Friday, February 4, 2022

एम्हर जे पढ़लहुं-5. प्रणाम बाबा/ कीर्तिनारायण मिश्र

 

समयबोध सं लैस सरलताक कवि
तारानंद वियोगी

कीर्तिनारायण मिश्र मैथिलीक वरिष्ठतम कवि लोकनि मे अन्यतम छथि। पछिला साठि वर्ष सं बेसिये समय सं ओ मैथिली मे कविता लिखैत रहला अछि। एहि बीच अनेक युग, अनेक पीढ़ी, अनेक काव्यान्दोलन बीति चुकल अछि। हुनका सदैव साहित्यक गतिविधि मे आ काव्यलेखन मे सक्रिय देखल गेल। मैथिली मे यात्रीक प्रथम पीढ़ीक शिष्य लोकनि मे सं एक प्रमुख ओ छथि तं राजकमल चौधरीक घनिष्ठ मित्र लोकनि मे सं अन्यतम वैहटा छथि जे एखनहु सृजनशील छथि। एखन हाल मे जे हुनकर कवितासंग्रह 'प्रणाम बाबा' नवारंभ सं आएल अछि, से हुनकर कवित्व आ संवेदनाक एहि समुच्चा यात्राक अविस्मरणीय स्पंदन सब लेने प्रकट भेल अछि। अनेको ठाम एहि संग्रहक कविता सब सजग पाठक कें विस्मय सं भरि दैत छैक, आ ठोस कारण दैत छैक जे मैथिली कविताक विकासमानता पर किएक मुदित हेबाक चाही।
            संग्रह मे 37 गोट कविता संकलित छैक। ई कविता सब एक चूड़ान्त संवेदनशील वरिष्ठ नागरिकक अनुभूतिक संसार मे हमरा लोकनि कें ल' जाइत अछि। अद्भुत अछि एहि संसार कें देखब। वृद्धक जीवन के संपूर्ण सकार्थता एतय प्रकृति आ पर्यावरणक संग नव पीढ़ीक नेना सभक संग एकलयता आ एकतानता मे व्यक्त भेलैक अछि। फूल-पात, गाछ-वृक्ष, चिड़ै-चुनमुन, तरह-तरहक प्राणी-संसार जे मनुक्खक संग अपन सहअस्तित्व जारी रखबाक लेल लालायित अछि। मुदा, एम्हर मनुक्खक की मंशा छैक? किएक ओ गाछ सब कें काटने चलि जाइए आ कंक्रीटक जंगल पसारने जाइए? जे पृथ्वी प्रेमपूर्ण सहअस्तित्वक पुकार संग चौबीसो घंटा भयानक घूर्णनो मे अपन संतुलन बनौने नाचि रहल अछि, ओहि पृथ्वी पर किएक प्रेमक बदला घृणाक आबोहवा एते पसारि देल गेलैए जे एहू कवि कें कहय पड़ैत छनि-- 'नीक हो जं अहांक जन्म नहि होअए/ नहि देखू ओ संसार/ जकर हम क' रहल छी निर्माण/जकरा हम बना देने छी विषाक्त/ एहि विनाश-गृह मे तं होइत छैक/ मात्र घृणा केर संचार।'(अजात शिशुक नाम)
            एहि संग्रह मे आरो बहुत रास कविता सब अछि जे अपना देश-समाजक वर्तमान परिस्थिति सभक मादे अत्यन्त वेधकताक संग लिखल गेल अछि। बहुत रास विडंबना तं एहनो छै जाहि सं समुच्चा दुनिया प्रभावित अछि आ अपन देश-समाज सेहो। आजुक घृणामूलक ओछ राजनीति पर, आ एहि राजनीति के द्वारा बनाओल गेल विकासक माडेल पर तं कैकटा कविता अछि जे भीतर धरि बेधैत अछि। ई दुनिया स्वार्थान्ध मनुक्ख सभक द्वारा कते भीषण नरक बना देल गेल अछि, से बात कत्तहु नहि बिसराइत छैक-- 'बाज भाइ बाज/ एम्हर छउ नेता, ओम्हर दलाल/ बिचला रस्ता पर शोणित के थाल/ हत्या मे कटबें कि होयबें हलाल/ बाज भाइ बाज।'(चल भाइ चल)
