तारानंद वियोगी
फणीश्वरनाथ रेणुक ओ फोटो संभव छै, कहियो अहाँक नजरि मे आयल होयत, औराही हिंगना बला, जाहि मे ओ खेतक कदबा कयल माटि मे अपन संगी-साथी संगें धान रोपबा लेल उतरल छथि। कुल जमा दस गोटे हेता। सभक हाथ मे बिचड़ाक पुल्ठी अछि, आ मोन मे किछु नब करबाक रोमांच। अपनें रेणु लुंगी कें दोहरा क' ढेका बान्हि लेने छथि। दू-तीन गोटे एहनो छथि जे अति उत्साह मे खेतक पेंक मे उतरि तँ गेल छथि, मुदा आब कपड़ा गन्दा हेबाक द्वन्द्व मे फँसल छथि। एखन फोटो सेशन चलि रहल छै। आब ओ लोकनि रोपनी शुरू करहे बला छथि। मुदा, एहि दस गोटे मे सँ एक एहनो छथि जे फोटो सेशनक बिनु कोनो परवाह कयने खेत मे झुकि चुकला अछि, एनमेन तहिना जेना कोनो किसान रोपनी करैत अछि। स्वाभाविके जे ओहि आदमीक चेहरा देखार नहि पड़ि रहलैए। ओ आधा धोती पहिरने छथि,आधा ढट्ठा ओढ़ि क' माथ कें झांपि लेने छथि। हुनकर संपूर्ण ध्यान रोपनी पर छनि। फोटो मे साफ देखाइ छै जे हुनकर दहिना हाथक अंगुरी सब बिचड़ाक जड़िक संग कदबाक वक्षस्थल मे ढुकल छनि। आदमी बुजुर्ग छथि आ रोपनी-कलाक पुरान ओस्ताद जकाँ लगैत छथि। के छथि ओ? ओ यात्री नागार्जुन छथि। औराही हिंगना मे रेणुक खेत मे एखन धान रोपि रहला अछि। तारीख थिक 29 जुलाइ 1973। यात्री रेणुक गाम आयल छथि जतय एखन रोपनीक सीजन चलि रहल छै। रेणु एहि तरहक हरेक सीजन मे गाम जरूर अबै छला। अक्सरहां तँ सहमना साहित्यिक जन सेहो एहि दिन मे उमड़ि आयल कहथि। एतय, इहो अनुमान लगाओल जा सकैत अछि जे एहि आइडियाक जनक सेहो यात्रिये होथि कि चलै चलू, आइ अपना सब धानक रोपनी करी। एहि आइडिया कें एक आर नब आयाम दैत रेणु फोटो सेशन आयोजित क' लेलनि अछि। जें कि फोटोग्राफर फोटो घीचि लेलनि, फोटो कें क्यो किताब मे छापि देलनि वा डिजिटल क' देलनि तँ बात हमरो अहाँ धरि पहुँचि गेल अछि।
ठीक ओही राति नागार्जुन एकटा कविता लिखने छला। ओ कविता रेणुक गामक बारे मे अछि आ स्वयं रेणुक बारे मे। शीर्षक देलनि अछि-- 'मैला आंचल।' कविता देखल जाय---
पंक-पृथुल कर-चरण हुए चंदन अनुलेपित
बकी छवियां अंकित, सबके स्वर हैं टेपित
एक दूसरे की काया पर पांक थोपते
औराही के खेतों में हम धान रोपते
मूल गंध की मदिर हवा में मगन हुए हैं
माँ के उर पर, शिशु-सम हुलसित मगन हुए हैं
सोनामाटी महक रही है रोम-रोम से
श्वेत कुसुम झरते हैं तुम पर नील व्योम से
कृषकपुत्र मैं, तुम तो खुद दर्दी किसान हो
मुरलीधर के सात सुरों की सरस तान हो
धन्य जादुई मैला आंचल, धन्य-धन्य तुम
सहज सलोने तुम अपूर्व, अनुपम, अनन्य तुम।
