Thursday, September 7, 2023

शेष कथाक नायक :विभूति आनंद


 


तारानंद वियोगी

       जखन कखनो हम अपन समकालीन लेखक विभूति आनंदक स्मरण करैत छी, हुनकर छवि एक नायक रूप मे अभरैत अछि। एहि छविक भीतर अनेको प्रतिच्छवि समाहित छैक, मुदा हुनकर नायकत्व कतहु खंडित होइत नहि देखैत छी। एकर असली कारण तं स्वयं हमरा भीतर अछि। हुनका मोन पाड़ी तं 1982 मोन पड़ि जाइत अछि, जतय हुनकर नायकत्व हमरा भीतर आकार लेलक। हुनका संग-संग जाहि दोसर लेखकक नायकत्व अभरैत अछि, ओ केदार कानन छथि।
       1982 ओ समय छल जखन हमरा मैथिली मे लिखा-पढ़ी शुरू केना मात्र तीन वर्ष भेल रहय। अपना पीढ़ीक लेखक लोकनि मे हम सब सं कम आयुक रही। 1982 मे पटना मे एक बड़ भारी लेखक सम्मेलन भेल छलै-- नवतुरिया लेखक सम्मेलन। मैथिलीक एहन कोनो पैघ आयोजन, जाहि मे अपना समयक समस्त वरिष्ठ लेखक उपस्थित रहथि, ई हमर पहिल भागीदारी छल। एहि घटना कें भेना आब चालीस वर्षक करीब हुअय जा रहल अछि, एहि बीच सैकड़ो आयोजन भेल जाहि मे शामिल रहल छी। मुदा, हम बेधड़क कहि सकै छी जे ओहि आयोजनक जे गंभीरता आ बहुआयामिता, एकाग्रता रहै, आ जतेक उच्च कोटिक श्रोतावर्ग एकरा भेटल रहै, एहन कोनो दोसर आयोजन हमरा नहि देखल अछि। यैह अवसर छलै जहिया निर्विवाद रूप सं हमरा सभक नवतुरिया लेखन मैथिली साहित्य मे अपन नवता आ ओजस्विता कें ल' क' प्रतिष्ठापित भ' गेल रहै। एकर आयोजक रहथि-- विभूति आनंद आ केदार कानन। दुनू स्वयं नवतुरिया लेखक छला। हमरा दुख अछि जे एते भारी कार्यक्रमक डाक्यूमेन्टेशन  ढंग सं नहि भ' सकल। ओकर बाद कैकटा नव-नव पीढ़ी आयल, मुदा ओहि तरहक कोनो आयोजन आइ धरि कोनो पीढ़ी नहि क' सकल अछि। आब तं कदाचित ओहि तरहक आयोजनक बारे मे सोचनिहारो किनसाइते क्यो हेता। विभूति आ केदारक ई नायकत्व आइयो हमरा मोन मे बसल अछि।
           केदार मोन पाड़लनि तं स्मरण भेल, ई जे आइडिया रहय, नवतुरिया लेखक सम्मेलनक, से मौलिक रूप सं हमरे भीतर उपजल रहय। ई बात ओ कतहु लिखनहु छथि। अपना पीढ़ीक लोक सब आइयो हमरा आइडिया-मास्टर आ प्लानिंग-मास्टर के उपाधि दैत छथि। से बरु बेस। मुदा हम जनै छी, एहि जीवन मे जते योजना बनाओल, मुश्किल सं पांच प्रतिशत अमल भ' पाओल हैत। योजना महत्वपूर्ण नहि होइ छै, महत्व रहै छै ओकरा कार्यरूप देबाक। इतिहास साक्षी अछि, दुनिया कें ओ लोकनि बदललनि जे योजना कें कार्यरूप द' सकला, ओ नहि जे योजना मात्र बनबैत रहला। केदार संग हमर दोस्ती बड्ड प्राचीन। 1979-80 मे कहियो हम सुपौल मे अइ योजना पर गप केने रही। हुनका अवसर भेटलनि जखन ओ पटना यूनिवर्सिटी पहुंचला। आ, ई दुनू गोटे एकरा कार्यरूप द' सकला। ई हमरा लेल तहिया सं आइ धरि बहुत भारी बात अछि आ अपन एहि दुनू मित्र कें नायकत्व प्रदान करैत अछि।
