Wednesday, September 26, 2018

मैथिली कविताक वर्तमान परिदृश्य














तारानंद वियोगी


एहि शताब्दीक आरंभ मे हम 'देशज2001' नाम सं मैथिली कविताक एक विशेषांक प्रकाशित कयने रही। ओकर नामो किछु एहने रहै--'शताब्दीक आरंभ मे मैथिली कविता'। कविताक क्षेत्र मे तहिया जे पीढ़ी सक्रिय छल, जे विचारधारा अपन चमक मे रहय वा संघर्ष मे शामिल छल, कविताक जे उपविधा सब चलन मे रहय, सब कें समेटबाक कोसिस छल। ओतय वरिष्ठ पीढ़ीक चंद्रनाथ मिश्र अमर, मायानंद मिश्र, जीवकान्त, भीमनाथ झा रहथि, तं गंगेश गुंजन, महाप्रकाश, उदयचंद्र झा विनोद सेहो। आ ई क्रम पंकज पराशर, रमण कुमार सिंह, अजित आजाद धरि चलि अबैत छल जे तहिया कविताक क्षेत्र मे सद्य: नवागंतुक रहथि। नव शताब्दीक कविता पर ओतय लेख रहैक, साक्षात्कार सेहो आ एकटा तं बेस लंबा चौड़ा परिचर्चा रहै जाहि मे बहुत आपकताक संग कवि-आलोचक लोकनि शताब्दीक आरंभिक कविता पर विस्तारपूर्वक गप कयने रहथि।


तें आइ जखन 'कविताक वर्तमान' पर विचार करबाक प्रश्न होइए तं ओ संकलन हमरा मोन पड़ि जाइत अछि। हमरा लगैत अछि जे 'वर्तमान' पर जं विचार करबाक बात हो तं ओकरा कालबद्ध सेहो हेबाक चाही। एकर अपन फैदा छै।  एक खास कालक भीतर कतेको तरहक प्रवृत्ति चलायमान रहै छै। किछु जं प्रमुखता मे रहल तं बांकी अपन प्रमुखता देल दाबी ठोकैत रहैत अछि, संघर्ष करैत रहैत अछि। वर्तमान पर विचार कयने ई सबटा प्रवृत्ति पर कान बात देब संभव भ' पबैत छैक। ई कतहु बेसी लोकतांत्रिक थिक। 'समकालीनता' एकटा अलग स्थिति थिक। ओहि ठाम प्रासंगिकताक प्रश्न प्रमुख होइछ। एक खास धाराक निरंतरता मे जे कथू प्रासंगिक रहल, से सबटा एकर परिधिक भीतर आबि जाइत छैक। एकरा लेल आलोचक कालबाह्य भ' क' सेहो विचार करैत छथि। से कयनहि सं प्रासंगिक धारा अपन पूरा खिलावट प्राप्त क' पबैत छैक। एकर सेहो अपन महत्व छैक, बरु कहबाक चाही जे बेसी महत्व छै, कारण एही दृष्टिकोण सं देखने सं विधाक विकास आकार ल' पबैत छैक। वर्तमानक विचार एहि सं अलग चीज छी। ई अपना कालक प्रति सचेतन होयब थिक। एहि सं अधलाहक चुनौती आ नीकक स्वास्थ्य बेसी सही तरीका सं सामने आबि पबैत छैक।


।।दू।।


पहिने कविताक माध्यम पर बात करी। 2001 मे कविता प्रमुखत:  दू माध्यम सं अपन पाठक वा श्रोता धरि पहुंचै छल-- किताब-पत्रिकाक माध्यम सं छपि क', आ दोसर कविगोष्ठी वा रेडियो सं वाचिक रूप मे। ई परंपरागत माध्यम छल जे अनेक दशक पाछू सं चलि आबि रहल छल। आइ सोशल मीडिया आबि क' जुड़ि गेल अछि। तहिया चौपाड़ि वा बैसकी सन अनौपचारिक मंच कविता लग मे नहि छल, जखन कि कथा लग मे एहन मंच 'सगर राति' छल। आइ ई अनौपचारिक मंच सब बेस प्रभावी भूमिका निमाहि रहल अछि।

       जेना हरियाणा गहूम उपजेबा लेल नामी अछि, बुझले बात थिक जे तहिना मिथिला अपन ज्ञानात्मक-संवेदनात्मक उपजा लेल नामी अछि। कविता एहि मे प्रमुख अछि। बेगरता पड़ला पर हरेक पढ़ल-लिखल मैथिल दू-चारिटा कविताक रचना क' सकैत अछि। आब ई संपादक आ आलोचकक जिम्मेवारी छियैक जे ओ नीक आ अधला कें बेराबय। यैह सब दिन सं एतय चलैत रहलै। अपना ओतय गाम गाम मे कवि छथि। किछु जिल्ला मे नाम क' जाइत छथि। किछु एहनो होइत छनि जिनकर किताब छपैत छनि। आ, मैथिली भाषाक ताकत ओहि ठाम देखार पड़त जखन एही कविवर्ग मे सं क्यो कविताक राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिमान रचि जाइत छथि। ओहि सं मैथिलीक नाम होइत छैक, प्रतिष्ठा बढ़ैत छैक।

