तारानंद वियोगी
एक
जनता जागल भूमि लए
बाजि रहल दू टूक
जनवादी के हाथ मे
एम्हर छैन्ह बंदूक
एम्हर छैन्ह बंदूक
दनादन गोली मारथि
टाटा बिड़ला के खड्ढा मे
जन के गाड़थि
जे छल जनता केर पहरुआ
सैह अधक्की भेल
सोभथि श्री बुशराज मुकुटमणि
देश भांड़ मे गेल
दो
जे जनता के गठित क'
बनल छलाह बदशाह
सएह कहै छथि कुपित भ'
जनता बड तमसाह
जनता बड तमसाह
सुनए नहि एको बतिया
बुश केर की छैन्ह दोख
एतुक लोके झंझटिया
छलहा मार्क्स के प्रबल प्रबंधक
आब बजाबथि झालि
आबह राजा तंत्र संभारह
गां मे रान्ह' दालि
तीन
गां मे लोकक खेत अछि
खेते थिक अवलंब
सएह कहै छथि बादशाह
छोड़ै जन अविलंब
छोड़ै जन अविलंब
कंपनीक बैरक आबै
अपन मजूरी पाबि
देस के मान बढाबै
एहन देस ओ बनत
जतक जनता होअए नि:स्वत्व
संसद बौक बनल अछि देखू
राजनीति के तत्व
चारिम
लोक छलए चुप आइ धरि
देखि रहल छल खेल
जनता के जे रहए आप्त जन
सएह गिरह कट भेल
सएह गिरहकट भेल
आब ओ मैल छोड़ाओत
छोड़त ने क्यो खेत
भने सब प्राण गमाओत
टाटा बिड़ला के बस्ती मे
जनता ने क्यो हएत
जे बसतै से कुली कबाड़ी
देस बेच क' खएत
पांच
सएह कहै छी
सुनह वियोगी
बूझह की थिक 'सेज'
तों छह ककरा पक्ष मे
गांधी कि अंगरेज
गांधी आ अंगरेज दुनू मे
बाझल झगड़ा
निर्दय नइ झट हएत
बुझाइ-ए जोड़ा तगड़ा
बचत कोना क' लोक
भूमि, से सएह झकै छी
गांधी आ अंगरेज एतहु छथि
साफ देखय छी।
गद्यानुवाद
एक
जनता भूमि के लिए उठ खड़ी हुई है और दो टुक बोल रही है। इधर प्रतिरोध में जनवादी खड़े हैं, जिनके हाथों में बंदूक है। वे दनादन गोलियां चला रहे हैं। टाटा-बिड़ला ने जो गड्ढे खोदे हैं, उनमें वे अपने ही लोगों को गाड़ रहे हैं। जो जनअधिकारों के पहरुआ थे, उन्हीं की लिप्सा आज आसमान छू रही है। उनके सिर पर सम्राट बुश का मुकट शोभता है और उनके लिए देश भांड़ में जा चुका है।दो
जनता को संगठित करके जिन्होंने सत्ता हासिल की थी, वे ही आज कुपित होकर कह रहे हैं कि जनता बड़ी गुस्सैल है। वह एक भी बात सुनना-समझना नहीं चाहती। बुश का भला क्या दोष्ा है। यहां की जनता ही झंझटपसंद है। (कैसा हादसा है यह कि) जो मार्क्सवाद के प्रबल प्रबंधक माने जाते थे, वे ही आज झाल बजा रहे हैं और कह रहे हैं कि आओ राजा आओ, तंत्र संभालो, और गांव में आकर दाल पकाओ।तीन
इधर गांव में लोगों की अस्मिता है, खेत हैं। ये खेत ही उनका सहारा है। बादशाह का फरमान है कि ये खेत लोग फौरन खाली कर दें। कंपनी के बैरक से आकर बात करें। नौकरी बजाएं और अपनी मजदूरी पाकर देश का मान बढ़ाएं। सोचो, कैसा वह देश बनेगा, जहां की जनता का अपना कुछ भी न हो। न भूमि न संस्कृति। यह सवाल उठा, तो संसद गूंगा बन गया है। राजनीति का यह कैसा तत्व है, देखो।चार
आजतक लोग चुप थे। सारा खेल चुपचाप देख रहे थे कि जनता की आवाज़ बंद करने वाले लोग ही गिरहकट हो गये हैं। अब जनता जगी है, तो बारी बारी से सबके मैल छुड़ाएगी। भले ही सब अपनी जान न्यौछावर कर दें, मगर ज़मीन कोई नहीं छोड़ेगा। (क्योंकि) ज़मीन लेकर टाटा-बिड़ला जो बस्ती बसाने वाले हैं, वहां कोई 'जनता' नहीं रहेगी। वहां तो जो भी होगा, वह कुली-कबाड़ी होगा, जो अपना देश बेच कर खाएगा।पांच
मैं तुमसे कहता हूं वियोगी, कि समझो कि सेज़ क्या है और तय करो कि तुम किसके पक्ष में हो। एक ओर गांधी है, तो दूसरी ओर अंग्रेज़। दोनों में लड़ाई जारी है। जिसका फैसला भी जल्द होने वाला नहीं है। क्योंकि दोनों ही ज़बर्दस्त हैं। मैं तो इसी चिंता में पड़ा हूं कि यहां के लोगों की, भूमि की रक्षा कैसे होगी। क्योंकि साफ-साफ देख रहा हूं कि यहां भी गांधी और अंग्रेज़ विद्यमान हैं।
10 comments:
ई कविता आंखि खोलय वाला अछि। सच में मार्क्सवाद के सड़ांध स पश्चिम बंगाल प्रदूषित भय रहल अछि।
अद्भुत
बहुत अच्छी तरह व्यक्त किया है जनता, नेता और राजनीतिक तन्त्र को...
बहुत सटीक!
मुझे लगता है कि माकपा के (कु) कृत्यों को समझने के लिए यह कविता सटीक है। शुक्रिया।
Bhai,aahank rachna aab global,Dhanya ho Avinash ,dhanya ho mohalla...... aahank samkalinta asandigdh aa left ka gariyab aab jaroori....!
Bhai,aahank rachna aab global,Dhanya ho Avinash ,dhanya ho mohalla...... aahank samkalinta asandigdh aa left ka gariyab aab jaroori....!
nik
Aftar some time i was with yor blog\\mohhalla, It is pleasent to read poetry of taranand viyogi. Thaks for your tachy love for your mother tounge. please post viyigi,s poetry bagdogra me bhinsurwa.
Thanks
k. shailendra
shailendra191@yahoo.co.in
Sir, hamra maithili samaj s bahut sikayat y.Ham o samaj me nay rah chahe chhi jat beta k bechal jait hoy or putoh k dahej k lel fasri lagabel l badhay kail jait chai.Ahen nay chhe je ham i sab khabar samachar me dekhai chhi uo i sab t ham apan aankhi s dekhne chii.anat me ham atbe kab.........
Ki kah be ham nirljja bap ke
i t bech delaith apan aullad ke..
dudh k paisa lelke mai dahej me
basal nafrat seho hammar karej me
nay hete paith hammar kail shradh ke..
i t bech delaith apan aullad ke
ak murkh
Sudhir
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