Thursday, June 30, 2011

लक्ष्मीनाथ गोसांइ के खोज


लक्ष्मीनाथ गोसांइ के खोज मे लागल छी। खोज माने ई जे ओ असल मे की छला। मिथिला मे हुनका देवता बना क', मंदिर मे स्थापित क' क' पूजल जाइ छनि। मिथिलाक सन्त-परंपराक ओ शिखर थिका। मुदा हम देखै छी जे ओ उनैसम शताब्दी मे व्यापल भारतीय नवजागरण मे मिथिलाक प्रतिनिधि रहथि। धार्मिक आ पंथगत समन्वय, तर्कसंगति, मातृभूमिक प्रति अनन्य प्रेम, एकजुटताक आह्वान, कम्पनी-राजक प्रति घोर घृणा आ आक्रोश आ विद्रोह, देश-वासी कें दुर्गत अवस्था सं बाहर निकालबाक दृढ संकल्प---सभ कथू छनि लक्ष्मीनाथ मे, जे हुनका नवजागरणक नायक साबित करै छनि। १८५७ के क्रान्ति मे ओ प्रत्यक्ष रूप सं भाग लेने रहथि। उत्तर बिहारक क्षेत्र मे ओ भूमिगत रूप सं ठीक ओहिना सक्रिय रहथि जेना अवध के इलाका मे स्वामी दयानन्द सरस्वती सक्रिय रहथि। दयानन्द सरस्वतीक काज आसान रहनि, कारण जे स्थानीय शासन दिस सं झमेला नहि रहनि। लक्षीनाथक काज बड कठिन रहनि, कारण दरभंगा-राज कम्पनी-सरकारक सपोर्ट मे रहए आ क्रान्ति कें कुचलैक वास्ते सैनिक, हाथी-घोडा आ नगदी ल' क' कम्पनीक संग ठाढ छल आ गारंटी केने छल जे मिथिला मे क्रान्ति के बसात नहि ढुक' देत। एहना स्थिति मे लक्षीनाथ कें पकडल गेल छल आ ओ जेल ढुकाओल गेल छला। सजा होइतनि तं कि तं फांसी लटकाओल जाइतथि अथवा कालापानी पठाओल जाइतथि। एहन प्रतीत होइत अछि जे अपन एक अंग्रेज शिष्य अब्राहम जॅानक उद्यम सं ओ रिहा भेला। जॅान जमींदार आ नील-फैक्टरीक मालिक रहथि। आध्यात्मिक रुझानक व्यक्ति ओ मैथिली मे भक्ति-पदक रचना सेहो केने छथि। लक्ष्मीनाथक चारि प्रधान शिष्य मे सं एक जॅान क्रिश्चियन, दोसर मोहम्मद गौस खां मुसलमान, तेसर राजाराम शास्त्री कान्यकुब्ज आ चारिम रघुवर गोसांइ मैथिल छला। लक्ष्मीनाथ कीर्तन-मंडली चलबथि। नेपाल सं ल' क' उत्तर भारतक कैक प्रान्त मे हुनक प्रभाव-क्षेत्र छलनि। हुनक यैह तरीका रहनि विद्रोह कें हवा देबाक। मुदा, मिथिला-राजक लेल ई भेल महापाप, घोर खिधांसक बात। तें एहि बात कैं झांपल-तोपल गेल।लक्ष्मीनाथक देहान्त १८७३ मे भेलनि। हुनक भक्ति-पद सब कें ध्यान सं पढू तं ई सब बात झक-झक देखार पडत। अपन एक पद मे ओ कहै छथि--'पामर राज करत एहि पुर पर' माने जे एहि देश पर दुष्ट शैतान सब राज क' रहल अछि। मिथिलाक बुद्धिजीवी लोकनि आइ दुख करै छथि जे नवजागरणक लहर मिथिला मे फोंक गेल, १८५७ मे हम सब किछु नहि क' सकलहुं। गलत बात अछि। मुदा, समझ मे आएत कोना? मंदिर मे बन्द क' क' हम सब अपन महापुरुष के खाली पूजा करैत रहबै तं अपन रीयल विरासत समझ मे आएत कोना?

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