      सोशल मीडिया के अयने सं संपादकक भूमिका समाप्त भ' गेलै। एतय हरेक कवि अपन निर्णायक स्वयं अछि। एक अर्थ मे ई बहुत नीक अछि जे अभिव्यक्तिक अबाध अधिकार दैत अछि। आब क्यो संपादक कोनो होनहार कविक गरदनि नहि मोचाड़ि सकैत अछि। से बेस

 मुदा साहित्य मे, आ कि कथू मे, कायदाक काज लेल पूर्वबोध तं अवश्ये चाहियैक। से नहि भेने स्थिति की बनैत छैक तकरो हम सब फेसबुक पर देखिते रहैत छी। हम कतहु पहिनहु ई बात कहने छी जे माध्यम बदलने सं की विधाक इतिहास मेटा जाइत छैक? ओकरा फेर सं अ आ सं शुरू करय पड़तैक? आइ फेसबुक पर हमरा लोकनि कमोबेस मैथिली कविता कें एक सौ बरख पाछू देखि सकैत छी। मोद-युग मे साधारण कवि लोकनि एहिना लिखैत रहथि।

       दोसर, कहबी छै जे नैया जं डगमगाबय तं मांझी पार लगाबय। मने कवि कें टिप्पणीकार लोकनि सम्हारि सकै छथि। मुदा कविता सन बौद्धिक उत्पाद ओतय बतकुच्चनि आ आरोप-प्रत्यारोप पर आबि क' थस्स ल' लैत अछि। तें साधारण कवियश:प्रार्थी लेल भने सोशल मीडिया अभिव्यक्तिक अबाध माध्यम हो, कवि आ ओकर भाषाक विकास लेल एकर उपादेयता बहुत कम छै। तखन, एकर उपादेयता एहि अर्थ मे तं पूरे उत्साहजनक छै जे आइ हमरा लोकनि कें अपना जुगक कतेको सिद्ध कवि लोकनिक रचना सोशल मीडियेक दुआरे संभव आ उपलब्ध भ' पबैत अछि। युवक लोकनि मे सं सेहो कतेको तेजस्वी आ प्रखर कवि सभक रचना पहिने हमरा फेसबुके पर देखबा मे अबैत अछि, तकर बादे ओकरा छपल देखि पबैत छी।


।।तीन।।


वर्तमान समय मे मैथिली कविताक छव अलग अलग पीढ़ीक कवि एक्कहि संग रचनारत छथि। स्वाभाविक थिक जे हुनका सभक काव्यबोध आ यथार्थ-दृष्टि अलग अलग छनि। हुनकर शक्ति आ सीमा सेहो एहि मे साफ देखाब दैत छैक। एहि समय मे जं एक दिस चंद्रनाथ मिश्र अमर लिखि रहल छथि तं भीमनाथ झा, उदयचंद्र झा विनोद, गंगेश गुंजन, शेफालिका वर्मा सेहो। कहियो सुकांतक कविता सामने आबि जाइत अछि, कहियो हरेकृष्णक, नचिकेताक। तखन विभूति आनंद, रमेश, नारायणजी, केदार कानन, कुमार मनीष अरविंद छथि। पंकज पराशर, रमण कुमार सिंह, अजित आजादक कविता-लेखनक ई महत्वपूर्ण चरण चलि रहल छनि। तखन अरुणाभ सौरभ, रघुनाथ मुखिया, मनोज शांडिल्य, चंदन कुमार झा, निशाकर आदिक एकटा विशाल वाहिनी अछि, जे नब नब तेबरक संग एहि शताब्दी मे मैथिली कविताक क्षेत्र मे प्रवेश केलनि अछि आ जिनका सभक दिस मैथिली साहित्य बहुत हियाब संग देखि रहल अछि।

      नवागंतुक पीढ़ी कें छोड़ि क' देखी तं पुरनका कवि कें देखबाक कसौटी की होयत? दूटा नजरिया भ' सकैत अछि। एक तं ई जे आइ जे ओ लिखि रहला अछि से हुनक  पछिला लिखलाहा सं आगू अछि कि नहि? मने कवि अपन विकास मे आगू बढ़लाह अछि कि ठामक ठामहि छथि? दोसर भ' सकैत अछि जे ओ काव्यभूमिक कोनो नब परती तोड़लनि अछि कि नहि? अक्सरहां दुनू बात एक्के संग नै होइत छैक। या तं अहां ओही पथ पर चलैत आगू बढ़ैत छी जेना राजकमल कि महाप्रकाश कि कुलानंद जाबत जीला ओही पथ पर आगू बढ़ैत रहला। दोसर उदाहरण जीवकांत छथि जे समय समय पर अपन रस्ता बदलैत रहला आ नब नब उपविधा जेना बालकविता कें पकड़ैत नब नब परती तोड़ैत रहला। ई प्रवृत्ति आइ हमरा लोकनि उदयचंद्र झा विनोद आ विभूति आनंद मे देखै छियनि। बांकी जे अपन सोझ बाट पकड़ने   बढ़ि रहल छथि, एहन मे विद्यानंद झा हमरा पहिल नाम देखार पडैत छथि जे पाछू लिखलाहा सं निस्संदेह आगूक लिखि रहल छथि। मुदा यैह बात हम कोनो दोसर कविक बारे मे एते निस्तुकी भ' क' नहि कहि सकैत छी।

