Monday, May 16, 2022

इन्टरव्यू:: विद्यापति कें सही-सही देखि सकय, ताहि आंखिक एखनो प्रतीक्षे अछि


 तारानंद वियोगीक संग किसलय कृष्णक संवाद


साहित्य लेखन मे अहाँक आगमन कहिया आ कोना भेल ?


ता न वि-- अपन गामक संस्कृत स्कूल मे प्राय: पूर्व मध्यमाक विद्यार्थी रहल होयब, जखन काव्यलेखन दिस हमर प्रवृत्ति भेल। सरड़ा गामक पं. इन्दुनाथ ठाकुर हमर गुरु रहथि जे मैथिली लेखन लेल हमरा प्रेरित केलनि। हाइ स्कूलेक विद्यार्थी छलहुं जखन मिथिला मिहिर मे हमर कविता, लेख आ कथा पहिल बेर छपल।

           लेखनक दुनिया मे हमर प्रवेश किताबक दुनिया सं, किताब पढ़ैत भेल। ओही उमेर मे हम हजारो किताब पढ़ि गेल रही। हम कतहु लिखनहु छी जे राजकमल जीक पित्ती मांगनि चौधरी-सन अजूबा पढ़ाकू बुजुर्ग संग हमर दोस्ताना छल। हजार पेजक किताब पढ़बा मे हुनका मुश्किल सं तीन घंटा लागनि। हुनके दुआरे राजकमलक पुश्तैनी सरस्वती पुस्तकालय मे हमर प्रवेश भेल छल। एहन पढ़ाकू सब आरो हमरा गाम मे कैक गोटे रहथि। ओइ दिन मे ट्यूशन सं जे हम कमाबी लगभग सबटा पाइ किताब किनबा मे उड़ा दिऐक। तें हिनका लोकनि संग हमर सम्बन्ध बराबरी पर छल। ओ नव किताब हमरा पढ़य देथि तं हमहूं नव-नव किताब हुनका सब कें देबाक स्थिति मे रहै छलहुं।

           एहू समय सं पहिनेक बात छी जे हम सब बमपार्टी नाम सं एक कीर्तन-मंडली तारास्थान मे कायम केने रही। अनेक गीतकारक गीत सब गाबियनि। ताही बीच हमरा एक दिन पता लागल जे हमरे गौआं थिका कपिल जी, मने कपिलेश्वर मिश्र, जिनकर लिखल गीत हम सब गाबै छी। ओ हमरा सं तीन-चारि साल सीनियर छला। हुनका सं भेंट करय गेलहुं तं बहुत आश्चर्य लागल छल आ भेल जे जं ई लिखि सकै छथि तं हमहू लिखि सकै छी। ओहि समयक बहुतो रास हमर गीत एहन अछि जकर साहित्य मे कोनो हिसाब नै छै मुदा हमरा इलाका मे एकरा एखनो अहां गाओल जाइत सुनि सकै छी।


मैथिली साहित्य मे कोन लेखक/कविक रचना सँ प्रभावित भेलहुँ अहाँ ?


ता न वि-- मैथिली पढ़बा दिस हमर प्रवृत्ति कने बाद मे जा क' भेल। मधुप जीक झांकार, योगा बाबूक नाटक मुनिक मतिभ्रम, श्यामसुंदर झाक उपन्यास दाम्पत्य-सौरभ, रमानाथ बाबूक उदयनकथा, बलदेव मिश्रक रामायणशिक्षा-- ई सब किताब हमरा कोर्स मे छल। प्राय: तखने हमरा समझ मे इहो बात आबि गेल छल जे अपना समयक सर्वश्रेष्ठ कृति सब जे होइए तकरा कोर्स सं बाहरे रहबाक रहै छै। तें, मोन पड़ैए--यात्री जीक कविता जखन हम पहिल बेर पढ़ने रही, पन्द्रह-सोलह के रहल होयब तहिया, एकटा अननुभूत काव्य-संसार मानू हमर प्रतीक्षा मे छल, जकर द्वार एहि घटनाक संगहि हमरा लेल अनावृत्त भ' गेल छल। एहन किछु कविता सीताराम झा लग मे सेहो भेटल छल, द्विजवर जीक कोइलीदूती मे सेहो। मुदा, राजकमल कें जखन पढ़लियनि तकरा बाद तं हम वैह नै रहि गेल रही जे पहिने, मने तरुणावस्था मे रही।


एकदिसि बिहार सरकारक व्यस्ततम सेवा आ दोसर दिसि साहित्य सृजन ! समयक संतुलन कोना बनबैत छी ?


