मैथिली कवि जीवकान्त की कविता
नहीं, ज्यादा रंग नहीं
बहुत थोडा-सा रंग लेना
रंग लेना जैसे बेली का फूल लेता है शाम को
रंग लेना बस जितना जरूरी हो जीवन के लिए
रंग लेते हैं जितना आम के पत्ते
नए कलश में।
नहीं, ज्यादा गंध नहीं
गंध लेना बहुत थोडा-सा
बहुत थोडा-सा गंध जितना नीम-चमेली के फूल लेते हैं
गंध उतना ही ठीक जितना जरूरी हो जीवन के लिए
गंध जितना आम के मंजर लेते हैं।
नहीं, बहुत शब्द नहीं
जोरदार आवाज नहीं
आवाज लेना जितनी गोरैया लेती है अपने प्रियतम के लिए
जरूरी हो जितनी जीवन के लिए
आवाज उतनी ही जिसमें बात करते हैं पीपल के पत्ते हवा से,
थोडी-सी आवाज लेना
जितनी कि आंगन का जांता गेहूं के लिए लेता है।
जीवन के रास्ते हैं बडे सीधे
दिखावा नहीं, बिलकुल दिखावा नहीं
बरसता-भिंगोता बादल होता है जीवन
बरसते बादल में लेकिन रंग होते हैं बहुत थोडे
ध्वनि भी होती है तो साधारण
गंध भी होता है उसमें
विरल गंध।
(अनुवाद--तारानन्द वियोगी)
[उनकी और और रचना पढ़ने के लिए 'संवेद' देखें।]
1 comment:
waooo ultimate Post. I like it
Thanks,
Crude Oil Hni Calls
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