Wednesday, May 9, 2007

नंदीग्राम पंचक



तारानंद वियोगी

एक

जनता जागल भूमि लए
बाजि रहल दू टूक
जनवादी के हाथ मे
एम्‍हर छैन्‍ह बंदूक

एम्‍हर छैन्‍ह बंदूक
दनादन गोली मारथि
टाटा बिड़ला के खड्ढा मे
जन के गाड़थि

जे छल जनता केर पहरुआ
सैह अधक्‍की भेल
सोभथि श्री बुशराज मुकुटमणि
देश भांड़ मे गेल

दो

जे जनता के गठित क'
बनल छलाह बदशाह
सएह कहै छथ‍ि कुपित भ'
जनता बड तमसाह

जनता बड तमसाह
सुनए नहि एको बतिया
बुश केर की छैन्‍ह दोख
एतुक लोके झंझटिया

छलहा मार्क्‍स के प्रबल प्रबंधक
आब बजाबथि झालि
आबह राजा तंत्र संभारह
गां मे रान्‍ह' दालि

तीन

गां मे लोकक खेत अछि
खेते थिक अवलंब
सएह कहै छथि बादशाह
छोड़ै जन अविलंब

छोड़ै जन अविलंब
कंपनीक बैरक आबै
अपन मजूरी पाबि
देस के मान बढाबै

एहन देस ओ बनत
जतक जनता होअए नि:स्‍वत्‍व
संसद बौक बनल अछि देखू
राजनीति के तत्‍व

चारिम

लोक छ‍लए चुप आइ धरि
देखि रहल छल खेल
जनता के जे रहए आप्‍त जन
सएह गिरह कट भेल

सएह गिरहकट भेल
आब ओ मैल छोड़ाओत
छोड़त ने क्‍यो खेत
भने सब प्राण गमाओत

टाटा बिड़ला के बस्‍ती मे
जनता ने क्‍यो हएत
जे बसतै से कुली कबाड़ी
देस बेच क' खएत

पांच

सएह कहै छी
सुनह वियोगी
बूझह की थिक 'सेज'
तों छह ककरा पक्ष मे
गांधी कि अंगरेज

गांधी आ अंगरेज दुनू मे
बाझल झगड़ा
निर्दय नइ झट हएत
बुझाइ-ए जोड़ा तगड़ा

बचत कोना क' लोक
भूमि, से सएह झकै छी
गांधी आ अंगरेज एतहु छथ‍ि
साफ देखय छी।

गद्यानुवाद
एक
जनता भूमि के लिए उठ खड़ी हुई है और दो टुक बोल रही है। इधर प्रतिरोध में जनवादी खड़े हैं, जिनके हाथों में बंदूक है। वे दनादन गोलियां चला रहे हैं। टाटा-बिड़ला ने जो गड्ढे खोदे हैं, उनमें वे अपने ही लोगों को गाड़ रहे हैं। जो जनअधिकारों के पहरुआ थे, उन्‍हीं की लिप्‍सा आज आसमान छू रही है। उनके सिर पर सम्राट बुश का मुकट शोभता है और उनके लिए देश भांड़ में जा चुका है।
दो
जनता को संगठित करके जिन्‍होंने सत्ता हासिल की थी, वे ही आज कुपित होकर कह रहे हैं कि जनता बड़ी गुस्‍सैल है। वह एक भी बात सुनना-समझना नहीं चाहती। बुश का भला क्‍या दोष्‍ा है। यहां की जनता ही झंझटपसंद है। (कैसा हादसा है यह कि) जो मार्क्‍सवाद के प्रबल प्रबंधक माने जाते थे, वे ही आज झाल बजा रहे हैं और कह रहे हैं कि आओ राजा आओ, तंत्र संभालो, और गांव में आकर दाल पकाओ।
तीन
इधर गांव में लोगों की अस्मिता है, खेत हैं। ये खेत ही उनका सहारा है। बादशाह का फरमान है कि ये खेत लोग फौरन खाली कर दें। कंपनी के बैरक से आकर बात करें। नौकरी बजाएं और अपनी मजदूरी पाकर देश का मान बढ़ाएं। सोचो, कैसा वह देश बनेगा, जहां की जनता का अपना कुछ भी न हो। न भूमि न संस्‍कृति। यह सवाल उठा, तो संसद गूंगा बन गया है। राजनीति का यह कैसा तत्‍व है, देखो।
चार
आजतक लोग चुप थे। सारा खेल चुपचाप देख रहे थे कि जनता की आवाज़ बंद करने वाले लोग ही गिरहकट हो गये हैं। अब जनता जगी है, तो बारी बारी से सबके मैल छुड़ाएगी। भले ही सब अपनी जान न्‍यौछावर कर दें, मगर ज़मीन कोई नहीं छोड़ेगा। (क्‍योंकि) ज़मीन लेकर टाटा-बिड़ला जो बस्‍ती बसाने वाले हैं, वहां कोई 'जनता' नहीं रहेगी। वहां तो जो भी होगा, वह कुली-कबाड़ी होगा, जो अपना देश बेच कर खाएगा।
पांच
मैं तुमसे कहता हूं वियोगी, कि समझो कि सेज़ क्‍या है और तय करो कि तुम किसके पक्ष में हो। एक ओर गांधी है, तो दूसरी ओर अंग्रेज़। दोनों में लड़ाई जारी है। जिसका फैसला भी जल्‍द होने वाला नहीं है। क्‍योंकि दोनों ही ज़बर्दस्‍त हैं। मैं तो इसी चिंता में पड़ा हूं कि यहां के लोगों की, भूमि की रक्षा कैसे होगी। क्‍योंकि साफ-साफ देख रहा हूं कि यहां भी गांधी और अंग्रेज़ विद्यमान हैं।