            मुदा, एहि कवितासंग्रहक खूबी बहुत पैघ अछि जे ई सबटा अधलाह पक्ष पृष्ठभूमि मे रहैत छैक। सामने जे दृश्य देखाइत छैक ओ बहुत आनंददायक आ प्रेरक अछि। एकरा सब कें देखने बेर-बेर सेहन्ता जगैत छैक जे हं, जीवन कें एहने प्रेमपूर्ण, एहने सद्भावना आ निश्छलता सं भरल, एहने सुंदर सहअस्तित्वक आगार हेबाक चाही। ई एक एहन विशेषता अछि जकरा लेल एहि संग्रह के महत्व सदा बनल रहतैक। मुदा की एहन कविता लिखि सकब कोनो आसान बात थिक? नहि। आसान तं नहियें, बहुत कठिन बात थिक। कीर्तिनारायण मिश्र-सन क्यो सिद्ध कविये एहन कविता लिखि सकैत छथि।
             एना कोना संभव भ' सकल अछि ताहि पर जं एक नजरि दी तं बात किछु साफ भ' सकैत अछि। एहि कविता सभक मुख्य विषय थिक बच्चा, दोसर गाछ-वृक्ष, तेसर चिड़ै-चुनमुन। आ अंत मे एक वृद्ध जे बच्चा सभक पितामह-तुल्य छथि आ एहि समस्त विषय सभक प्रति नितान्त संवेदनशील, सद्भावपूर्ण छथि। बच्चा सब केहन? 'गिलसी भरि- भरि/ हुलसि-हुलसि/ गमला मे दइ छथि पानि/ फूल-पात सं की बतियाबथि/ कोना सकब हम जानि?'(तारा) आ, गाछ-वृक्ष केहन? सहअस्तित्व लेल सदा यत्नशील-- 'कखनहु फूल, कखनहु पात खसबैत अछि/ गाछ-वृक्ष खिड़की सं रोज बजबैत अछि।'(से सभ की जान' गेल)
             'गिल्लू' एकटा लुक्खीक बारे मे अछि जे झाड़ीक दोग सं हुलकी मारि जखन भागि जाइत अछि तं कवि कें आश्चर्य होइत छनि जे मैथिल कन्याबला ई कला ई कोना सिखलक? मुदा जखन दोस्ती भेलैक, बेसी काल लगे मे आबि खेलय लागल। आ कवि जखन ओहि परदेस सं विदा होअय लगला, घरबे कें कहैत छथिन-- 'छोड़ि क' जा छी अहां लग ई दुलारू बेटी/ हमरा सब जतय रहब अहां लोकनि मोन पड़ब/ संगहि मोन पड़त अहांक ई चंचल प्रतिवेशी।'(गिल्लू)
             तहिना, 'रुस्सा-फुल्ली' कविता एक बछरूक बारे मे अछि जे अपन माय सं रुसल अछि-- ' हमर-अहां के देखा-देखी/ मुंह लटकायब सीखि गेल अछि/ अप्पन बछरू/ माय थुथुन सं देह हंसोथइ, ओ नहि डोलय/ सींग सटा गुदगुदी लगाबइ आंखि ने फोलय/ चुम्मा लइ छै, नाक घसइ छइ/ हंफिया-हंफिया पुचकारै छइ/ किन्तु ने ओ कनियों टसकइ छइ/देखि-देखि ई रुस्सा-फुल्ली/ हम चिन्तित छी।' तहिना, एकटा कौआ अछि जे मनुक्खक जाबन्तो चलाकी कें पकड़ि लेलक अछि आ ओकरा भगाबक लेल जे बिजूखा खेत मे ठाढ़ कयल गेलैए ओकरे माथ पर बैसि क' 'पांखि खजुआबैत अछि, चोंच पिजबैत अछि/ फूल चोंचिआबैत अछि/ आ फड़ तोड़ि क' उड़ि जाइत अछि।' कते कहल जाय, चमौटीबला कुकूर अछि, निश्छल-निर्भीक छोटकी फुद्दी अछि, पड़बा आ मैना अछि, रंग-रंगक चिड़ै सब अछि।
