सभ्यताक बीच धरती-अकासक अंतर छै। ततेक भिन्न जे देखने चकबिदोर लागत।
धूमकेतुक कथा-साहित्य सं जे क्यो अवगत छथि, नीक जकां जनै छथि जे हुनकर प्रिय कथा-विषय स्त्री-पुरुष-सम्बन्ध छलनि। एकर व्याप्ति ओ तते पैघ देखै छला जे जनु एही एक बिन्दु कें फरियौने जीव-जगतक बहुतो रास रहस्य खुलि सकैत रहय। वर्जित क्षेत्र मे जा जा क' ओ कथा-प्रयोग कयलनि। स्त्री-पुरुष-सम्बन्ध एहू उपन्यासक मूल वस्तु थिक। कुलीन आ संपन्न परिवार मे जनमलि शकुन मौसीक बियाह पन्द्रह बर्खक अवस्था मे एकटा प्रख्यात डाक्टरक संग भेल रहनि। बियाहक बादे ओ पतिक संग चलि गेल छली, जिनकर पोस्टिंग एक आदिवासी ग्रामीण अस्पताल मे छलनि। डाक्टर पत्नीक खूब ख्याल राखथि, मुदा ओ अपन मेडिकल रिसर्चक पाछू बेहाल छला आ शकुन अपना कें हुनका सामने अत्यन्त लघु, अत्यन्त तुच्छ अनुभव करथि। मनोवैज्ञानिक एकाकीपन सं घटनाक आरंभ भेल छल मुदा एकर परिणति बहुत पैघ, कदाचित भयावह भेल जे एक दिन शकुन डाक्टर कें छोड़ि क' ओइ नेपाली चपरासीक संग भागि गेली, जकर नियुक्ति डाक्टर साहेब हुनकर सेवा-टहल लेल कयने रहथि। ओहि कुलीन परिवार कें जे अपमान बोध भेल हेतनि तकर अनुमान कयल जा सकैत अछि। मुदा, समय सब सं पैघ चिकित्सक थिक। एहि घटना कें बारह बर्ख बीति गेलै आ शकुन मौसीक कुश-श्राद्ध क' देल गेलनि। सब क्यो हुनका नीक जकां बिसरि गेला।
मुदा, ई उपन्यासक कथावस्तु नहि थिक, मात्र एकर कथावस्तुक पृष्ठभूमि थिक। एहि उपन्यासक कथाभूमि नेपालक राजधानी काठमांडू थिक, जाहि मे दिलमाया, डम्मर आ नगीना राई एकर पात्र सब थिका, आ सहायक पात्र चन्द्रे दाइ(वा कि चन्द्रे भाइ) थिका जिनकर आवाजाही दुनू सभ्यता, मोगलानी आ किरातीक बीच छनि, कारण हुनका लोकनिक रोजगारे ताही तरहक छनि। ओ नेपालक सत्ताधारी राजनेता सभक पेशेवर दलाल थिका। चाहे कोनो पार्टीक सरकार हो, ने हुनकर धंधा मे मंदी अबै छनि ने ऐश मे कमी। हुनकर पुरान परिचय कथावाचकक संग छनि, जे कि काठमाडू मे प्रोफेसर नियुक्त भ' क' एलाह अछि। उपन्यास मे काठमांडूक इतिहास, संस्कृति, लोकाचार, स्थान आ लोक सभक तते मेंही डिटेल छैक जे निश्चिते आंखिक देखल तं जरूरे, सद्य: भोगल होयब सेहो संभाविते नहि, तर्कसंगतो लगैए।