ता न वि-- हम अपना जीवन मे जे किछु प्राप्त क' सकलहुं किसलय, शपथपूर्वक कहै छी जे ई सब साहित्यक बदौलत छल। मोन पड़ैए, बीपीएससी मे चयनक बाद जखन एक पत्रकार हमरा पुछने रहथि जे एकर श्रेय ककरा दै छियै आ हम कहने रहियै जे कविता कें, तं बेचारे कें लागल रहनि जे कविता नामक कोनो महिला हेती। जखन कि ई असल मे एके साधै सब सधे के उदाहरण मात्र छल।हम अपन जीवन साहित्य कें देलियै, बांकी जीवनक सब जरूरति साहित्य पूरा केलक। साहित्य छोड़ि क' आन कोनो महत्वाकांक्षा कहियो नै रहल, तें समयक संतुलन बनेबाक समस्ये कहियो पैदा नै भेल। काजक बेर मे काज आ बांकी समय मे लिखापढ़ी, एहि क्रम मे कहियो गंभीर व्यवधान आएल हो, से कहियो नै भेल। हं तखन, अइ मे सब सं पैघ योगदान जं ककरो कहबै तं से हमर परिवार छल। अहां कें आश्चर्य लागत, आन-आन लोकक गार्जियन जतय अइ बातक लेल अक्सरहां दुखी होइ छथि, हमर कविता-लेखन सं हमर पिता अपना कें गौरवान्वित महसूस करथि। मिहिरक कोनो अंक मे हमर किछु छपय तं तकरा बरसो बरस बाद धरि पिताक सिरमा तर मे ओ अंक सब राखल देखल जा सकै छल। पिताक बाद यैह स्थान हमर पत्नी ल' लेलनि।


मैथिली साहित्य मे बेर बेर ब्राह्मण - गैर ब्राह्मणक प्रश्न उठैत अछि । आरोप इहो लगैत अछि, जे एकटा क्षेत्र विशेषक सवर्ण साहित्यकार लोकनि मैथिली केँ हथिया कय रखने अछि । अहाँक अनुभव एहि सन्दर्भ मे की कहैत अछि ?


ता न वि-- हमर जे अनुभव अछि से अहांक बातक समर्थन करैत अछि। कथनी आ करनी मे फरक कें सब सभ्यता मे खराब बात मानल गेल अछि। मुदा, अपना ओतय बुझू जे यैह चीज संस्कारवान हेबाक प्रमाण होइत छैक। मैथिली ब्राह्मणक भाषा छी, ई बात ब्राह्मणे लोकनि स्थापित केने रहथि। मने मैथिल महासभा मे मैथिली कें ग्रसि क'। गोप महासभा जखन दावा केलकै जे भाइ, मैथिली तं हमरो सभक भाषा छी, ताहि मोताबिक तं हमरो सब कें महासभाक सदस्यता भेटबाक चाही। अपना सभक इतिहास कते गंदा अछि, तकर की चर्चा करी! मानक मैथिलीक फंदा ऊपर सं लादल अछि। आइ अहां मठोमाठ लोकनिक मुंहें सुनब, मैथिली तं सबहक भाषा छियै। मुदा, ई मात्र हुनकर कथनी छी। करनी जखन देखबै तखन असलियत पता लागत। अंगिका-बज्जिका आन्दोलन असल मे की छी? एही हथियेबाक विरुद्ध स्वाभिमानक संघर्ष छी। एहन घटनाक्रम आगू अहां और देखबै जं हथियेबाक ई हुंठ षड्यंत्र बंद नै भेल। एकरा बंद हेबाक कोनो लक्षण अइ दुआरे हमरा नै देखाइए जे आइ जते जे क्यो मैथिलीक ठिकेदार सब छथि, किनको मे ने तं भाषा आ भूमिक प्रति कोनो भविष्यदृष्टि छनि, ने मैथिल संस्कृति के वास्तविक समझ। अपन कथनी मे जे सब सं पैघ मातृभक्त क' क' बांहि फड़कबैत देखल जेता, करनीक विश्लेषण करब तं संभव जे हुनके सब सं पैघ मातृहन्ताक स्थान पर राखय पड़य।

