--डाॅ.तारानंद वियोगी
7 जनवरी 1851 कें ग्रियर्सनक जन्म डबलिन(आयरलैंड) मे भेल छलनि। कृपया ध्यान राखी, इंगलैंड मे नहि जे कि भारत कें अपन उपनिवेश बना क' राज करैत छल; आयरलैंड मे, जे कि भारते जकां तहिया इंगलैंडक एक उपनिवेश छल। ट्रिनिटी काॅलेज, कैम्ब्रिज मे हुनकर शिक्षा-दीक्षा भेलनि। काॅलेज मे हुनकर जे गुरु रहथिन-- राॅबर्ट एटकिन्सन, से संस्कृत भाषाक विचक्षण विद्वान रहथि। एतय धरि जे पाणिनिक अष्टाध्यायी संपूर्ण हुनका कण्ठस्थ रहनि जकर प्रयोग मे ओ पटु छला। एकरा अतिरिक्त हुनका ग्रीक, चीनी आ तमिल भाषा पर सेहो असाधारण अधिकार रहनि। अइ सब कारणें कैक भारतीय भाषा सब ओ ट्रिनिटी काॅलेज मे अध्ययनेक समय सीखि गेल छला। मात्र बीस बरखक अवस्था मे, 1871 मे ग्रियर्सन ICS कम्पीट केलनि। आरंभिक प्रशिक्षणक बाद 1873 मे ओ भारत आबि गेला। विवरण भेटैत अछि जे भारत विदा हेबा सँ पहिने जखन ओ अपन गुरु एटकिन्सन सँ भेंट करय गेला, गदगद होइत गुरु हुनका निर्देश देने रहनि जे भारत मे रहैत भारतक भाषा सब पर ओ जरूर उल्लेखनीय काज करथि। हुनकर व्यावहारिक प्रशिक्षण बंगाल मे भेलनि। जैसोर मे ओ डिप्टी मजिस्ट्रेट बनाओल गेला आ जखन 1874क भीषण अकाल पड़ल छल तँ हुनका रिलीफक काज लेल पटना पठाओल गेलनि। ज्ञात हो जे अकाल तँ ताहि दिनक भारत मे अक्सरहां पड़ैत छल, मुदा अइ अकालक महत्व दू बात कें ल' क' विशेष अछि। एक तँ अही समय मे ब्रिटिश सरकार पहिला पहिल फेमिन कोड (अकाल संहिता) बनौने छल। दोसर, अही अकाल पर मैथिल कवि फतूरलाल 'कवित्त अकाली' कविता लिखने छला, जकरा मैथिली कविता मे आधुनिकताक प्रथम प्रवर्तन करबाक श्रेय हमही नहि, विलक्षण विचारक काञ्चीनाथ झा किरण सेहो देने छथिन। ग्रियर्सनक अगिला किछु पोस्टिंग हावड़ा, दिनाजपुर, मुर्शिदाबाद मे भेलनि। अगस्त 1877 मे हुनकर पदस्थापन भागलपुर भेलनि आ तीने मासक बाद ओ मधुबनी पठाओल गेला जतय लगातार तीन साल धरि ओ सबडिवीजनल मजिस्ट्रेटक रूप मे काज केलनि। 1880 मे ओ छुट्टी पर देश गेला आ अही छुट्टी मे अपन प्रेमिका लूसी संग विवाह केलनि। इहो जानब रोचक अछि जे हुनकर गुरु एटकिन्सन वायलिन बजेबाक बेस शौकीन रहथि, जिनका सँ ग्रियर्सन वायलिन बजाएब सेहो सिखने रहथि। अपन किशोरावस्थे सँ एक संगीत-क्लब के मेम्बर रहथि, जतय ओ वायलिन बजाबथि आ हुनकर यैह सौख हुनका लूसी संग प्रेमक आधार बनल रहय। इहो मालूम हुअय जे रिटायरमेन्टक बाद जखन ओ देश घुमला तँ पुस्तकादि लेखनक अतिरिक्त ओ एक आर्केस्ट्रा सेहो ज्वाइन केने रहथि जतय ओ वायलिन बजाबथि। खैर, 1880 मे विवाहक बाद जखन ओ भारत घुरला तखनो हुनकर पोस्टिंग लगातार बिहारे मे बनल रहलनि। ओ पटना आ गयाक कलक्टर रहला। स्कूल इंस्पेक्टरक अतिरिक्त ओ अफीम अधीक्षकक पद पर सेहो रहला। मुदा, मिथिला मे बिताएल हुनकर समय वैह तीन साल रहलनि, जखन हुनकर उमेर 26 सँ 29 साल रहनि आ ओ कुमार रहथि। हुनकर जे फोटो हमरा सब कें भेटैए से एहि उमेरक नहि कोनो भेटैए। मुदा, मैथिली वा मिथिला कें ल' कयल गेल हुनकर काज प्रमुखत: अही अवस्थाक थिक।
