Thursday, June 30, 2011

यात्री-स्मरण




काल्हिखन नामवर सिंह यात्री जीक बारे मे एकटा बड सुन्दर बात कहलखिन। ओ एकटा टी०वी० चैनल पर साहित्यिक कार्यक्रम मे बाजिो रहल छला। अवसर छल--केदारनाथ अग्रवाल जन्मशताब्दी-वर्ष। ओ कहलखिन जे चारिटा महान कविक ई जन्मशताब्दी-वर्ष थिक--अज्ञेय, शमशेर, केदार आ नागार्जुन। एहि चारूगोटे मे बहुत अन्तर। अज्ञेय शुरू मे छला जन-सरोकारी, लेकिन आगू चलि क' बडका लोकक लोक बनि गेला आ ज्ञानपीठ पौलनि। शमशेर जबर्दस्त कविता लिखलनि मुदा सब कें सदा प्रसन्न रखलनि आ ककरो दुश्मन नहि बना सकला। केदार तेहन विरल कवि भेला जे जिबिते-जी दुनियां हुनका बिसरि गेलनि। बचला नागार्जुन। ओ अपन ततेक बेसी, ततेक बेसी दुश्मन बनौलनि जे लोक हुनकर नाम नहि सुन' चाहैए। (लोक माने सत्ताधारी, साम्राज्यवादी, पाखंड-जीवी लोक) ओ तं धन्य अछि मिथिला, मैथिल आ मैथिली जे हिन्दी-पट्टी कें हुनका मोन पाडबाक लेल विवश करैत रहैत अछि।

हम सोच' लगलहुं जे वाह वाह, बाहर तं हमर सभक ई जस अछि, मुदा घर के हाल की अछि? जनिते छी जे मैथिलीक इन्टरनेट-पत्रिका जन्म-शताब्दीक वर्षो भरि अल्लड-बल्लड लिखि क' यात्री जीक कद छोट करबाक अभियान मे लागल रहल। अहां कें हंसी लागत मुदा हमरा दया लागैए। असल मे बाबू सब कें विश्वसे नहि भ' रहल चनि जे हाड-मासु के बनल एहनो क्यो चिर नवीन प्रोग्रेसिव मिथिला मे जनमि सकैए। हौ नुनू, फुच्ची ल' क' समुद्र नाप' जयबह तं आखिर कोन निष्कर्ष पर पहुंचबह?

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