नेपालक संग धूमकेतुक बहुत पुरान सम्बन्ध रहनि। अगस्त 1957 सं नवंबर 1973 धरि ओ जनकपुर मे अर्थशास्त्रक प्राध्यापक रहला आ एहि बीच रा. रा. ब. क्याम्पसक प्राचार्य सेहो भेलाह। हुनकर रचनाशीलताक ई स्वर्णकाल छलनि, अपन अधिकांश महत्वपूर्ण कथा ओ ओतहि लिखलनि आ अपन उपस्थिति सं जनकपुर कें सदा गुलजार कयने रहला। मुदा, आगू एहनो समय आएल जखन विचार सं मार्क्सवादी आ प्रवृत्ति सं नवाचारी धूमकेतु नेपाल सरकार कें असह्य भ' गेलखिन आ हुनका भारत घुरय पड़लनि। मुदा, थोड़बे दिन मे समय फेर बदलल आ 1980 मे हुनका त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू मे अर्थशास्त्रक एसोशिएट प्रोफेसरक पद पर नियुक्त क' लेल गेलनि। ई हुनकर दोसर नेपाल-प्रवास छल, मुदा जकर परिणाम नीक नहि रहल। काठमांडूक आबोहवा हुनका स्वास्थ्यक लेल सर्वथा विपरीत साबित भेलनि आ चारि वर्ष बितैत-बितैत ओ आस्टो-आर्थराइटिस रोग सं भयंकर प्रभावित भ' गेला। अन्तत: 1984 मे ओ फेर देश घुरि अयलाह। मुदा, नेपालक नेह जेना तखनहु कम नहि भेल होइक, 1997 मे, तेसर बेर फेर हुनका रा. रा. ब. क्याम्पस, जनकपुर मे सम्मानित विशिष्ट प्रोफेसर(मौद्रिक अर्थशास्त्र) मे नियुक्ति भेटलनि, जतय ओ जीवनक अंतिम समय धरि बनल रहला। हमरा लोकनि बूझि सकैत छी जे 'सरहद'क अनुभव हुनकर काठमांडू-प्रवास संग जुड़ल हेतनि, यद्यपि कि नेपालक गह-गह सं तं ओ सुरुहे सं परिचित छला। हमरा लोकनि बूझि सकैत छी जे एहि उपन्यासक यथार्थ सं हुनक टकराव दोसर नेपाल-प्रवासक अवधि मे भेल हेतनि। एकरा लिखलनि ओ बाद मे, जेना कि पहिनहि कहलहुं।
उपन्यास मे, होइत छैक एना जे एक दिन कथावाचक प्रोफेसर काठमांडूक असन चौक पर घुमय गेलाह अछि आ ओतय हठात हुनकर भेंट चन्द्रे दाइ(वा कि भाइ) सं भ' जाइत छनि। पुरान परिचित चन्द्रे बड़ पसन्न होइत हुनका अपना संग क' लैत छनि। संझुका पहर थिक जकरा बारे मे कहबी छैक जे सूर्य अस्त नेपाल मस्त। चन्द्रेक मस्तीक अड्डा 'भाउजो रेस्त्रां' थिक, जकर संचालिका थिकी दिलमाया। एही ठाम सं उपन्यास शुरू होइत छैक। दिलमाया कें देखितहि प्रोफेसर कें लगैत छनि जे अरे, ई तं शकुन मौसी थिकी। भारी उधेड़बुन मे ओ पड़ल रहैत छथि, नाना प्रकारक तर्क-वितर्क मे। तकर वर्णन सं उपन्यास भरल अछि। शकुन मौसी छली तं प्रोफेसरक मायक मामाक बेटी, मुदा बालविधवा हुनकर माइक संग हुनको प्रतिपाल हिनके कुलीनता-मर्यादित घर मे भेल भेल छलनि। दुनू संग-संग नेना सं जुआन भेल रहथि। उपन्यास मे प्रसंग आएल अछि जे नेनपन सं दुनू संग-संग खेलथि-धूपथि, मुदा जहिना कि शकुन मे कैशौर्यक चेन्ह सब प्रकट हुअय लागल छल, एहि खेलकूद सब पर प्रतिबन्ध लगा देल गेल छलैक। कुलीन घरक बालिकाक जाबन्तो शील-मर्यादा मे बान्हलि शकुन सब तरहें एक सुशीला कन्या रहथि। जखन कि ई दिलमाया किराती सभ्यता मे पूरे रंगलि, शराबखानाक संचालिका, खने खन घोंट-घोंट शराब सगरो दिन पिबैत रहयवाली, बड़का-बड़का मोंछबला सब कें अपन आंगुरक इशारा पर नचा सकबा मे दक्ष।