गुरु एटकिन्सन जे ग्रियर्सन कें टास्क द' क' भारत पठौने रहथिन, तकर कार्यान्वयन ओ तखने शुरू क' देने रहथि जखन कलकत्ता पहुंचला। ई सब वस्तु एशियाटिक सोसाइटीक जर्नलक तत्कालीन अंक सब, जे कि इन्टरनेट पर सेहो उपलब्ध छै, मे छपल देखल जा सकैए। आ एकर अंतिम परिणति हमसब लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडियाक रूप मे देखैत छी, जकर सार-लेखन एगारह खंड आ चौबीस वोल्यूम मे प्रकाशित भेल। ई एक एहन असंभव-सन काज छल जे ने ग्रियर्सन सँ पहिने संसार भरि मे क्यो क' सकल रहथि आ ने हुनका बाद क्यो कतहु क' सकल छथि। एहि वोल्यूम सब मे भारतक 544 बोली आ 179 भाषाक व्याकरण सहित अनुप्रयोग शामिल छै। एतबे नहि, जाबन्तो भाषा-उपभाषाक नमूनाक ओ ध्वनि-रिकाॅर्डिंग सेहो करौने रहथि, जे आइयो इंडिया आफिस लाइब्रेरी मे उपलब्ध छै। मैथिली पर ओ बहुतो काज केलनि। कम सँ कम तीन बेर तं एकर ओ व्याकरणे लिखलनि। लेकिन तकर बादो, लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडियाक खंड पांच वोल्यूम दू ओ बिहारी भाषा, मुख्यत: मैथिली कें समर्पित केलखिन। हुनकर समझ रहनि जे हिन्दी अइ प्रान्त लेल तहिना एक विदेशी भाषा थिक, जेना अंग्रेजी। हुनकर प्रस्ताव रहनि जे मैथिली, भोजपुरी आ मगही कें मिला क' एक काजक भाषा, बिहारी भाषा, तहिना बनाओल जा सकैत अछि जेना अतीत मे कहियो पालि बनल छल। हुनकर काज मे मैथिलीक लेल सब सँ पैघ बात ई छै जे मैथिली 544 बोली मे नहि, 179 भाषा मे सँ एक के रूप मे प्रतिष्ठा प्राप्त केने अछि।
मैथिली बोली नहि भाषा थिक, अइ बातक बहुत पैघ महत्व कोना अछि, तकर इतिहास मे चली तँ विषय स्पष्ट हैत। इस्ट इंडिया कम्पनी सँ हटा क' ब्रिटिश शासन मे भारत कें एलाक बाद 1858 मे ICS के आरंभ भेल छल। पहिल बैचक बाद तेरह साल बीतल रहय, जखन ग्रियर्सन ICS अफसर बनल रहथि। अइ बीच, 1870 मे ई जरूरी बूझल गेल जे शासनक मजगूती लेल स्थानीय भाषा सभक ज्ञान रहब उच्चाधिकारीक लेल अनिवार्य रहत। स्थानीय भाषा सब मे वर्नाकूलर कोर्स चालू कयल गेल। ध्यान देबाक बात थिक जे बंगला, उर्दू आदि वर्नाकूलर कोर्स मे शामिल छल, मुदा अइ मे मैथिली नहि छल। 1874 मे ग्रियर्सन अपनहु वर्नाकूलर परीक्षा मे शामिल भ' उत्तीर्णता प्राप्त क' लेलनि। मधुबनी पहुंचलाक थोड़बे दिनक भीतर ओ मैथिली धाराप्रवाह बाजब सीखि गेला आ एत्तुका भाषा, साहित्य आ लोक-परंपरा कें निकट सँ देखलनि तँ हुनका सामने बिलकुल स्पष्ट भ' गेलनि जे मैथिलीक एक विशिष्ट भाषा-संस्कृति अछि आ वर्नाकूलर कोर्स मे शामिल हेबा सँ एकरा वंचित राखब गलत अछि। मैथिली मे कयल गेल हुनकर समस्त कार्य कें अइ नजरिया सँ देखबाक चाही तखनहि एकर असल मर्म उद्घाटित भ' सकैत अछि।
एशियाटिक सोसाइटी जर्नलक 1880 इस्वीक अतिरिक्तांक, जे 1881 मे प्रकाशित भेल, मे ग्रियर्सनक पुस्तक "एन इंट्रोडक्शन आफ मैथिली लैंग्वेज आफ नाॅर्थ बिहार-- कन्टेनिंग ए ग्रामर, क्रिस्टोमैथी एंड वोकेबलरी' प्रकाशित भेल। एकर दू भाग छल-- पहिल भाग मे मैथिलीक व्याकरण छल, आ दोसर मे अनुवाद आ टिप्पणी सहित मैथिली रचना-संचयन तथा शब्दकोश। कुल मिला क' ई पोथी 423 पृष्ठक रहै। पहिल खंड व्याकरण, पंडित गोविन्द झाक कयल अनुवाद संग डाॅ. रमानंद झा रमणक संपादकत्व मे चेतना समिति, पटना सँ छपल अछि आ दोसर भागक पुनर्मुद्रण डाॅ. हेतुकर झाक संपादकत्व मे कल्याणी फाउन्डेशन, दरभंगा सँ भेल अछि।