             


की अहाँ केँ नहि लगैत अछि जे विद्यापतिक लेखन खाँटी मैथिली लोकभाषा मे भेलन्हि, जे एखनहुँ समाजक एकटा पैघ हिस्सा मे प्रयुक्त होइत अछि , मुदा विद्यापतिक बाद ओ लोकभाषा केँ रचनाकार लोकनि संस्कृतनिष्ठ करैत गेलाह आ एकटा सीमित क्षेत्र आ वर्ग मे प्रयुक्त शैली केँ मानक घोषित करैत शेष मिथिला पर लादि देल गेल ?


ता न वि-- हरेक भाषिक भूगोलक अपन-अपन जातीय कविता होइ छै किसलय। ई चीज खाली लैटिन कि चीनी, तमिल कि बंगले के हेतै, से नहि। ई चीज मिथिला के सेहो हेतै। दुर्भाग्यक बात छी जे आइ धरि ने कोनो इतिहासकार के ध्यान अइ दिस गेलनि ने आलोचक के। फल भेल जे मिथिलाक जातीय कविता रूप सब कें नौजवान कवि सब की बुझितथि जे ओ आन-आन देशीय जेना जापानक जातीय कविता(जेना हाइकू) कें बुझबा मे अपस्यांत रहला। कते बात तं उनटे बुझैत रहला। जेना, छंद मैथिली कविताक जातीय वस्तु नहि थिक विजातीय वस्तु थिक। एकर बदला जातीय वस्तु लय छी। मुदा पंडी जी लोकनि उनटे बतौता। विद्यापतिक कविता लय मे छनि, छंदक हिसाबें देखबनि तं हजार गलती भेटत। मुदा, ताहि सं की?

           विद्यापति पहिल व्यक्तिकवि छला जे मिथिलाक जातीय कविता कें लिखबा योग्य भाषा मे ग्रथित केलनि। स्वाभाविक छल जे हुनकर कविता मे कथनशैली, शब्दावली, अभिव्यक्ति-भंगिमा सब कथू ठेठ मैथिल छल। जातीय साहित्यक स्वभाव होइ छै जे रचना तं कालान्तर मे बचल रहि जाइत अछि मुदा रचनाकार तिरोहित भ' जाइत अछि। सैह विद्यापतियोक संग भेलनि। हुनकर भणिता तं तते सर्वव्यापी भेल जे सैकड़ो कवि हजारो पद भनहि विद्यापति लगा क' लिखलनि। मुदा, विद्यापति स्वयं आदमी सं मिथक मे परिवर्तित भ' गेला। उगना आ गंगा आदिक किंबदन्ती एकर प्रमाण छी। अहां देखबै जे 1860, जकरा इतिहासकार लोकनि आधुनिक युगक आरंभ मानैत छथि, अबैत-अबैत विद्यापतिक व्यक्तित्वक जाबन्तो परिचिति मिथिलाक बुद्धिजीवी लोकनि कें विस्मृत भ' चुकल छलनि। तकर प्रमाण अहां बिहारीलाल फितरत के इतिहास-पुस्तक 'आइना-ए-तिरहुत' (1881) मे पाबि सकै छी जतय हुनका बड़ भारी नैयायिक बताओल गेलनि अछि आ एही ख्याति सं बिसफी गाम दान मे पबैत देखाओल गेल अछि। वास्तविकता ई अछि जे विद्यापति न्याय पढ़लनि वा लिखलनि तकर कतहु कोनो साक्ष्य नै अछि, स्वयं पं. गोविन्द झा सं पूछि लियनु। दोसर दिस अहां देखबै जे रमानाथ बाबू आदिक सब सं बेसी उद्यम अइ बातक लेल भेलनि जे विद्यापतिक व्यक्तित्व ठाढ़ कयल जाय। ई की छल? 'लोक' के संपति कें छीनि क' शास्त्रीयताक कठघरा मे बंद करबाक मानक प्रयास छल।