       अपन एहि लेख मे जें कि हम वर्तमान परिदृश्यक एक आकलन टा मात्र राखि रहल छी, एतय आलोचनाक विस्तार मे जेबाक अवकाश नै अछि। हेबाक ई चाही जे बजाफ्ता समीक्षाक टूल्स ल' क' एक एक सचेतन कविक परीक्षण कयल जाय आ तखन आगू-पाछूक सबटा बात सामने आबय। मैथिली मे दिक्कत ई रहलै जे कवितापीढ़ी तं जरूर आयल मुदा अपना संग कर्तव्यनिष्ठ आलोचक कें ओ नहि आनि सकल। जे एलाह से अधिकतर प्रकृत विषय सं विषयान्तर भ' जाइत गेला। पत्र-पत्रिका मे व्यवस्थित समीक्षाक कालम नहि रहलै, रहलै तं कर्तव्यनिष्ठ ओकर नजरिया नहि रहलै। प्राध्यापकीय आलोचना एहि सब बात कें बुझबा सं साफे अपना कें एकात केलक। एहि बीचक प्रमुख आलोचक लोकनि पछिले विवाद कें फरियेबा मे व्यस्त रहि गेला। पछिलो विवाद कें फरियाएब आलोचनाक एक जरूरी काज छिऐक। अपना ओतक साहित्य मे ओकर बहुत महत्व छै, कारण एतय तं जीवितकवेराशयो न वर्णनीय:, जे कवि एखन जिबिते छथि हुनका मादे निर्णय नहि हेबाक चाही। इमनदारी सं कही तं कखनो कखनो हमरो ई बात ठीक लगैत अछि। ठीके निर्णय नहि हेबाक चाही। जिनका काज करबाक छनि से काज करथु, जिनका पुरस्कार लेबाक होइन से पुरस्कार लौथु। दुनू अपन अपन काज मे लागल रहथु। साहित्यक विकास एहि सं संतुलित बनल रहैत छैक।

           असल मे अपना ओतय जतेक संख्या मे आलोचक हेबाक चाही, से कहियो नहि भेल, ने आइये अछि। तकर कारण छै। आलोचक एकटा एहन प्राणी थिक जकरा सं लोक घोर घृणा करैत अछि। जकरा देखबै सैह मैथिली आलोचना पर एक थुम्हा थूक फेकैत विदा हैत जे धु: ई कोनो जोगरक नहि भ' सकल। कियै हौ बाबू तं कारण यैह जे ओ असंतुष्ट छथि। कखनो कखनो तं हम ई सोचै छी जे मैथिल जातियेक मनोनिर्माण आलोचनाक प्रतिकूल भेल छैक आ कि एहि मे स्वयं आलोचनोक कोनो दोख छै!

         कखनो हमरा सब कें इहो सोचबाक चाही जे आलोचनाक जरूरत ककरा छै? कवि कें तं नहि छै कारण पुरस्कार जे भेटैत अछि से कोनो आलोचना पढ़ि क' नहि भेटैत अछि। ओकर अपन स्वतंत्र राजनीति छै। यश जं कवि कें भेटैत अछि तं ओहू मे आलोचनाक योगदान नहिये जकां रहैत अछि, कारण रचना स्वयं अपने अपना लेल यश अरजैत अछि। प्रतिष्ठान सब कें सेहो आलोचनाक जरूरत नहि होइत छैक, कारण ओ जे निर्णय करय चाहैत अछि ताहि मे साधक हेबाक बदला आलोचना अधिकतर बाधके होइत अछि। एहना मे हमरा बुझाइत अछि जे आलोचना मात्र हुनका टा लेल उपयोगी होइत अछि जे अपन भाषा-साहित्यक विकास चाहैत छथि अथवा तकरा जानय चाहैत छथि।