अइ सभक अतिरिक्त ग्रियर्सन कें संपूर्ण जीवन मे 952 गोट अज्ञात भाषा-कविक रचना कें अनुवाद एवं टिप्पणीक संग प्रकाशित करबाक श्रेय देल जाइत छनि। मोन राखी जे अही मे मनबोधक अमरकृति हरिवंश उर्फ कृष्णजन्म, आ उमापतिक कृति 'पारिजातहरण' सेहो शामिल अछि, जकरा आइ हमसब मैथिलीक गौरवग्रन्थ मानै छियै। आ एतबे किएक, मैथिली लोकगाथा दीनाभद्रीक संपूर्ण पाठ, फतूर कविक कवित्त अकाली, मर्शिया-गीत, नाग-गीत, दू दर्जन सँ बेसी वैष्णव-कवि लोकनिक रचना आदि हुनकर खोज रहनि। विद्यापति कें ल' क' कयल गेल हुनकर काज अलग सँ रेखांकित करबाक योग्य अछि।
हमसब अवगत छी जे 1875 सँ पहिने धरि दुनिया विद्यापति कें एक बंगाली भक्तकविक रूप मे जनैत छल। मिथिलाक स्त्रिगण, शूद्र नटुआ आ मैथिल शिवभक्त लोकनि मे विद्यापतिक पद प्रचलित छल जरूर, मुदा मैथिल विद्वान आ पंडित लोकनिक बीच विद्यापति कें ल' क' कोनो श्रद्धा नहि छल, ने धर्मशास्त्रादि मे हुनका प्रमाण मानबाक चलन छल। एतय धरि जे आगू जखन विद्यापतिक ग्रन्थ सभक खोज शुरू भेल तँ एक पुरुषपरीक्षा कें छोड़ि क' हुनकर कोनो ग्रन्थक पांडुलिपि मिथिला मे नहि पाओल गेल। विडंबना ई छल जे मिथिलाक प्रथम इतिहास-लेखक बिहारीलाल फितरत अपन उर्दू इतिहास-पुस्तक 'आईना-ए-तिरहुत' (1881) मे विद्यापतिक बारे मे यैह पता लगा सकल रहथि जे विद्यापति बहुत भारी नैयायिक रहथि, तें राजा शिवसिंह हुनका बिसफी ग्राम दान मे देने रहथिन। आइ हमसब नीक जकां अवगत छी आ पं. गोविन्द झा लिखनहु छथि जे विद्यापति और जे किछु रहथु, हुनकर न्यायशास्त्र पढ़बाक वा एहि विषयक ज्ञाता हेबाक कोन्नहु टा साक्ष्य उपलब्ध नहि अछि। 1875 मे स्वयं एक बंगाली विद्वान राजकृष्ण मुखोपाध्याय एहि बातक उद्घाटन केने रहथि जे विद्यापति बंगाली नहि छला, मिथिलाक छला, मैथिल छला। 'विद्यापति' शीर्षक सँ हुनकर ई लेख एक बंगला पत्रिका 'बंग-बन्धु'क ज्येष्ठ, 1875क अंक मे छपल छल। पहिल विद्वान यैह राजकृष्ण मुखोपाध्याय रहथि जे विद्यापतिक असल परिचय जनबाक लेल अन्यान्य स्रोतक अतिरिक्त मिथिलाक पंजी-ग्रन्थक सेहो उपयोग केने रहथि। पैघ बात ई भेल जे जाॅन बीम्स, जे ग्रियर्सन सँ सीनियर, आरंभिक बैचक आईसीएस अफसर छला, मुखोपाध्यायक एहि लेखक अंग्रेजी मे सार-लेखन क' इंडियन एंटीक्वेरी जर्नल मे अक्टूबर, 1875 मे प्रकाशित करबा देलनि। केवल बंगाले नहि, सौंसे संसार मे कोहराम मचि गेल जे विद्यापति बंगाली नहि, मैथिल छथि। राजकृष्ण मुखोपाध्यायक जे गंजन बंगाली लोकनि केलखिन से तँ अलग, एहि घटना-क्रमक बाद जखन ग्रियर्सनक पदस्थापन मिथिला मे भेलनि तँ हुनको पर चतुर्दिक दबाव रहनि जे ओ विद्यापतिक काज कें आगू बढ़ाबथि। दरभंगा-राजक पुस्तकालय बहुत संपन्न छल, मुदा ग्रियर्सन कें ओतय काजक चीज किनसाइते किछु भेटल होइन। ओ सौराठ गेला जतय विद्यापतिक वंशधर लोकनि आब वास करैत रहथि। ओ स्वयं लिखलनि अछि, वंशधर लोकनि जखन हुनका ई कहलकनि जे हमरा सब लग विद्यापतिक किछुओ किछु टा नहि अछि तँ यूरोपीय संस्कृति मे पोसाएल ग्रियर्सन आश्चर्यक सागर मे मानू निमग्न भ' गेला। उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:-- ई जे कहबी कहल जाइछ से ओहिना नहि। तिरहुत मे ता रेल चलल लागल रहय। ट्रेन मे गीत गाबि क' भीख मांगबाक रोजगार सेहो ताधरि प्रचलन मे आबि गेल छल। निराश ग्रियर्सन ट्रेन मे भीख मंगनिहार आन्हर गायक