             कोनो कोंढ़ी सं फूल बनबाक एक प्राकृतिक प्रक्रिया होइ छै जाहि पर कहियो ध्यान दी तं अहां आश्चर्य सं भरि सकै छी। प्रात:भ्रमण पर बहरायल वृद्धकवि कें एहि आश्चर्य संग मुलकात पार्कक बेंच पर बैसल-बैसल होइत छनि। गाछ मे तीनटा कली छै जकर अपन-अपन अवस्था आ मुद्रा छैक, एक स्मितिक संग अपन पुट खोलैत, दोसर अपन निद्रालस तोड़ैत, तेसर प्रत्येक सिहकी पर अनेरे डोलैत। तहिना समुद्र, जे कवि कें भरि-भरि राति सोर करैत रहै छैक आ भोरे जखन भेंट होअय तं कविक संग चिक्का-दरबड़ खेल खेलाइत अछि। बहुत किछु अछि पृथ्वीक पर्यावरण मे, जकरा दिस स्वार्थान्ध संसारक ध्यान तं रौरव हाहाकारक कारण नहि जाइत छैक मुदा जे सब मिलि क' एहि आतंकपूर्ण समयक परिपूर्ण विकल्प रचैत अछि।
             एहि संग्रहक सर्वाधिक रमणीय कविता ओ सब थिक जे नान्हि-नान्हिटा बेटी सब पर लिखल गेल अछि। ओ तेसर पीढ़ीक सदस्या सब थिकी जे वृद्धकवि कें बाबा कहैत छनि। संग्रहक पहिल कविता 'प्रणाम बाबा' हमरा बड़ पसंद। ओहि मे छैक जे नान्हि बेटी अपन माय-बापक संग विदेश मे रहैत अछि, एतनी टा उमेर मे एहि महादेश ओहि महादेशक भ्रमण करैत रहैत अछि आ साल-दूसाल पर कहियो एतहु चलि अबैत अछि। कविक मोन एहि बेटी पर टांगल रहैत छनि आ ओकर सुधिक एहि समूचा अवधि मे ओ 'सालो भरि तरेगन गनैत रहैत' छथि। पछिला कोनो बेर जे ओ एतय आयल छली, बहुतो रास गाछ हुनका हाथें रोपल गेल रहैक। ओहि गाछ सभक फूलपात हरेक साल झड़ि क' पल्लवित भ' जाइत छैक। अपत्र गुलमोहर फेर पुष्पित होइए, आ जखन वीडियो कौल पर ओ प्रणाम बाबा कहैत अछि, वृद्धकवि ओकरे हाथें लगाओल गुलमोहरक लालिमा कें निहारैत विचारमग्न भ' जाइत छथि। ई विचारमग्नता बहुत मोहक हेबाक संग-संग बहुत दारुण सेहो अछि। ग्लोबल दुनिया परिवार कें छिन्न-भिन्न क' देलकैक अछि। जाहि प्रियपात्र कें सदति समीप रहबाक चाही से सात समुद्र पार बसैत अछि। टेक्नोलोजी जरूर एहि दूरी कें कम केलकैए जे इच्छानुसार वीडियो कौल भ' सकैए। मुदा, नेह-छोहक खगता एक एहन विषय थिक जे टेक्नोलोजीक भीतर अटान नहि ल' सकैत अछि।