       विभूति आनंदक लेखन मे विविधताक तत्व हमसब शुरुहे सं मौजूद देखैत छी। ई विविधता अनेक रूपक अछि। अनेक विधा, अनेक शैली, अनेक भाषा-वितान, अनेक विचार-सरणि। ई चीज आइयो हमसब हुनका मे अविकल देखि सकैत छी। हमरा सभक पीढ़ी मे आबि क' अनेको तरहक नवाचार मैथिली मे पनपब शुरू भेल छल। किछु प्रसंगक उल्लेख एतय करब। मैथिली मे गजल के फोरमेट मे काव्यरचना जीवन झा 1905 मे शुरू कयने छला। तीसक दशक मे यात्रीजीक सेहो एहि तरहक काव्य भेटैत अछि। मुदा, आश्चर्य लागत ई जानि क' जे 1980क दशक मे आबियो क' गजलक बारे मे मैथिलीक आचार्य सभक यैह मत रहनि जे गजल एक विजातीय वस्तु थिक जे मैथिली मे लिखले नहि जा सकैछ। ध्वनि एहना सन जे गजल जें कि मुसलमानी वस्तु थिक, मां मैथिली कें एकर छुतका सं दूरे राखल जेबाक चाही। सब कें बूझल हैत जे मायानंद मिश्र गजलक लेल जं थोड़ उदारता राखितो छला तं हुनकर अत्याग्रह एकर नाम बदलि क' गीतल कैल जेबा पर छलनि आ बाद मे ओ अपन गीतल-संग्रहो छपौलनि। प्रश्न रहै जे अपन मूल स्वभाव मे दू-दू पांतिक शेर मे जे एक अपूर्व चमक सं भरल मर्म कहि जेबाक सामर्थ्य फारसीक एहि काव्य-शैली मे रहै, से मैथिली मे सेहो संभव भ' सकैत अछि। नवतापूर्ण प्रयास सभक लेल हमरा लोकनिक पीढ़ी ख्यात छल। हमसब मैथिली गजल कें एक नवीन काव्यात्मक उपलब्धिक रूप मे उठेलहुं। आ देखल जाउ जे मैथिली मे गजलक जे पहिल-पहिल मुकम्मल संग्रह प्रकाशित भेलै, से विभूति आनंदक कृति 'उठा रहल घोघ तिमिर' छल।
       हमरा सभक पीढ़ीक अधिकांश लेखक आन-आन विधाक संग कथा-लेखन सेहो केलनि। विभूति एहि मे अव्वल रहला। सब सं कमाल जे चारि दशक सं बेसी समय सं लेखन केनिहार कैक गोट रचनाकार एहन भेला जिनकर कथा-लेखन बाद मे छुटि गेलनि मुदा, विभूति जतबे उर्वर अपन नौजवानी मे छला ततबे एखनो, रिटायरमेन्टक बादो छथि। हमरा लगैत अछि, हुनकर चारि दशकक कथा-लेखन कें एक संगे देखने मैथिली कथा-साहित्यक ने केवल विकास कें, अपितु समयक धुकधुकी कें पकड़ि पेबाक एकर उत्तरोत्तर बढ़ैत कौशल कें सेहो देखल जा सकैत अछि। विना कोनो दावेदारीक जतेक तरहक प्रयोग, से चाहे कथ्यक स्तर पर हो कि रूपक, भाषाक-- विभूतिक कथा-लेखन वैविध्यपूर्ण अछि, तकर दृष्टान्त अन्यत्र पायब कठिन अछि।
