तारानंद वियोगी
कठोपनिषद् मे वर्णित नचिकेताक उपाख्यान सँ भारतीय ज्ञान-परंपराक संग जुड़ल सब गोटे परिचित छी। एकर निहितार्थ छै-- छोट उमर मे ज्ञान-पिपासाक अतिरेक। हमरा सभक कवि नचिकेताक संग यैह बात रहलनि। हुनकर परम चर्चित कविता-संग्रह 'कवयो वदन्ति' 1966 मे तहिया छपलनि जखन हुनकर उमर केवल पन्द्रह साल रहनि। मोन पाड़ल जाय, कवि-गुरु रवीन्द्रनाथक पहिल कविता-संग्रह 'भानुसिंह ठाकुरेर पदावली' ठीक एही उमर मे छपल छलनि। ज्ञानक जाहि-जाहि क्षेत्र मे नचिकेताक अधिकारिता छनि, जेहन पैघ-पैघ पद पर पदासीन रहि ओ अपन ज्ञानक सदुपयोग विश्व-हित मे केलनि अछि, जाहि तरहें विविध ज्ञान-क्षेत्र मे राखल गेल हुनकर स्थापना सब कें सौंसे संसारक विशेषज्ञ लोकनि गंभीरता सँ लैत अख्यास कयल करै छथि, तकर विवरण देल जाय तँ ई लेख तँ छोट पड़बे करत, पैघ-पैघ कतेको लेख लिखय पड़त। एहि ठाम कवि-गुरु रवीन्द्रक प्रसंग मे केवल यैह कहय चाहब जे हमर ई मैथिली कवि वैश्विक स्तर पर आइ, अपन आन अनेक ख्यातिक अतिरिक्त रवीन्द्रनाथक एक सुयोग्य अधिकारी विद्वान सेहो मानल जाइत छथि। योग्य माता-पिताक योग्यतर संतानक रूप मे सब अर्थें नचिकेता, जे अधिक ठाम उदय नारायण सिंहक नाम सँ जानल जाइत छथि, हमरा लोकनिक गौरव छथि।
नचिकेताक व्यक्तित्व एहन विरल, जे विश्वास करब कठिन क' दैत छैक जे ई एक मैथिल थिका। योग्य लोक कें पाबि क' ईर्ष्याक स्थान पर स्नेह-श्रद्धा करब। मंच पर बाजब जते संतुलित आ सारगर्भित, एहन बजनिहार दोसर कोनो लोकक बाजल सुनब ताहू सँ बेसी उदग्र आ अनथक। अपन असहमतिक आखरी हद धरि जा क' सहमतिक तलाश करब, जँ किछु तथ्य आ तर्क सामने राखल जाय। अपन मूलभूत स्वभावे सँ परम लोकतांत्रिक, जेहन कि मैथिल बौद्धिकक हैब असंभव सन घटना बूझि पड़ैत अछि। समस्त सांसारिक अस्तित्व कें विज्ञान-सम्मत ढंग सँ ग्रहण करब, आ ओकर दार्शनिक तह धरि प्रवेश क' जायब, ई हुनकर प्रकृतिये मे जनु शामिल होइन। कोनो काज कें ठीक ओही रूप मे कार्यान्वित करब, जेहन कि नियमावली मे विहित छै। अइ बातक लेल एक उदाहरण देब हमरा उचित बुझना जाइत अछि। नचिकेता एखन साहित्य अकादेमी मे मैथिलीक संयोजक छथि। अइ पद कें पाबि क' कतेको गोटे कते कते अनर्थ क' गेला, तकर इतिहास मे जायब तँ घृणा सँ मोन खिन्न हैत। बड़को बड़को लोक सब ई धतकरम केने छथि, क्षुद्र मानव-मानवीक तँ कथे कहब निरर्थक। साहित्य अकादेमी बहुतो प्रकारक पुरस्कार हरेक साल दैत अछि। संयोजकक हैसियत सँ नचिकेताक उचिते एहि सब मे महत्वपूर्ण भूमिका रहैत छनि। मुदा, कोनो पुरस्कारक जूरी मे के सब विद्वान छथि, नचिकेता कें बूझल नहि रहैत छनि, कारण प्रावधान सैह छैक। हरेक जूरीक मीटिंग मे ओ उपस्थित रहै छथि, मुदा प्रक्रिया मे ओ हस्तक्षेप करता, तकर कल्पनो धरि नहि कयल जा सकैछ। कारण, नियमावली मे यैह विहित छै।
नचिकेताक अध्ययन तलस्पर्शीक संग-संग बहुव्यापक छनि। ओ देश-विदेशक कतेको भाषाक ज्ञाता छथि, आ ओहि भाषा सभक भाषिक आ साहित्यिक अध्ययन मूलभाषा मे जा क' क' सकै छथि। अपन अध्ययनक निचोड़ कें कोनो आन भाषा, आ विशेष रूपें अपन पितृभाषा मैथिली आ मातृभाषा बंगला मे प्रस्तुत क' सकै छथि। हुनकर एहने दृढ़ पकड़ ग्रीक आ भारतीय मिथकशास्त्र पर छनि। तीन रूपें एकर लाभ मैथिली कें भेटलैक अछि। नचिकेताक लिखल कविता, नाटक आ निबंध रूप मे ई सब वस्तु बहुतो दिन सँ हमसब देखैत रहल छी। मोन पड़ैत अछि, अपन जीवन मे पहिल मैथिली नाटक जे हम 1980क जबाना मे, पटना मे देखने रही, ओ रहय 'एक छल राजा', जकर अभिनेता तँ छत्रानंद सिंह झा आ प्रेमलता मिश्र प्रेम रहथि, मुदा हमरा लेल नाटककार नचिकेता सँ पहिल परिचयक यैह अवसर छल।