लोकनि सँ जे गीत सब संकलित करौलनि, ताहि मे सँ 82 टा गीत विद्यापतिक छलनि जकरा ओ क्रिस्टोमैथी मे संकलित केलनि। सब गोटे जनैत छी जे बाद मे बंगाल, नेपाल आ मिथिला मे भेटल विद्यापतिक समस्त गीत कें एकत्र कयल गेल तँ पाओल गेल जे बांकी गीत सब तँ बंगालो मे भेटल रहै, नेपाल आ मिथिलो मे, लेकिन 55 टा गीत एहन छल जे जँ ग्रियर्सन एकरा संकलित नहि क' लेने रहितथि तँ ई सब गीत आइ लुप्त भ' गेल रहैत, कारण कोन्नहु दोसर स्रोत सं ई सब गीत अप्राप्त अछि। एहि सँ ग्रियर्सनक काजक स्टैन्डर्ड के किछु अनुमान कयल जा सकैए। जखन कि एक मिथ्या भ्रमक शिकार जँ ग्रियर्सन नहि भेल रहितथि, तँ हमर ख्याल अछि जे सब मिला क' जते विद्यापतिगीत जमा भेल, असगर ग्रियर्सन ओतबा क' लेने रहितथि। मिथ्या भ्रम की? यैह जे विद्यापति वैष्णव भक्तकवि छला, जेना कि हुनका बंगाली लोकनि दीक्षित केने रहनि। अपन एही भ्रमक कारण ओ ने तँ नटुआ सब सँ गीत संकलन क' सकला जे लोकनि विदापत नाच आदि मे ई गीत गबै छला, आ ने मिथिलाक स्त्रिगण सँ जे कि हरेक अवसर पर कोरस मे विद्यापति गीत गाओल करथि।
हमसब अइ बात सँ अवगत छी जे अपन लिंग्विस्टिक सर्वे मे मैथिलीक अनेक प्रभेद कें स्वीकार करैत ग्रियर्सन ब्रिटिश जबानाक चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, भागलपुर, पूर्णिया, मुंगेर, संथालपरगनाक अतिरिक्त नेपालक सौंसे तराइ क्षेत्र कें मैथिलीभाषी क्षेत्रक रूप मे चिह्नित केने रहथि। आइयो झूठमूठ के दावा केनिहार लोकनि एतबा क्षेत्र बतबिते छथि। मुदा, आइ क्यो तत तत जिला निवासी लोकनि, जे कि आजुक समस्त उत्तर बिहार तँ भेबे केलै, झारखंड आ नेपालक सेहो एक पैघ भाग भेलै, एहि ठामक निवासी लोकनि अंगिका, वज्जिका, अवधी, मगही आदि भाषा मे बंटि गेल छथि। एकर अस्सल कारण की भेलै, आ मैथिलीक महान चिन्तक ग्रियर्सनक कसौटी सँ आगूक विद्वान चिंतक लोकनि कोना पाछू हटि गेला, आ तकर बहुत खराब प्रतिफल की कोना मैथिली कें भोगय पड़लै, ताहि पर हम की प्रकाश देब, सब गोटे देखिये रहल छी।
ग्रियर्सनक मैथिली व्याकरणक अपन कयल अनुवादक भूमिका मे पं. गोविन्द झा साफ लिखलनि अछि जे मैथिलीक जँ क्यो अस्सल पाणिनि भेला तँ से ग्रियर्सन भेला, महावैयाकरण दीनबन्धु झा नहि, जे कि गोविन्द बाबूक पिता रहथिन आ जिनका 'मैथिलीक पाणिनि' मानल जाएब पंडित-गोष्ठीमान्य रहै। पंडित गोविन्द झा एहन मानबाक कारण सेहो बतबैत छथि। मुख्यत: दू कारण। पहिल तँ ई जे ग्रियर्सन कतहु स्वयं सृष्ट (अपन बनाएल) उदाहरण नहि दैत छथिन। एकर बदला मे ओ दृष्ट (प्रयोग होइत देखल जाइत) उदाहरणक प्रयोग केने छथि। दोसर, जे कि कदाचित सर्वाधिक मूल्यवान अछि, से ई जे महावैयाकरण जीक व्याकरण एकवर्गीय छनि, संभ्रान्त ब्राह्मण समाज द्वारा प्रयुक्त भाषाक विवेचन मात्र, जखन कि ग्रियर्सन सौंसे मिथिला समाज, जाहि मे कि सब धर्म, सब जाति, सब क्षेत्र आ सब समाजक शब्द कें लेलनि। एक अखंड मिथिला, जे केवल ब्राह्मणक नहि, दलित, मुसलमान, आदिवासी आदि सभक छै, तकर रूप ग्रियर्सनक आंखिक सोझा छलनि। स्वयं पं. गोविन्द झा ई बात लिखने छथि, तें अइ पर आगू हमर किछु कहब व्यर्थ हैत, तें हम आगू बढ़ैत छी। हं, एकटा बात जरूर कहब जे ग्रियर्सन समान अग्रचेता चिन्तक कें निष्फल करबाक संपूर्ण श्रेय दरभंगा राज, ओकर छत्रच्छाया मे पोसाएल पंडित वर्ग, आ दरभंगा-मधुबनीक मैथिली पंडितक हुंठता आ दबंगता कें छैक।
