||बुद्ध की भाषा||
तारानंद वियोगी
इन दिनों पैदा हुए लोग
बोलते हैं एक ऎसी भाषा,
जिसमें थोड़ा पूरब, बाकी पच्छिम होता है
वाम की तो बात ही न करें,
सारा कुछ दच्छिन होता है|
उसमें होता है उन्मुक्त बाजार
थोड़ी हिंसा, थोड़ा अहंकार
वहाँ फूल भी खिलें तो लगता है
कुछ धोखा हुआ है......
आप समझ पाएंगे बुद्ध?
इन दिनों की भाषा आप समझ पाएंगे?
कोई बात नहीं,
ये भी तो आपको नहीं समझ पाएंगे|
तो सबसे पहले
आप की भाषा ही तो अबूझ बनती है.....
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