       एहि बात दिस बहुत कम अध्येताक ध्यान गेलनि अछि जे जकरा हमसब आधुनिक मैथिली कथा कहैत छी, तकर विकास एक धारा मे नहि, अलग-अलग दू धारा मे भेल अछि। एक धारा ललितक छनि, दोसर राजकमल चौधरीक। अन्तर तं अनेको छै मुदा सब सं देखनगर जे अंतर अछि से कथाभाषे मे देखाब द' दैत अछि। ललितक भाषा बेस गद्यात्मक। जं कहबै जे कथा गद्य थिक तं गद्यात्मक होयब तं ओकर अनिवार्ये गुण हेतै। मुदा से नहि। राजकमलक भाषा कें देखियनु। ओ गद्य काव्यात्मक छै। गद्य मे सब कथू कें सिरा सं कहि जायब आवश्यक होइछ, से ओकर यथार्थवादी चरित्रक कारण, मुदा काव्यात्मक भाषा मे बहुतो रास गैप छोड़ि देल जाइछ, तकर अपन प्रवाह होइछ आ पृथक प्रभाव सेहो, आ से करिते कथा अपन गमन-विन्दु दिस बढ़ैत अछि। राजमोहन झा, सुभाष चन्द्र यादव, अशोक आदि ललित धाराक कथाकार छथि। जखन कि साफ देखबै जे राजमोहन झा जाहि तरहें कथा लिखलनि, धूमकेतु ताहि सं एकदम्म भिन्न ढंग सं कथा लिखैत छला। धूमकेतु राजकमल-धाराक कथाकार छथि। स्वयं विभूति ललित-धाराक एहन कथाकार छथि जे बहुतो नव वस्तु ओ मैथिली कथा-लेखन मे जोड़लनि। जेना, सम्पूर्ण कथाक संवादात्मक होयब जे कि आम तौर पर नाटके मे होइत छल। मुदा तें हुनकर एहन कथा कें एकांकी कहि देबै, सेहो संभव नहि। कारण, ओहि मे कथा हेबाक जाबन्तो गुण झकझक देखार पड़ैत रहैत छैक। भाषा-वैविध्यक सेहो जतेक प्रयोग हुनका ओतय भेटैत अछि, तकर दृष्टान्त दुर्लभ अछि।
       विभूतिक विशेषता आरो कैकटा छनि। ललित हुनकर कथा-धाराक प्रवर्तक छलखिन। तहिया ललित जिबैत रहथि। ओ ललित सं संपर्क केलनि। ललित कें फेर सं कथा-लेखनक लेल राजी क' सकथि ताहि मे तं ओ सफल नहि भेला, बहुतो पैघ-पैघ लोक पहिनहु असफल भ' गेल रहथि। मुदा ई ओ अवश्य क' सकला जे ललितक साक्षात्कार आयल। हुनकर कथा-कला पर ओ एक सुंदर आ उपयोगी पुस्तक लिखलनि। एतबे नहि, आगू ओ ललितक समस्त संकलित-असंकलित रचना सब कें चूनि-बीछि 'ललित-समग्र'क प्रकाशन संभव केलनि। हमरा लोकनि देखल अछि, विभूति जाहि कोनो मुद्दा पर लगला अछि, ओकरा एक परिणति धरि पहुंचौलनि अछि।
       मैथिली आलोचनाक जे स्थिति छै, से सब गोटे देखि रहल छी। एहन नहि छै जे मैथिली लग गर्व करबा योग्य आलोचना बचले नहि छै। मुदा, मठाधीश सभक चेला-चाटी ई हालति बना देने छैक जे आइ जकरा मोन हो से मैथिली आलोचनाक नाम पर एक थुम्हा थूक फेकैत गरिया क' चलि जाइत अछि। एहि भवितव्यता कें तोड़बाक लेल सघन प्रयास नहि भेल हो, सेहो नहि। एखन हाल मे मोहन भारद्वाजक निधन भेल छनि। आचार्य रमानाथ झाक निरमाओल शैली आ भाषा-वितानक गछाड़ सं मैथिली आलोचना कें मुक्त केनिहार योद्धा छला मोहन भारद्वाज। मुदा, हमरा लोकनि देखैत छी जे हुनकर निधनक संगहि मैथिली मे पूर्णकालिक आलोचनाक परंपरा समाप्त भ' गेल। आब जे किछु बचल अछि से कि तं मात्र प्राध्यापकीय अर्थात छात्रोपयोगी आलोचना छैक, अथवा विचारविहीन तथ्य-संकलन। ई कोनो आइये शुरू भेल हो, सेहो नहि। स्वयं मोहन भारद्वाज एहि प्रवृत्तिक संग सब दिन जूझैत रहला। एकर सर्वाधिक मुखर प्रतिवाद हमरा लोकनि कें राज मोहन झाक आलोचना मे देखार पड़ैत अछि।