।।चारि।।

पछिला दू दशक मे छपल मैथिली पोथी सब पर यदि एक नजरि दी तं सब सं बेसी संख्या मे छपल किताब कविते विधाक भेटत। मैथिली कविताक संग ई विचित्र विडंबना अछि जे ई सब सं बेसी लिखल जाइत अछि मुदा सब सं कम पढ़ल जाइत अछि। कविताक मादे जे राजशेखरक ई उक्ति अछि जे 'एकस्य तिष्ठति सुहृद् भवनानि यावत्', कि कविक कविता कतय धरि पहुंचैत अछि तं मित्रक घर धरि। एतबा पहुंच के लेल कविताक मुद्रित होयब कोनो जरूरी नहि छैक, इन्टरनेटक एहि युग मे तं आरो नहि। मुदा, हमरा लोकनि देखैत छी जे इन्टरनेटक तमाम लाभ उपलब्ध होइतो मैथिली कविता अधिकाधिक संख्या मे पछिला दशक मे प्रकाशित होइत रहल अछि। तकर कारण एक दिस जं कवि लोकनिक आर्थिक स्थिति नीकतर होयब थिक तं दोसर दिस  मुद्रण तकनीकक उत्तरोत्तर सस्त आ सुलभ होयब सेहो थिक। दस हजारक लागत मे आब सय पृष्ठक संग्रह सय प्रति मे छपि जा रहल छै।
          सामान्य पाठक, जकर रुचि मैथिलीक श्रेष्ठ लेखन मे छैक वा जे छपल किताबक माध्यमें भाषाक विकास कें अकानय चाहैत अछि, तकरा लेल सही किताब कें चुनब एक पैघ चुनौती होइत अछि। एहना मे आलोचकक खगता पड़ैत छैक हम सब अनुभव क' सकैत छी जे ओकर काज कतेक कठिन होइत छैक।
                मैथिली कविताक एक कार्यकर्ता हेबाक नातें हम जेना देखल, पछिला दू दशक मे अनेक एहन प्रकाशन भेल अछि जे मैथिली कविताक वर्तमान कें समृद्ध बनौलक अछि। यात्री जीक संपूर्ण कविता एक जिल्द मे 'यात्री समग्र' नाम सं आएल, यद्यपि कि एहि मे कवितेतर विधाक हुनक अन्य रचना सेहो छलनि। तेहने एक महत्वपूर्ण घटना 'कविताधन'क प्रकाशन थिक जाहि मे भीमनाथ झाक संपूर्ण काव्यरचना संकलित छनि। अपना युगक आनो वरिष्ठ कविलोकनिक एहि कोटिक रचना-समग्र बहार होइक, तकर महत्व बुझाइत अछि। साहित्य अकादेमी रचना-संचयन छपलक अछि, तकर महत्व रचनाकार कें व्यापकता मे बुझबा लेल जरूर अछि मुदा कविताक दृष्टि सं नेशनल बुक ट्रस्टक 'कविता संचयन'(संपादक गंगेश गुंजन) आ 'अक्खर खम्भा'(संपादक देवशंकर नवीन)क महत्व कतहु बेसी अछि। ई दुनू संकलन आधुनिक मैथिली कविताक विविध रंग, ध्वनि आ रूप कें बुझबा लेल बहुत उपयोगी थिक। एहि सभक अतिरिक्त पछिला दू दशक मे छपल कविता-संग्रह सब मे सं महत्वक दृष्टि सं पचीस टा संकलनक एक सूची हम अपना उपयोगार्थ बनाओल अछि, तकरा अहूं सब एक नजरि देखि सकै छियैक। एहि सूचीक आधार हमर व्यक्तिगत काव्यरुचि अछि। तें सूचीक लेल कोनो दावा नहि अछि।बेसी संख्याक सूची बनत तं उचिते हमरो सूची नमहर होयत। देखल जाय--1.संग समय के (महाप्रकाश)2.एना तं नहि जे(हरे कृष्ण झा) 3.बौकी धरतीमाता(जीवकान्त)4.एकटा हेरायल दुनिया(कृष्णमोहन झा)5. अथ उत्तरकथा(उदय चंद्र झा विनोद)6. मेटायल पता पर अबैत चिट्ठी(महेन्द्र)7. विलंबित कैक स्वर मे निबद्ध(पंकज पराशर) 8. पराती जकां(विद्यानंद झा) 9. धरती पर देखू(नारायण जी) 10. फेर सं हरियर(रमण कुमार सिंह) 11. काव्यद्वीपक ओहि पार(रमेश) 12. जिनगीक ओरियाओन करैत कविता(कुमार मनीष अरविंद) 13. युद्धक विरोध मे बुद्धक प्रतिहिंसा(अजित आजाद) 14. एतबेटा नहि(अरुणाभ सौरभ) 15. जहलक डायरी(नचिकेता) 16. ग्लोबल गाम सं अबैत हकार (कृष्णमोहन झा मोहन) 17. सबद मितारथ धाय्या(अरविंद ठाकुर) 18. गंगनहौन(निशाकर) 19. बनिजाराक देस मे(दिलीप कुमार झा) 20. स्त्रीक मोन(निवेदिता झा) 21. गेल्ह सब झाड़ैत अछि पांखि(मेनका मल्लिक) 22. विसर्ग होइत स्वर(प्रणव नार्मदेय) 23. खंड खंड बंटैत स्त्री(कामिनी) 24. सुरुजक छाहरि मे(मनोज शांडिल्य) 25. धरती सं अकास धरि(चंदन कुमार झा)