एहि अवसर पर सभक फोटोक अतिरिक्त स्वर सेहो टेप कयल गेल रहय, तकर सूचना हमरा लोकनि कें नागार्जुनक एहि कविते सँ प्राप्त होइत अछि। ओहि दिनक ओहि स्वर सब कें सूनि पाबी, तकर अवसर आब हमरा लोकनि कें साइत कहियो नहि भेटि पाओत। एहन प्रतीत होइत अछि जे ओहि दिनका संगत मे रेणु कोनो बहुत सुंदर गीत गौने हेता जे यात्री कें बहुत पसंद आयल हेतनि। एकर खबरि हमरा लोकनि कें कविताक पांती 'मुरलीधर के सात सुरों की मधुर तान तुम' सँ भेटैत अछि। रेणुक बारे मे जाननिहार लोकनि नीक जकाँ जनैत छथि जे रेणु बहुत मधुर गबैत छला। आ एतबे नहि, लोकगीत आ लोकगाथा सभक एक बड़ पैघ भंडार हुनका कंठ मे विराजै छल, हुनकर ठोर पर बसै छल। सारंगा सदाबृज आ लोरिकायन के तँ समुच्चा गाथे हुनका याद रहनि। नागार्जुन एतय रेणु कें 'दर्दी किसान' बतौलनि अछि, जखन कि इहो कोनो कम दर्दीला नहि अछि जे अपना कें केवल एक 'कृषकपुत्र' कहैत छथि, मने कि ओ, जकरा सँ दर्दी किसान हेबाक सौभाग्य एक पीढ़ी पहिनहि छीनि लेल गेल। औराही हुनका बहुत बहुत नीक लगलनि अछि। ओतय हुनका ओ 'मूल गंध' भेटलनि अछि, जाहि मे पृथ्वीक नेह ओकर उत्पादकता बनि क' प्रकट होइत अछि। ओतुक्का माटि 'सोना माटी' थिक। रेणुक खासियत ई छनि जे ई सोनामाटि हुनकर रोम-रोम सँ प्रकट भेलनि अछि। रेणु जे अपन उपन्यासक नाम 'मैला आंचल' राखने छला, तकरा पाछू एक गँहीर व्यंग्य छल। ओहि उपन्यास कें महान बनबै मे जाहि वस्तु सभक योगदान छैक ताहि मे सँ एक ई नाम सेहो थिक जकरा पाछू व्यंग्यक एक अचूक गहराइ छैक। ओ बात ठीक ओतहि सँ एहि कविता मे सेहो उतरि आयल अछि। नागार्जुन एकरा सिम्पली 'जादुई' बतबै छथि। रेणु, जे नागार्जुन कें 'बड़भाय' वा 'भैयाजी' कहै छला, हुनका प्रति कते प्रेम, कते वत्सलता नागार्जुनक हृदय मे छलनि, तकरो किछु पता एहि कविता सँ नीक जकाँ लगैत अछि। कवि नागार्जुनक कहब छनि एहि धरतीक नील व्योम सँ रेणुक ऊपर श्वेत कुसुम झहरैत अछि। यशक रंग श्वेत बताओल गेल अछि। फेर फेर ओ कहैत छथि-- 'सहज सलोने तुम अपूर्व, अनुपम, अनन्य तुम।' एतय प्रयोग कयल गेल हरेक विशेषण कोना विशेष अछि, तकर पता हमरा लोकनि कें नागार्जुनक ओहि लेख सँ लगैत अछि जे ओ रेणुक निधनक लगले बाद हुनका पर लिखने रहथि।
रेणु आ यात्री नागार्जुनक सम्बन्ध बहुत पुरान छलनि। दुनू मिथिला समाज सँ अबै छला। दुनू धरती संग समान रूपेंदस जुड़ल, धरतीक धनी। आम जनताक संग दुनूक जुड़ाव एक्के रंग। लोकवृत्ति आ लोकविधा सब मे दुनूक मोन एक्के समान अनुरक्त। दुनू संघर्षधर्मा, सत्ताधारी पार्टीक आलोचक। दुनू गोटेक अपन-अपन राजनीतिक प्रतिबद्धता छलनि, जकरा विना सामाजिक सरोकार अधूरा पड़ैत छल। मध्यकाले सँ ई परंपरा चलैत आयल अछि जे मिथिला-भूमि सँ जे क्यो महान साहित्यकार भेला, अपन तमाम काजक अतिरिक्त मिथिलाक भाषा मैथिली मे ओ किछु ने किछु जरूर लिखलनि। रेणु सेहो मैथिली मे लिखलनि मुदा नागार्जुन बेसी लिखलनि। जीवन पर्यन्त हिनका दुनूक संलग्नता अपन भूमि आ भाषाक संग समान रूपें बनल रहलनि। रेणुक संलग्नता अपेक्षाकृत बेसी गँहीर छलनि, ई बात भिन्न जे दुनू गोटेक अभिव्यक्तिक माध्यम सेहो अलग-अलग छलनि। रेणु जहिना दर्दी किसान छला, ठीक तहिना मर्मी इन्सान। हुनकर ई मर्म अनेक अनेक आयाम मे प्रकट होइ छलनि। नागार्जुन अपन लेख मे कहने छथि-- 'रेणु लग मे ने तँ कथ्य-सामग्रीक कमी रहनि, ने शैलीक नमूना सभक अकाल। सामाजिक घनिष्ठता रेणु कें कहियो गुफानिबद्ध नहि होबय दैत रहनि। जतय कतहु ओ रहला, लोक हुनका घेरने रहैत छलनि। फारबिसगंज, पटना, इलाहाबाद, कलकत्ता-- जतय कतहु देखलियनि आ जहिया कहियो-- निर्जन एकान्त मे किनसाइते कहियो देखने हेबनि।'