धूमकेतुक स्त्री-विमर्शक एकटा विशेषता छनि जे जाहि स्त्री संग पुरुषक शारीरिक वा भावनात्मक सम्बन्ध रहल होइक, बखत पड़ला पर पुरुष ओकर उपकारक लेल अपन सर्वस्व समर्पित क' सकैत अछि। 'मोड़ पर' मे हमरा लोकनि सदाशिव कें गुना लेल ई करैत देखि चुकल छी। एहि उपन्यासक जतबा अंश भेटल अछि, लगभग वैह स्थिति एतय शकुन मौसी लेल प्रोफेसरक छैक, जकर सम्बन्ध-सूत्र भावनात्मक छैक। प्रोफेसर एकठाम कहै छथि-- 'शकुन सं सम्बन्ध जे छल हो, मुदा भावनाक एक सम्बन्ध जरूर छल, जे लागल, हुनकर खोज अवश्य एकटा उपलब्धि होयत।' की शकुने दिलमाया थिकी, की क्यो आन थिक-- एकर पता लगाएब प्रोफेसरक जीवनक उद्देश्य भ' गेलैक अछि। रहस्य जल्दिये खुलि जाइत अछि जे वास्तव मे शकुने दिलमाया छली। ई बात साफ भेलाक बादो बहुत पैघ समस्या छैक जे ओ शीलवती कन्या कोना एहि सार्वजनिक स्त्री मे आबि क' रूपान्तरित भेली। उचिते छै जे एकर खिस्सा बड़की टाक हेतैक-- 'जीवन सरिपौं खिस्सो पिहानी सं बेसी अद्भुत होइत अछि।'। हमर अनुमान अछि जे एहि उपन्यासक जे योजना धूमकेतुक मोन मे रहल हेतनि, ताहि मोताबिक एकरा तीन सौ मुद्रित पृष्ठक लकधक हेबाक छल। ततबा पैघ एहि रूपान्तरणक खिस्सा अछि। ई ठीक-ठीक कहल नहि जा सकैए जे एकरा ओ पूरा किएक नहि क' सकला। एहि बारे मे ओ अपनहु कतहु कोनो चर्च नहि कयने छथि। कोनो छोटो कारण भ' सकैत अछि, जेना स्वास्थ्य संग नहि देब जेना कि हुनका संग होइतो रहलनि, इहो संभव जे हुनकर निधन भ' गेने ई उपन्यास अधूरा रहि गेल हो। मुदा कोनो पैघो कारण भ' सकैत अछि, जेना नगीना राई के व्यक्तित्व मे कोनो एहन छोटपना हुनका देखार पड़ि गेल होइन जकर तर्कसंगत निस्तार हुनका अंतोअंत धरि ताकने नहि भेटल छल होइन, आ ओ तते इमानदार लेखक छला जे मोनक ओझरी कें नुका क' किछु लिखि जाथि से हुनका बुते संभव नहि छल।। दोसर दिस छलि दिलमाया, जकरा लेल नगीना राई एतेक महान पुरुष छल जेहन कि क्यो आन भइये नहि सकैत छल। के छल नगीना राई? डाक्टर साहेबक वैह चपरासी, जकरा संग शकुन भागल छलि। आब ओ संसार मे नहि अछि। बहुत बीहड़ जीवन रहलैक ओकर। एक दिस जं ओ सरहद पारक जायज-नजायज व्यवसाय सं अकूत धन