           स्थिति ई अछि जे जकरा ओ लोकनि 'मानक मैथिली' कहै छथि, स्वयं विद्यापतिये ओइ मे अंटि नै पबै छथि, हुनकर कोनो ने कोनो अंग ओइ सांचा सं बाहर भ' जाइत छनि। किछु विद्वान तं एहनो धृष्टता कइये चुकल छथि जे विद्यापतिक प्रयोग कें अशुद्ध मानि क' ओकर शुद्धीकरण धरि क' चुकलाहे। हम पुछै छी, मानक क्षेत्रक कोन ब्राह्मण पुरुष अपन स्त्री सं अइ भाषा मे गप करै छथि जे 'तोहें जे कहै छह गौरा नाचय, हम कोना नाचब हे'? आ कि पंचग्रामक कोन स्त्री कुदृष्टिक विरोध करैत एना कहि सकै छथि जे 'जञो दिठियौलए, ई मति तोर/ पुनु हेरसि हो खापड़ि मोर'। मोन राखू, चोट भने पनही सं पिटला पर बेसी लगैत हो, मुदा स्त्री-हाथक खापड़ि जं चानि पर पड़ि जाय तं पुरुषसत्ताक मानमर्दन बेसी ठीक ढंग सं होइ छै। खापड़ि कोन स्त्रीक अस्त्र छिऐक, मोन पाड़ि लिय'।

           की कहू, विद्यापति पर तं पचीस हजार पेज सं ऊपरक सामग्री विद्वान लोकनि लिखि चुकला अछि, मुदा विद्यापति कें सही-सही देखि सकय, ताहि आंखि के एखनो प्रतीक्षे अछि। आ एहि बेचारी मैथिलीक तं ई दशा भेल जे जकरा सिद्ध लोकनि, गैरब्राह्मण कलाकार लोकनि संस्कृतक प्रतिरोध मे आविष्कृत केने छला तकर पर्यवसान संस्कृतक पिछलगुआ भ' क' भ' रहल अछि। पंडित कवि लोकनि तं साफ-साफ लिखने छथि-- भाषा-सौन्दर्यक गति न आन। पिछलगुआ बनने बिना मैथिलीक कोनो आन गति नै छै।


मैथिली साहित्यक वर्तमान परिदृश्य केँ कोन रुपेँ देखैत छी, खासकय सोशल मिडिया माध्यमें धर्रोहि लागि रहल रचना संसार केँ ?


ता न वि-- कहबी छै जे अज्ञानी के हजार अपराध माफ रहैत अछि। जं क्यो मैथिली मे लिखैत छथि तं हुनका लेल सब सं जरूरी अछि जे हुनका लग मिथिलाक अपन एक विस्तृत समझ हेबाक चाही। दोसर जे मैथिली साहित्यक परंपरा, पृष्ठभूमि आ विशिष्ट लेखन सं घनिष्ठता हेबाक चाही। सोशल मीडिया कें अइ अर्थ मे तं हम बहुत उपयोगी मानै छी जे अभिव्यक्ति कें लोकतांत्रिक बनेलक अछि। मुदा, प्रश्न अछि जे अहां लग बात की अछि, ओ बात समाज आ साहित्यक लेल मूल्यवान कते अछि? आइ धरि जे मैथिली लेखक लोकनि लेखन क' चुकल छथि, ताहि मे अहां नवीन की क' रहल छी?

           मुदा दुखक बात ई अछि जे मैथिलीक माहौल एते गंदा बना देल गेलैए जे अइ सब बात कें सोचब आउटडेटेड भ' गेल छै। कचड़े लिखने सं जं किनको यश, सम्मान आ पुरस्कार भेटैत हुअय, तं अहां कहू जे के अभागल हेता जे एते तैयारीक संग साधनापूर्वक मैथिली लिखबा लेल उद्यम करता?


कथा, कविता, समीक्षा आ इतिहास मे समानांतर अहाँक कलम चलैत रहल अछि । सभ सँ प्रिय विधा कोन थिक ?


ता न वि-- हम अपना कें मूलत: कवि मानै छी। बांकी समस्त लेखन कें अहां हमर कवि-कर्मक विस्तार मानि सकै छी।


साहित्य अकादमी आ आन छोट पैघ पुरस्कार प्रक्रिया केँ कोन रुप मे देखैत छी ?