विद्यापतिक ओतय 'सुपुरुष'क बहुत माहात्म्य अछि। एकरे कतहु विद्यापति सुजन कहै छथि तँ कतहु सज्जन। हुनकर एक मशहूर काव्यपंक्ति छनि-- 'सज्जन जन सँ नेह कठिन थिक।' ई एक पांती मिथिलाक नब-पुरान पंडित लोकनि कें सैयो बरस सँ तेहन परेशान करैत रहलनि अछि कि पुछू नहि। आइ धरि हुनका लोकनिक बुद्धि मे अँटलनि नहि जे भाइ, सज्जन जन संग नेह करब कठिन कोना होयत, ई तँ आरो बेसी आसान आ विधेय हेबाक चाही। बात एतय धरि चलि आयल कि धृष्ट पंडित लोकनि विद्यापतिक पाठ मे संशोधन क' देलनि। अपन संकलन सब मे पाठ देलनि-- 'सज्जन जन सँ नेह उचित थिक।' 'कठिन' कें बदलि क' 'उचित' क' क' मानू ई लोकनि ई टंटे खतम क' देलनि जे कठिन अछि आ कि कठिन नहि अछि। मुदा, एहि बातक मर्म रेणु सन व्यक्ति बुझि सकैत छला। नागार्जुन लिखलनि अछि-- 'लोकगीत, लोकलय, लोककला आदि जतेक जे कोनो तत्व लोकजीवन कें समग्रता प्रदान करैत अछि, ओहि समस्त तत्वक समन्वित प्रतीक छला फणीश्वरनाथ रेणु।' विद्यापतिक समय तँ आब रहल नहि, मुदा सुपुरुष, सुजन, सज्जनक मूर्त रूप हमरा लोकनि रेणुक साहित्य मे देखि सकै छी। अहाँ 'तीसरी कसम' के हीरामन कें मोन पाड़ू आ अख्यास करियौ जे ओहि आदमी, हीरामन पर ककर मोन नहि रीझि जायत, जेना ओहि नायिकाक सेहो मोन रीझि गेल रहै। मुदा, एहि नेह कें निरंतर बनौने राखि सकब, ओकरा संग निरंतर बनल रहि सकब आ निबाहि सकब कते कठिन छैक! कहल जाइछ जे व्यक्ति तँ जनम लैत आ मरैत रहैत अछि, मुदा 'लोक' अमर होइत अछि। नागार्जुन फेर कहै छथि-- 'बावनदास सँ ल' क' अगिनखोर धरि नहि जानि कतेको कैरेक्टर रेणु पाठकक सोझा रखलनि अछि। ओहि मे सँ एक-एक कैरेक्टर कें बहुत बारीकी संग तरासल गेल छैक। ढेरक ढेर प्राणवंत शब्दचित्र हमरा लोकनि कें गुदबुदाबितो अछि आ ग्रामजीवनक आंतरिक विसंगति सभक दिस ध्यानो आकृष्ट करैत चलैत अछि। छोट-छोट खुशी, तुनुकमिजाजीक नान्हि-नान्हि क्षण सब, राग-द्वेषक ओझरायल गुत्थी सब, रूप-रस-गन्ध-स्पर्श आ नादक छिटफुट चमत्कार सब-- आओर ने जानि कते की सब व्यंजना छलकैत चलैत अछि रेणुक कथाकृति सब मे।'
रेणुक संग यात्री नागार्जुनक सम्बन्ध पुराने टा नहि, आत्मीय सेहो ततबे छल। दुनू गोटे जहिया जतय कतहु भेंट होइन, मैथिलिए मे गपसप करै छला। पत्राचारक भाषा सेहो मैथिलिये भेल करनि, तकर एक झलक हुनकर रचनावलियो मे आयल छनि। एक पत्रक हम एतय चर्च करब, जकर एक-एक शब्द सँ रेणुक आन्तरिकता झलकैत छनि। पत्र 18.12.1954(वा 1955)क लिखल थिक। लगले 'मैला आंचल' पैघ प्रकाशक ओतय सँ छपलनि अछि। रेणु गाम आयल छथि। आइ साइत ओ कोनो गुदरिया बबाजी सँ राजा भरथरीक गाथा सुनलनि अछि, से मगन छथि। लगैए, साधू जरूर बहुत मधुर, बहुत मार्मिक