।।पांच।।


मैथिली कविताक वर्तमान कें एक नजरि देखी तं स्थिति निराशाजनक नहि लगैत अछि। तकर कारण थिक युवा लोकनिक विशाल संख्या, जाहि मे अबढंगाह लिखनिहारक संख्या तं अवश्ये बेसी अछि मुदा नीक लिखनिहारोक संख्या एतबा जरूर अछि जतबा पछिला पीढ़ी सब लग नहि छल। नीक कविता आ अधला कविता मे भेद अनैत अछि ओकर काव्यभाषा। काव्यभाषाक विविधता तं एम्हर खूब देखार देलक अछि, कैक युवा अपन बेहतर अभिव्यक्ति लेल नब नब काव्यशैली कें सेहो पकड़लनि अछि। गजल आ गीतक आकि हाइकू सन लघुकविता उपविधा सभक भाषा-प्रयोग सेहो कतेको ठाम ध्यान आकृष्ट करै योग्य भ' क' आएल अछि। भाषाक ओझरौटक समस्या बेसी मुक्तछंदक कविताक संग छै। पछिला पचास बरस सं मैथिली कविता एहि समस्या सं जूझि रहल अछि। मने समुच्चा कविता अहां कें एकटा बयान जकां लागत। आक्रोश, प्रतिरोध सबटा भने होउक मुदा कविताक भाषा जखन कविता सन के नहि हो तं किछुओ बात नहि बनैत छैक। युवा कवि दीप नारायण विद्यार्थीक शब्द मे कही तं 'जिनका कविता मे\जतेक अछि कविता\ओ समय के ततेक पैघ कवि छथि।' मुदा, एहि मर्मक बोध बहुतो कें नहि छनि जाहि दुआरे आइ कविताक नाम पर लिखल जा रहल सत्तर प्रतिशत बयान कचड़ा थिक।

        युवा कवयित्री शारदा झाक एकटा कविता छनि 'आत्मबोध'। एहि मे स्त्री-जीवनक किछु गंहीर विडंबना सब वर्णित भेल छै। स्त्रीक मूल पूजी थिक ओकर देह। से जखन पुरान हुअय लगैत छै, अनेक तरहक तनाव कें जन्म दैत अछि। ई कविता तकरा बारे मे अछि। स्त्री एकर सामना कोना करैत अछि? नब समाज ताकि क'। 'जीवनक एक नमहर समय बिता चुकल स्त्री/भ' जाइत अछि स्वावलंबी/ सभ संग आ साथ सं फराक/ ताकि लैत अछि अपना कें/ भीड़ मे हेरायल नेना जकां।' वैश्वीकरणक एहि जटिल समय मे समाजक महत्व नब तरह सं परिभाषित हेबाक ओतय बात छै। मुदा, आजुक काव्य-परिदृश्य कें देखू तं सामाजिकताक, समूहगत सोचक अलबत्त अभाव भेटत। भने तं अजित आजाद अपन एक कविता मे कवि-समुदायक चित्र लिखलनि अछि-- 'किछु नमस्य कें छोड़ि/ आत्मलीनक एकटा पतियानी धरि अछि अवश्य'। तं सैह। हमर सोच अछि जे कविता मे जं सामाजिक सरोकार नहि हो, एहन सरोकार जाहि सं ओ कोनो दोसरो आदमीक काज आबि सकय तं ओकरा एकटा ठीक कविता कहबा मे सब दिन हमरा संकोच होयत। मुदा स्थिति की अछि? अपन एकान्त आत्मलीनता कें कवि लोकनि शब्द पहिरा क' ठाढ़ करैत छथि आ कहै छथि कविता लिखलहुंए। चंदन कुमार झा अपन एक कविता मे एक साधारण आदमीक बाजब कें चिडै़क बाजब संग उपमा करैत छथि, ओहि ठाम चिड़ैक निष्पक्षताक प्रति एकटा प्रशंसा भाव सेहो अछि। मुदा बात मार्मिक छै। निष्पक्षता जं सामाजिक क्रिया-कलापक संदर्भ मे हो, जेना कविता लिखबा मे, तं सनातन रूप सं ओ एक भीषण कमजोरी थिक। आ कमजोर कविता सं चिरजीवी हेबाक उम्मीद नहि कयल जा सकैत अछि। एकटा दृष्टान्त सं हमर गप बेसी फड़िच्छ होयत। खास आजुक राजनीतिक कुस्थिति पर, साधारण जनक पराभव पर मैथिली मे अनेक कविता लिखल गेल अछि। मुदा अहां गौर करू तं देखब जे एहन कविता सब सीनियर पीढ़ीक कवि लोकनि लिखलनि अछि। युवा कविता एहि बारे मे या तं मौन अछि अथवा तोतराइत अछि। किछु ठाम जं एहन चित्र अबितो छै तं पता चलैत अछि जे ओ तं सीरिया, इरान आदिक संदर्भ मे आएल छैक। की कहल जेतै एकरा? कविताकामिनी कें राजनीतिक झंझावात सं सुरक्षित रखबाक सौन्दर्यशास्त्र? आ कि सामाजिक सरोकारक प्रशिक्षणक अभाव? जे हो, अभाव तं ई अछि आ से एकर आभा कें कम करैत अछि।