ता न वि-- मैथिलीक स्थिति कें देखैत बात करी तं श्रेष्ठ लेखन आ पुरस्कार दुनू बिलकुल अलग-अलग विपरीत ध्रुवक चीज छी, आ अधिकतर एक दोसरक विरोधी दिशा मे चलैत अछि। दस बरस पहिने कहियो एहनो भ' जाइ जे श्रेष्ठ कृति कें सेहो पुरस्कार भेटि गेल करैक। आइ तं सपनो मे अहां एकर कल्पना नै क' सकै छी। एकर कारण थिक दोषपूर्ण चयन-प्रक्रिया जकरा जानि-बूझि क' अपनाओल जाइत अछि। असल मे पुरस्कार जकरा हाथ मे रहै छै से अपने तं सृजनात्मक होइत अछि नहि, तें लेखनक गुणावगुण कें परखबाक कोनो दृष्टियो ओकरा मे नै होइछ। एकर स्थान पर ओ तुच्छ मनोवृत्ति सब सं संचालित होइछ आ पुरस्कार एक व्यवसाय मे बदलि जाइछ जकर जं बहुतो गंहिकी होइ छथि तं उखाड़-पछाड़ के ओकर अपन स्वतंत्र राजनीति होइ छै। 

            अकादमी आ संस्था सभक पुरस्कारक संग जं ई संकट छै तं दोसर दिस व्यक्तिगत प्रयास सं जे पुरस्कार संचालित होइत अछि तकरो स्थिति अहां ठीक नहि कहि सकै छियै। हुनका सब लग श्रेष्ठ लेखन कें खोजि सकबाक ने हुनर रहै छनि ने इच्छाशक्ति, तें अधिकतर अहां देखबै जे एहन पुरस्कार सब मैथिलीक श्रेष्ठ लेखनक विकास मे अपन कोनो योगदान नै रचि पबैत अछि। यात्री जी बड़ बढ़ियां कहथिन जे पुरस्कार की छी? गोबरक चोत छी। गाय कें की पता जे घरबे कोनो कर्मक छथि कि नहि, ओ तं धप सं अपन चोत खसा देत, सैह हाल अइ पुरस्कार सभक अछि। नीक बात ई थिक जे एहि दुष्चक्र कें तोड़बाक कोशिश सेहो भ' रहल छै। लक्ष्मी-हरि उपन्यास सम्मान कें अहां एकर दृष्टान्तक रूप मे देखि सकै छी।


मैथिली मे पाठकीयताक संकटक की कारण देखैत छी ?


ता न वि-- दशको सं ई सर्वसम्मत बात मानल जाइत अछि जे भारत मे साहित्यक सब सं बेसी पाठक बिहार मे बसै छथि आ बिहार मे मिथिला-क्षेत्र एहि मे सर्वोपरि अछि। मुदा, दुखक बात जे ई मैथिल पाठक लोकनि आन-आन भाषाक साहित्यक हाथें बन्हकी लागल छथि। उन्नत स्तरक जे साहित्यिक पाठक छथि, एक तं हुनका मैथिली पढ़ब ओरियाइत नै छनि, दोसर घटिया लेखनक दबाव मैथिली पर तेहन भारी छै जे एक किताब उनटा गेलाक बाद फेर हुनकर प्रवृत्ति मैथिली पढ़बा दिस हेतनि तकर कोनो संभावना नै बचैत अछि। दोसर दिस, मैथिली मे लेखन केनिहार लोकनि अपने सेहो तते बापुत छथि जे पाठकीयताक दुर्बलता दूर क' सकै छथि। मुदा, जे अपने मैथिलीक लेखक छथिहे से एकर पाठको किए हेता? आ जे स्वयं शिक्षके छथि मैथिलीक, हुनका फेर सं मैथिली पढ़बाक कोन काज? एहनो स्थिति मे मुदा आशाक किरण छथि ओ पाठकवर्ग, जे अपन अस्मिताक खोजवश मैथिली पढ़बा सं जुड़ला अछि। उन्नत बौद्धिक स्तरक यैह पाठकवर्ग भविष्य थिका, मुदा हुनका टारगेट क' लिखैत अहां कें कम्मे मैथिली लेखक भेटता।


नवागन्तुक रचनाकार सभ लेल की कहय चाहबनि ?