ढंग सँ गौने हेता। रेणु नोट क' लेलनि अछि। गाथाक एक नमहर अंश ओ नागार्जुन कें पत्र मे लिखने छथि, जे अद्भुत अछि। ओहि गीत मे संन्यासी बनलाक बारह बरखक बाद, सिद्ध जोगी बनि क' राजा भरथरीक अपन नगर पधारबाक वर्णन छैक। एहन प्रतीत होइत अछि मानू अपन पछिला पत्र मे नागार्जुन जिज्ञासा कयने होथि जे एम्हर राजा भरथरी, मने रेणु, लगातार चुप किएक छथि। तकर उतारा एहि ठाम अयलैक अछि। लिखै छथि-- 'जाहि दिन नग्र पधारयो राजा भरथरी/मजरल बगियन मे आम/ फुलवा जे फूले कचनार राजा/ लाली रे उड़य असमान/ लाल-लाल सेमली के बाग फूले/ धरती धरेला धेयान।' मने जे गामक पर्यावरण मोहक पर्यावरण राजा भरथरी कें तेना क' बान्हि लेने छनि जे चुप भेने विना कोनो रस्ते नहि बचलैक अछि।
तखन, गाम-घरक बात सब बतबैत छथि। पहिल बात तँ यैह जे गाम अबैत रहब रेणु कें एहि लेल जरूरी छलनि जे पुरान वस्तु सब कें, धरोहर सब कें नष्ट हेबा सँ बचाओल जा सकय। कहब जरूरी नहि जे ई काज करब, आर्थिक अभाववश वा पयर मे घुरघुरा बान्हल रहबाक कारण, यात्री बुतें कहियो पार नहि लगलनि। यैह मुख्य कारण छै जे गाम छुटबाक, विस्थापनक पीड़ा सँ यात्री नागार्जुनक काव्य सब दिन आक्रान्त रहल। खैर, एतबा लिखबाक बाद रेणु अपना गामक ओहि नौजवान लड़काक जिक्र करैत छथि जे हुनका चैलेंज कयने रहनि जे गाम कें ध' क' रहब अहाँ बुते पार नहि लागत। ओ इहो बतबै छथि जे ओहि नौजवान कें उतारा की देलखिन। देलखिन जे हौ बाबू, गरदनि मे घैला बान्हि क' हम कुइयां मे पैसि गेलियहे, तें आब एतय सँ बहरेबाक उपाय नहि। तखन बतबै छथिन जे गामक जंगल के एक सियार बताह भ' गेलैए, तें आब लोक बिनु लाठी के घर सँ नहि बहराइत अछि। रेणु लग मे लाठी छलनि नहि, ककरो सँ मँगलखिन तँ जवाब देलकनि जे अहाँ अपन लाठी अपने बनाउ, अहाँ तँ गाम बसबा लेल आयल छी कि ने! एही क्रम मे हुनका अपन पिता मोन पड़लखिन जे रासि-रासि के लाठी रखबाक शौखीन छला। इहो लिखि जाइ छथि जे बांसक जंगल मे ढुकि क' सही लाठी बला बांसक पहिचान करब सेहो एक मेंही कला छिऐक। बतबै छथि जे मोन लायक लाठी प्राप्त करबाक लेल पिता केहन केहन लोक सभक संग दोस्ती जोड़ने रहथि। पछिला पत्र मे यात्री हुनका सुझाव देने रहथिन जे रेणु कें ओतय बन्दूक के लाइसेन्स ल' लेबाक चाहियनि। रेणु कें ई बात नहि जरूरी लगलनि, तकर उतारा दै छथिन जे विश्वकोशक चोर एखन धरि गाम तक नहि पहुँचल अछि। आ, जतय धरि शिकार करबाक बात छै तँ रेणुक गुलैंती चलेबाक 'पेराकटिस' तते जबर्दस्त छनि जे ओकरा आगू बन्दूक फेल छै। तखन, रेणु ओहि खंडकाव्य-- 'दो पीर: एक नदी'-- के प्लाॅट बतब' लागै छथिन जकरा लिखबाक विचार हुनका मोन मे एखन चलि रहल छनि। दू पीर-- मने ग्रामदेवता जीन पीर आ ग्रामरक्षक चेथरिया पीर। नदी दुलारी दाइ! नदी के गुण गाब' लगै छथि जे एहि समुच्चा इलाकाक बबुआन लोकनिक बबुआनी एही दुलारी दाइ के प्रताप पर निर्भर छनि। कोशी जहिया एहि इलाका सँ विदा हुअय लगली, हुनकर पांच बहीन रहनि, सब