कमेलक, तं दोसर दिस अंगरेज सरकार आ ओकर पिट्ठू देशी साहेबक खिलाफ सशस्त्र संघर्षो कयलक, क्रान्तिक दौरान, जाहि मे कि ओ मारलो गेल। नगीनाक बारे मे जनबाक प्रोफेसरक कौतूहल पर दिलमायाक कहब छैक-- 'ओ व्यक्ति सोलह आना हमर छल। नगीना एखनो हमरा मोनक नगीना भेल आत्मा मे जड़ल अछि। बिसरि जैतय तं नीक। मुदा जे हमरे टा ल' क' अइ दुनियां मे रहल ओकरा बारे मे मुंह खोलनाइ की? बहुत निजी, बहुत आत्मीय सम्बन्धक व्याख्यान दुनियां कें सुनाएब की?' नगीना मरि गेल, मुदा दिलमाया विधवा नहि छथि। तेसर पति छथिन डम्मर श्रेष्ठ, नगीना राईक संघर्षक दिनक एक साथी, जे गैंडा सन छथि, बहुत बूढ़ भ' गेला अछि, बीमार रहैत छथि आ दिलमाया कें कटु वचन कहैत रहै छनि। मुदा ओहि पुरुषक सौ खून माफ छै, ओकर सेवा-बरदास एखन दिलमायाक सब सं पैघ जीवन-लक्ष्य छैक। जखन कि दोसर दिस, अपना बल पर अरजल धन दिलमाया कें ततबा छैक जे एक बेर सजि-संवरि क' प्रोफेसर संग ओ दक्षिणकाली मंदिर जे गेल छलि तं ओकरा देह पर दू-अढाइ किलो सोनाक गहना लटकल रहै। तेसर समस्या ई अछि जे दिलमाया कें जे दूटा बेटा छनि, मने नगीना राई सं, एकटा तं क्लास वन आफिसर, इंजीनियर थिक मुदा दोसर बेरोजगार आ तेहन बहसल जे एक नमरी(सौ टाका)क लेल श्रेष्ठ जीक पिटाइ क' सकैत अछि आ सबटा संपति कें बेचि क' फिल्म-निर्माण करय चाहैत अछि। आ, क्रान्तिक एक नायक ई डम्मर जी केहन छथि जे छौंड़ाक पिटाइ के प्रतिकार करबाक प्रश्न पर कहै छथि--'बात छै जे धिया-पुता संगे भिरियो गेनाइ तं ठीक नै ने!' तखन, इहो एक बात अबैत छैक जे नगीना, जकरा ओ अपन वास्तविक पति परम गुरु मानैत छथि आ हुनकर बड़का फ्रेम कयल फोटो सदिखन अपन बेडरूम मे लगेने रहल अछि, हरेक संकट अयला पर ओकरे दिस टुकटुक तकैत समाधान पबैत अछि, वैह दिलमाया ओहि नगीना सं जनमल दुनू बेटा सं घोर घृणा करैत अछि।
मने, ओहू सभ्यताक जे पीढ़ीगत, कालगत, आदर्शगत विचलन सब, परिवर्तन सब घटित भेल छैक, से एहि उपन्यासक विषय बनल अछि। मुदा, लेखक लग जे सब सं ओझराएल प्रश्न रहलैक अछि, जकरा सोझरेबा मे ओ पूरे जतनशील लगैत छथि, से ई थिक जे एहि मरदे गैंडा डम्मर के जखन एते बरदास्त कइये रहल छथि शकुन, तं ओहि डाक्टरे मे की खराबी छलै? एते ई सब किए? मुदा, दिलमायाक कहब छनि-- 'स्त्री एक बेर अपना कें जाहि पुरुष कें समर्पित करैत अछि, पति वैह होइत छैक। आत्मा सं ओकरे सं सम्बन्ध होइत छैक। डाक्टर साहेबक उंचाइ धरि हमर समर्पण पहुंचिये