       पक्ष-निष्पक्षक बात हो तं कने एहू दिस देखि लेबाक चाही जे कविताक स्वभाव की थिक? अपना ओतक परंपरा मे क्रौंचवधक मर्माहतता सं कविताक आरंभ मानल जाइत छैक। मने कविता पीड़ित पक्षक प्रति पक्षधरता थिक। आधुनिको युग मे कविता सं 'बेजुबान के जुबान' बला काज लेल जाइत रहलैक अछि। मैथिली कविता मे जे कवितावाचक होइत अछि, से के होइत अछि? ओ या तं यात्री जीक गमैया किसान होइत अछि अथवा राजकमल चौधरीक पढ़ल-लिखल बौद्धिक। आन कवि लोकनिक जे कवितावाचक भेलाह अछि से एही दुनूक बीच मे सं कतहु होइत एलाह अछि। एम्हरे आबि क' हम देखि रहल छी जे कविता विजेताक अट्टहास सेहो भ' सकैए, आ कवितावाचक ओकर प्रवक्ता।

      मुदा, युवा कविताक बहुतो विशेषता हमरा खास तौर पर प्रशंसनीय लगैत अछि। एक तं एकर विस्तार। ततेक रास जीवनानुभव आबि रहलैए जे हबगब बनल देखाइत अछि। खूब अन्न उपजल हो आ घर दुआरि पूरा भरल पुरल देखार दियय, ओहि किसानक अहां कल्पना करियौ। नब विषय, नब संवेदना, एहन एहन जगह पर मैथिली कविता कें ल' चलब जतय ओ पहिने कहियो नहि गेल छल, ई सब बात आजुक कविताक दौर मे संभव भेल देखाइत अछि। बिभा कुमारीक एकटा कविता छनि 'कोन दोख'। ओइ मे की छै जे ककरो घर मे एकटा थर्ड जेंडर के बच्चा पैदा भ' गेलैक अछि आ आब ओ जबान भ' गेलैए। ओ ने लड़का थिक ने लड़की, ओहि परिवारक तनाव, ओहि बच्चाक वेदना, सामाजिकताक तानाबाना सब कथू ओहि कविता मे आएल छै। एहि विषय पर पहिनो कोनो कविता लिखल गेल हो, हमरा नहि देखाइत अछि। तहिना, एकटा कविता छनि निवेदिता झाक। शीर्षक तं छै 'मातृभाषा' लेकिन बात-विचार सबटा माय बला छै। एकठाम ओ मां कें संबोधित करैत कहै छथि-- 'हमरा बनेलौं मां अहां मनुक्ख/कर्मक्षेत्र मे जेना पठबै छै चिड़ै'। एहि मे की नब छै? मां कें संबोधित एहन कविता तं घनेरो लिखल गेल अछि। मुदा, मोन पाड़ल जाय, ओ सबटा कविता पुरुष कविक लिखल छल। बेटा एना कहै छै, कारण कर्मक्षेत्र मे चिड़ै जकां मैथिल मां अपन बेटे कें छोड़ैत रहलैक अछि। आ ई एकटा बेटीक लिखल कविता थिक जे कर्मक्षेत्र मे अपन मां कें स्मरण करैत अछि।

     प्रसंगवश हम इहो कहि जे आइ मैथिलीक युवा स्त्री कविता हमरा अपेक्षाकृत बेसी प्रखर बुझा रहल अछि। संभव जे जेना पढ़ाइ-लिखाइ मे बेटी लोकनि प्राय: सब साल आगू देखाइत रहली अछि तकर विस्तार मैथिली कविता धरि चलि अबैत हो। एम्हरका स्त्री कविता मे आत्मदया वा आत्मतिरस्कार वा नि:सहाय खौंझीबला रोष कम भेलैक अछि, भावुकता भरल विगलित-विगलित सन आख्यान सेहो आब नहि छैक। ओकरा स्थान पर अहां देखबै, अपना सं बाहर भ' क' स्त्री एकटा भव्य व्यापकताक दिस बढ़ली अछि। ओतय समाज संग जुड़बाक, दस लेल किछु करबाक उत्साह छै। ओहि ठाम जं प्रकृतियो आएल छै तं समष्टि चेतनाक अंग बनि क'। रोमिशाक एकटा कविता छनि 'उच्छ्वास'। ओहि मे चान के धरती पर उतरबाक दृश्य छै। दूपहर राति मे चान एखन नीमक डारि पर लटकल अछि आ बिचारि रहल अछि जे कोन अंगना उतरी। ओ जतय देखैए ततय या तं 'देहक जाति लिखल जा रहल छै' या फेर 'हताश घर फकसियारी काटि रहलैए'। चानक चिंता ओतय व्यक्त भेलैए आ ओकर असमंजस सेहो जे कोन अंगना उतरी‌ जाहि ठाम सं देखि क' निस्तुकी कयल जा सकय जे धरती एखनो धरि सौरमंडलक संतान छियै कि नहि!