कें ओ बांझ बनबैत गेलखिन। सब सँ छोटकी एहि दुलारी दाइ पर हुनका बड़ करुणा रहनि, तें ई बेचारो बचल रहि गेली। अपन 'भैयाजी' सँ रेणु आशीर्वाद मँगै छथि जे एहि खंडकाव्य कें ओ पूरा लिखि सकथि आ से शुभ आ सुन्दर दुनू बनि पाबय। फेर ई सूचना दै छथिन जे पछिला किछु मास सँ मैथिली मासिक 'वैदेही' हुनका गामक पुस्तकालय मे आयब बन्न भ' गेलैए, मतलब जे प्रकाशक कें ई शिकाइत पहुँचा देल जाइन, आ सुझाव मँगै छथि जे 'आर्यावर्त'क ग्राहक बनल जाय कि नहि बनल जाय! पत्रक अन्त मे लतिका जी सँ मिलि क' सब समाचार बता देबाक अनुरोध छै, आ ई बात सेहो जे हुनका भरोस द' देल जाइन जे हुनकर हिदायत सभक पालन पूर्णत: करिते हम गामक जीवन जीबि रहल छी। मुदा, सब सँ अन्त मे लिखने छथिन जे 'हम जे मैथिली मे पांती लिखैक धृष्टता क' रहल छी-- से तकर की हैत?' एहि पत्र सँ दुनू गोटेक बीचक आत्मीयता आ सामीप्य-भावने टाक परिचय नहि भेटैछ, इहो साफ अछि जे दुनू गोटेक जीवनक प्राथमिकता सब की छलनि, कथी मे सुख छलनि, कथी मे दुख।
सोचि क' देखी तँ ई आत्मीयता कोनो मामूली बात नहि छल। यात्रीक पहिल उपन्यास 'पारो' 1946 मे छपि क' आबि गेल छल। ई रचना छल मैथिलीक, मुदा ताहि सँ बहुत ऊपर जा क' बिहारक एक अद्भुत संभावनाशील उपन्यासकारक रूप मे हुनकर छवि देश भरि मे स्थापित भ' गेल छल। 1948 मे छपल 'रतिनाथ की चाची' हुनका स्थापित उपन्यासकारक पंक्ति मे आनि देने रहनि। मुदा, 'बलचनमा' (1952) छपलाक बाद तँ नागार्जुनक गणना हिन्दीक प्रथम श्रेणीक उपन्यासकारक रूप मे हुअय लागल छल। एहि उपन्यास मे आलोचक लोकनि 'प्रेमचन्दक परम्पराक स्पष्ट विकास' देखि रहल छला। 'आंचलिक' शब्द सेहो उपन्यासक विशेषणक रूप मे तहिये पहिल बेर प्रयोग मे आयल छल आ नागार्जुन हिन्दीक पहिल आंचलिक उपन्यासकार मानल गेल रहथि। एहि समस्त घटनाक बाद 'मैला आंचल' आयल छल।एहि उपन्यास कें ल' क' शुरुआती दिन मे तँ किछु संशय छल, मुदा किछुए समयक बाद 'मैला आंचल' हिन्दीक सर्वश्रेष्ठ उपन्यास सभक सूची मे शामिल क' लेल गेल। निस्सन्देह 'मैला आंचल'क सफलता 'बलचनमा' सँ बढ़ि क' रहय। रेणु नीक जकाँ जनै छला जे एहि उपन्यास कें लिखि क' ओ हिन्दी उपन्यासक क्षेत्र मे की क' गेला अछि।
एहना स्थिति मे दुनू लेखकक बीच प्रतिस्पर्द्धात्मक कटुता उत्पन्न हेबाक खतरा तँ भइये सकैत छल। ताहू मे तखन, जखन कि कोनो गप्पगोष्ठी मे नागार्जुन एना बाजि गेल छला जे हींग तँ कोनो खाद्य कें स्वादिष्ट बनेबाक लेल खोंटि क' बस कनेक टा प्रयोग कयल जाइत छैक, मुदा रेणु तँ मैला आंचल मे हींगक शरबत बना देलनि अछि। यद्यपि कि हींग सँ हुनक तात्पर्य स्थानीय मने मैथिलीक शब्दादि वा कथन-भंगिमा सँ छलनि। मुदा, रेणु धरि ई प्रतिक्रिया पहुँचलनि तँ ओ विना विचलित भेने मुस्किया क' रहि गेला। ई असल मे उपन्यास-कलाक मसला सँ जुड़ल बात छल, जे पारंपरिक समझ सँ भिन्न छल आ तें प्रथम श्रेणीक आलोचक जेना नामवर सिंह वा रामविलास शर्मा आदि नागार्जुनेक बातक समर्थक रहथि। रेणु एहि सब बखेड़ाक कोनो मोजर नहि देलखिन। 1955 मे ओ लिखलनि-- 'सही मायने में प्रेमचन्द की परंपरा को फिर से 'बलचनमा' ने ही अपनाया। नागार्जुन जी पर बहुत भरोसा है मुझे। मेरी स्थिति उस छोटे भाई-सी है, जो अपने बड़े भाई के बल पर बड़ी-बड़ी बातें करता है।'