ता न वि-- एकटा खिस्सा सुनबय चाहबनि। गुलशन नंदा कें एक बेर तेख चढ़लनि जे एहन पोपुलर राइटर छथि ओ, लाखो पाठक छनि, दर्जनो फिल्म छनि मुदा साहित्यकार वर्ग मे हुनकर कोनो गिनतिये नहि छनि। हिन्दीक वरिष्ठ लेखक सब सं भेंट क' क' ओ अलख जगेबाक प्रयास मे लगला। दिनकर जी तं हुनका सं गप्पो करब स्वीकार नै केलखिन, डांटि क' भगा देलखिन। मुदा, हजारीप्रसाद द्विवेदी लग गेला तं नीक स्वागत भेलनि। पुछलखिन-- हम एते लिखने छी, मुदा हमरा क्यो साहित्यकार मानिते नहि छथि, जखन कि अहां कें लोक बड़ पैघ लेखक मानै छथि। एना किएक? हजारी बाबू कहलखिन-- असली कारण तं प्राय: हमरो नै बूझल अछि तखन भ' सकैए जे यैह कारण हो जे अहां बेसी लिखने छी जखन कि हम बेसी पढ़ने छी।

               दोसर बात हम कहबनि, जं वास्तव मे साहित्य-क्षेत्र मे किछु पैघ करबाक होइन तं पुरस्कारक बदला मे निन्दा आ विरोध के उम्मीद राखि क' चलथि। हरेक जड़ समाज जाग्रत-जीवन्त लोकक विरोधे करैत आएल अछि। तकर उदाहरण मिथिला समाज मे सेहो कोनो कम नै छैक। काल्हियो, आइयो।

               कोनो लेखक अपन चरम सार्थकता कखन प्राप्त करैत अछि? तखन, जं हुनकर लिखलाहा सं ओइ भाषाक रकबा पैघ हुअय, ओकर सामर्थ्य बढ़य, ओकरा मे नवीन क्षमता उत्पन्न हुअय। स्वाभाविक बात छै जे जखन अहां कें बुझल रहत जे मैथिलीक लेखक लोकनि कोना-कोना मैथिलीक सामर्थ्य बढ़ौलनि अछि, तखने अहां लग ओ बात उद्घाटित होयत जे ओ कोन वस्तु छै जकरा आइयो धरि क्यो नै क' सकला, आ अहां तकरे करबाक लेल कलम उठेने छी। नवागन्तुक लोकनि कें एहि तरहें सोचबाक चाहियनि।


मैथिली पत्रकारिताक वर्तमान स्वरूप केहेन हेबाक चाही ? दैनिक 'मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश'क प्रकाशन पर किछु कहबैक ?


ता न वि-- लोकल आ ग्लोबल के समाहार बैसबैत कोना सत्यक संग भेल जा सकैत अछि, सैह आइ पत्रकारिताक सब सं पैघ चैलेंज छैक। मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश ठीक दिशा मे अपन यात्रा क' रहल अछि। एक सुझाव जे हम देबय चाहबनि, एहि मारुख समय मे सकारात्मक होयब तं जरूर कठिन छै लेकिन संपादक लोकनि ख्याल राखथु जे कोनो दिनका अखबार अपन सकल प्रभाव मे अपना पाठक कें कहीं आरो बेसी अवसादग्रस्त तं नै करैत अछि!


सम्प्रति कोन विषय वस्तु पर लेखन चलि रहल अछि ?


ता न वि-- एखन हम अपन पुस्तक 'मैथिली कविताक हजार वर्ष' कें अंतिम रूप देबा मे लागल छी। ई किताब अंतिका प्रकाशन सं दू खंड मे आबि रहल अछि। एकरा संग हम अपन पहिल उपन्यासक तैयारी मे सेहो लागल छी। ई महान शास्त्रीय गायक पंडित मांगनलाल प्रसिद्ध मांगनि खवासक बारे मे अछि जे विद्यापति गीत कें चलन मे अनबाक लेल ओ कतेक भारी संघर्ष केलनि आ कतेक विरोधक हुनका सामना करय पड़लनि। बीसम शताब्दीक लगभग आरंभिक पचास वर्षक मिथिलाक गति-कुगति एहि मे आओत।


अपन व्यस्ततम समय मे सँ समय देबाक लेल आभार आ आइ जन्मदिनक अवसर पर मैपुप्र परिवार दिस सँ आत्मीय शुभकामना


ता न वि-- सादर आभार।