ग्रियर्सनक नजरि मे मिथिलाक ई जे भाषिक अवस्थिति छलैक, तकरा देखबाक लेल हुनकर व्याकरणक अतिरिक्तो बहुत चीज छै जकरा देखल जा सकैए। जेना क्रिस्टोमैथी मे कयल गेल रचना-संचयन कें लेल जाय। सब सँ पहिने ओ दैनिक व्यवहार मे प्रयुक्त कयल जाइत भाषाक उदाहरणक रूप मे "श्री चंपावति निकट दुरमिल झा लिखित पत्र" कें राखलनि। मतलब जे एहि ठामक लोक मे आपसी पत्राचारो धरि मे मैथिलीक उपयोग करबाक चलन छैक। के छलि चंपावति, के छला दुरमिल झा, हमरा सब कें किछु बूझल नहि होइत अछि। ग्रियर्सनो कें किनसाइते बूझल हेतनि। एक मैथिल पिता अपन विधवा बेटी कें जे पत्र लिखने रहथि, सैह कोनो तरहें हुनका धरि पहुंचल रहनि। हुनकर नैतिक आदर्श ई छलनि जे बनौआ (स्वयंसृष्ट) ओ कतहु नहि राखलनि, सदैव दृष्ट प्रयोग पर आश्रित रहला, जकरा कि अवश्ये पूर्ण तर्कसंगत, पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति कहबैक। एकरा बाद ओ 'अथ गीत सलहेसक' रखैत छथि। मने शूद्र वर्ग, दलित वर्ग के धार्मिक क्रियाकांडक भाषा आइयो कोना मैथिलिये थिक, ताहि दिस नजरि दियौलनि। ई बात भिन्न जे सलहेस गीत कें ओ गद्य मानलनि, से अइ कारणें जे मिथिलाक लोकपरंपराक जाबन्तो वैशिष्ट्य सँ ओ ओतबे परिचित भ' सकल रहथि, जतबा कि एक विदेशी शासकक लेल संभव छल। हुनकर शिष्य सुनीति कुमार चटर्जी तँ मिथिलाक लोकपरंपरा सँ अनजान हेबाक कारण वर्णरत्नाकर कें सेहो गद्यग्रन्थे कहलखिन। कोनो आश्चर्य नहि जे अइ मे हुनका संग ग्रियर्सनोक सहमति होइन, कारण तावत (1940) धरि ओ जीवित छला।
क्रिस्टोमैथीक पद्यखंडक आरंभ गीत मरसीआ सँ कयल गेल अछि। मर्सिया अथवा मरसीआ मुसलमान लोकनिक गीत छियनि, जे कर्बला मे घटित घटना आ इमाम हुसैनक शहादत के स्मृति परक गीत थिक, जकर एक प्रचलित नाम झरनी सेहो छियैक। मुहर्रम एहि गीत सभक गायनक खास अवसर होइत छैक, यद्यपि कि एकर धुन पर लिखल गीत आनो अवसर पर गाओल जाइछ। मैथिली भाषा कोना हिन्दू आ दलितक संग संग मुसलमानोक जीवन मे शामिल छैक, सैह देखाएब एतय ग्रियर्सनक इष्ट छनि। मरसीआ गीतक बाद 'गीत नाग' संकलित छैक। हम सब अवगत छी जे आर्यीकरण सँ पहिने मिथिलाक जे मूल निवासी लोकनि छला, ओहि मे सँ एक जाति नाग सेहो छल। ई लोकनि आदिवासी छला। हमसब अहू बात सँ अवगत छी जे नाग जातिक समाहार ब्राह्मणधर्मक भीतर करबाक उद्देश्ये सँ अपना युग मे विद्यापति व्याडिभक्तितरंगिणी लिखने रहथि। एखन जकरा हमसब मैथिल संस्कृति कहैत छिऐ ताहि महक बहुतो रास चलन आदिवासी नाग लोकनिक संस्कृति सँ आएल अछि-- जेना विवाह मे सिन्दूरदान, ई आर्येतर प्रभाव थिक। मिथिलाक मूलनिवासी लोकनिक जीवन मे कोना मैथिली शामिल छै, से देखाएब एतय ग्रियर्सनक इष्ट छलनि। एतेक रास जाति, धर्म, वर्ग, समुदाय कोना मैथिली ल' क' जिबैत छथि, से सब देखेलाक बाद ग्रियर्सन समकालीन साहित्य-लेखनक नमूना रखलनि अछि। ओहि समय मे जीवित कवि फतूर लालक 'कवित्त अकाली' वैह कविता थिक। एहि सब अध्यायक अनुवाद आ टिप्पणी लिखबाक बाद ग्रियर्सन दरबारी मैथिली साहित्यक नमूना रखैत छथि जाहि मे पूर्व युगक महाकवि विद्यापति संकलित छथि आ जीवित कवि हर्षनाथ झा। ग्रियर्सन कमेन्ट करैत छथि जे मोटामोटी विद्यापति जे अपना युग मे लिखलनि, तकरे अनुकरण करैत हर्षनाथ झा एखनो लिखि रहल छथि। जखन कि कवित्त अकाली पर टिप्पणी करैत ओ लिखने छला जे महाराज कें किनसाइते एहि कविक नामो सुनल होइन। एतय धरि जे ब्रिटिश शासक लोकनिक सफल रिलीफ-व्यवस्थाक प्रशंसा केनिहार एहि कविक बारे मे सरकारी अधिकारी लोकनि सेहो अइ कविताक प्रकाशन भेलाक बादे जानि सकता।