             नान्हि बेटी सिरीजक कैक टा कविता एहि संग्रह मे छैक जे अपन संवेदना आ शैली मे विरल अछि। पुकार नहि सुनबा पर बाबा कें ई कहब जे 'बाबा अहां आब बहीर भ' गेलहुं/ हमर बात तं सुनिते नहि छी', खेल-खेल मे दोड़ैत-दबाड़ैत, सब कें पराजित करैत, अपन जीत पर ओकर ठहक्का लगायब, फूल-कली कें देखि चकित हेबाक ओकर मुद्रा, ओकर आवेशक तौर-तरीका-- 'आंखि छुअइ छथि/ कान मलइ छथि/ नाक मे दइ छथि अंगुरि घुसिया/ हंफसि-हंफसि कए, चिहुकि-चिहुकि कए/ आंखि घुमा कए, बजा रहल छथि रानी बेटी', बाबा कें नहि छोड़बा लेल जिदियायल बेटीक नान्हि अंगुरी मे फंसल धोतीक खूट-- ई सब अनेको प्रसंग छैक जे वर्णनक परिधि कें पार करैत अविस्मरणीय दृश्य बनि गेल अछि।
             कवि कीर्तिनारायण अपन काव्यलेखनक शिखर-उच्चता पर पहुंचि गेल एतय देखाब दैत छथि। हुनकर भाषा बहुत सरल भ' गेलनि अछि, तहिना भाव अधिकाधिक गंभीर। तरल संवेदना सं डगडग। कविता मे छंदक बन्धन कें तोड़बा लेल प्रतिश्रुत कविपीढीक ओ एक मुख्य सदस्य रहला, मुदा आब हुनका कविता मे छंद आबि रहलनि अछि। नागरबोध, संत्रास आ अस्मितासंघर्षक बहुतो युगीन मैथिली कविता हुनका नाम पर इतिहास मे दर्ज अछि, मुदा आब हुनक दृष्टिपथ पर वैकल्पिक संसारक अव्याख्येय सुंदरता आबि रहलनि अछि। अपना सभक मैथिल समाज मे बुढ़बाक गूंह गीजब केवल मोहाबरे टा मे नहि, वास्तविको मे चहुंदिस देखबाक हमसब अभ्यस्त छी। स्वयं पं. गोविन्द झा लिखलनि अछि जे बुढ़ारी मे लोक कें पाछू दिस दू टा आंखि निकलि अबैत छैक। मने, अतीत टा देखाइत छैक, अनन्त बितलाहा प्रसंग सब। कीर्तिनारायण मिश्रक कविता मे हमरा लोकनि उनटा पबैत छी। पाछू दिस नहि, एक जोड़ी आओर आंखि आगुए दिस निकललैक अछि जे आगामी पीढ़ीक सौन्दर्य कें, ओकर चमत्कारभरल चिंतन कें, ओकर तर्कातीत कार्यव्यवहार कें अजस्र सद्भावनाक संग देखबा मे सक्षम अछि। बहुत आनंदक विषय थिक ई सब। नवतुरिया पीढ़ीक एहि आनंदोत्सव मे एहि तरहें लहालोट होइत एक यात्रिये कें देखलियनि कि एक जीवकान्ते कें।
             प्रसिद्ध कवि जीवकान्त अपन काव्ययात्राक आखिरी चरण मे अपूर्व बालकविता सब मैथिली मे लिखने छला। सरल भाषा आ सुरेबगर छांदस-शैलीक ओ कविता सब हिनका पढ़ैत सेहो मोन पड़ैत रहैए। तं की कीर्तिनारायण ई संग्रह बालकविता-संग्रह छी? किन्नहु नहि। जीवकान्तक विषय प्रकृति आ बच्चा छलनि आ टारगेट पाठक सेहो बच्चे। कीर्तिनारायणक कविता संवेदना मे गज्झिन, गंभीर अभिप्राय सं भरल, अपन समयबोध सं लैस, वैकल्पिक पथ तकबाक चेतना सं परिपूर्ण कविता सब थिक जकर टारगेट चेतन पाठक थिकाह। आधुनिक मैथिली कविताक इतिहास मे एहि संग्रहक छपब एक यादगार घटना जकां हमरा मोन रहत।
              



            

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