सृजनात्मक लेखनक क्षेत्र मे कविता आ नाटक, ई दू टा विधा थिक जाहि मे नचिकेता शुरुहे सँ काज करैत रहला अछि आ अपन काज कें एक उच्च धरातल पर स्थापित केलनि अछि। हुनकर साहित्य मे विविधता भरपूर छनि आ किनसाइते कोनो समकालीन मुद्दा हो जकरा ओ अपन संज्ञान मे नहि अनने होथि। हुनकर कयल काजक महत्व कें हमसब एही सँ अकानि सकै छी जे अपन पहिले काव्य-पुस्तक 'कवयो वदन्ति' मे ओ 'नव चेतनावाद'क प्रस्तावना केलनि आ अपन परंपरा कें यात्री संग जोड़लनि। ई किताब 'नव-चेतनावादक ज्योति-स्तम्भ' यात्रिये कें समर्पित कयल गेल छनि। हुनकर काव्य-लेखनक स्वभाव पहिले कविता-संग्रह सँ स्पष्ट हुअय लगैत अछि। विडंबनात्मक घटना-परिघटना खास तौर पर हुनकर विषय बनैत छनि। अप्रतिम ओज, साहस आ आत्मबल सँ परिपूर्ण कवि अपना समयक समस्त विषय-वितान कें पूरा दृढ़ताक संग पकड़ैत छथि। विषयक पूरा अभिज्ञान एक मनोवैज्ञानिक दार्शनिकताक संग उद्घाटित होइत छैक। 'कवयो वदन्ति' मे संकलित पहिले कविता थिक-- 'अग्रगति नहि हैत'। कविता छैक-- 'हमरा सभक अग्रगति नहि हैत!/ एकर अनेक कारण छैक/ हम सब सोझ पथें नहि जायब/ तखन त हमरा सभक आधुनिकता आ शिल्पबोध/ नष्ट भ' जायत।/ हम सब वक्र पथें नहि जायब/ तखन त हमरा सभक कलात्मकता/ क्लेद आ ग्लानिक परिचायक हैत/ हम सब वृत्ताकारहु नहि जायब/ तखन त सैह कालक गोरखधंधा मे/ घुरैत रहब/ हम सब सत्य-मिथ्या कें ध्रुव जनैत छी/ तें हम सब ध्रुव हैब!/अर्थात्......'।
जेना आधुनिक मंचशिल्पक लेल नचिकेताक नाटक सभक बेस सम्मान अछि, ठीक तहिना विरल शिल्प-प्रयोगक लेल मैथिलीक आधुनिक कविता मे हुनकर अपन बेछप पहचान छनि। मैथिली कविताक एक विलुप्त होइत शिल्प --दीर्घकविता-- कें अपन 'छाया' (कविता-पुस्तक) सँ एक गंभीर प्रस्थान रचैत छथि। जीवनक मर्म कोना तह-दर-तह अपन उन्मुक्तिक अभीप्सा रखैत अछि, आ एक समर्थ कवि सब तह कें पार करैत लक्ष्य धरि अन्तत: पहुँचिये जाइत अछि, एहि प्रयत्न कें देखबा लेल मैथिलीक ई एक माइलस्टोन काज थिक। बिम्ब, प्रतीक, रूपक, मिथक आ आख्यान कोना नाना रूप धारण कयने जीवनक महान महान आर्यसत्य कें उद्घाटित करैत अछि, से देखबा जोग अछि।
मोन पड़ैत अछि, एक समय, प्राय: अस्सीक दशक मे 'मिथिला मिहिर' पत्रिका मे वरिष्ठ मैथिली रचनाकार लोकनिक बीच कैक मास धरि वाद-प्रतिवाद चलल छल जे मैथिलक जीवन-जगत मे 'प्रेम' के कोनो स्थान नहि छैक, तें एकर कविता वा कथा लिखबा जोगर भाषा आ शिल्प धरि विकसित नहि भ' सकल अछि। मैथिल जीवन-जगत मे जे चीज सर्वसुलभ छैक, से थिक-- 'छिनरपन', जकरा लेल काकु सँ ल' क' चिकारी धरि बहुतो बहुत प्रकारक भाषा-शिल्प विद्यमान छै। हमरा ई कहैत संतोष सँ बेसी गर्व होइत अछि जे मैथिली कवि नचिकेता ने मात्र सुन्दर आ देखनगर प्रेम-कविता सब लिखलनि, बरु एकर व्याप्ति कें बढ़बैत समान बौद्धिक धरातल पर जिबैत दू समानधर्मा स्त्री-पुरुषक बीच प्रेमक लेल ने केवल समुचित भाषा आ शिल्प अर्जित केलनि अछि, अपितु मैथिली कविता मे जे वस्तु अकथित रहि गेल छल, तकर कथन लेल मैथिली कें समर्थ बनौलनि अछि। कोनहु रचनाकारक जीवन के चरम सार्थकता की थिक? निश्चय यैह थिक जे जाहि भाषा मे ओ काज करैत हुअय, तकरा आर अधिक सबल, आर अधिक सक्षम बना सकय।
नचिकेता अपन कर्मठ आ सार्थक जीवनक पचहत्तरि वर्ष पूरा केलनि। हुनका प्रति अनन्य प्रेम रखैत शुभकामना करै छी जे शतायु भ' ओहि समस्त काज कें ओ एही कर्मठता आ सार्थकताक संग पूर्ण करथि जे प्रकृति हुनका लेल विहित कयने छनि।


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