हिन्दी-संसार भने नागार्जुन कें आंचलिक उपन्यासकार कहि क' चिह्नित करनि, ओ सदा एहि बात सँ इनकार करैत रहला। जाहि मुद्दा सब कें ल' क' हुनकर उपन्यास सब लिखल गेल रहय, तकरा 'आंचलिक' कहि क' कोटिबद्ध करब हुनका सब दिन अनर्गल लगलनि। रेणुक स्थिति एहि सँ सर्वथा भिन्न छल। ओ स्वयं अपनो, अपन उपन्यास कें 'आंचलिक' कहलनि, आ आनो लोक सँ एहि कारण प्राप्त भेल विशेष कोटि हुनका सदा नीके लगैत रहलनि। नागार्जुन नीक जकाँ बुझि रहल छला जे उपन्यास सब मे ओ की क' रहलाह अछि, आ एहि सँ इतर रेणुक कयल काजक की महत्व छैक। एही दुआरे हमसब देखै छी जे 'मैला आंचल'क एलाक बादो हुनकर उपन्यास-लेखन कोनो तरहें प्रभावित नहि भेलनि। एक के बाद एक हुनकर उपन्यास सब अबैत रहलनि, आ कमोबेश ओकर मिजाज सेहो ओही ढर्रा पर बनल रहलैक। आगू चलि क' जँ हुनकर उपन्यास-लेखन छुटबो केलनि तँ तकर कारण व्यक्तिगत छल। चिर यायावर जकाँ हुनकर निरंतर यात्रा आ सदा जनाकीर्णता सँ घेरायल रहब हुनका एहि तरहें एकाग्रे होयब कठिन क' देलकनि, जकर जरूरति औपन्यासिक गद्य-लेखनक लेल अपरिहार्य रहैत छैक। दोसर ई जे 'भारतीय उपन्यास'क हुनकर समझ सदा हुनका पर सवार रहलनि। मने कि हिन्दी मे लिखल गेल एहन उपन्यास जाहि सँ भारतक यथार्थ के परत सब कें नीक जकाँ बूझल जा सकय। एही सभक दुआरे, समान भूमि, भाषा आ कथा-परिवेश रहलाक बादो दुनू गोटेक बीच परस्पर प्रीति अन्त-अन्त धरि बनल रहलनि।
रेणुक लेखन कें नागार्जुन कोन तरहें महत्व दैत छथि? स्वाधीनता-प्राप्तिक बाद हिन्दी कथाकृति मे जे ढेर रास परिवर्तन सब आयल रहय, नागार्जुन तकरा संग जोड़ि क' रेणुक महत्व प्रतिष्ठापित करैत छथि। ओ लिखने छथि जे चिन्तन मे तँ ताजगीक नब-नब आभास प्रकट भेबे कयल, शब्द-शिल्पक नब-नब छवि सब सेहो तेजी सँ उभरल। एहि सब मे ताजगी आ अनूठापन अधिकाधिक उजागर हुअय लागल। कथाकार रेणु कें हुनकर समकालीन सभक अपेक्षा ओ एहि दुआरे बेसी महत्वपूर्ण मानै छथि जे हुनकर कृति सभक बुनावट नितान्त घनगर रहनि, आ ढेर रास दुर्लभ आ बहुरंगी छवि सब कें मिला क' ओ एक बेहद ताजातरीन आ अनूप बात कहि जाइ छला। नागार्जुन लिखने छथि-- 'ऐसा उत्कट मेधावी युवक यदि कलकत्ता जैसे महानर में पैदा हुआ होता और यदि वैसा ही सांस्कृतिक परिवेश, तकनीकी उपलब्धियों का वही माहौल इस विलक्षण व्यक्ति को हासिल हुआ रहता तो अनूठी कथाकृतियों के रचयिता होने के साथ-साथ सत्यजित राय की तरह फिल्मनिर्माण की दिशा में भी यह व्यक्ति कीर्तिमान स्थापित कर दिखाता। रेणु की कथाकृतियों में ऐसे बीसियों पात्र भरे पड़े हैं।'