       आइये नहि, प्राय: दू दशक सं बेसी समय सं हमसब देखैत छी जे मैथिली मे सर्वश्रेष्ठ आलोचनात्मक अवदान ओहि लेखक सभक रहलनि, जे पूर्णकालिक आलोचक हेबाक बदला सृजनात्मक लेखनक व्यक्ति छला। हमरे सभक पीढ़ी मे देखी तं अशोक, शिवशंकर श्रीनिवास, केदार कानन, रमेश आदि कैकटा नाम देखाइत छथि। विभूति सेहो एहि मे सं एक प्रमुख छथि। एहि ठाम जतेक गोटेक हम नाम लेलहुं, सभक आलोचनाक एक विशिष्ट आभा छनि आ से एक दोसर सं सर्वथा भिन्न छनि। सभक अलग-अलग विशेषता कतहु आन ठाम, एतय हम विभूतिक आलोचना पर किछु बात करब।
       विभूतिक आलोचना अधिकतर व्यक्ति-परिचय सं आरंभ होइछ। व्यक्ति अर्थात आलोच्य रचनाकारक ओ परिचय जे स्वयं विभूति हुनका संगत मे रहि क' अथवा हुनका पढ़ैत-गुनैत प्राप्त कयने छथि। रमानाथ झाक ओ कथन एतय हमरा मोन पड़ि जाइत अछि जतय ओ टी एस इलियट कें कोट करैत कहने छथि जे रचनाकार-व्यक्तित्वक सम्यक स्फुटन आलोचनाक प्रथम धर्म थिक। से, विभूतिक आलोचना मे व्यक्तित्वक ई स्फुटन संस्मरणक माध्यमें चलैत छैक आ प्रसंगानुसार ओहि पर ओ अपन आलोचकीय अभिमत प्रकट कयने जाइत छथि। कहब आवश्यक नहि जे मैथिली आलोचनाक जे एक पैघ संकट थिक से पाठकीयताक अभाव थिक। एकर परिहार विभूतिक आलोचना एहि बाटें करैत अछि।
       विभूति जहिया सं पढ़ब-लिखब शुरू केलनि, कहियो हुनकर लेखन-यात्रा कें स्थगित होइत नहि देखल। ओ सब दिन किछु ने किछु लिखिते रहला। हुनकर जीवन मे विभिन्न पड़ाव आयल। कैक बेर एहन भेलै जे ओ भारी-भारी पीड़ा मे, संकट मे पड़ला। जं लेखन हुनका लेल जीवनक आवश्यकता नहि होइतनि तं ई कहिया ने छूटि गेल रहितनि। मुदा, लेखन हुनका जीवन मे, जीवन-शैली मे ताहि तरहें शामिल अछि जे कतबो संकट एला पर ओ एकरे सं संजीवनी शक्ति प्राप्त करैत रहला अछि।
       जेना कि हुनका जीवन कें देखने लगैछ, आ एकर किछु दृष्टान्त एहि लेखो मे आयल अछि, नव-नव वस्तु, प्रयोग, शिल्प हुनका सदैव आकृष्ट करैत रहलनि। विभूति मैथिली लेखकक ओहि समुदाय सं अबैत छथि जिनका लेल विचार वा विचारधाराक बन्धन वा प्रतिबद्धता किन्नहु स्वीकार्य नहि होइछ। तें, यदि अहां एहन अध्ययन करय लागी जे विभूति अपन लेखन मे कतय सं चलि क' कतय पहुंचला, तं कदाचित अहां कें निराशा हाथ लागि सकैत अछि। वस्तुत: ई हुनका देखबाक समुचित पद्धतिये नहि थिक। अपन बद्धमूल संस्कार कें यथावत रखैत क्यो कोना सदा चिर नवीन होइत यात्रा काटि सकैत छथि, विभूतिक लेखन-यात्रा तकर नीक उदाहरण भ' सकैत अछि। हमरा लोकनि देखैत छी, सोशल मीडियाक प्रादुर्भाव जखनहि भेल, विभूति कोना सुहृद मोनें एकर खूबी कें बुझलनि आ अपन अभिव्यक्तिक एक सुंदर माध्यम एकरा बनौलनि। देखि सकै छी जे पछिला दशक मे फेसबुक पर सर्वाधिक सक्रिय जं कोनो मैथिली लेखक रहला तं ओ विभूति आनंद छथि। हाल-साल मे छपल हुनकर लगभग एक दर्जन किताब प्राथमिक रूप सं फेसबुक पर लिखल गेल अछि।
