नद्दी कातक आमक गाछी मोन पड़ैए
एकपेरिया मे बूलैत बाछी मोन पड़ैए
बड़का बाबा के तड़बा कुड़ियाबैत छलियै
आमक महिना सभतरि माछी मोन पड़ैए
अपना गामक लोक तकैत अछि चिडै... हमहूं अनभुआर टौन मे तकैत छी माटि-पानि...
नद्दी कातक आमक गाछी मोन पड़ैए
एकपेरिया मे बूलैत बाछी मोन पड़ैए
बड़का बाबा के तड़बा कुड़ियाबैत छलियै
आमक महिना सभतरि माछी मोन पड़ैए
हमहुं ने गेलियइ बहुत दिन सं गाम'
कि टौने टौने खूब छिछियेलइ
कमेलियइ ने कौड़ी
अदौड़ी सन भेल अछि मोन
मां काकी अंगना के गोबर सं निपलनि भोरे
रे बउआ देखय छलियौ सपना मे सभ खन तोरे
भेलियइ अबंड देखलियइ ने ककरो
कि र'ने-ब'ने ताकैत छलियै अपना के
सेहो ने पओलियइ
गमा क' सभ ध' लेलियइ कोन
पातक पिपहरी के सीटी मे बाझल दुफरिया
खिहारैत छल सोन पीसी हेरे हेरे हेरे हेरे करिया
काठक करेजा में दबि गेल ओ दिन
कि कनी कनी हुक-हुक अखनो
करय-ए ई छाती
जरल जी पर मोटगर नोन
पिछली सदी में मैथिली के ज़रूरी रचनाकार हुए कांचीनाथ झा किरण। पिछले दिनों पटना में उनका जन्मशताब्दी समारोह मनाया गया। अंतिका का नया अंक किरण जी पर ही केंद्रित है। इसके अतिथि संपादक हैं तारानंद वियोगी। इस अंक में किरण जी पर मैथिली के महत्वपूर्ण लेखकों ने लिखा है। अंक के लिए अनलकांत (हिंदी वाले गौरीनाथ) से 0120-6475212 पर संपर्क करें या उन्हें antika1999@yahoo.co.in पर ईमेल करें।