Wednesday, January 10, 2007

तकैत अछि चिड़ै

जीवकांत

रातिक अंतिम पहरमे
चिड़ै जगैत अछि
राजमार्ग पर घोदिआइत अछि

छोट-छोट जानवर सभक देह
टुटैत अछि गाड़ीक पड़िया तर
छोट-छोट घौदामे
तकैत अछि चिड़ै

आंगनमे बाँस पर बैसल अछि छिड़ै
कुड़िअबैत अछि अपन पाँखि लोलसँ
तकैत अछि चिड़ै
चार सभक दुनू कात
झीलक कछेरमे सिम्मरक गाछ पर
बैसल चिड़ै गबैत अछि गीत
तकैत अछि पानि दिस
झीलक पानि दिस
की सभ दहाइत छैक पानिमे
तकैत अछि चिड़ै

4 comments:

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

मजा आबि गेल्.मैथिली में ब्लाग क उपस्थिती कम छै.अहांक प्रयास अवश्य रंग लायत्. हमर सन कम मैथिली लिखेवला क शायद किछ सिख मिलते
अहिंक
गिरीन्द्र नाथ झा

Divine India said...

bhai,mai puri tarah se to samajh nahi saka lekin kuch bhav pakad me aay lekin isme agar hindi ki bhi prdhanta ho jaye to kavita kaa bajan samajh me aayegaa.kyo ki mithila ke log shayad group me kuch kam hai.just keep it up.

satish said...

nik lagal, aab maithil bhadesh nahi rahal..... aanga badhet jau.

Gajendra said...

nik prastuti lagal jivkant jik rachnak