       एहि लेखक आरंभ मे हम नवतुरिया लेखक सम्मेलनक चर्चा केने रही। आयोजनक ई प्रतिभा सेहो हुनका मे लगातार बनल रहलनि आ यथावत एखनहु बरकरार छनि। एकर एक अत्यन्त उपादेय परिणति हमरा लोकनि 'जखन तखन व्याख्यानमाला'क रूप मे देखि सकै छी। आइ एहि तरहक आयोजनक कते भारी खगता अछि तकरा बुझनिहार नीक जकां बुझि सकैत छथि। आइ मिथिला मे एक एहन नवपीढ़ीक आगमन भेल छैक जे जनबा लेल तं दुनिया भरिक जानकारी सं लैस अछि, मुदा मिथिलाक बारे मे अत्यन्त कम, नगण्य जनैत अछि। जतबा जनैत अछि सेहो बहुसंख्यकवाद आ अधिनायकवादक बिख सं दूषित छैक। एहना मे बेस मौजूं विषय पर आध दर्जन सं बेसी आयोजन एही 2023 मे संपन्न क' लेब एक विशिष्ट मिथिला-सेवा कहल जायत, जखन कि सत्यता छै जे प्रधान-अप्रधान सेवके जकां मिथिलाक सेवा लेल अपस्यांत हुजूम चारू दिस सक्रिय देखाइ छथि। बुझनिहार नीक जकां बुझि रहल छथि जे कोन सेवा मिथिलाक कते काजक भ' सकै छै। विभूतिक संकल्प छनि, एक दर्जन व्याख्यान पूरा भेला पर ओ एकर लिखित रूपक पुस्तक बहार करता। ओ अवश्ये बहार क' सकता, कारण से सब करैत रहबाक रिकार्ड हुनकर नीक रहलनि अछि।
       एहने एक काज सीता पर लिखल मैथिली कविता सभक संग्रह रूप प्रकाशन थिक जकरा ओ हालहि मे संपन्न केलनि अछि। एखन फेर ओ गोनू झा पर लगला अछि आ हमसब आशा करैत छी, गोनू झा पर एक निर्भ्रान्त पुस्तकक प्रकाशन जल्दिये देखि सकब। मुदा, हुनकर एहि प्रकारक काज सभक सर्वाधिक उपादेय संकलन जे हमरा देखाइत अछि से लोकगीतक हुनक संकलन 'गीतनाद' थिक। अणिमा सिंहक बाद एहि दिशा मे सर्वाधिक व्यापक काज विभूतिये कयने छथि। एहि संकलन मे ज्योत्स्ना जी हुनका संग छलखिन। हुनका दुनू गोटेक जोड़ी कें बिछड़ि जायब हमरा सदा एक मर्मान्तक घटना सन लागल अछि। मुदा, हमसब बड़भागी छी जे विभूति नीक जकां अपना कें सम्हारि सकला।
       हुनकर एक प्रवृत्ति देखैत छी जे जाहि कोनो काज मे ओ लगला, सदा अपना संग एक मित्र कें रखलनि। एखन अयोध्यानाथ जी कें हमसब हुनका संग सक्रिय देखै छी। 'जखन तखन' पत्रिकाक प्रकाशन मे हीरेन्द्र कुमार झा छलखिन। तहिना आनो, अनेक। सक्रियता ततेक मिलजुमला जे कोनो एक कें पुछियनु तं ओ दोसर कें अधिक श्रेय दैत देखार पड़ता। परंपरित मैथिल मनोवृत्तिक ई कते विपरीत बात थिक, तकरा अकानी तं विभूतिक व्यक्तित्वक किछु आर परत खुलैत अछि।
       कते खुशीक बात थिक जे हमर ई विशिष्ट लेखक सेवानिवृत्तिक बाद आरो बेसी त्वराक संग रचनाशील छथि।