मेनका मल्लिकक एकटा कविता मे गामक ओहि बेटी सभक दृश्य एलैक अछि जकरा आगू पढ़बाक, आगू बढ़बाक अनुमति ओकरा परिवार सं भेटल छै। कहै छथि-- 'माघक ठिठुरैत जाड़ मे/ ललनाक झुंड उष्णताक गप करैत/ बढ़ल जा रहल अछि/ .....झूमि रहल अछि गाछ बिरीछ'। प्रकृति आ स्त्री ओतय एकमएक छै। अनुप्रियाक एकटा कविता एसिड एटैक सं जनम भरिक लेल घायल भेलि स्त्रीक मादे छै, जकर एहि संकल्पक पर्याप्त तर्क ओतय छै जे 'अपना भीतरक आंच सं/ दुनियांक कोनो कोन मे/ सुनगा देब जीबाक लेल आगि'। एकटा सद्य: नवागंतुक कवयित्री रुचि स्मृतिक चारि पांच टा कविता कतहु कतहु हमरा पढ़बा मे आएल अछि। ई सब अपन अभिव्यक्ति मे ततेक विशेष अछि जे आगू रुचि एकटा कीर्तिमान ठाढ़ क' सकै छथि, से लगैत अछि। हमरा आश्चर्य लागल जे एही उमर मे हुनका एहि बातक कते सटीक अवगति छनि जे कविता मे कवि कें अपना खुद कतबा रहबाक चाही, कोन मात्रा धरि आ कतय अलग भ' जेबाक चाही। बांकी तं जखन एक युवा कवयित्री मीना झा अपन एक कविता मे कहै छथि जे 'जकर ने भूत छै ने भविष्य/ बस छै तं निष्प्रयोजन वर्तमान मनमौजीपन', तं मानू भर्चुअल दुनियां मे जीनिहार सौंसे युवा वर्ग कें नांगट क' दैत छथि। मुदा, नांगट होयब सेहो आसान नहि। रोमिशाक एक कविता मे आएल अछि--'पुरनका लोक कें एखनहु नांगट बनब नहि अबैत अछि/ ओ बाट तकैत छथि/ कहियो कोनो दिन सब चिड़ै घुरत खेत दिस / शहरक विकासक कटकी मुंह मे दबौने/ गाम मे खोता सजेबाक लेल'। कहब जरूरी नहि जे एहि ठाम नांगट बनबाक अर्थ थिक अप्रिय भवितव्य कें स्वीकार करबाक साहस, जकर अभाव बताओल गेल अछि। गाम फेरो बसतै एक दिन, सोचू जे एही भरोस पर हम सब जीबि रहल छी, एही भरोस पर अधिकांश युवा लोकनि पाग, माछ, मखान पर कविता लिखि रहल छथि आ मिथिलावासी कें जगा रहल छथि। रोमिशा कहै छथि हिनका लोकनि मे सच कें स्वीकारबाक हिम्मत नहि छनि।

         दोसर दिस, युवा कविताक किछु विशेषता तं हमरा खूबे मुग्ध करैत अछि। जेना बालमुकुंदक बिंब-संयोजन, जेना निवेदिता झाक काव्य-मुद्रा, जेना विकास वत्सनाभक काव्योक्ति-गठन, जेना अरुणाभ सौरभ आ दिलीप कुमार झाक दृश्य-वितान, जेना गुंजनश्रीक सौम्यता आ अंशुमान सत्यकेतुक पौरुष, जेना रघुनाथ मुखियाक दूटूकपन, निशाकरक विरल आपकता।


।।छव।।


वर्तमान समय मे आबि क' हमरा लोकनि प्रबंधात्मक काव्य-लेखन मे अवश्य ह्रास देखि रहल छी। जे महाकाव्य कि खंडकाव्य सब अयबो कयल अछि, आ तकरो संख्या एक दर्जन सं कम की हेतै, पुरनके लोक सभक लिखल छियनि। पछिला चारि पीढ़ी सं मुख्यधाराक कवि लोकनि द्वारा एहि तरहक लेखन बंद छै। हम अख्यासबाक कोसिस केलहुं जे एकर कारण की थिक? भ' सकैए जे एकर कारण अहां कें काव्य-बोधक उत्तरोत्तर विकसित होयब बुझना जाय। से हमरो लेल आश्वस्तिक बात होयत। मुदा, हम देखैत छी जे एकर प्रधान कारण ताहि लायक कवि लोकनिक अल्पप्राण होयब थिक। महाकाव्यक लेल चाही महाप्राण कवि, जिनका परंपराक गंहीर बोध होइन, पात्र सभक संग लगातार जीबाक कल्पनाशीलता होइन, अतुलित धैर्य होइन जे तमाम छिड़ियाएल कें एकतान मे गतानि सकथि। एकर ह्रास भेल अछि।तें एम्हर अपना सब देखैत छी जे जिनका महाकाव्य लिखबाक चाहै छलनि, से लोकनि भक्ति-गजल लिखि रहल छथि। मुदा, एकरो हम मैथिली कविताक एक विशेषते मानैत छी। भारतीय कविता मे साइते कोनो एहन भाषा हेतै, जकरा लग 'भक्ति-गजल' नामक अपन स्वतंत्र उपविधा होइक।