लेकिन, सबटा सब किछु सपाटे सपाट हो, सेहो बात नहि छल। दुनू गोटेक बीच मतान्तर सेहो कम नहि छलनि। रेणुक प्राण भने औराहीक धनगर पेंक मे बसैत होइन, अथवा हुनकर मोन सब सँ बेसी ठेठ ग्रामीण समाजी लोकनिक संगति मे लगैत होइन, मुदा जखन ओ अपन व्यक्तिगत जीवन दिस घुरै छला तँ अपन दैहिक-मानसिक 'स्व' के प्रति नितान्त सजग भ' गेल करथि। ई चीज हुनकर पीन्हन-ओढ़न सँ ल' क' हुनका रहनी-सहनी धरि मे साफ देखाइत छल। ई सब चीज हुनकर अपना तरहक संभ्रान्तता छलनि। अपन नाम-नाम केश रखबाक सौखक बारे मे ओ स्वयं लिखने छथि-- 'लोग पौधों की देखभाल करते हैं, बालों की देखभाल मेरी हाॅबी है।' अपन एहि 'स्व सजगता' सँ रेणु कें लाभ छलनि जे उच्च बौद्धिक लोकनिक अभिजात आ संभ्रान्त समाज मे हुनका स्वीकार्य बनबै छलनि। ई अपना आप मे एक पैघ लाभ छल, मुदा नागार्जुन कें ई सब बात सदा सँ नापसंद रहनि। अपन आत्मपरिचय लिखैत 'आईने के सामने' मे ओ अपन मजाक उड़बैत रेणु कें सेहो लपेटा मे ल' लेने छथि-- 'ओ आंचलिक कथाकार, तुम्हारी आँखें सचमुच फूटी हुई हैं क्या? अपने अन्य आंचलिक अनुजों से इतना तो तुम्हें सीख ही लेना था कि रहन-सहन का अल्ट्रा माॅडर्न तरीका क्या होता है?' असल मे, रेणुक अपन खास जीवन-शैली छलनि जे नेनपने सँ निर्मित छल, आ जाहि मे नेपालक कोइराला-परिवार आ औराही हिंगनाक सम्पन्न गृहस्थीक बराबर-बराबर के साझीदारी छल। रेणु एक किसान छला, जखन कि नागार्जुन मात्र एक कृषकपुत्र। ओतय व्यवस्था छल, एतय व्यवस्थाक प्रति विद्रोह। रेणु दर्दी किसान छला, से हुनका मे विशेष छलनि, मुदा छला किसाने।
रेणु कें सेहो नागार्जुन सँ कोनो कम शिकाइत होइन, सेहो नहि छल। सब सँ बेसी आपत्ति तँ हुनकर मुद्दा बदलैत रहबाक प्रवृत्ति पर छलनि। 1967 मे बिहारक संविद सरकार उर्दू कें द्वितीय राजभाषा बनेबाक निर्णय लेलक। एहि निर्णयक जोरदार विरोध भेलै। एहि घटना-क्रमक रेणु लगातार रिपोर्टिंग 'दिनमान' मे करैत रहला। स्वयं रेणुक रिपोर्ट सब साक्ष्य दैत अछि जे द्वितीय राजभाषाक पचड़ा मे पड़ब एक गैरजरूरी फैसला छल, आ ई केवल एक मुस्लिम नेता कें संतुष्ट करबाक लेल कयल गेल छल। मामला जें कि उर्दू सँ जुड़ल छल, हिन्दीक कोनो साहित्यकार विरोध मे नहि उतरला। मुदा, नागार्जुन कूदि पड़ला। आब जखन कि द्वितीय राजभाषाक प्रतिफल वा लाभ स्वयं उर्दुएक हक मे केहन- कोना रहल, ई बात नीक जकाँ स्पष्ट भ' चुकल अछि, हमसब आब नीक जकाँ बूझि सकै छी सही मे एहि पचड़ा मे पड़बाक ओ समय नहि छल। समाजवादी लोकनिक हाथ मे सत्ता आयल छलनि। पैघ-पैघ अनेको लक्ष्य ओहिना बचल के बचल पड़ल छल। तुलसी-जयन्तीक दिन गांधीमैदान, पटना मे जे सभा भेल छल, तकर रिपोर्टिंग करैत रेणु लिखने रहथि-- 'मंच पर साहित्य सम्मेलन के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा बैठे हैं-- डाॅ. लक्ष्मी नारायण सुधांशु(कांग्रेस), ठाकुर प्रसाद(जनसंघ) और...और.... नागार्जुन।...प्रस्ताव प्रस्तुत किया नागार्जुन जी ने। प्रस्ताव पढ़ते समय उनकी वाणी बौद्ध-भिक्षु जैसी ही थी। मगर जब प्रस्ताव पर बोलने लगे तो 'नागा बाबा' हो गये।' रेणुक आपत्ति अपना जगह पर जायज छल।