क्रिस्टोमैथीक संग जे ग्रियर्सन शब्दकोश छपौने छथि, सेहो अद्भुत अछि। पहिनहु कहलहुं जे जतबा जे किछु मैथिली कें ल' क' लिखलनि से सबटा दृष्ट प्रयोग छल, सृष्ट नहि। हुनकर कोशक एक खास गुण छनि जे हरेक शब्दक प्रयोग लेल ओ उदाहरण वाक्य देने छथि। एहि क्रम मे 300 सं बेसी फकड़ा, कहबी आ लोकोक्ति प्रयोग केने छथि। ई विशेषता आन कोनो मैथिली कोश मे अहां कें नहि भेटत। खूबी ई जे एहि सभक संचय ओ समस्त समाज सं, मतलब सब धर्म सब जातिक समाज सं केने छथि। हमरा सभक स्वप्नक जे मिथिला थिक, आश्चर्य लागत जे ग्रियर्सन ओकरे विद्यमान स्वरूप कें रखने छथि। जकर स्वप्न हमसब आइ देखै छी, से अखंड मैथिली समाज तहिया सद्य: विद्यमान रहै। ई बात भिन्न जे मिथिलाक सामंत आ मैथिलीक मैनेजर लोकनिक कुचालि सँ ओहि समाज सँ मैथिली आइ बहुत दूर आबि गेल अछि। आगू हम सब देखैत छी जे सवर्ण समाज सँ ग्रियर्सन जे वस्तु उठौने छला से सब तं आगूक सब लोकोक्ति संग्रह मे बनल रहल, मुदा पछड़ल समूहक जे वस्तु रहैक से लुप्त भ' गेल।
सब गोटे अवगत छी जे लोक-साहित्य हमेशा प्रगतिशीले हो से जरूरी नहि होइत छैक। उदाहरणक लेल कही जे सब जातिक बीच परस्पर विद्वेषी स्वभावक लोकोक्ति प्रचलित रहैत छैक। जेना बनियांक जी धनियां, जेना तौला भरि अनाज भेल/ जोलहा कें राज भेल, जेना कल कलवार/ खल्ला ओदार, जेना बुड़बक मीयां कें मांझ ठाम बथान आदि। ई सब कहबी, सबटा किताब मे, सबटा संग्रह मे भेटत। मुदा, एकटा कहबी हम सुनबै छी जे ग्रियर्सन छोड़ि क' कत्तहु नहि भेटत। एकटा शब्द 'सील' के प्रविष्टि लैत ग्रियर्सन एकर अर्थ लिखने छथि-- शालग्राम, अंग्रेजी मे-- a stone, Shalgram stone. प्रयोग देखौलनि अछि--सील, सुत, हरिवंश लै/ बीच गंगा के धार/ एत्तेक लै ब्राह्मण करय/ तैयो ना करह इतिवार। एहि कहबीक अर्थ ओ एहि शब्दें देलनि अछि-- 'If a Brahman swear even by the Shalgram, his son, the Harivans, and in the midst of the Ganges, Don't believe him. एकटा आर कहबीक दृष्टान्त हम ई देखेबाक लेल करब जे आगूक संकलयिता लोकनि कोना एकर अर्थक अनर्थ केलनि अछि। शब्द छैक-- लोकदिनी। अर्थ छै- Maid servent खबासिनी। दृष्टान्त मे कहबी देल गेलैए-- लोकदिनीक पयर जतने ससुरा वास। डेढ़ सौ बरस पुरनका बाबू-बबुआन समाजक चालि बुझनिहार लोक झट द' बुझि जेता जे एहि कहबीक अभिप्राय कते मारक छै। नवकी कनियां सासुर एती तँ ओतय हुनकर वास तखने संभव जखन पति दहीन हेथिन। पति छथिन खबासिनीक वश मे, खबासिनी खुश रहली तँ मालिको खुश रहता। सामंत वर्गक यौनिक अराजकताक ई चित्र थिक, मुदा डाॅ. कमलकान्त झा अपन लोकोक्ति-कोश मे एकर अर्थ देलनि अछि--'लोक जतय रहैत अछि ततहि सब सँ मिलि क' रहय पड़ैत छैक। पैरवी -पैगाम सँ काज नहि चलैत छैक।' मानि लेल जे सैह अर्थ। मुदा कने ई तँ कहल जाउ जे 'पयर जतने' किएक?