    गजलक बात चलल तं मोन पड़ल, आइ मैथिली गजलक क्षेत्र  मे एक सं एक प्रखर कवि सब योगदान क' रहल छथि। राजीव रंजन मिश्र एहि मे सब सं खास छथि। मनोज शांडिल्य, दीप नारायण विद्यार्थी, सदरे आलम गौहर, महाकान्त आदि बहुतो नाम छथि। बहुत दिनका बाद सारंग कुमार फेर सं सक्रिय भेलाह अछि, तं अपन दोसर पारीक शुरुआत गजले सं केलनि अछि। इहो आश्वस्तिक बात जे वरिष्ठ लोकनि मे सं सेहो कैक गोटे खूब सक्रिय छथि। बुद्धिनाथ मिश्र, सियाराम सरस, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, सुरेन्द्रनाथ आ जगदीश चंद्र ठाकुर खास तौर पर मोन पड़ैत छथि। गीतक क्षेत्र मे सेहो वरिष्ठक संग संग युवा लोकनि बेस सक्रिय छथि। बालकविता सेहो अपन उठान पर अछि। नवलश्री पंकज आ अमित मिश्र खास तौर पर मोन पड़ैत छथि। वरिष्ठ कवि विभूति आनंदक बालकविता-संग्रह छपल अछि।


।।सात।।


युवा पीढ़ीक जखन बात चलैत अछि, यात्री जीक ई लाइन बेर-बेर दोहराओल जाइत अछि जे 'नवतुरिये आबौ आगां'। एतेक बेर दोहराओल गेल अछि जे किनसाइते क्यो मैथिली मे रुचि रखनहिहार लोक एहि लाइन सं अपरिचित होथि। मुदा, हम मोन पाड़य चाहब, जहिया यात्री जी नवतुरिया रहथि, पचीस बरखक उमर रहनि, देश छोड़ि क' लंका विदा भेल रहथि, रस्ते मे ओ कविता लिखने रहथि 'अंतिम प्रणाम', आ 'मिथिलामोद' कें पोस्ट क' देने छलखिन। अपने तं ओ गेला, छपल कविता देखियो नहि सकला। मुदा, जखन ओ कविता छपि क' आयल, कोन तरहें मर्माहत केलक मिथिलाक जाबन्तो पढ़ल-लिखल लोक कें, कोना मिथिलाक स्मृति के अनिवार्य हिस्सा ओ कविता बनि गेल, कोना यात्री जी ओही कविता ल' क' एक पैघ कवि मानि लेल गेला, कोना मैथिली साहित्यक तत्कालीन मैनेजर लोकनि परेशान रहला, ताहि सब बातक एकटा बड़का इतिहास अछि। कांचीनाथ झा किरण कहथि--यौ, की छला तहिया यात्री जी? एकटा गरीब, टूटल झमारल टुग्गर ब्राह्मण, सैह कि ने? तहिया गरीबी आ शोषणक एहन मारि रहैक जे गाम गाम मे लोक सालेसाल गुदरिया बबाजी बनि क' निकलि जाइ छल। ककर कथा पत्रिका मे छपैक? मुदा, यैह तं थिक प्रतिभा। एकटा ओ कविता बनेलनि आ तकरा पत्रिका मे पठा देलखिन!

    से, हम कहैत रही जे नवतुरिया आगू आबौ, ई कोनो कहबाक बात नहि थिक, करबाक काज थिक। संभव जे एहन जं क्यो नवतुरिया बहरेता तं हुनकर विरोध होइन, हुनका पसंद नहि कयल जाइन, हुनका लेल मैथिली लग कोनो सम्मान नहि होइन। मुदा, मातृभाषा लेल किछु करबाक पुरुषार्थ तं एहने ठाम छै। आ, युवा लोकनिक एते भारी वाहिनी देखि क' हमरा आशा होइत अछि जे से साइत भ' सकतैक।

(साहित्य अकादेमी द्वारा दिल्ली मे 25.9.2018 कें आयोजित 'अखिल भारतीय मैथिली काव्योत्सव' मे व्यक्त विचार)

5 comments:

Unknown said...

पूरा पढ़ि गेलहुँ । वियोगीजी बहुत नीक जकाँ अपन विचार रखलनि अछि । हिनक लेखनी निष्पक्ष आ तथ्यपरक अछि ।हमरा ज्ञाने कतेक जे हिनकापर किछु लिखी ,मुदा एक साँसमे पूरा पढ़ि गेनाइ ओहो समीक्षात्मक लेख बिना कतहु अवरोधक ,अपन वेगमे,ई वियोगीजीक सम्पूर्णताक परिचायक थीक ।

Unknown said...

सार्थक लेख। उत्तम। बहुत महिनी सँ बात उठाओल अछि। एहि पर बात सेहो करबाक अछि फैल सँ।

Unknown said...

सार्थक लेख। उत्तम। बहुत महिनी सँ बात उठाओल अछि। एहि पर बात सेहो करबाक अछि फैल सँ।

Unknown said...

ई आलेख सुनबाक सुअवसर हमरा भेटल। बहुत सम्यक आर महीन गप्प केँ उठाने रहथिन वियोगी सर।

तारानंद वियोगी said...

बहुत ध्यान सं पढ़बाक लेल आभार