आगां एहनो समय आयल जखन दुनू गोटे संग-संग राजनीति मे उतरलाह। ओ सम्पूर्ण क्रान्तिक दौर छल। ओहू मे हिन्दीक कोनो प्रगतिशील लेखक शामिल नहि भेल रहथि। बस यैह दू गोटे रहथि। हिन्दी मे नुक्कड़ कविताक आविष्कार सेहो तहिये भेल रहय, जे हद दरजाक परिवर्तन अनबा मे सफल भेल। एहि नुक्कड़ सभाक हिट कवि छला नागार्जुन। रेणु हरेक नुक्कड़ सभा मे जरूर उपस्थित होथि मुदा कविता नहि पढ़थि। हुनकर भूमिका अलग छलनि। सभा जखन खतम हुअय लागय, रेणु आ रामवचन राय गमछा पसारि क' श्रोता-दीर्घा मे घूमि जाथि। ओहि सँ जतबा टाका प्राप्त होइ, ताहि मे सँ लाउडस्पीकर आदिक किराया चुकाओल जाय, आ बांकी बचल पाइ बेगरतूत कवि लोकनि मे बांटि देल जाइन। एक बेगरतूत तँ नागार्जुन जरूरे भेल करथि। ई इमर्जेन्सीक दौर छल। फेर ओ समय आयल जखन बक्सर जेल मे बन्द नागार्जुन भयंकर बीमार पड़ि गेला। हुनका बचबाक संभावना नहि रहल। ओ रेणुए छला जे बहु भाषाक लेखक लोकनिक दिस सँ प्रधानमंत्रीक नाम ज्ञापन तैयार करौलनि जे हुनका जेल सँ अविलम्ब मुक्त कयल जाइन। ई अलग बात थिक जे रेणु कें जरूरति भरि लेखक लोकनिक हस्ताक्षर भेटि नहि सकलनि, आ अन्तत: जेल-मुक्तिक लेल हाइकोर्टक सहारा लेल गेल।
आब मजेदार बात छै जे जाहि नागार्जुनक जबर्दस्त फज्झति रेणु हुनकर एहि बयानक लेल कयने छलनि जे 'हँ, द्वितीय राजभाषा मामलाक विरोध करब यदि जनसंघी होयब थिक तँ हम गछै छी, हम सौ बेर जनसंघी हेबाक लेल तैयार छी'--- ओही नागार्जुन कें जखन संपूर्ण क्रान्ति बला जेल-जीवन मे ई बोध भेलनि जे असल मे अपन वैधता प्राप्त करबाक लेल आर एस एस, सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन कें हाइजैक क' लेलक अछि, तँ नागार्जुन ओहि आन्दोलन सँ निकलि बहरेला, जखन कि रेणुक अपन राजनीतिक समझ रहनि जे अन्तो अन्त धरि ओ ओही आन्दोलनक संग बनल रहला। मुदा, जे कि सत्य सेहो छल, रेणुक निधन पर नागार्जुन लिखलनि-- 'प्रशासकीय तानाशाही के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करनेवालों में रेणु अगली कतार में भी आगे ही खड़े रहे।'
आ, जतय धरि रेणुक सम्भ्रान्तता आ जनान्दोलनी तेवरक बीच तारतम्यक प्रश्न अछि, हमरा एतय गोपेश्वर सिंहक लिखल संस्मरणक एक प्रसंग मोन पड़ैत अछि। एक दिन कहियो पटनाक कोनो फुटपाथ बला मजदूर होटल मे नागार्जुन आराम सँ बैसि क' रोटी-तरकारी खा रहल छला। गोपेश्वर जी देखलनि तँ भौचक्क रहि गेला। एखन हाले मे रेणुक देहान्त भेल छलनि। चारू दिस ओ चर्चा मे बनल रहथि। गोपेश्वर सिंह संग गपसप हुअय लगलनि तँ प्रसंगवश गोपेश्वर जी पूछि देलकनि-- 'बाबा, फणीश्वरनाथ रेणु यहाँ रोटी खाते या नहीं?' नागार्जुन तपाक सँ जवाब देलकनि-- 'नहीं। रेणु यहाँ रोटी नहीं खाते, लेकिन वे इन लोगों के लिए गोली जरूर खा लेते।'
(2020)
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