नहि सकैत छल, तें हुनका प्रति हम कहियो समर्पित भेबे नहि केलियनि।' एहि हिसाब सं तं हुनकर पति भेलखिन नगीना राई, मुदा ई गैंडा, अथबल, दुर्वचन कहनिहार डम्मर? ई के थिक? बस, एकरा ओ पोसने छथि, अपन आश्रय देने छथि, एहि नारीत्वक जेना ई एक गरिमा, एक महिमा होइक, एक संतोष। डाक्टर ब्लड कैंसर सं मुइलाह, नगीना पुलिसक गोली सं, डम्मर अथबल अछि, मुदा दिलमाया? प्रोफेसर के सबटा केस, माथोक दाढ़ियोक, पाकि गेलनि, शकुन हुनका सं छव मास-बरख दिन जेठे छलि, मुदा ई दिलमाया जखन फेंटा कसि क' रेस्त्रां चलबैत रहैत अछि तं लोक कें राजा रवि वर्माक स्त्री-चित्र(शकुन्तला) सन मोहक आ मनभावन लगै छथि। स्वयंसिद्धा आ आत्मदीप्ति सं भरपूर स्त्री थिकी दिलमाया, जे कि अपन अतल अन्तर्मन मे हरेक स्त्री हुअय चाहैत अछि। आ, दिलमायाक बौद्धिक स्तर? ओ प्रोफेसर कें एक ठाम कहै छनि-- 'दिलमाया मे शकुन कें नहि खोजी।'
-- असल मे हमरे टा आंखि ने दिलमाया मे शकुन कें देख' सकै छनि।
-- से देखितनि तं चन्द्रेक मारफत किएक दिलमायाक देह धरि अबितनि?
प्रोफेसर निर्वाक।
-- होइ की छै जे अहां त' जे होइत जाएब से पछिलाक परिणाम। अहां के छी, से बूझै लेल जे टोहियाब' लागब तं दिलमाया सं शकुन धरि जाय पड़त। एक सं दोसर कटि नै ने सकैए!
-- शकुन मौसी, ई आत्मज्ञान! आ तखनि अहांक भटकन?
-- भटकने सं ने आत्मज्ञान अबै छै! आ, भटकन तं अहां कहै छी। हमर तं ई सुख थिक, संतोष थिक।'
अपना देशक लगभग सब भाषा मे ई संस्कृत कहबी प्रचलित अछि जे 'स्त्रियाश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं देवो न जानाति कुतो मनुष्य:।' एहि कहबी मे दिक्कत एतबी अछि जे एहि ठाम स्त्रीक चरित्र कें आथाह मानल गेल अछि जखन कि पुरुषक भाग्य कें। पुरातनपंथी लोकनि कें ई कहबी बड़ प्रिय। एहि मे स्त्री कें संदिग्ध क' क' देखल गेल अछि तें पितृसत्तात्मक व्यवस्था लेल सेहो ई अत्यन्त सटीक। एहि शास्त्रीय कुतर्क सं स्त्रीक हीन दरजा सुनिश्चित कयल जाइत रहल अछि आ ओकर आत्मविश्वास कें तोड़बाक लेल एकरा एक हथियार जकां इस्तेमाल कयल जाइत रहल अछि। एक चिन्तक-विचारकक रूप मे धूमकेतु सदा एकर विरोधी रहला। हुनकर साहित्य मे लिंगक आधार पर विभेदीकरण के मुखर विरोध सबतरि व्यक्त भेल अछि। एहि उपन्यास मे तं मानू सुरुहे मे हुनकर प्रतिज्ञा-वाक्य सामने आबि गेल अछि। पन्द्रह बरखक उमेर मे शकुन मौसीक बियाह भेलनि, आ जखन ओ सासुर जाय लगली, अपन पिता तं छलखिन नहि, हुनको पालक पिता प्रोफेसरेक पिता छलखिन, कुलीन परिवारक कोनो पिता जतबा परंपरावादी भ' सकैत अछि, सैह ओहो छला। विदा होइ काल तं ओ शकुन कें कहने रहथिन-- 'जाउ। आब दुख अहांक दूर भेल। अहां सन भाग भगवान सब कें देथुन।' मुदा, शकुनक मोटर जखन विदा भ' गेल, कथावाचक कें पिताक कहल ओ बात स्मरण एलनि जे ओ निरंतर बजथिन, आ कदाचित ओहू क्षण बाजल हेता-- 'चरित्र आ भाग्य ने दैव जनै छथि ने मनुख। से एक गोटेक नहि, स्त्री-पुरुख, दुनूक।' एहि उपन्यास कें जेना एहि प्रतिज्ञा-वाक्यक संपुष्टि होयबाक छलैक। जीवन कोना कोनो खिस्सो सं बेसी आश्चर्यजनक भ' सकैत अछि, एहि वाक्य कें ओ एतय अलग अलग शब्द मे बेर-बेर दोहरबैत रहला अछि। ने केवल पुरुषक, स्त्रयोक ओतबे।
कुल्लम दस परिच्छेद मे लिखबाओल गेल ई उपन्यास असमाप्त अछि। वास्तविकता तं ई थिक जे एखन तं एकर केवल पेनिये छानल गेल छल। मुदा, ध्यान देब तं पायब जे जे मोटा-मोटी समुच्चा खिस्सा एहि मे आबि गेल छै। ई बात भिन्न जे एतबी खिस्सा लिखब हुनकर उद्देश्य ने छलनि ने भ' सकैत छलनि। संस्कृतिक नितान्त गंहीर प्रश्न सब धरि हुनका पहुंचबाक रहनि। मनुक्ख कोना अविजेय अछि आ ओकर इतिहास आ संस्कार कोना एक लघु सीमे धरि ओकर बाट छेकि पबैत छैक। आदि-आदि। अंत मे जा क' विस्तारपूर्वक सचित्र वर्णन शुरू भेलैक अछि जे आखिर कोना ई संभव भेल जे धीर-गंभीर कुलीन विवाहिता कें अपन पतिक मामूली चपरासी सं प्रेम भ' गेलैक! लगनशील डाक्टर एहि रहस्यक खोज क' रहल छथि जे आखिर आदिवासी सभक दांत एते मजगूत किएक होइत अछि? कोन वनस्पति ओकरा सभक दिनचर्या मे, भोजन-विधान मे शामिल छै जकरा कारण एहन मजगूत दांत संभव होइत अछि! ओ अपन रिसर्चक पाछू ठीकमठीक ओहिना भूत बनल अछि जेना किंवदन्ती मे हमरा लोकनि वृद्ध वाचस्पतिक मादे सुनैत छी। मुदा, शकुन भामती नहि थिकी, हुनकर भवितव्य दिलमाया थिक। उपन्यास बिच्चहि मे रुकि गेल अछि, हम सब सहज अनुमान क' सकै छी जे एहि खिस्सा कें एखन बहुत दूर धरि चलबाक छल हेतैक।
अपन जाहि विशिष्ट शैलीक कारण धूमकेतु 'कथाकारक कथाकार' कहल जाइत छथि, तकर भरपूर दरस हम सब एतय पाबि सकै छी। कस्सल-कस्सल वाक्यावली, प्रगाढ़ बिम्ब, विदग्ध कथनानुकथन, ललित गद्यक चिर स्मरणीय वितान, सब किछु। गद्यक गठन तते तथ्यात्मक जे बीच के दुइयो वाक्य मिस भेने अहांक कथा-बोध भसिया सकैत अछि। निस्सन्देह, एहि उपन्यासक प्रकाशन मैथिली कथा-साहित्यक लेल एकटा घटना थिक।
@पटना, 6.8.2020