मैथिलीक लेल जे स्नेह आ श्रद्धा ग्रियर्सनक हृदय मे छलनि, आश्चर्य लगैत अछि जे ओहि अन्हार युग मे ई वीजन हुनका कतय सँ भेटल रहनि। बंगाल प्रोविंसियल कमिटीक रिपोर्ट (1881) मे ओ हिन्दी वर्सेस मैथिलीक अन्तर्द्वन्द्व पर मैथिलीक पक्ष रखैत लिखलनि-- "The whole genius of Hindi is different from that of the Bihar dialects and they could never, by any possibility, assimilate to it. हिंदीक संपूर्ण प्रतिभा बिहारक बोली सब सँ नितान्त भिन्न अछि आ अइ बातक दूर-दूर धरि कोनो संभावना नहि अछि जे ई लोकनि एकरा कहियो कोनो विधियें आत्मसात क' सकता।" तहिना 'प्ली फाॅर पीपुल्स टंग' मे ओ लिखलनि-- "Let us think that the welfare of 17 millions of Bihar alone is at stake, and set to work at once. आउ हमसब सोची जे असगरे बिहार के 17 मिलियन लोकक कल्याण आइ दांव पर अछि, आ तुरंत काज करबा लेल तैयार भ' जाइ।" ई काज की रहै? रहै जे मैथिली कें ओकर हक भेटैक।
ग्रियर्सन जाहि समय मिथिला मे पदस्थापित छला, मिथिला कोर्ट आफ वार्ड्स के अधीन रहै। महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह 1880 मे कार्यभार सम्हारलनि आ तुरंत दरभंगा राजक समस्त कचहरी सब मे हिन्दी भाषाक प्रयोग कें तेना क' अनिवार्य क' देलनि जे तीन मासक भीतर जे अमला हिन्दी नहि सीखि सकला हुनका जबरन रिटायर क' देल गेलनि। ई की छल? ई ब्रिटिश सरकारक साम्प्रदायिकता नीतिक कार्यान्वयन छल। जँ अहां हिन्दू छी तँ अहांक काजक भाषा उर्दू-फारसी नहि, हिन्दी थिक। मैथिली एहि मे कतहु नहि छल। वर्नाकूलर मे मैथिली कें शामिल करबाक लड़ाइ ग्रियर्सन लड़ल छला, महाराज एहि लड़ाइ कें सदा-सर्वदाक लेल दफन क' देलखिन।
ग्रियर्सन एहि तरहें दीवानगीक हद धरि मैथिली लेल अपस्यांत छला, की एकर कनेको प्रभाव मैथिल बौद्धिक लोकनि पर पड़ल छलनि? प्रो. जयदेव मिश्र लिखैत छथि--"हिनका लोकनि कें तहिना आश्चर्य भेलनि जेना कोनो नव आविष्कार भेल हो। ओ सब सोचलनि जे जखन सात समुद्र पारक विदेशी कें मैथिली मे एते सौन्दर्य भेटि सकैत छैक तं एहि मे अवश्ये अन्तर्निहित श्रेष्ठता छैक। ग्रियर्सनक उदाहरण एकटा क्षितिज कें अनावृत्त क' देलक जे जतबे नव छल ततबे आकर्षक।" (चन्दा झा/पृ.29) मैथिलीक रचनाकार-जगत पर ग्रियर्सनक जे प्रभाव पड़लै ताहि प्रसंग अपन विनिबंध 'चन्दा झा' मे प्रो. झा लिखैत छथि-- ''ग्रियर्सनक साहित्यिक प्रभाव कें जे लोकनि अपरोक्ष रूपें आत्मसात केलनि आ मैथिली मे रचना करबाक लेल अग्रसर भेला, ओ सब छला चन्दा झा, भानुनाथ झा, जीवन झा, रघुनंदन दास, परमेश्वर झा आदि।" (पृ.28)
आब कने अइ प्रसंग कें देखी जे मैथिली साहित्य मे आधुनिकताक प्रवर्तनक मादे की अभिमत इतिहासकार आ आलोचक लोकनि रखलनि अछि। ई लोकनि चन्दा झा कें प्रवर्तक मानैत छथि। किएक? कोन आधार पर? तँ ओ मिथिला भाषा रामायण लिखलनि। स्थिति देखू जे अइ भाषाक नाम 'मैथिली' जे रखलनि, अपन किताबक नाम बनौलनि, से छला ग्रियर्सन। ग्रियर्सन सँ प्रोत्साहन पाबि आगू चन्दा झा सेहो मैथिली लिख' लगला, से हुनकर जीवनीकार स्वयं गछैत छथि। किरण जी एहि मुद्दा पर बहुत खिन्नता प्रकट करैत ई प्रश्न उठौलनि जे जँ चन्दा झा मैथिली लिखैत रहितथि तँ क्रिस्टोमैथी मे हुनको कविता किएक नहि शामिल भेल? ओ लिखलनि-- "डाॅ. जयकान्त मिश्र चन्दा झा कें आधुनिक मैथिली साहित्यक प्रवर्तक मानि लेलनि मुदा चन्दा झाक छिटपुट, टुटल-फुटल हिन्दी भाषाक रचने सिद्ध करैछ जे ओ एकमात्र मैथिली भाषा कें साहित्यक माध्यम नहि मानैत रहथि। मैथिली भाषा कें गोग्रास जकां किछु क' द' देबाक परिपाटी कें ज्योतिरीश्वरे चला देलनि। चन्दा झा नव की केलनि जाहि सं आधुनिक युगक आरंभकर्ता मानल गेला? इतिहास मे एकर स्पष्टीकरण आवश्यक।" कहब जरूरी नहि जे कोनहु इतिहास मे एकर स्पष्टीकरण आइ धरि नहि आएल। हमरा लोकनि रमानाथ झाक एक अही बात पर फिदा भ' गेलहुं जे विद्यापति सं हर्षनाथ झा धरि 'कृष्णयुग' चलैत छल, जकरा बदलि क' चन्दा झा 'राम-युग' मे प्रवेश करा देलनि। विडंबना देखू जे चन्दा झा पर ग्रियर्सनक व्यापक प्रभाव पड़लाक बादो ओ 'मैथिली' शब्द व्यवहृत नहि क' सकला। मिथिला भाषा कहलनि। एकर तात्पर्य ई छल जे पंडित वर्ग मे मिथिलाक माहात्म्य छल, पुण्यक्षेत्र मिथिला छली। एहि ठामक भाषा 'मैथिली'क कोनो महत्व नहि छल। ई विभक्त मानसिकता आइयो हमसब 'मिथिलाराज'क लेल लड़निहार सेनानी लोकनि मे आइयो देखि सकै छी। एक क्रिश्चियन विदेशी विद्वानक अवदान मैथिल विद्वान लोकनि कोना करितथि, तें एक ब्राह्मण कवि कें ताकल गेल जे रामकथा लिखलनि, भने राम मिथिला मे सबदिन अपूज्य मानल गेल होथि। यैह भेलनि चन्दा झाक नवता। रमानाथ झाक अनुसार एखनो धरि मैथिली साहित्य मे राम-युगे चलि रहल अछि। कहबाक तं ई चाही जे आइ-काल्हि हमसब घनघोर रामराज्य मे निवास क' रहल छी।
दुख तं ई देखि क' होइछ जे मैथिली साहित्यक सन्दर्भ मे आधुनिकता वा नवताक मानदंड की हो, आइ धरि सैह नहि स्पष्ट भ' सकल अछि। किरण जी अपना दिस सँ एक मानदंड प्रस्तावित करैत छथि-- "भाषाक संदर्भ मे आधुनिकताक अर्थ अछि-- अंगरेज जाति जकां अपन मातृभाषा कें पवित्र मानब, अपन समस्त भाव-विचारक माध्यम बनाएब, आ अपन भूमिक स्वाधीनता लेल जीवन अर्पित करबाक भावना कें प्रज्वलित करब, राखब।" मोन राखी, ग्रियर्सन एक सौ सं बेसी भाषाक ज्ञाता रहथि। मैथिलक संग मैथिली, बंगालीक संग बंगला, भोजपुरियाक संग भोजपुरी मे तेना धाराप्रवाह बजैत छला जे चकित क' दैत छल। मुदा, ओ एक अंग्रेजी छोड़ि क' कहियो कोनो भाषा मे लेखन नहि केलनि। मुदा, से अलग बात। मैथिलीक संदर्भ मे किरण जी ग्रियर्सन कें युग-प्रवर्तनक सूत्रधार मानलनि आ कवि फतूर लाल कें आधुनिकताक प्रवर्तक। ओ कहैत छथि-- " हमरा दुख सँ बढ़ि क' लाज होइत अछि अपन समाजक अविवेक पर। राजा-महाराज वा मुंहगर पंडित दू-चारि पांती जोड़ि क' अपन दुख-दर्द अथवा धन-पूत कामना भगवान-भगवती कें सुनौलनि, से सब इतिहास मे जगजियार बना देल गेला। हुनका लोकनिक फकड़ा काव्यक नाम सँ पाठ्यग्रन्थ मे देल गेल आ समस्त मिथिलाक माटिक दुख-दर्दक सजीव चित्र समाज कें देनिहार कवि कें ने इतिहास मे स्थान देल गेल, ने ओकर दुइयो पांती छात्र-पाठक मे परसल गेल। हमर दृष्टियें आधुनिक युगक आरंभ फतूर लाल कवि ओ ग्रियर्सन सँ मानब न्यायसंगत थिक।"
एहि प्रस्तावना पर आइ धरि तँ हमर पुरखा लोकनि कान-बात नहि देलनि, कहल जाय जे 'वार्ता' धरि नहि लेलनि, मुदा इतिहासक मांग थिक जे हमरा लोकनि एहि मुद्दा पर विचार-विमर्श शुरू करी।
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